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उपचुनाव के नतीजे बताते हैं, लोग काम पर वोट देते हैं, बातों पर नहीं

सर्जिकल स्ट्राइक और नोटबंदी के बावजूद बीजेपी को नहीं मिल रहा है बड़ा फायदा

संजय कुमार
नजरिया
Published:
(फोटो: PTI)
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(फोटो: PTI)
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देश की 4 लोकसभा सीटों और 10 विधानसभा सीटों पर हाल ही में हुए उपचुनावों के नतीजे आ चुके हैं. इनसे दो बातें पता चलती हैं- पहली बात ये कि मतदाताओं ने वोट देते वक्त नोटबंदी से होने वाली दिक्कतों को ध्यान में नहीं रखा. दूसरी बात ये कि नोटबंदी से न तो बीजेपी को नुकसान हुआ है, न ही फायदा. कांग्रेस भी नोटबंदी के बाद मतदाताओं को अपनी ओर खींचने में सफल नहीं हुई है.

राजधानी दिल्‍ली में 11 नवंबर को नोट बदलवाने के लिए बैंकों के आगे लगी लाइन (फोटो: IANS)

उपचुनाव के नतीजों में बस कांग्रेस को नुकसान

इस उपचुनाव में सभी पार्टियों के लिए स्थिति जस की तस रही है. उपचुनावों वाले प्रदेशों में जिन पार्टियों की सरकारें हैं, उन्होंने अच्छा प्रदर्शन किया है. लोकसभा सीटों पर उन्हीं पार्टियों की जीत हुई है, जिन्होंने साल 2014 के आम चुनावों में इन सीटों की जीता था. अगर किसी का नुकसान हुआ है, तो वो कांग्रेस है. सीपीआई-एम ने बड़जाला विधानसभा सीट और बीजेपी ने हायुलियांग सीट को कांग्रेस से छीन लिया है.

कांग्रेस के हाथ सिर्फ पुडुचेरी के नल्लीथोपे विधानसभा सीट लगी है. अगर ऐसा नहीं होता, तो बीजेपी को एक बार फिर ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ वाला नारा लगाने का मौका मिल जाता.

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लेकिन क्या बीजेपी को खुश होना चाहिए

उपचुनावों के नतीजों में ऐसा कुछ नहीं है, जिन्हें देखकर बीजपी खुशी मना सके. बीजेपी ने असम के लखीमपुर और मध्य प्रदेश के शहडोल की लोकसभा सीटों को अपने हाथ से नहीं जाने दिया है. इसके साथ ही ये असम की बैथालांगसो और मध्य प्रदेश की नेपानगर विधानसभा सीट जीतने में सफल हुई है.

बीजेपी के हिस्से में नई सीट के रूप में सिर्फ अरुणाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कलिखो पुल की हायुलियांग विधानसभा सीट आई है, जिस पर उनकी पत्नी खड़ी हुई थीं. इससे पहले इस सीट पर कांग्रेस का कब्जा था. ऐसे में बीजेपी के लिए ये एक सांत्वना पुरस्कार है.

ममता और जयललिता को भी न नुकसान, न फायदा

टीएमसी ने पश्चिम बंगाल की तमलुक और कूच बिहार लोकसभा सीटों को अपने हाथ से फिसलने नहीं दिया है. इसके साथ ही मोंटेश्वर विधानसभा सीट को भी बचा लिया है. तमिलनाडु में जयललिता ने तंजावुर सीट बचाने के साथ ही अर्वाकुरुची विधानसभा सीट को डीएमके से छीन लिया है. ऐसे में जयललिता को भी सांत्वना पुरस्कार मिला है.

जनता ने दिया काम को सम्मान

उपचुनावों के नतीजे साफतौर पर ये बताते हैं कि मतदाताओं ने अपनी प्रदेश सरकारों के काम को सम्मान दिया है. वे अपनी वर्तमान सरकारों के काम से खुश हैं. वैसे भी, मतदाता विधानसभा चुनावों में राष्ट्रीय मुद्दों की जगह स्थानीय मुद्दों को प्रमुखता देते हैं. राष्ट्रवाद जैसे मुद्दे तो मतदाताओं को बिलकुल भी प्रभावित नहीं करते.

पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक और नोटबंदी के बाद बीजेपी जोर-शोर से प्रचार कर रही है. लेकिन मतदाताओं ने इन कहानियों पर वोट नहीं दिया. ये कदम मोदी सरकार को सफलता की सच्ची कहानियों की तरह सपोर्ट करेंगे या नहीं, ये अभी तय नहीं हुआ है. लेकिन ये सच है कि विभिन्न राज्यों में हुए उपचुनावों में मतदाताओं के लिए ये कदम मायने नहीं रखते.

उपचुनावों में स्टेट रूलिंग पार्टियों की जीत बताती है कि लोग अपनी प्रदेश सरकारों के काम से खुश है. आखिर में सिर्फ एक चीज निकलकर सामने आती है कि लोगों के लिए काम महत्वपूर्ण है, सुपरहिट नारेबाजी और कहानियां नहीं.

(प्रोफेसर संजय कुमार सीएसडीएस में कार्यरत हैं और ये उनके निजी विचार हैं)

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