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चंद समय के लिए मजबूरी में देश का प्रधानमंत्री बने थे चंद्रशेखर (chandrashekhar) लेकिन उस मामूली कालखंड ने देश की आधी सदी की पॉलिटिक्स को बेहद प्रभावित किया है. वे कहते थे, जब तक दिल्ली से लोगों के दिलों की दूरी रहेगी तब तक सत्ता में बैठे लोग राजा और नवाब ही लगेंगे.
सर्वोच्च पद पर बैठे व्यक्ति को आम लोगों की जीवन-दशा का अनुभव होना चाहिए. उन्होंने इसी तजुर्बे के लिए 4,260 किलोमीटर तक पदयात्रा की. एक आम नागरिक की तरह जिंदगी गुजारी. उनका रहन-सहन, पोषाक, आचार-व्यवहार ही सबकुछ बयां करते थे. वे खुद निर्माण कार्य देखने के लिए लकड़ी की सीढ़ी के सहारे छत पर चढ़ जाते थे. खूब पैदल चलते थे. खेतों में मजदूरों के साथ बातें कर देश की नब्ज टटोलते थे.
वे जब पीएम बने थे, तब पूरा देश धधक रहा था. अर्थ व्यवस्था चौपट हो गई थी. उन पर जानकारी रखने वाले रामबालक राय या सलाहकार रहे हरिवंश (वर्तमान में राज्यसभा उपसभापति) की मानें तो कुछ दिन और वे रहते तो अयोध्या विवाद का हल टेबल पर ही ढूंढ़ लेते. दोनों पक्षों के लोगों को बुलाकर चंद्रशेखर ने दो टूक कहा था कि नहीं मानोगे तो बुक कर देंगे. गोलियां भी चलेंगी. किसी सीएम के कंधे का मैं इस्तेमाल नहीं करूंगा.
संयोग से चंद्रशेखर से मुझे कोयला नगर गेस्ट हाउस में मिलने का सौभाग्य हुआ था. बच्चा बाबू के सौजन्य से मैं मिला था. मेरे शरीर पर मेटल डिटेक्टर लगाने से जब आवा बंद नहीं होने लगी तब उन्होंने कहा हड्डी को लोहा बना लिए हो क्या? श्रद्धेय गुरुजी ब्रह्मदेव सिंह शर्मा ने मुझे एक प्रश्न लिखकर दिया था, 'आप इतने पॉपुलर हैं. पीएम रह चुके. फिर माफिया से ताल्लुकात क्यों?' गुस्से से लाल हो गए थे पूर्व पीएम. उन्होंने कहा, मीडिया को सिर्फ मसाला चाहिए. देश से कोई मतलब नहीं.
उन्होंने कहा, देश की इकोनॉमी चौपट हो गई है. पूरी पूंजी चंद लोगों के हाथों में कैद हो जाएगी. जब मैंने पूछा, आप क्या कर रहे हैं? उन्होंने कहा, कोई सुसाइड करने जा रहा, उसे मना ही तो कर सकते हैं. चंद्रशेखर व्यक्तिगत संबंधों को राजनीति में नहीं लाते थे.
एक दिन अचानक आरके धवन उनके पास आ कर बोले कि राजीव गांधी आप से मिलना चाहते हैं. जब वे धवन के यहां गए तो राजीव गांधी ने उनसे पूछा, क्या आप सरकार बनाएंगे?''
चंद्रशेखर ने कहा, सरकार बनाने का उनका कोई नैतिक आधार नहीं है. सरकार बनाने के लिए पर्याप्त संख्या भी नहीं है. इस पर राजीव ने कहा कि आप सरकार बनाइए. हम आपको बाहर से समर्थन देंगे.
सवाल उठता है कि चंद्रशेखर जैसे शख्स ने राजीव गांधी के इस आश्वासन पर विश्वास कैसे कर लिया?
