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पश्चिम के कई देश हाल के सालों में Cannabis यानी गांजे के इस्तेमाल को डिक्रिमिनलाइज करने की कोशिशें कर रहे हैं. कभी अमेरिका ने ड्रग्स पर पाबंदी के कानून का अंतरराष्ट्रीयकरण किया था. उसकी देखादेखी दूसरे देशों ने भी इन्हें प्रतिबंधित करने के लिए कानून बनाए थे. मगर खुद अमेरिका के कई राज्यों में गांजे के इस्तेमाल को डिक्रिमिनलाइज कर दिया गया है और दूसरे कई राज्य भी इसके व्यक्तिगत उपभोग को वैध बना रहे हैं. अमेरिका में इस साल राष्ट्रपति चुनाव की तमाम बहस में एक मुद्दा गांजे का डिक्रिमिलनाइजेशन भी है.
भारत में कई सालों से गांजे के इस्तेमाल को वैध बनाने पर चर्चा छिड़ी है. हमारे देश में गांजे के रेगुलेशन पर विधि सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी ने एक नई स्टडी की है. इसमें गांजे पर प्रतिबंध को ऐतिहासिक और रेगुलेटरी संदर्भ में देखा गया है. यह स्टडी भारत में गांजे के इस्तेमाल की समीक्षा करती है और उसके क्रिमिनलाइजेशन से क्या असर हो रहा है, इसका विश्लेषण करती है.
देश में गांजे की खपत को देखते हुए हमारा यह तर्क है कि भारत में गांजे पर लगी पाबंदी पर फिर से विचार किया जाना चाहिए. देखना चाहिए कि गांजे पर पाबंदी का स्रोत क्या था और उसे गैरकानूनी बनाने से समाज के कमजोर तबकों को क्या भुगतना पड़ता है.
भारत में 5000-4000 ईसा पूर्व भी गांजे के इस्तेमाल के रिकॉर्ड मिलते हैं. आयुर्वेद में, निर्माण में, और फाइबर के तौर पर उपयोग के चलते गांजा भारत में सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाले पौधों में से एक है. अपने साइकोएक्टिव गुणों के लिए गांजे का व्यापक रूप से प्रचलन रहा है. सामाजिक न्याय मंत्रालय के नेशनल सर्वे ऑन एक्सटेंट एंड पैटर्न्स ऑफ सबस्टांस यूज इन इंडिया में यह साफ जाहिर होता है. इसमें अनुमान लगाया गया है कि भारत में तीन करोड़ लोग गांजे का सेवन करते हैं. साइकोएक्टिव पदार्थों में शराब के बाद गांजा दूसरा सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाला पदार्थ है.
अमेरिका वह सबसे बड़ी ताकत था जिसने दुनियाभर के देशों को नशीले पदार्थों को प्रतिबंधित को मजबूर किया. इस तरह उसने इस पाबंदी का अंतरराष्ट्रीयकरण किया. उसने संयुक्त राष्ट्र के जरिए दुनियाभर में नशीले पदार्थों पर प्रतिबंध लगाने का काम किया. नारकोटिक ड्रग्स पर 1961 के संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन के प्रभाव में भारत में एनडीपीएस (नारकोटिक्स ड्रग्स और साइकोट्रॉपिक सबस्टांसेज) एक्ट लागू किया गया. चूंकि भारत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस बात के लिए बाध्य था कि गांजा सहित नारकोटिक ड्रग्स की तस्करी, उत्पादन, इस्तेमाल को नियंत्रित किया जाए. इसके चलते भारत में गांजा उगाने पर कई रेगुलेशन्स लगाए गए और उसके इस्तेमाल को क्रिमिनलाइज किया गया, जब तक कि वो दवा बनाने के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा रहा.
