मेंबर्स के लिए
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Voices Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Opinion Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019बीजापुर नक्सली हमला: फिर वही पुरानी गलतियां दोहराई गईं

बीजापुर नक्सली हमला: फिर वही पुरानी गलतियां दोहराई गईं

छत्तीसगढ़ नक्सली हमले में कहां चूक हुई? बता रहे हैं CRPF और BSF के एडीजी रह चुके डॉ. एन. सी. अस्थाना

डॉ एनसी अस्थाना
नजरिया
Published:
छत्तीसगढ़ नक्सली हमले में कहां चूक हुई?
i
छत्तीसगढ़ नक्सली हमले में कहां चूक हुई?
सांकेतिक तस्वीर (फोटो: पीटीआई)  

advertisement

मीडिया रिपोर्ट्स कहती हैं कि छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद से मुकाबला करने वाले सुरक्षा बलों को बड़ा नुकसान हुआ है. बीजापुर और सुकमा जिलों के बीच जंगल में कम से कम 22 सुरक्षाकर्मी शहीद हो गए हैं.

सरकारी प्रेस रिलीज कहती हैं कि शहीद होने वालों में-

  • डीआरजी (जिला रिजर्व गार्ड, छत्तीसगढ़ पुलिस) के आठ,
  • एसटीएफ (विशेष टास्क फोर्स, छत्तीसगढ़ पुलिस) के छह,
  • कोबरा (सीआरपीएफ) के सात, और
  • कथित बस्तरिया बटालियन (सीआरपीएफ) का एक जवान शामिल था

इसके अलावा 31 जवान घायल हैं, और एक लापता है. मीडिया में इस हिंसक कार्रवाई का आधा-अधूरा विवरण मौजूद है. पब्लिक डोमेन में जो जानकारियां उपलब्ध हैं, इससे यह पता चलता है कि:

  • सुरक्षा बलों की बहुत बड़ी टीम (एक रिपोर्ट के अनुसार, 2,000 से ज्यादा जवान) जंगलों में घुस रही थी.
  • नक्सलियों ने घात लगाकर उन पर हमला किया.
  • नक्सलियों ने अपनी पसंद के स्थान और समय पर सैनिकों पर घात लगाकर हमला किया. इससे जवानों के पास खुद बचाने का बहुत कम मौका था- इसके बावजूद कि उन्होंने आखिरी सांस तक संघर्ष किया.

छत्तीसगढ़ में क्या गलत हुआ?

मौजूदा जानकारी के आधार पर हम इतना तो कह ही सकते हैं कि इस अभियान की योजना बनाने में घातक पेशेवर गलतियां की गईं. सबसे पहले, जब जंगल में इतनी बड़ी संख्या में जवान घुस रहे हों तो वाहनों वगैरह के आने जाने की इतनी बड़े पैमाने में तैयारी करनी पड़ती है कि यह अभियान गुप्त नहीं रह सकता. जंगलों के बारे में लोगों को लगता है कि वे बहुत निर्जन होते हैं, लेकिन ऐसा होता नहीं.

पहले भी ऐसा बहुत बार हुआ है कि जंगल में सुरक्षा बलों की मौजूदगी या उनकी गतिविधियां नक्सलियों के स्थानीय मुखबिरों को मिल गई हैं.

दूसरी तरफ ऐसा लगभग कभी नहीं हुआ कि स्थानीय लोग नक्सलियों की मौजूदगी या उनकी गतिविधि के बारे में जानकारी देने के लिए आगे आएं.

जैसा कि छत्तीसगढ़ वैभव और दैनिक भास्कर जैसे अखबारों में लिखा है, इस अभियान के सिलसिले में तीन हफ्ते पहले से दिल्ली के तीन सीनियर अधिकारी वहां में मौजूद हैं. यह स्वाभाविक है कि उन्हें इस खराब योजना के लिए जिम्मेदार ठहराया जाए.

एक साथ इतने सारे लोगों को जंगल में घुसने देना एक बड़ी भारी भूल है. इसका यह मतलब भी है कि इस तथाकथित अभियान की भव्य योजना तो बनाई गई, लेकिन जंगल में लड़ाई कितनी जटिल हो सकती है, उसकी कोई नीतिगत तैयारी नहीं की गई.

इंटेलिजेंस की भूल या इंटेलिजेंस की कमी?

