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भारतीय रेल में सफर करना है, तो अब अपना खाना साथ लेकर चलिए. रेलवे स्टेशन और ट्रेन में मिलने वाले खाने पर सीएजी यानी नियंत्रक और महालेखा परीक्षक की एक सालाना रिपोर्ट का एकमात्र सार यही है.
सीएजी ने शुक्रवार को संसद में अपनी जो रिपोर्ट पेश की है उसमें साफ लिखा है कि ट्रेन और रेलवे स्टेशनों पर मिलने वाला खाना इंसान के खाने लायक नहीं है.
रिपोर्ट में ये भी साफ किया गया है कि भोजन में दूषित खाद्य पदार्थ के साथ खाने-पीने की उन चीजों का भी इस्तेमाल किया जाता है, जिनकी एक्सपाइरी डेट खत्म हो चुकी होती है.
सीएजी की मानें, तो भारतीय रेलवे की खान-पान नीति में बार-बार होने वाला बदलाव इसकी सबसे बड़ी वजह है. इतना ही नहीं, रेलवे के पास अपना बेस किचन न होना और ट्रेनों में अब तक खाना बनाने के लिए बिजली से चलने वाले उपकरणों का न होना भी इसके पीछे की वजह बताई गई है.
संसद में रिपोर्ट के पेश होते ही रेल मंत्रालय तुरंत हरकत में आया और ट्विटर पर अपनी सफाई देने में जुट गया. सीएजी रिपोर्ट के बाद उठ रहे सवालों के जवाब में रेलवे कैटरिंग चार्ज का एक वीडियो ट्वीट कर जनता को बताया कि रेलवे में किस तरह के खाने के लिए यात्रियों को कितना पैसा चुकाना चाहिए.
इसके जरिए रेलवे ने ये जताने की दोबारा कोशिश की कि ओवरचार्जिंग पर रोक लगाने के लिए वो पूरी तरह कटिबद्ध है.
साथ ही रेलवे की तरफ से ये बताने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी गई कि भारतीय रेल ने इसी साल 27 फरवरी से नई कैटरिंग पॉलिसी भी शुरू की है, जिसका असर आपको जल्द ही देखने को मिलेगा.
रेल मंत्रालय ने ट्वीट कर ये भी बताया कि 2017 की पहली छमाही में रेलवे कैटरिंग से जुड़ी सात कॉन्ट्रैक्ट रद्द किए गए, जबकि 16 कॉन्ट्रैक्टर को ब्लैक लिस्ट किया गया है.
रेल मंत्रालय के इस ट्वीट में चार कंपनियों के नाम भी ट्वीट किए हैं, जिन पर एक्शन लिया गया है. ये वो कंपनियां हैं, जिसका रेलवे में ट्रेन कैटरिंग में सिक्का चलता है. ये कंपनियां अपनी आधिकारिक बेवसाइट पर इस बात का खुलकर दावा भी करती हैं. रेलवे में हर छोटे-बड़े अधिकारी से लेकर मंत्री तक इस बात को जानते हैं.
साल 2015 में भी राजधानी और शताब्दी में मिलने वाले बोतलबंद रेल नीर को लेकर सीबीआई ने एक घोटाला उजागर किया था. उसमें भी इस कंपनी का नाम सामने आया था, लेकिन कभी इसे ब्लैक लिस्ट नहीं किया गया.
हालांकि रेलवे कैटरिंग पॉलिसी में किसी कंपनी के खाने के बारे में बार-बार शिकायत मिलने पर कंपनी को ब्लैक लिस्ट करने का प्रावधान भी है. लेकिन 2015 में सीबीआई हो और या फिर 2017 में सीएजी, न कोई जांच और न कोई रिपोर्ट अब तक इन बड़े नामों का कुछ बिगाड़ पाई.
सीएजी ने अपनी इस बार की रिपोर्ट में साफ तौर पर लिखा है रेलवे कैटरिंग में कुछ कंपनियों की मोनोपोली चलती है, जिसे तोड़ने के लिए रेलवे की तरफ से सफल प्रयास नहीं किए गए. रेलवे और उसके कुछ अफसरों ने कुछ एक कंपनी के सामने बीते कई दशकों में किसी दूसरी कंपनी को रेल कैटरिंग के क्षेत्र में खड़ा होने ही नहीं दिया.
रेल महकमे में दबी जुबान से हर कोई ये कहता है कि अगर इनका कॉन्ट्रैक्ट रद्द हो गया, तो अगले दिन ट्रेन से सफर करने वाले हजारों यात्रियों को भूखे चलना पड़ेगा, क्योंकि इतने कम समय में इतने लोगों को खाना मुहैया कराने की क्षमता रखने वाली कोई और कैटरिंग कंपनी रेलवे के पास है ही नहीं.
सिर्फ एक ही कंपनी के फलने-फूलने देने का खामियाजा खुद रेलवे की सहायक कंपनी आईआरसीटीसी यानी इंडियन रेलवे कैटरिंग एंड टूरिजम कॉर्पोरेशन ने भी भुगता है. साल 1999 में रेलवे ने आईआरसीटीसी का गठन ट्रेनों में खानपान और टूरिजम के लिए किया था, ताकि लोगों को खराब खाने पीने की समस्या से निजात मिल सके. लेकिन राजनीतिक कारणों से इसे टिकटिंग के क्षेत्र में लगा दिया गया और अब नई पॉलिसी में इनको फिर से खाने से जुड़ी जिम्मेदारी सौंपी जा रही है.
अब रेलवे की नई पॉलिसी के तहत आईआरसीटीसी को रेलवे स्टेशनों पर फूड प्लाजा, फूड कोर्ट और फार्स्ट फूड यूनिट को संभालने की जिम्मेदारी दे दी गई है. साथ ही बेस किचन को भी मैनेज करने की जिम्मेदारी अब आईआरसीटीसी के पास ही रहेगी. ऑनलाइन फूड ऑर्डर और डिब्बा बंद खाने के विकल्पों पर भी रेलवे ने विचार शुरू कर दिया है. कई ट्रेनों में पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर इसकी शुरुआत भी कर दी गई है.
लेकिन सच्चाई ये है अगर रेल मंत्रालय सही मायने में ट्रेनों में खान-पान की क्वॉलिटी सुधारना चाहता है, तो उसे दम तोड़ रही आईआरसीटीसी को दोबारा खड़ा करना होगा और वो भी पूरी ताकत के साथ. नहीं तो रेलवे के खान-पान पर फिर वही कहावत चरितार्थ होगी कि बोया पेड़ बबूल का, तो आम कहां से होय.
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(लेखिका सरोज सिंह @ImSarojSingh स्वतंत्र पत्रकार हैं और ये उनके निजी विचार हैं. द क्विंट का उनके विचारों से सहमत होना जरूरी नहीं है.)
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Published: 24 Jul 2017,07:31 PM IST