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पाकिस्तान ने कश्मीर में चरमपंथी, अलगाववादी और कथित आतंकी बुरहान वानी के मारे जाने के बाद पैदा हुए हालात को काबू करने के लिए भारतीय सुरक्षा बलों की ओर से उठाए गए कदमों का विरोध किया. विरोध में 20 जुलाई को पाक ने काला दिवस मनाया. लेकिन कुछ रैलियों को छोड़कर पाकिस्तानी अावाम में इसे लेकर कोई खास उत्साह नहीं दिखा.
हाफिज सईद और दक्षिणपंथी जमात-ए-इस्लामी के नेताओं की उग्र बयानबाजियों का भी कोई खास असर नहीं हुआ. हां, पाकिस्तानी टीवी चैनलों पर बार-बार नवाज शरीफ की क्लीपिंग्स जरूर दिखाई गईं, जिनमें वह कश्मीरियों को आत्मनिर्णय के अधिकार से वंचित करने के लिए भारत को आड़े हाथ लेते दिखे.
उन्होंने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से अपील भी की कि वह भारत पर कश्मीरियों का मानवाधिकार सुनिश्चित करने का दबाव डालें.
शरीफ के रुख के पीछे इन सभी वजहों का थोड़ा-थोड़ा हाथ हो सकता है, लेकिन निजी तौर पर कश्मीर के मामले में उनका रुख हमेशा कट्टर ही रहा है. अब तक के राजनीतिक करियर में उन्होंने कश्मीर के प्रति इसी रुख को जाहिर किया है. कश्मीर के मामले में शरीफ और आर्मी के रुख में कोई अंतर नहीं है. यह कोई बढ़ा-चढ़ा कर कही जाने वाली बात भी नहीं है.
बुरहान की मौत ने नवाज शरीफ को अपनी कश्मीरी प्रतिबद्धता और रुझान जाहिर करने का मौका दे दिया. 9 जुलाई को लंदन से ओपन हार्ट सर्जरी करवाकर लौटने के एक दिन बाद ही उन्होंने बयान दिया कि बुरहान की मौत से वह सदमे में हैं.
नवाज ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय और संयुक्त राष्ट्र से अपील की कि वे कश्मीरियों के आत्मनिर्णय के अधिकार सुनिश्चित कराएं और भारत के मानवाधिकारों का सम्मान करने के लिए कहें.
इसके बाद, जाहिर है नवाज का इशारा मिलते ही पाकिस्तानी राजनयिक मशीनरी बेहद सक्रिय हो गई. इस्लामाबद में तैनात विदेशी राजनयिकों को कश्मीर की स्थिति के बारे में बताया गया. शरीफ के विदेश नीति सलाहकार सरताज अजीज ने संयुक्त राष्ट्र के महासचिव और ओआईसी (ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक को-ऑपरेशन) को यह कहते हुए चिट्ठी भी लिखी कि जम्मू-कश्मीर का मुद्दा दक्षिण एशिया में तनाव का एक लगातार कारण बना हुआ है. साथ ही यह अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के लिए भी चुनौती बन गया है.
पाकिस्तान की लगातार यह कोशिश है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय कश्मीर मुद्दे पर दखल दे, लेकिन कोई देश इस विवाद में नहीं पड़ना चाहता. पाकिस्तान के दबाव में ओआईसी ने कश्मीरियों के मुद्दे पर भले ही कड़ा बयान जारी किया हो, लेकिन किसी भी इस्लामी देश ने अलग से इस मुद्दे पर कोई कदम नहीं उठाया. दरअसल कोई भी भारत से रिश्ते नहीं बिगाड़ना चाहता.
जाहिर है उधर कश्मीरियों को यह संदेश भी गया होगा कि वे विरोध जारी रखें. घाटी में बुरहान वानी की मौत से गुस्सा है. यह इसलिए कि उसने वहां कम उम्र में ही सोशल मीडिया के बेहतरीन इस्तेमाल से नायक जैसी छवि बना ली थी. लेकिन यह भरोसा करना मुश्किल है कि कश्मीर का मौजूदा आंदोलन स्थानीय है और उसे बाहरी तत्वों का समर्थन नहीं मिल रहा है.
वानी ने उससे कहा था कि घाटी में उसने काफी काम कर लिया है और अब उसकी ख्वाहिश शहादत पाने की है. यह भी कोई रहस्य नहीं है कि हाफिज सईद और लश्कर-ए-तैयबा पाकिस्तानी जनरलों के इशारों पर काम करते हैं और उनके संदेश आईएसआई के जरिये आतंकियों तक पहुंचते हैं.
नवाज शरीफ कश्मीर के प्रति अपनी प्रतिबद्धता और भारत के साथ सहयोग के प्रगतिशील रवैये में कोई विरोधाभास नहीं मानते. वह यह मानते हैं कि भारत के साथ खुला व्यापार किए बगैर पाकिस्तान की इकोनॉमी में स्थिरता नहीं आ सकती. इसलिए वह एक ऐसी नीति पर चलने की कोशिश कर रहे हैं, जिसमें एक तरफ कश्मीर में आतंकवाद का समर्थन किया जाए और दूसरी ओर भारत से दूसरे क्षेत्रों में सहयोग किया जाए.
यहां इस संदर्भ में यह याद करना जरूरी है कि 1990 में जब वह पंजाब के मुख्यमंत्री थे तो उन्होंने हर साल कश्मीर दिवस मनाने की मांग की थी. यह जम्मू-कश्मीर में अशांति भड़काने की शुरुआत थी.
नवाज की इस मांग को बेनजीर ने पूरा किया और अब हर साल 5 फरवरी को कश्मीर के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जताते हुए पाकिस्तानी जनता राष्ट्रीय छुट्टी मनाती है. वास्तव में अगर मुशर्रफ का कारगिल अभियान सफल हो जाता, तो नवाज कहते कि इस सफलता के जनक वहीं हैं.
(लेखक विदेश मंत्रालय में सचिव (वेस्ट) रहे हैं. उनसे ट्विटर हैंडल @VivekKatju पर संपर्क किया जा सकता है.)
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Published: 23 Jul 2016,11:34 AM IST