दूसरा, अगर सुरक्षा बलों के लिए यह हैरत की बात थी, तो इससे यह साबित होता है कि नेतृत्व/या योजना बनाने वालों के पास नक्सलियों के नाम, उनकी संख्या और हथियार की कोई जानकारी नहीं थी. उनकी प्लानिंग के बारे में तो बात ही क्या की जाए.

इसका मतलब ये भी है कि ये सिर्फ इंटेलिजेंस की चूक नहीं थी, बल्कि यूं कहना चाहिए कि बिना पुख्ता इंटेलिजेंस के ऑपरेशन को अंजाम दिया गया जो कि दरअसल अपराध है, क्योंकि इसके चलते बेशकीमती जिंदगियां दांव पर लग गईं.

तिस पर, उन्होंने अपनी नाकाबिलियत को छिपाने की बार-बार कोशिश की है. वे लोग सरकार को मूर्ख बनाने के लिए इस समस्या का एक फौरी तकनीकी हल सुझा रहे हैं. जबकि यह सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक और सैन्य स्तर की मिली-जुली समस्या है.

जैसा कि छत्तीसगढ़ वैभव ने इशारा दिया है, वे लोग यूएवी (अनमैन्ड एरियर वेहिकल)/छोटे ड्रोन्स पर बहुत अधिक निर्भर दिखने की कोशिश कर रहे हैं. यूएवीज़ को अफगानिस्तान में इस्तेमाल किया जा सकता है क्योंकि वहां जंगल नहीं हैं. जंगलों में ऑप्टिकल कैमरा यह नहीं दिखा सकते कि घने पेड़ों के नीचे क्या हो रहा है.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

पुलिस लीडरशिप का जानलेवा अहंकार

यह मूर्खता तब से कायम है, जब 2010 में एक ही हमले में 76 जवान मारे गए थे.

इसकी वजह यह है कि ‘सत्तानशीनों के करीबी’ कई अधिकारियों के लिए ऐसे तथाकथित अभियान उनके अहंकार प्रदर्शन का जरिया बन जाते हैं. वे अपने जैसे अहंकारी नेताओं को यह बताना चाहते हैं कि उनके पास नक्सलियों और नक्सलवाद को खत्म करने की जादुई छड़ी है. ऐसी जादुई छड़ी चलाने की कोशिश हमेशा से की गई है. सालों से ऐसे झूठे सपने दिखाए जाते रहे हैं.

जैसे फिल्मों में दिखाया जाता है. आप तमिल फिल्म पेरामनई (2009) और उसकी हिंदी डबिंग ‘कसम हिंदुस्तान की’ को याद कीजिए. पुलिस लीडरशिप में ऐसे अहंकारी भरे पड़े हैं जो ‘छोटे पुलिस बल का बड़ा कारनामा’ जैसी काल्पनिक कहानियों का सौदा करते हैं. सपने दिखाते हैं कि कैसे कुछ सुपर कमांडो जंगल में घुसेंगे और नक्सलियों का खात्मा कर देंगे.

नक्सलियों को जड़ मूल से खत्म करने की कई योजनाओं से राजनैतिक नेतृत्व को लुभाया गया है. जैसे एरियल बॉम्बिंग या स्ट्राफिंग, जंगलों में आग लगाना, हर आदिवासी घर में वायरलेस ‘बग’ लगाना, घटचिरौली मॉडल या आंध्र मॉडल का इस्तेमाल, कोवर्ट ऑपरेशंस, विभिन्न सुरक्षा बलों के बीच बेहतर समन्वय और संपर्क, अच्छा सर्विलांस वगैह. लेकिन नतीजे कोई बहुत अच्छे नही रहे.

कोई SOP नहीं, कोई सही जांच भी नहीं

ऐसी तबाही के बाद किसी भी सरकार के तहत आंतरिक या बाहरी जांच सिर्फ औपचारिकता होती है, और विपक्ष को यह कहकर चुप करा देती है कि जांच के आदेश दे दिए गए हैं.

ऐसे मामलों में ‘जान छुड़ाने के लिए’ की गई जांच के नतीजे कभी निचले स्तर के अधिकारियों को नहीं मिल पाते.

किसी बड़े हादसे की जांच रिपोर्ट को गुप्त रखा जाता है क्योंकि उसका मुख्य मकसद कृपापात्रों को बचाना होता है, ताकि सजा के लिए बलि का बकरा मिल जाए.

यह लंबे समय से देखा गया है कि पुलिस लीडरशिप और उनके सरकारी हुक्मरान पूरी लाग-लपेट करते हैं ताकि दोषी आईपीएस अधिकारियों को बचाया जा सके, और सारी जिम्मेदारी उन मामूली लोगों पर थोपी जा सके, जिन्होंने सोप्स (जोकि काल्पनिक होते हैं, चूंकि मौजूद ही नहीं होते) यानी स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर्स का पालन नहीं किया.

