advertisement
गुरुवार, 23 जून को आयोजित ब्रिक्स वर्चुअल शिखर सम्मेलन (BRICS Meet) बहुत मामूली रहता, लेकिन इस दौरान एक बड़ा भूराजनैतिक बदलाव हुआ. इस बदलाव में ब्रिक्स के दो प्रमुख सदस्य शामिल थे- चीन और रूस. हालांकि ब्रिक्स आर्थिक मुद्दों से जुड़ा मंच है लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं है कि इस बैठक के दौरान यूक्रेन संघर्ष छाया रहा.
हालात को सुधारने के बारे में इस वक्तव्य में कहा गया है कि उन्होंने "मानवता, तटस्थता और निष्पक्षता के बुनियादी सिद्धांतों के अनुसार" मानवीय सहायता प्रदान करने के लिए संयुक्त राष्ट्र महासचिव, विभिन्न संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों और रेड क्रॉस की अंतरराष्ट्रीय समिति के प्रयासों का समर्थन किया है.
ब्रिक्स आर्थिक मुद्दों से जुड़ा मंच है लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं है कि इस बैठक के दौरान यूक्रेन संघर्ष छाया रहा.
ब्रिक्स देशों में चीन यूक्रेन मामले पर रूस का समर्थन करता रहा है लेकिन दूसरे देशों ब्राजील, भारत और दक्षिण अफ्रीका ने तटस्थ रुख अपनाया है.
संयोग से यह बैठक जर्मनी में सात अमीर देशों के समूह (जी-7) की बैठक से कुछ दिन पहले हुई है. जी-7 के एजेंडे में रूस के खिलाफ प्रतिबंधों को कड़ा करना शामिल हो सकता है.
ब्रिक्स देशों में चीन, यूक्रेन मामले पर रूस का समर्थन करता रहा है लेकिन दूसरे देशों ब्राजील, भारत और दक्षिण अफ्रीका ने तटस्थ रुख अपनाया है. उन्होंने खुलकर रूस की आलोचना भले न की हो लेकिन युद्ध खत्म करने के लिए बातचीत की अपील की है. इसके अलावा चीन और भारत ने इस स्थिति का फायदा भी उठाया है. रूस के पास रियायती दरों पर तेल उपलब्ध है, और इन दोनों देशों ने रूस से ढेर सारा सस्ता खरीदा है.
राष्ट्रपति पुतिन को इस बैठक में एक अंतरराष्ट्रीय मंच मिल गया. उन्होंने इस मंच पर यूक्रेन युद्ध के अपने गुनाह के लिए कोई अफसोस नहीं जताया. बल्कि, यहां उन्होंने बहुत सावधानी से उसी रूसी नेरेटिव को पुख्ता किया. उन्होंने ‘खुदगर्ज’ पश्चिम पर आरोप लगाया कि उसने दुनिया भर के देशों में अपनी “गलतियों पर परदा डालने के लिए एक वित्तीय चाल चली है”. पुतिन ने कहा कि इस संकट से निजात पाने के लिए सभी देशों को एक दूसरे के साथ सहयोग करना चाहिए.
उन्होंने इस बात की तीखी आलोचना की कि अमेरिका ने चीन पर निर्यात प्रतिबंध लगाया है. उन्होंने कहा कि “जो लोग एकाधिकार हासिल करना चाहते हैं और दूसरे देशों के इनोवेशन और विकास में अड़ंगा लगाने के लिए विज्ञान और टेक्नोलॉजी में रुकावट पैदा करना चाहते हैं, जिससे उनका प्रभुत्व बना रहे, उन लोगों का नाकाम होना तय है.”
साफ तौर से, ब्रिक्स शी जिनपिंग के लिए एक जरिया है ताकि वह अपने फायदे के लिए विश्व व्यवस्था को नया रूप दे सकें. इसके मद्देनजर शी ने घोषणा की कि ग्लोबल सिक्योरिटी इनीशिएटिव (जीएसआई) को लागू करने और “विश्व में स्थिरता कायम करने तथा सकारात्मक ऊर्जा पैदा करने के लिए” चीन ब्रिक्स के दूसरे देशों के साथ काम करना चाहता है.