वे बताते हैं, मैं सरकार बनाने के लिए देश हित में तैयार हुआ, क्योंकि उस समय देश में खून खराबे का माहौल था. जिस दिन मैंने शपथ ली, उस दिन 70-75 जगहों पर कर्फ़्यू लगा हुआ था. युवक आत्मदाह कर रहे थे. दूसरी तरफ सांप्रदायिक दंगे हो रहे थे. मुझे सरकार बनाने और चलाने का कोई अनुभव नहीं था. लेकिन मेरा विश्वास था कि अगर देश के लोगों से सही बात कही जाए तो देश की जनता सब कुछ करने के लिए तैयार रहेगी."
सरकार बनाने के तीसरे दिन चंद्रशेखर ने वरिष्ठ अधिकारियों की एक बैठक बुलाई. इसी बैठक में वित्त सचिव विमल जालान ने उन्हें एक नोट दिया, जिसमें लिखा था कि हालात इतने खराब हैं कि हमें अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक पर निर्भर रहना पड़ेगा.
चंद्रशेखर लिखते हैं-
चंद्रशेखर ने आगे लिखा है, ''उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया. अगले दिन मैंने वित्त सचिव को हटा दिया. इसी तरह दो प्रधानमंत्रियों के प्रिय पात्र रहे बीजी देशमुख मुझसे मिलने आए. आते ही उन्होंने अभिमान भरे अंदाज में फरमाया, 'क्या आप समझते हैं कि मैं नौकरी के लिए यहा आया हू? मुझे टाटा के यहा से कई साल पहले से ऑफर हैं. मैंने सोचा भारत सरकार में सबसे ऊचे पद पर बैठा हुआ ये शख्स टाटा की नौकरी के बल पर यहां बना हुआ है. जिंदगी में पहली बार अपने घर में किसी आए हुए व्यक्ति से बात करने के बजाय मैं उठा और कमरे के बाहर चला गया. मैंने उनसे कहा, आप यहां से जा सकते हैं."
क्या भाईजान! अब बदमाशी पर उतर आए
एक बार कश्मीर में आतंकवादियों ने दो स्वीडिश इंजीनियर का अपहरण कर लिया. स्वीडिश सरकार बार-बार एसओएस कर रही थी. खुफिया तंत्र भी फेल था. चंद्रशेखर ने सीधे पाकिस्तान के पीएम से हॉटलाइन पर संपर्क किया. कहा, क्या बदमाशी पर उतर आए हो भाईजान! नवाज शरीफ ने कहा, कुछ समझे नहीं. क्या गुस्ताखी हो गई? इधर से कहा गया, सब समझते हो. फटाफट स्वीडिश इंजीनियरों को रिहा कराओ. ऐसी तिकड़म ठीक नहीं. पाक पीएम ने कहा, इसमें टेररिस्ट इन्वॉल्व है. पाक सरकार का कोई रोल नहीं है भाईसाहब. चंद्रशेखर कहां चुप रहने वाले थे?
उन्होंने कहा, हम दोनों जानते हैं माजरा क्या है? फटाफट लग जाओ, रिहा कराओ. उन्होंने रिसीवर रख दिया. चंद घंटे बाद इंटेलिजेंस ने सूचना दी दोनों इंजीनियरों को ससम्मान मुक्त कर दिया गया है.
अपने जिंदा रहते उन्होंने अपने किसी पुत्र या पाल्य का राजनीतिक रास्ता हमवार नहीं किया. कहते हैं कि एक बार उनके बेटे ने पूछा कि वे उसे क्या देकर जा रहे हैं? इस पर उन्होंने अपने एक सुरक्षाकर्मी को बुलाकर उससे उसके पिता का नाम पूछा. उसने बताया तो बेटे से पूछा कि तुम इनके पिता जी को जानते हो? बेटे ने कहा नहीं, तो बोले-मैं तुमको यही देकर जा रहा हूं कि जब तुम किसी को अपने पिता का नाम बताओगे तो वह यह नहीं कहेगा जो तुमने इनके पिता के बारे में कहा.
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं इस आर्टिकल में छपे विचार उनके अपने हैं. इसमें क्विंट की सहमति होना जरूरी नहीं है.)
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Published: 08 Jul 2021,12:11 PM IST