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कोरोना वायरस के कारण हो रही बीमारी कोविड-19 से निपटने के लिए मौजूदा दवाएं इलाज में मददगार हों, इसके लिए ट्रायल, प्री-ट्रायल और प्री क्लिनिकल ट्रायल की होड़ लगी है. और, हम यहां तक कि वैक्सीन की भी बात नहीं कर रहे हैं.
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने खुद जिस ड्रग की ओर सबसे ज्यादा ध्यान आकर्षित कराया है, वह है एंटी मलेरिया ड्रग क्लोरोक्वाइन और इसका यौगिक (derivative) हाइड्रोऑक्सीक्लोरोक्वाइन.
प्रेस को संबोधित करते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा,
उन्होंने आगे कहा कि एफडीए ने कोविड-19 के लिए इस ड्रग को सत्यापित कर दिया है.
समस्या केवल एक है. एफडीए ने केवल परीक्षण के लिए इस ड्रग को मंजूरी दी है. नहीं, एफडीए ने बाजार में हाइड्रोऑक्सीक्लोरोक्वाइन को मंजूरी नहीं दी है. उसी संवाददाता सम्मेलन में अमेरिकी फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन के डायरेक्टर डॉ स्टीफन हान ने साफ किया है कि यह ड्रग केवल क्लीनिकल ट्रायल के लिए इस्तेमाल होगा.
क्लोरोक्वाइन के गिर्द जो उम्मीद पैदा हुई है, उसका स्रोत वह फ्रांसीसी अध्ययन है, जो अब तक मेडिकल जर्नल में प्रकाशित नहीं हुआ है. फ्रांस के एइक्स-मार्सेली यूनिवर्सिटी के अनुसंधानकर्ता डीडियर राओट ने कुल 36 लोगों पर कोविड-19 के मरीजों पर आरंभिक ट्रायल के बाद उत्साहजनक नतीजे जारी किए हैं.
इनमें से ज्यातातर मरीजों में लक्षण धीरे-धीरे उभर रहे थे. 1 से लेकर 15 मार्च के बीच अनुसंधानकर्ता और उनकी टीम ने इनमें से 20 मरीजों को हर दिन 600 मिलीग्राम हाइड्रोऑक्सीक्लोरोक्वाइन दिया. खास लक्षण को देखते हुए एजिथ्रोमाइसिन नामक एंटी बायोटिक भी इस इलाज में जोड़ दिया गया. 16 मरीजों को यह ड्रग नहीं दिया गया.
जिन मरीजों को हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वाइन दिए गये उनमें संक्रमण में कमी देखी गयी. 6 दिनों बाद 70 प्रतिशत मरीजों में, जिन्हें ड्रग दिया गया था, कोविड-19 की मौजूदगी निगेटिव मिली.
ईमानदारी से कहें तो कई और भी अध्ययन हैं जो कोरोना वायरस के इलाज से जुडे हैं. मेडिकल जर्नल क्लीनिकिल इन्फेक्शस डीजीजेज ने 9 मार्च को बताया है कि हाइड्रोऑक्सीक्लोरोक्वाइन के वर्जन वाला एक ब्रांड प्रयोगशाला परीक्षण के दौरान कोरोना वायरस को मारने में प्रभावी पाया गया. मलेरिया और आर्थराइटिस के लिए प्लेक्वेनिल (Plaquenil) पहले से ही प्रमाणित ड्रग है. फिर भी इस आंकड़े से विशेषज्ञों ने कोई बड़ा नतीजा नहीं निकाला है.
वैक्सीन के अभाव में बड़ी संख्या में ऐसे ड्रग हैं जिन्हें दोबारा इस्तेमाल के लिए पेश किया जा है. मतलब ये कि जो ड्रग किसी अन्य बीमारी के लिए पहले से उपयोग में हैं लेकिन सुरक्षित माने जाते हैं, उनका इस्तेमाल कोरोना वायरस के मरीजों पर ‘दया भाव’ (compaasionate grounds)से किये गये हैं.
