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पहले CDS जनरल बिपिन रावत के अधिकार, जिम्मेदारियां और चुनौतियां

जनरल रावत अपने हाथ बंधे पाएंगे. उन्हें रूल बुक से लड़ना होगा. लेकिन माकूल बदलाव होते हैं तो उनकी राह आसान हो जाएगी 

मनोज जोशी
नजरिया
Updated:
 सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत की राह ज्यादा आसान भी नहीं हो पाएगी
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सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत की राह ज्यादा आसान भी नहीं हो पाएगी
(फोटोः PTI)

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पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ होने की वजह से जनरल बिपिन रावत के लिए दो बड़े फायदे हैं. पहला, वह खाली स्लेट पर लिख रहे होंगे और इसलिए दफ्तर पर अपनी छाप छोड़ेंगे, जो शानदार और बहुआयामी जिम्मेदारियों के साथ संभव है. दूसरा, उनके पास वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था का विश्वास है और उन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ने चुना है. इसके बावजूद सफलता के लिए उन्हें मजबूत इच्छाशक्ति,नौकरशाही कूटनीति और उदार मानदंड के साथ अच्छी किस्मत भी चाहिए होगी.

रावत की नई जिम्मेदारियां

कुछ क्षेत्रों में रावत को जिम्मेदारियां दी गयी हैं जो 24 दिसम्बर के नोटिफिकेशन में सूचीबद्ध हैं. वे नयी जिम्मेदारियां हैं लेकिन ज्यादातर दी गयी जिम्मेदारियां फिलहाल ऐसी हैं जो दूसरों को दी गयी हैं. इसलिए उन्हें व्यवस्थित तरीके से उनके हाथों से धीरे-धीरे वापस लेना होगा और उन्हें पुनर्व्यवस्थित करना होगा. एक स्तर पर ये मुद्दे उनके पूर्व सहयोगियों- थल, नौ और वायु सेना प्रमुखों-से जुड़े हैं, तो दूसरे स्तर पर ये मुद्दे भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) से जुड़े हैं, जो वर्तमान में रक्षा मंत्रालय चला रहे हैं.

जबकि सेना प्रमुखों का इस्तेमाल सैन्य मामलों में उनके अपने बॉस होने की वजह से लंबे समय से किया जाता रहा है और ताकतवर आईएएस बाबुओं के पास भी मिलिट्री ऑफ डिफेन्स में काम करते हुए सैन्य क्षेत्र का अनुभव है.

विपिन रावत को चीजों को बदलना होगा और यह कोई आसान प्रक्रिया नहीं होगी. हर स्तर पर उन्हें बाधा झेलनी होगी और यहां तक कि नुकसान भी उठाना होगा. और, प्रधानमंत्री या डोभाल के पास जाने की भी एक सीमा रहेगी.

खुद को तराशने के बेशुमार तरीके होंगे जनरल रावत के पास

सीडीएस, चिफ्स ऑफ स्टाफ कमेटी (पीसीसीएससी) के स्थायी चेयरमैन भी होंगे, मगर उनका रैंक ऊंचा नहीं होगा. वे अन्य सेवाओं के प्रमुखों की तरह चार सितारों वाले जनरल होंगे. लेकिन सरकार के नोटिफिकेशन ब्योरे के मुताबिक ऐसे असंख्य तरीके होंगे जिनके जरिये वे खुद को तराश सकेंगे या अपने समकक्षों में आगे हो सकेंगे. कुछ ऐसा जो वर्तमान प्रमुखों में से किसी ने नहीं किया हो. जब अपनी सेवा की बात आती है तो सारे प्रमुख के शब्द होते हैं कानून, लेकिन अब सरकार ने साफ आदेश दिया है कि सीडीएस/पीसीसीएससी खुद मेहनत को उतरें और साझा हितों के लिए बदलाव करें. इसके साथ ही बेकार के खर्चों को घटाएं.

सैन्य मामलों के नये विभाग को, जिसके वे अध्यक्ष होंगे, कहा गया है कि “सशस्त्र बलों की यूनियन के साथ”, क्षेत्रीय सेना, तीनों सेवाओँ के कामकाज और खरीद से जुड़े राजस्व बजट की डील करें, जैसे राशन, गोला-बारूद, कलपुर्जे और पेट्रोल, ऑयल एवं ल्यूब्रिकेन्ट्स.

नये डीएमए को भी रक्षा मंत्रालय के अंतर्गत डाल दिया गया है. कहना मुश्किल है कि डीएमए का कौन सा स्वरूप देखने को मिलेगा. लेकिन आप आश्वस्त हो सकते हैं कि यह वर्दीधारी सैनिकों और उनकी योग्यता का महत्वपूर्ण हिस्सा होगा. यह बाबुओं के लिए आसान नहीं होगा क्योंकि अब तक उनका इस्तेमाल वर्दीधारी सैनिकों के साथ दूर से होता रहा है. इसमें उनका मुख्य हथियार प्रक्रिया और प्रगति रहे हैं हालांकि उनमें कोई दम नहीं होता था.

भारतीय सेना के लिए सैन्य साजो-सामान का अधिग्रहण एक बड़ी चुनौती होगा(फोटो: रॉयटर्स) 
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24 दिसम्बर की प्रेस रिलीज में यह साफ नहीं है कि क्या सीडीएस/पीसीसीएससी औपचारिक रूप से विभाग का सचिव होगा जैसे रक्षा सचिव, सचिव, रक्षा उत्पादन और सचिव, अनुसंधान और विकास.

