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बहुत विचार-विमर्श के बाद, पांच सदस्यीय BRICS (ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका) समूह ने नाटकीय रूप से अपनी सदस्यता को 11 देशों तक विस्तारित करने का निर्णय लिया है.
साउथ अफ्रीका के जोहान्सबर्ग में एक घोषणा के अनुसार, छह देशों - अर्जेंटीना, मिस्र, इथियोपिया, ईरान, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात को 1 जनवरी 2024 तक ब्रिक्स का पूर्ण सदस्य बनने के लिए आमंत्रित किया गया है.
ब्रिक्स में 6 और देशों के जुड़ने के बाद इस ब्लॉक का नया नाम क्या होगा, इसे हम भविष्य के लिए छोड़ देते हैं.
एक और बड़ा घटनाक्रम, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ औपचारिक बैठक की बात थी जो शायद उस तरह से नहीं हो पाई, जैसी की उम्मीद थी. हालांकि, दोनों को टेलीविजन पर बातचीत करते देखा गया लेकिन इस तरह की बात की जा रही है कि शायद 22 अगस्त को रिट्रीट में इन दोनों नेताओं के बीच ज्यादा अहम बातचीत हुई होगी.
गुरुवार, 24 अगस्त की देर रात फ्लैश हुए समाचार से हमें पता चला कि शी जिनपिंग और मोदी की मुलाकात हुई और दोनों नेता पूर्वी लद्दाख में "शीघ्र तनाव कम करने" पर सहमत हुए हैं.
इस बीच, मीडिया से बातचीत में विदेश सचिव वी एम क्वात्रा ने कहा कि प्रधानमंत्री ने राष्ट्रपति शी को LAC पर "अनसुलझे" मुद्दों पर भारत की चिंताओं को बताया. PM ने ये भी कहा है कि भारत-चीन के बीच संबंधों को सामान्य बनाने के लिए सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति बनाए रखना आवश्यक है.
दोनों नेता आखिरी बार 2019 में चेन्नई में एक औपचारिक शिखर सम्मेलन में मिले थे. वे पिछले साल नवंबर 2022 में बाली में जी20 शिखर सम्मेलन में 19वीं बार मिले थे लेकिन यह एक अनौपचारिक तरीके की मुलाकात थी. हालांकि, बाद में इसके नतीजे पर कुछ विवाद हुआ था.
अब उनके 9-10 सितंबर के बीच नई दिल्ली में जी20 शिखर सम्मेलन में फिर से मिलने की संभावना है. क्या इससे उनके बीच कोई औपचारिक मुलाकात हो पाएगी, इसका अभी केवल अनुमान ही लगाया जा सकता है.
यह ध्यान दिया जा सकता है कि भारत और चीन आपस में तीन चरणों की प्रक्रिया पर काम कर रहे हैं, जिसका उद्देश्य पूर्वी लद्दाख में "संघर्षबिंदु" कहे जाने वाले स्थानों से सेना को पीछे हटाना है. हालांकि, चीन ने भारतीय गश्त दल को रोक दिया, जिसके बाद दोनों ही तरफ ने करीब 50,000 सैनिकों की सीमा पर तैनाती कर दी.
बुधवार, 23 अगस्त को ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री का भाषण बहुत सोच समझकर और बारीकियों से भरा हुआ था. उन्होंने टेक्नोलॉजी और विकास के उन क्षेत्रों पर अनेक सुझाव दिए जिनमें भारत योगदान दे सकता है. इनमें सबसे पहले सूचीबद्ध किया गया 'अंतरिक्ष में सहयोग' था. उस दिन आना जब चंद्रयान-3 ने चंद्रमा पर उतरकर इतिहास रचा, यह कोई आश्चर्य की बात नहीं थी.
जहां तक उस विषय का सवाल है जिसने सबसे ज्यादा ध्यान खींचा वो है- ब्रिक्स का विस्तार.
प्रधानमंत्री ने साफ किया कि "भारत ब्रिक्स सदस्यता के विस्तार का पूरी तरह से समर्थन करता है. इसमें सर्वसम्मति के साथ आगे बढ़ने का स्वागत करता है."
ब्रिक्स खुद को उभरती आर्थिक शक्तियों के एकीकृत चेहरे के रूप में सामने रखता है, लेकिन वास्तविकता यह है कि संगठन के भीतर - दो बड़ी एशियाई शक्तियों - भारत और चीन के बीच खींचतान चल रही है.
कुछ संकेत इस बात के भी हैं कि पिछले हफ्ते ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रायसी ने प्रधानमंत्री मोदी से फोन पर बात की थी. आधिकारिक प्रवक्ता के अनुसार, उन्होंने "क्षेत्रीय और द्विपक्षीय मामलों" के साथ-साथ ब्रिक्स के विस्तार जैसे मुद्दों पर भी बात की. इसके बाद दोनों नेता जोहान्सबर्ग में भी मुलाकात कर चुके हैं.
ऐसा लगता है कि पश्चिमी मीडिया ने पूरा ध्यान इसी पर केंद्रित कर दिया और इसे 'भारत बनाम चीन' मुद्दे के रूप में पेश किया जा रहा है. शायद ऐसा कुछ हो भी. लेकिन ब्रिक्स सर्वसम्मति यानी आम सहमति से काम करता है और सभी पांच सदस्यों को छह नए सदस्यों पर सहमति बनानी होगी. न तो भारत और ना ही चीन.. सऊदी अरब, ईरान या संयुक्त अरब अमीरात जैसे देशों को अलग-थलग कर सकते हैं, लेकिन बाकी देशों में कुछ बातचीत जरूर हुई होगी.
इस महीने की शुरुआत में, भारतीय आधिकारिक प्रवक्ता ने स्पष्ट किया कि वास्तविक स्थिति यह है कि ब्रिक्स का विस्तार ब्लॉक के सदस्यों के बीच "पूर्ण परामर्श और सर्वसम्मति" के माध्यम से होगा.
"ब्रिक्स सदस्य आंतरिक रूप से मार्गदर्शक सिद्धांतों, मानकों, मानदंडों और पर चर्चा कर रहे हैं". ब्रिक्स के विस्तार की प्रक्रियाएं पूर्ण परामर्श और सर्वसम्मति की हैं. स्पष्ट रूप से, कुछ क्षेत्रों में इधर-उधर की बात हुई होगी.
एक ऐसे संगठन में जो आम सहमति पर काम करता है, उसकी सदस्यता के विस्तार के साथ काम करना और मुश्किल हो सकता है. अब, ग्यारह सदस्यों के साथ, चीजें और अधिक जटिल हो सकती हैं.
ब्रिक्स की सबसे बड़ी उपलब्धि 2014 में न्यू डेवलपमेंट बैंक की स्थापना रही है, जिसका मुख्यालय शंघाई में है. इसमें पांचों सदस्यों की बराबर हिस्सेदारी है. इसने लगभग 32 बिलियन अमेरिकी डॉलर का वितरण किया है, जिसमें अकेले 2021 में 7.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर शामिल हैं.
यह देखना बाकी है कि क्या सबकी हिस्सेदारी पहले जैसी ही रहेगी. किसी भी स्थिति में, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात जैसे देशों को कोई समस्या नहीं हो और ब्रिक्स कैंप के भीतर उनका होना एक बड़ा फायदा बनकर आए.
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