छह राज्य पहले ही इलाज के तौर-तरीके खोजते हुए इस अस्पताल से संपर्क कर चुके हैं. लेकिन इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च ने स्वयं चेतावनी दी है कि जब तक उचित ट्रायल नहीं होते, यह महज एक प्रयोग भर है.
हालांकि इलाज के बाद दोनों जांच में नेगेटिव पाए गये, लेकिन 5 दिन बाद 20 मार्च को 69 साल के बुजुर्ग की दूसरी अन्य सह-बीमारियों की वजह से मृत्यु हो गयी. भारतीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने इस मौत को कोविड से हुई मौत मानने से इनकार कर दिया.
बहरहाल एफआईटी के डॉक्टरों का कहना है कि हालांकि इलाज के बाद मरीज में कोविड-19 का परीक्षण निगेटिव पाया गया, लेकिन वायरस ने जो नुकसान किया, हो सकता है कि उसी वजह से हार्ट अटैक हुआ हो.
इससे पहले ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (डीसीजीआई) ने 2019-nCoV से पीड़ित मरीजों के इलाज के लिए एंटी एचआईवी ड्रग्स के कॉम्बिनेशन के ‘सीमित उपयोग’ की सहमति दे दी थी. ऐसा तब किया गया जब इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च ने लोपिनाविर (lopinavir) और रिटोनाविर (ritonavir) नामक दो ड्रग के उपयोग पर आपात मंजूरी मांगी.
बहरहाल समस्या यहां है. लोपिनाविर और रिटोनाविर का कॉम्बिनेशन गंभीर रूप से पीड़ित कोविड-19 के मरीजों पर प्रभावी साबित नहीं हुआ. द न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में प्रकाशित एक शोध के अनुसार चीन के वुहान में 199 मरीजों के नमूनों में 99 को इन ड्रग्स के कॉम्बिनेशन दिए गये. इलाज के दौरान कोई फायदा नहीं नजर आया. साफ तौर पर यह बताया नहीं जा सका कि मरीजों की स्थिति में सुधार इन ड्रग के कॉम्बिनेशन से हुआ या फिर सामान्य देखभाल का यह नतीजा था.
एक और एंटी वायरल ड्रग है रेमडेसिविर (remdesivir). इबोला से लड़ने के लिए इसका इजाद किया गया था. इसका इस्तेमाल वुहान कोरोनावायरस से पीड़ित मरीज के इलाज के लिए सबसे पहले अमेरिका में किया गया. इंस्टीच्यूट ऑफ वायरोलॉजी ने इस एंटी वायरल थेरेपी के उपयोग के लिए चीन में इसके पेटेंट का आवेदन दिया है. रायटर के अनुसार चीन ने भी हाल में गंभीर रूप से पीड़ित कोविड-19 के मरीजों पर स्विस ड्रग निर्माता रोशे (Roche) की एंटी इनफ्लेमेशन ड्रग एक्टेमरा के इस्तेमाल की मंजूरी दी है.
ज्यादार विशेषज्ञों का कहना है कि ये ड्रग मददगार हैं, इनमें जोखिम भी कम है क्योंकि इलाज के लिए पहले से ही इन्हें स्वीकृति प्राप्त है लेकिन ये कोरोनावायर का सटीक इलाज नहीं हैं. चूकि ये ड्रग्स पहले से उपलब्ध हैं इसलिए खास लक्षणों के आधार पर डॉक्टर इनका इस्तेमाल करने को स्वतंत्र हैं.
लेकिन सभी ड्रग्स एक जैसे नहीं बने होते. उदाहरण के लिए एंटी मलेरिया ड्रग क्लोरोक्वाइन उन मरीजों के लिए सुरक्षित नहीं है जिन्हें दिल की अरीथिमिया और किडनी एवं लीवर की बीमारियां हैं.
लेकिन इस ड्रग को लेकर उत्साह ऐसा है कि अमेरिका में इसकी आपूर्ति जरूरत के हिसाब से कम पड़ रही है. नाइजीरिया में भी इस दवा की कमी है जहां मलेरिया महामारी है. रेमडेसिविर जिसका ऊपर जिक्र है, ईबोला के लिए था लेकिन यह बहुत प्रभावी साबित नहीं हुआ है.
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