नोटिफिकेशन कहता है कि सीडीएस डिपार्टमेंट ऑफ मिलिट्री अफेयर्स विभाग का प्रमुख है न कि सचिव. अगर वे सचिव होते तो इससे विसंगति पैदा हो जाती क्योंकि सीडीएस के साथ-साथ थल सेना, नौ सेना और वायु सेना प्रमुख पहले से ही प्रोटोकॉल के हिसाब से रक्षा सचिव से आगे हैं. तीनों सेवाओँ के प्रमुख कैबिनेट सचिव के समकक्ष माने जाते हैं और एक जैसा वेतन पाते हैं.

आदर्श रूप में इंटिग्रेटेड डिफेन्स स्टाफ के वर्तमान प्रमुख, जो लेफ्टिनेंट जनरल रैंक के बराबर हैं, को सचिव बनाया जाना चाहिए. वर्तमान में सीआईएससी चीफ ऑफ स्टाफ कमेटी के मातहत है. अब चिफ्स ऑफ स्टाफ कमेटी के स्थायी चेयरमैन सीडीएस हैं और सीआईएससी उनका डिप्टी होगा.

राष्ट्रवादी एजेंडे में इस्तेमाल के अलावा सेना के लिए ज्यादा काम नहीं

सहयोगी प्रमुखों और सचिवों के अलावा सीडीएस/पीसीसीएससी को सीडीएस की छाया यानी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार डोभाल के साथ संघर्ष करना होगा. यह याद दिलाया जा सकता है कि 2018 में सरकार ने डिफेंस प्लानिंग कमेटी (डीपीसी) के मातहत एनएसए बनाया था. राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति, रक्षा उत्पादन का आधार, रक्षा निर्यात बढ़ाने, क्षमता विकास योजनाओं की प्राथमिकी तय करने और ऐसे कार्यों के लिए डीपीसी को विस्तृत अधिकार दिए गए थे. यहां प्रोटोकॉल की समस्या हालांकि नहीं है. तब से एनएसए जो कैबिनेट रैंक है, सीडीएस/पीसीसीएससी से आगे है.

सीडीएस/पीसीसीएससी की नियुक्ति कर मोदी सरकार ने साहस भरा कदम उठाया है. कोई भी किसी भी मामले में सरकार पर किसी बुजदिली का आरोप नहीं लगा सकता. देखना ये है कि सरकार ने जो कदम उठाए हैं उसमें वह कितनी गंभीर है.

साफ तौर पर कहें तो अब तक सैन्य बलों को अपने राष्ट्रवादी एजेंडे में इस्तेमाल करने से ज्यादा सरकार ने उनके लिए कुछ नहीं किया है. बजट कम होता जा रहा है और सेना के लिए जरूरी महत्वपूर्ण अधिग्रहण भी नहीं हुए हैं

दूसरी ओर सैन्य अफसरों की प्रवृत्ति परेशान करने वाली रही है जो राजनीतिक मुद्दों पर आगे बढ़ते दिखे हैं. इसलिए रक्षा व्यवस्था में सुधार और इसके पुनर्गठन की सरकार की गंभीरता तभी स्पष्ट होगी जब हम देखेंगे कि वह एलोकेशन ऑफ बिजनेस रूल (एओबीआर), ट्रांजेक्शन ऑफ बिजनेस रूल्स (टीओबीआर) और सिविल सेवा (क्लासिफिकेशन, कंट्रोल एंड अपील) रूल्स में बदलाव की ओर आगे बढ़ रही है.

बहुत आसान भी नहीं होगी रावत की राह

एओबीआर के मातहत डिपार्टमेंट ऑफ डिफेंस (एमओडी) को जिम्मेदारी दी गयी. दूसरे अर्थ में “भारत की रक्षा और रक्षा तैयारी समेत इससे जुड़े हर क्षेत्र में और उन क्षेत्रों में भी जो युद्ध के समय में जरूरी समझा जाता है” पूरी जिम्मेदारी दी गयी. टीओबीआर में यह साफ है कि “डिपार्टमेंट ऑफ डिफेंस” के “सेक्रेट्री” “प्रशासनिक प्रमुख होंगे” और इस तरह ट्रांजेक्शन ऑफ बिजनेस के लिए जिम्मेदार भी.

ये नियम राष्ट्रपति के नाम से जारी किए जाते हैं और जिन पर देश की रक्षा क्षेत्र का आधार निर्भर है. वास्तव में एओबीआर तीनों सेवाओं के प्रमुखों की जिम्मेदारी को लेकर चुप है. यहीं आईएएस बाबू अपने लिए अधिकार हासिल कर लेते हैं. अगर सिविलियन बाबुओं को डिपार्टमेंट ऑफ मिलिट्री अफेयर्स के मातहत काम करना है तो बदलाव की जरूरत सीसीएस (सीसीए) रूल्स में भी है. जब तक इन नियमों को दोबारा नहीं लिखा जाता और यह क्रिसमस के मौके पर सरकार के नोटिफिकेशन में व्यक्त नहीं होता, रावत अपने हाथ बंधे हुए पाएंगे. हर मोड़ पर उन्हें रूल बुक से लड़ना होगा. दूसरी ओर अगर उपयुक्त बदलाव होते हैं तो उनकी राह उतनी ही आसान हो जाएगी.

(लेखक रिसर्च फाउंडेशन, दिल्ली में फेलो और रिसर्चर हैं.)

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Published: 01 Jan 2020,11:29 AM IST

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