शी ने पिछले महीने ही जीएसआई को पेश किया है. इसके तहत एक समान, व्यापक, सहयोगपरक और सतत सुरक्षा के नजरिये पर चर्चा की पेशकश है. शी के मुताबिक, इसका मकसद “सुरक्षा के लिए एक नया रास्ता तैयार करना है, जिसमें टकराव नहीं, संवाद हो.” उन्होंने कहा कि 2021 में उन्होंने ग्लोबल डेवलपमेंट इनीशिएटिव का प्रस्ताव रखा था- जीएसआई उसके जैसा है. 2021 के इनीशिएटिव का मकसद, “ऐसा वैश्विक विकास था जोकि मजबूत, हरित और सेहतमंद हो.”
भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की टिप्पणी संयत थी. उन्होंने कहा कि वैश्विक अर्थव्यवस्था के संचालन को लेकर ब्रिक्स सदस्यों का नजरिया एक जैसा है और उसे कोविड बाद की आर्थिक बहाली के लिए आपसी सहयोग करना चाहिए. उन्होंने कहा कि इस संगठन ने पिछले कुछ वर्षों में अपने प्रभाव को बढ़ाने के लिए संरचनात्मक परिवर्तन करने में कामयाबी हासिल की है.
इससे पहले बुधवार को, ब्रिक्स व्यापार मंच पर उन्होंने कहा था कि भारतीय अर्थव्यवस्था में इस साल 7.5 प्रतिशत की वृद्धि होगी और भारतीय डिजिटल अर्थव्यवस्था का मूल्य 2025 तक एक ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच सकता है. उन्होंने कहा कि कोविड महामारी से निपटने के लिए भारत ने “रिफॉर्म, परफॉर्म और ट्रांसफॉर्म” (सुधार, प्रदर्शन और परिवर्तन) के मंत्र को अपनाया था और भारतीय अर्थव्यवस्था में इसका अच्छा असर दिखाई दिया है.
हालांकि इसके बाद गठित न्यू डेवलपमेंट बैंक बहुत अच्छी तरह से काम कर रहा है, और जैसा कि प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, इसने वास्तव में नए सदस्यों को आकर्षित किया है.
शुक्रवार को शिखर सम्मेलन के मेजबान राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने कई अतिथि देशों के साथ वैश्विक विकास पर एक उच्च स्तरीय वार्ता की अध्यक्षता की.
संयोग से यह बैठक जर्मनी में सात अमीर देशों के समूह (जी-7) की बैठक से कुछ दिन पहले हुई है. ब्रिक्स के दो नेताओं, भारत के प्रधानमंत्री मोदी और दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामफोसा को इस बैठक में विशेष अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया है. जी -7 के एजेंडे में रूस के खिलाफ प्रतिबंधों को कड़ा करना शामिल हो सकता है.
लेकिन जिस एक बात ने चीन को परेशान किया है, वह है नाटो के महासचिव जेन्स स्टोलटेनबर्ग का इंटरव्यू. यह इंटरव्यू उन्होंने इस हफ्ते के शुरू में दिया था. इंटरव्यू में जेन्स ने कहा था कि 29-30 जून को नाटो नेताओं की बैठक में चीन के मुद्दे पर चर्चा की जाएगी. इस शिखर सम्मेलन में ऑस्ट्रेलिया, जापान, न्यूजीलैंड और दक्षिण कोरिया को विशेष अतिथि के रूप में आमंत्रित करने की योजना है.
चीन के आधिकारिक प्रवक्ता, वांग वेनबिन ने गुरुवार को कहा कि "नाटो ने पहले ही यूरोप का सत्यानाश किया है, और अब उसे एशिया प्रशांत और पूरी दुनिया में गड़बड़ मचाना बंद करना चाहिए". उन्होंने मौजूदा युद्ध के लिए नाटो को जिम्मेदार ठहराया जिसकी वजह से "बड़ी संख्या में नागरिक मारे गए और लाखों लोग विस्थापित हुए".
(लेखक ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन, नई दिल्ली के प्रतिष्ठित फेलो हैं. यह एक ऑपिनियन पीस है और इसमें व्यक्त किए गए विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है.)
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)
Published: undefined