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बदनाम #BulliBai ऐप घटना ने जिन कुछ लोगों को सामने लाया, वह भले ही एक दूसरे से अपरिचित हों और उनकी गिरफ्तारियां भौगोलिक रूप से दूर रहने वाले युवाओं के रूप में दिखाई दे रही हो, लेकिन इस मामले में एक बात जो साफ तौर पर दिखाई दे रही है वह है नफरत, बदनामी और इस्लामोफोबिया में उनकी गहरी रुचि.
साइबर फॉरेंसिक एक शानदार प्रक्रिया या कार्यप्रणाली है. ये मूल रूप से क्रमबद्ध, तार्किक और वैज्ञानिक है, यह ज्ञान के द्वार खोलने के अलावा, किसी के तकनीकी कौशल का परीक्षण करने के मौके भी देती है. लेकिन हाल की घटना यह बयां करती है कि कैसे इस शासन ने ट्रेंड क्रिएट किए हैं उनके नेताओं और भक्तों की सेना ने लोगों और यहां तक कि पत्रकारों को भी निशाना बनाया है.
इन घटनाओं की ओर दुनिया का ध्यान तब ही जाता है जब इस तरह की अपमानजनक घटनाएं सामने आती हैं (#BulliDeals, #SulliDeals), जिसमें एक जैसे लोगों को जब बदनाम किया जाता है. और हाल के मामले में ये मुस्लिम महिलाएं थीं.
सबसे अहम यह समझना जरूरी है कि ऐसी क्या चीज़ है जिसने एक 18 साल की महिला, जो अभी तक कॉलेज में नहीं थी और दुर्भाग्यवश अनाथ थी, एक ऐसे अभियान को लीड करे जो अन्य महिलाओं को केवल इसलिए बेइज्जत और बदनाम करता है, क्योंकि वे मुस्लिम हैं, और वे अनादर की एक रेखा खींचते हैं.
कुछ देर के लिए, संघ परिवार ईकोसिस्टम को एक कॉर्पोरेट दिग्गज के रूप में देखें, जिसमें धार्मिक अल्पसंख्यकों के प्रति कट्टरता का प्रचार करनेवाले कई अभियान विभाग प्रमुखों के इशारे पर संचालित और निदेशक मंडल की देखरेख में किए गए 'वर्टिकल' के रूप में काम करते हैं.
इन 'विभागों' में प्रत्येक के अलग-अलग खंड हैं. हालांकि #SulliDeals और #BulliBai हमलों में अलग-अलग टीम लीडर हो सकते हैं, लेकिन उनकी प्रेरणा या रुझान उसी नफरत फैलाने वाली शाखा हैं जो 2014 से बेरोकटोक तौर पर प्रसारित की जा रही हैं.
अब जो कुछ सामान्य सा माना जाने लगा है, ऐसा राम जन्मभूमि आंदोलन के दौरान भी हो चुका है, और मुस्लिम महिलाओं की ऑनलाइन बदनामी और उन्हें तुच्छ समझते हुए यौन वस्तु समझने की जड़ें भी इसी आंदोलन की देन हैं, जो अब 'नए भारत' का प्रतीक है.
मुस्लिम महिलाओं के विपरीत, जिन पर मंदिर का नायक 'अधिकार' का दावा कर सकता था, आंदोलन में सबसे आगे महिलाओं को रखा गया, उदाहरण के लिए, उमा भारती और साध्वी ऋतंभरा को 'देवी' अवतार के रूप में पेश किया गया था, इस प्रक्रिया को भगवा वस्त्रों द्वारा आसान बना दिया गया था जिसे वे पहनतीं हैं.
छोटे शहरों के युवाओं के #BulliBai साइबर ड्राइव का हिस्सा होने पर आश्चर्य करना गलत है, क्योंकि अयोध्या आंदोलन स्वतंत्र भारत का अब तक का सबसे शक्तिशाली जन आंदोलन रहा है, जिसमें सबसे बड़ी हिस्सेदारी भी इन्हीं भीतरी इलाकों से रही है. इस आंदोलन की पहली बड़ी सफलता नए धर्म परिवर्तन करनेवाले लोगों को हजारों की संख्या में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में शामिल करना था, वह भी खास तौर से युवाओं को.
वे विभिन्न अवसरों पर अयोध्या में इकट्ठे हुए, जिन्हें बेरोजगारों की विशाल सेना, छोटे शहर और ऐसे ग्रामीण युवाओं से लिया गया, जिनकी पहचान और वर्चस्व लैंगिंग श्रेष्ठता लिए होती है क्योंकि वे खुद शोषित लैंगिक परिवेश से ताल्लुक रखते हैं. महिलाओं को भी आंदोलन में शामिल किया गया था, हालांकि उनकी भागीदारी कम दिखाई देनेवाली, लेकिन ज्यादा व्यक्तिगत थी.
