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अहमदाबाद की उड़ान के दौरान ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन के साथ आए पत्रकार एक सवाल पूछने के लिए बेताब थे. वे जानना चाहते थे कि बोरिस भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ यूक्रेन संघर्ष पर कितनी दृढ़ता से बात करेंगे- चूंकि दोनों देशों का रुख इस मसले में अलग-अलग है. या क्या वह ब्रिटेन और भारत के बीच बहुप्रचारित मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) पर बातचीत में तेजी लाएंगे?
लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. बातचीत का मुख्य मुद्दा था, पार्टीगेट. वह स्कैंडल जो बोरिस जॉनसन के नेतृत्व पर काले साए की तरह मंडरा रहा है.
कोविड-19 प्रतिबंधों का उल्लंघन करने के चलते हाल ही में उन पर 50 पाउंड का जुर्माना लगा है. इन प्रतिबंधों को बोरिस जॉनसन की सरकार ने ही लगाया था.
और बात यहीं खत्म नहीं होती. डाउनिंग स्ट्रीट पर सोशल गैदरिंग में प्रधानमंत्री मौजूद थे, और इसके लिए भी उन्हें जुर्माना चुकाना पड़ सकता है.
इस आयोजन में सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों की खूब धज्जियां उड़ी थीं. बोरिस जॉनसन ने माफी जरूर मांगी है लेकिन इससे उनकी व्यक्तिगत छवि को नुकसान पहुंचा है. इसी के चलते विपक्षी लेबर पार्टी ने ओपिनियन पोल्स में बढ़त हासिल कर ली है.
बोरिस जॉनसन के लिए भारत यात्रा का सबसे बड़ा फायदा यह है कि वह वेस्टमिंस्टर से कुछ दिनों के लिए दूर रहेंगे. यह उनके लिए सुनहरी मौका है कि वह खुद को एक राजनेता के तौर पर पेश करें और विश्व मंच पर अपनी मौजूदगी दर्ज कराएं.
बोरिस इस बात पर चिंता जताएंगे कि भारत ने यूक्रेन पर रूस की चढ़ाई की निंदा नहीं की लेकिन वह इस विषय को तूल नहीं देंगे. वह दिल्ली से अपील करेंगे कि वह कार्बन न्यूट्रल बनने और जलवायु परिवर्तन के संकट को दूर करने में तत्परता दिखाए.
बोरिस जॉनसन का असल मकसद व्यापार समझौता है. ब्रेक्जिट के बाद यह उनकी एक बड़ी उपलब्धि होगी.
यूरोपीय संघ (EU) को छोड़ने के बाद यह जरूरी था कि ब्रिटेन और दूसरे बड़े व्यापारिक पक्षों के बीच मुक्त व्यापार सौदों की जमीन तैयार की जाती.लेकिन ऐसा नहीं हुआ.
सबसे बड़ी कामयाबी यह होती कि अमेरिका के साथ समझौता हो जाता, लेकिन इसकी संभावना नहीं है. ऐसे में भारत के साथ समझौता होना, उनके लिए एक ईनाम जैसा होगा.
इस बारे में बातचीत जनवरी में ही चालू हुई लेकिन बोरिस चाहते हैं कि इस सौदे को अगले छह महीने में ही अंतिम रूप दे दिया जाए. यह उनकी महत्वाकांक्षा ही है, क्योंकि दिल्ली में वार्ताकारों को बहुत कुछ समझना-बूझना होगा.
वे अपनी नीति के अनुसार ही काम करेंगे. ब्रिटेन को भी अपनी वीजा प्रणाली को और उदार बनाना होगा, वीजा की फीस में कटौती करनी होगी, यूके में भारतीय स्टूडेंट्स के लिए काम के अवसर बढ़ाने होंगे और और भारतीय प्रोफेशनल क्वालिफिकेशंस को मान्यता देनी होगी.
दूसरी तरफ ब्रिटिश सरकार परदेसियों को लेकर कुछ अनमनी रहती है, और यह सब उसके खिलाफ जाता है. हां, भारत को कुछ रियायत मिल सकती है.
बोरिस जॉनसन ने इस हफ्ते कहा था कि ब्रिटेन में दक्ष लोगों की “भारी कमी है”, जिसमें “आईटी एक्सपर्ट्स और प्रोग्रामर्स” शामिल हैं. यानी उन्होंने भारत की आईटी कंपनियों को यूके में अपने कामकाज को बढ़ाने का न्यौता दे दिया है.
गुजरात में उद्योगपतियों से मिलने और निवेश और आर्थिक समन्वय के अवसरों पर बातचीत करने के बाद बोरिस जॉनसन 22 अप्रैल को मोदी से बातचीत करेंगे. वह पहले ब्रिटिश प्रधानमंत्री हैं जो गुजरात गए हैं. इसकी एक वजह यह है कि वह गुजरात के आर्थिक प्रदर्शन से प्रभावित हैं, साथ ही साथ यूके में बड़े गुजराती समुदाय को लुभाना चाहते हैं. एक बात और है, वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गृह राज्य के लिए सम्मान भी दर्शा रहे हैं.
बोरिस जॉनसन को उम्मीद है कि उनकी पिछली विदेश यात्राओं की तरह, भारत दौरा भी अच्छा साबित होगा.
उन्होंने इस महीने की शुरुआत में यूक्रेन के लोगों के साथ एकजुटता दिखाने और राष्ट्रपति वोलोदीमीर जेलेंस्की के साथ सैन्य और मानवता के मुद्दे पर बातचीत के लिए कीव का दौरा करने का साहसी कदम उठाया था.
जेलेंस्की ने ब्रिटेन के समर्थन और बोरिस जॉनसन की व्यक्तिगत भूमिका के लिए उन्हें बहुत सारा धन्यवाद दिया था.
हां, ब्रिटिश प्रधानमंत्री, भारत के प्रधानमंत्री के एक सवाल पूछने में हिचक सकते हैं. वह यह कि चुनावों में दोबारा जीत हासिल करने का मंत्र क्या है? यह बात और है कि यह सवाल उनके दिमाग में खलबली जरूर मचा रहा होगा.
(एंड्रूयू व्हाइटहेड बीबीसी इंडिया के पूर्व संवाददाता हैं. यह एक ओपनियन पीस है. यहां व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट का उनसे सहमत होना जरूरी नहीं है.)
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Published: 22 Apr 2022,12:45 PM IST