भारत ने अंतरराष्ट्रीय दबाव में नशीले पदार्थों पर पाबंदी लगाई और अमेरिका के नस्लवादी दृष्टिकोण को नजरंदाज कर दिया. अमेरिका के ‘वॉर ऑन ड्रग्स’ का स्रोत तो उसका नस्लवादी रवैया ही था. दरअसल अमेरिका में यह अभियान अफ्रीकी अमेरिकी और हिस्पैनिक लोगों के खिलाफ एक नस्लवादी दुष्प्रचार के तौर पर शुरू हुआ था. मशहूर अमेरिकी अधिकारी हैरी एनस्लिंगर को ड्रग्स के खिलाफ आधुनिक युद्ध का आर्किटेक्ट कहा जाता है. उनका कहना था कि गांजा पागलपन, क्रिमिनैलिटी और मौत के रास्ते पर ले जाता है.
नस्लीय पूर्वाग्रहों के चलते गांजे के नाम पर बड़े पैमाने पर अफ्रीकी अमेरिकियों की धरपकड़, गिरफ्तारियां हुईं, और अमेरिका में यह नीतिगत सुधार की धुरी बना.
ऐतिहासिक रूप से गांजे के फाइबर के तौर पर इस्तेमाल होने के बावजूद हेम्प उत्पादों के विश्व बाजार में भारत का हिस्सा 0.001% है. यह पूरा कारोबार 4.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर का है.
1985 के एनडीपीएस एक्ट ने एक ऐसा वातावरण तैयार किया जिसके कारण विश्व के हेम्प बाजार में भारत लगभग नदारद हो गया. 2027 में विश्व में कैनाबिस मार्केट 15.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर होने का अनुमान है. इसलिए भारत में गांजे पर लगे प्रतिबंध की एक बड़ी आर्थिक कीमत चुकानी पड़ रही है. यह कानून एक तरह से रोड़े का काम कर रहा है.
हमारे देश में तीन करोड़ से ज्यादा लोग गांजे का सेवन करते हैं. इसलिए किसी ऐसी चीज को गैरकानूनी बनाकर राजस्व का भी नुकसान हो रहा है, जिसे लोग इतने व्यापक स्तर पर इस्तेमाल करते हैं. 2018 की एक स्टडी से पता चलता है कि नई दिल्ली में लोग 38.26 टन गांजे का उपभोग करते हैं और मुंबई में 32.38 टन का. यह अनुमान लगाया जाता है कि अगर गांजे पर टैक्स लगाया जाए तो दिल्ली से 725 करोड़ रुपये जमा होंगे और मुंबई से 641 करोड़ रुपये.
अमेरिका ने पूरी दुनिया को नशीले पदार्थों के प्रतिबंध का रास्ता दिखाया, पर अब खुद उलटी दिशा में जा रहा है. वहां के करीब 26 राज्यों ने गांजे के उपभोग को डिक्रिमिनलाइज कर दिया है और 11 ने गांजे के व्यक्तिगत उपभोग को लीगल बना दिया है. दूसरे कई देश भी उसी के नक्शे कदम पर चलते हुए गांजे के उपयोग को डिक्रिमिनलाइज करना चाह रहे हैं.
सिक्किम का एंटी ड्रग्स एक्ट, 2006 (साडा) नशे पर काबू पाने के लिए डेटेरेंस यानी निरोध का इस्तेमाल नहीं करता. वह नशा करने वालों के लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य दृष्टिकोण को अपनाता है.
हम सिफारिश करते हैं कि भारत में गांजे के इस्तेमाल को पूरी तरह से डिक्रिमिनलाइज किया जाना चाहिए और नशे की लत पर सार्वजनिक स्वास्थ्य के दृष्टिकोण को अपनाना चाहिए.
(नेहा सिंघल और नवीद अहमद विधि सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी में रिसर्चर हैं. इस लेख में दिए गए विचार उनके अपने हैं, क्विंट का उनसे सहमत होना जरूरी नहीं है.)
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Published: 09 Sep 2020,07:55 AM IST