अमान, बानो को तीन दशक या उससे भी पहले निशाना बनाया गया और अब शबाना आजमी और दूसरी 'नामचीन' मुस्लिम महिलाएं सूची में थीं, जो ऑनलाइन 'नीलामी' के लिए उपलब्ध थीं. ये मामूली बात नहीं कि, 'कैटलॉग' में शामिल 100 से ज्यादा महिलाएं कुशल पेशेवर थीं, इसलिए ऐसे लोगों की आंखों में लगातार चुभती रहती थीं.
सस्ते और आसानी से हासिल कर सकने वाली तकनीक के चलते अब टार्गेट कर के हमले करना आसान हो गया है. अब आंदोलन करना आसान हो गया है और वे व्यापक रूप से फैल गए हैं. लोगों को सड़कों पर उतरने के लिए प्रेरित करने की कोई आवश्यकता नहीं है - ऐसे साइबर अभियान तब भी छेड़े जा सकते हैं जब कोई व्यक्ति क्वारंटाइन हो.
राम जन्मभूमि आंदोलन की एक और शानदार सफलता इतिहास के अपने संस्करण को एकमात्र सत्य के रूप में सार्वभौमिक बनाना था.
अहम बात यह है कि मोदी ने अपने अधिकांश परिधानों में गहरे और जीवंत रंगों को अपना लिया है. एक नए गेट-अप के साथ ये उन्हें संत या संत 'पितामह' के रूप में प्रमोट करता है.
जबकि पहले, बीजेपी नेतृत्व कम से कम अपने विभाजनकारी बयानों को छुपाता था, लेकिन आज पूरी टुकड़ी और फौज एक क्रूर अल्पसंख्यक विरोधी कार्यक्रम में लगी हुई है, जिसमें मुसलमानों के खिलाफ खुले तौर पर हमला किया जाता है और खुद प्रधान मंत्री द्वारा सामने से नेतृत्व किया जाता है.
#BulliBai और #SulliDeals पहले मामले नहीं हैं जहां भारत के 825 मिलियन इंटरनेट उपयोगकर्ताओं के बीच 'दुष्टों' द्वारा तकनीक का इस्तेमाल किया गया है. लेकिन जब साइबर बुलिंग, पीछा करना और महिलाओं को धमकी देना आम बात है, ऐसे अभियान होंगे क्योंकि उन्हें बहुसंख्यकों का समर्थन और सामाजिक विभूषण मिलता है.
नामंजूरी की कमी के चलते, गलत सूचनाएं ऐसे लोगों के मन में नफरत को बदस्तूर बढ़ाते ही जाएंगी. किसी 'अनजान' से नफरत का असर ये होगा कि उससे भी ज्यादा अहम मुद्दों से ध्यान हट जाएगा.
यौन उत्पीड़न एक ग्लोबल समस्या है. पितृसत्ता की विचारधारा वाला समाज इसके माकूल भी है, लेकिन जो बात #BulliBai जैसे मामलों को अलग बनाती है, वह यह है कि इसमें बहुसंख्यक मिलकर अल्पसंख्यकों को टार्गेट कर रहे हैं.
इससे भी ज्यादा चिंता की बात यह है कि राजनीतिक नेतृत्व मध्ययुगीन काल में 'गुलामी' के दौरान हिंदुओं पर किए गए तथाकथित 'अपमान' के 'प्रतिशोध' को वैध ठहरा रहा है. महिलाओं का शरीर अक्सर पहला 'क्षेत्र' रहा है जिस पर सांप्रदायिक आधिपत्य स्थापित होता है और 'जीत' मिलती है.
'ऑनलाइन नीलामी' कोई छोटी बात नहीं है और इसे 'मामूली' गतिविधि के तौर पर खारिज नहीं किया जाना चाहिए.
(लेखक एनसीआर स्थित लेखक और पत्रकार हैं. उनकी नवीनतम पुस्तक 'द डिमोलिशन एंड द वर्डिक्ट: अयोध्या एंड द प्रोजेक्ट टू रिकॉन्फिगर इंडिया' है. वे @NilanjanUdwin पर ट्वीट करते हैं। यह एक राय है. ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. द क्विंट न तो इसका समर्थन करता है और न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)
(लेखक एनसीआर स्थित लेखक और पत्रकार हैं। उनकी नवीनतम पुस्तक 'The Demolition and the Verdict: Ayodhya and the Project to Reconfigure India' है। वो @NilanjanUdwin पर ट्वीट करते हैं । यह एक राय है। ऊपर व्यक्त किए गए विचार लेखक के अपने हैं। क्विंट न तो इसका समर्थन करता है और न ही इसके लिए जिम्मेदार है।)
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Published: 08 Jan 2022,08:02 PM IST