सच्चाई तो यह है कि कहीं भी कोई सोप्स हैं ही नहीं. सोप होने भी नहीं चाहिए क्योंकि हर स्थिति अलग होती है और ऐसा कोई माकूल हल नहीं होता जोकि हर समस्या पर लागू किया जा सके.

दैनिक भास्कर ने इस हादसे से जुड़े एक खास अधिकारी का नाम लिया है, उसका कहना है कि उस अधिकारी ने पहले भी ऐसी चूक की है. लेकिन उसे फिर भी पदोन्नत और पुरस्कृत किया गया और बड़ी जिम्मेदारियां भी सौंपी गईं.

गलतियों से कोई सबक नहीं

नतीजा यह है कि गलतियों का न तो विश्लेषण किया गया है, न ही उनसे सीख ली गई है.

अनुशासन के नाम पर निचले और मध्यम स्तर के अधिकारियों को ‘वरिष्ठ अधिकारियों की अविवेकपूर्ण योजनाओं को मानने’ को मजबूर होना पड़ता है. जो कोई भी उनकी भव्य, किंतु खोखली योजनाओं पर पेशेवर कारणों से सवाल खड़े करता है, उसे सार्वजनिक रूप से कायर कहकर अपमानित किया जाता है और फिर बाद में सजा का भागी बनाया जाता है.

मैं नहीं समझता कि हम इस बात पर बड़ाई करें कि इस हादसे में नक्सली भी मारे गए हैं. इसे पेशेवर होना नहीं कहा जाएगा. फिर अभी तक मारे गए नक्सलियों के शव नहीं मिले हैं. सिर्फ एक महिला नक्सली का शव मिला है.

पुलिस लीडरशिप हमेशा से नक्सलियों के मारे जाने के संबंध में झूठ बोलता रहा है. वह यही सफाई देता रहा है कि नक्सली अपने साथियों के शवों को खुद उठा ले जाते हैं या गांव वालों को ऐसा करने पर मजबूर करते हैं. सही बात तो यह है कि किसी भी लड़ाई में दोनों पक्षों के लोग हताहत होते हैं. कुछ मौतों को रोका नहीं जा सकता, लेकिन कुछ को रोकना तो संभव होता है. हमें उनकी तरफ ध्यान देना चाहिए जिन्हें रोका जा सकता है. लेकिन यह भी संभव नहीं क्योंकि जैसा कि हमने पहले भी कहा, सुरक्षा बल अपनी गलतियों से नहीं सीखते.

एक सही दृष्टिकोण की जरूरत

1967 से अगर दस हजार से भी कम लोगों का गुट, वह भी मामूली हथियारों से लैस, लाखों सैनिकों पर भारी पड़ रहा है तो इसका मतलब यह है कि उसकी ताकत उसके चतुर नेताओं की बदौलत नहीं है.

इससे यह प्रदर्शित होता है कि सरकारें इस आंतरिक चुनौती से निपटने में कहीं कोई बड़ी गलती कर रही हैं. इसके अलावा हमारा इंटेलिजेंस इतना खराब है कि 54 सालों में भी हम नक्सलियों उन रास्तों को बंद नहीं कर पाए हैं जहां से वे पैसा और हथियारों को हासिल करते हैं. और लोगों को अपने साथ मिलाते हैं.

नक्सलवाद विरोधी अभियान विशुद्ध रूप से सैन्य मामला है. उसका सीमित उद्देश्य होना चाहिए. किसी को न तो खुद को और न ही सरकार को इस भुलावे में रखना चाहिए कि एक बड़े अभियान से इसे पूरी तरह से खत्म कर दिया जाएगा.

इससे भी महत्वपूर्ण यह है कि सरकार को अपना अभिमान छोड़ देना चाहिए और इस समस्या के मूल पहलुओं पर ध्यान देना चाहिए.

(डॉ. एन. सी. अस्थाना एक रिटायर्ड आईपीएस अधिकारी हैं. वह केरल के डीजीपी और सीआरपीएफ तथा बीएसएफ के एडीजी रह चुके हैं. वह @NcAsthana पर ट्विट करते हैं. यह एक ओपिनियन पीस है. यहां व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट का उनसे सहमत होना जरूरी नहीं है.)

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: undefined

Read More
ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT