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देशभर में चोटियां कट रही हैं. कमाल की बात ये है कि देश की राजधानी दिल्ली से लेकर कई राज्यों में महिलाओं की चोटियां लगातार कट रही हैं. तरह-तरह की अफवाह भी है. अफवाहें चोटी कटने से भी तेजी से फैल रही हैं.
ये अफवाहें उसी तरह की हैं, जैसे 21 सितम्बर 1995 को पूरे देश में ये अफवाह फैल गई कि गणेश जी दूध पी रहे हैं. मतलब किसी भी मूर्ति को दूध पिलाइए, वो सीधे गणेश जी पी रहे हैं. ये अफवाह ऐसी फैली कि लोगों ने अपने घर में गणेश मूर्ति के सामने भी दूध से भरा चम्मच लगा दिया. लाखों लीटर दूध पत्थर की मूर्तियों के जरिए बहा दिया गया.
भारतीय समाज अफवाहों के साथ कितनी तेजी से चल देता है. इस तरह की घटनाएं इसका पुख्ता प्रमाण पेश करती हैं. ऐसे ही 2001 में दिल्ली में मंकीमैन का आतंक फैला था. हालांकि, कई स्तरों की जांच के बाद साफ हुआ कि मंकीमैन जैसा न तो कोई जानवर था और न ही कोई व्यक्ति. ये अफवाह भर थी. लोगों के दिमाग की उपज थी. उस अफवाह का लोगों के मानस पर ऐसा प्रभाव पड़ा कि एक दर्जन से ज्यादा लोगों ने खुद पर मंकीमैन के हमले की बात कही.
मंकीमैन की ही तरह एक समय मुंहनोचवा का आतंक था. मुंहनोचवा और मंकीमैन ने हिंदुस्तानी समाज से छतों पर, खुले में सोने की आजादी बिना कहे छीन ली थी. कमाल की बात ये कि दिल्ली पुलिस की जांच में मंकीमैन या मुंहनोचवा कहीं नहीं मिला. लेकिन, कुछ सालों बाद अचानक कुछ समय के लिए अफवाहों का मंकीमैन कानपुर में प्रगट हो गया था. हालांकि, कुछ ही समय बाद वो भी गायब हो गया.
भारतीय समाज को अफवाहों पर जीने की कितनी आदत है. इसका अंदाजा उस समय भी लगा, जब 2014 में राजस्थान की राजधानी जयपुर के सरकारी चिड़ियाघर, पशुघर में एक ऐसे जानवर के होने की अफवाह फैल गई, जिसका शरीर महिला का है और मुंह जंगली सुअर जैसा. सोचिए कि वो सरकारी चिड़ियाघर था और वहां के प्रशासन के बार-बार सफाई देने के बावजूद चिड़ियाघर के बाहर उस विचित्र जन्तु को देखने को कतार लगी रही.
हिंदुस्तान में अफवाहें सुपरसोनिक रफ्तार से चलती हैं. इसका प्रमाण अभी चोटीकटवा मामले में मिला. उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले की कुंडा तहसील में लरु पाल के पुरवा गांव में एक लड़की की चोटी कट गई. अच्छा ये रहा कि पुलिस ने मामले में सख्ती से पूछताछ की. सख्ती हुई, तो पता चला कि घरवालों ने ही लड़की के बाल काट दिए थे. बाल इसलिए काट दिए कि पंजाब से किसी रिश्तेदार ने फोन करके बताया कि चोटी कटने पर सरकार लड़कियों के घरवालों को 1 लाख रुपये दे रही है.
पुलिस ने घरवालों पर साजिश रचने का मामला दर्ज किया है. लेकिन, पंजाब के रिश्तेदार को तो पुलिस कहां पकड़ेगी. लंबे समय से हर नुकसान पर सरकारी कृपा मिलने की आस में रहा भारतीय समाज ऐसी अफवाहों के बीच में थोड़ा नुकसान करके आर्थिक लाभ लेने की कोशिश में लग जाता है. साथ ही सामाजिक सहानुभूति अलग से मिलती है.
सिर्फ उत्तर प्रदेश में अब तक 74 से ज्यादा महिलाओं की चोटी कटने की अफवाह है. ये सवाल कोई नहीं पूछ रहा कि महिलाओं की उतनी ही चोटी क्यों कट रही है, जिससे महिला को किसी तरह का कोई नुकसान न हो. ये भी सवाल कोई नहीं पूछ रहा कि ऐसी महिलाओं की ही चोटी क्यों कट रही है, जो सामाजिक स्थिति के लिहाज से निचले पायदान पर हैं. ये भी सवाल कोई नहीं पूछ रहा कि ऐसा कौन सा चोटीकटवा गिरोह हो सकता है, जो एक साथ देश के कई राज्यों में लगातार चोटियां काट रहा है.
कई बार ये बात सामने आती है राजा-रजवाड़ों के दौर मैं, मुगल शासकों के दौर में और फिर ब्रिटिश गुलामी के दौर में हिंदुस्तानी समाज बहुतायत तर्क करने की शक्ति खोता रहा. वो डरपोक बनता रहा. और अफवाहें हमेशा किसी एक डरे हुए व्यक्ति डर की पीठ पर सवार होती हैं और फिर तेजी से ऐसे ही डरे लोगों की पीठ का इस्तेमाल करके फैल जाती हैं. फिर वो अफवाह से पहला डरने वाला खोज पाना किसी भी तंत्र के लिए लगभग नामुमकिन हो जाता है.
ऐसी अफवाहों का बुरा पहलू आगरा में देखने को मिला. वहां एक 65 साल की महिला को चोटीकटवा होने के संदेह में लोगों ने पीटकर मार दिया. आज तक अफवाह के जरिए फैली ऐसी किसी भी घटना के होने का प्रमाण नहीं मिला और वो खबरों के साथ ही गायब हो गई. मुझे लगता है कि बस इंतजार कीजिए, हफ्ते या दो हफ्ते. इससे ज्यादा किसी भी खबर की ताकत थमने की होती नहीं. और इससे ज्यादा ये चोटीकटवा की अफवाह भी टिक न सकेगी. पहले के समाज में ब्राह्मण शिखा या चोटी धारण करता था.
फिर पता नहीं कब वो चोटी ब्राह्मण जाति से जुड़ गई और उसका ज्ञान से वास्ता लगभग खत्म हो गया. मैं समझ पाता हूं कि उसी के साथ शास्त्रार्थ, तर्क करने की हिंदुस्तानी समाज की क्षमता भी खत्म सी होती गई.
अभी समाज में कोई ऐसा चोटीधारी नहीं है, जो खड़ा होकर कहे कि चोटीकटवा अफवाह है और उसे देश के लोग मान लें. इसलिए मेरा मानना है कि ये महिलाओं की चोटी कटने की अफवाह नहीं है. ये हमारे समाज की तर्कशक्ति, वाद-विवाद की क्षमता, ज्ञान का आलोक कम होने का प्रमाण है.
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