मेंबर्स के लिए
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Voices Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Opinion Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019कोयला छोड़ PNG अपनाना आसान नहीं,लेकिन जनता पर जहरीले असर का हर्जाना कौन देगा?

कोयला छोड़ PNG अपनाना आसान नहीं,लेकिन जनता पर जहरीले असर का हर्जाना कौन देगा?

Muzaffarnagar के पेपर मीलों से निकलती जहरीली हवा,यहां के निवासियों को इसके बदले कितने करोड़ों का हर्जाना मिलना चाहिए?

रौनक सुतारिया
नजरिया
Published:
<div class="paragraphs"><p>Toxic Emissions</p></div>
i

Toxic Emissions

(फोटो- दीक्षा मल्होत्रा/द क्विंट)

advertisement

भारत के पेपर रीसाइक्लिंग मिलों में लगभग 14 मिलियन टन रद्दी कागज का उपयोग किया जाता है, जिसमें से लगभग 70 प्रतिशत भारत में दूसरे देशों से आयात किया जाता है. भारत को रद्दी कागज का सबसे बड़ा आयात कनाडा और अमेरिका (USA) से होता है. कानूनी मानदंड के अनुसार इन रद्दी कागज में 2 प्रतिशत तक 'मिलावट/कंटेमिनेशन' की अनुमति होती है, लेकिन रिपोर्ट में पाया गया है कि बाहर देशों से आयात होने वाले इन रद्दी कागजों में मिलावट की मात्रा इसके लगभग 3 गुना है.

'मिलावट', शब्द का अर्थ कागज में मिले प्लास्टिक के कचरे जैसे तत्वों से है. वर्तमान में रीसाइक्लिंग के लिए भारत में आयात किये जाने वाले रद्दी कागज में ऐसी 'मिलावट' की मात्रा 500,000 टन आंकी गयी है- यानी पेरिस के एफिल टावर्स से 50 गुना ज्यादा वजनी!

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के एक अन्य आदेश में कहा गया है कि 900,000 टन से अधिक आयातित सस्ते रद्दी कागज का इस्तेमाल ईंट भट्टों को जलाने के लिए किया जाता है.

कोयले की जगह PNG जैसे वैकल्पिक ईंधन अपनाने की कीमत कितनी है?

इस पेपर वेस्ट को पाने वाले भारतीय पेपर मिलें संभावित रूप से कोयले और बायोमास के साथ इन अपशिष्ट प्लास्टिक को जलाती हैं. इस वजह से होने वाला उत्सर्जन और जहरीला हो जाता है. प्लास्टिक के सूक्ष्म टुकड़ों को जलाने से होने वाले उत्सर्जन को लकड़ी जलाने की तुलना में 4100 गुना अधिक जहरीला माना जाता है.

शहर की 44 बड़ी पेपर मिलों का प्रतिनिधित्व करने वाले दिल्ली-एनसीआर पेपर मिल्स एसोसिएशन ने नवंबर 2021 में सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामे दायर किया. हलफनामे में उसने ठोस ईंधन जलाने की जगह अन्य विकल्प चुनने के कारण बढ़ने वाले लागत बताई और आंकड़े चौंकाने वाले हैं.

इसमें एक दिन में लगभग 15 करोड़ रुपये की ईंधन सब्सिडी और इन 44 पेपर मिल इकाइयों में से प्रत्येक को कोयला और बायोमास की जगह PNG में बदलने के लिए 40-100 करोड़ रुपये का पूंजीगत व्यय शामिल है.

सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) द्वारा जारी एक आधिकारिक अधिसूचना में थर्मल पावर प्लांट्स को छोड़कर, NCR क्षेत्र के सभी उद्योगों में कोयले और अन्य अस्वीकृत फ्यूल के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया गया है.

माना जाता है कि अस्वीकृत फ्यूल का उपयोग करने वाले कारखाने तत्काल बंद हो गए क्योंकि उनपर भारी EC (पर्यावरण मुआवजा) जुर्माना लगाया जाता था. इस स्थिति में एनसीआर क्षेत्र में मौजूद पेपर मिलों की क्या हालत है?

वैकल्पिक ईंधन अपनाने की चुनौतियां

NCR पेपर मिल्स एसोसिएशन ने CAQM को अपने दिसंबर 2021 के सबमिशन में कोयले और बायोमास की जगह PNG जैसे वैकल्पिक ईंधन अपनाने में आने वाली बड़ी चुनौतियों को रेखांकित किया है. ये चुनौतियां इंजीनियरिंग, टेक्नोलॉजी के स्तर पर थीं, आर्थिक रूप से थी और इससे नौकरियों के नुकसान का दावा भी किया गया था.

एसोसिएशन के इस सबमिशन में दावा किया गया है कि सभी मिलों में ऑनलाइन कंटीन्यूअस एमिशन मॉनिटरिंग सिस्टम (OCEMS) स्थापित किए गए हैं और यह इस बात का पर्याप्त प्रमाण है कि ये मिलें राज्य और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के बताए सभी मानदंडों को पूरा कर रही हैं.

हालांकि OCEMS डेटा तक सामान्य नागरिकों की पहुंच नहीं है जोकि इस प्रदूषण से सबसे अधिक प्रभावित हैं. यह तब हो रहा है जब OCEMS डेटा को सार्वजनिक करने के लिए संसदीय और सुप्रीम कोर्ट, दोनों ने निर्देश दे रखे हैं.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

PNG अपनाने में ₹2,250 करोड़ पूंजीगत व्यय का अनुमान 

कोयले की जगह वैकल्पिक ईंधन, जैसे PNG, अपनाने का आर्थिक लागत चौंका देने वाला है. इसमें 4 से 5 साल के अंदर गैस आधारित बॉयलर और टर्बाइन स्थापित करने के लिए ₹2,250 करोड़ का पूंजीगत व्यय लगेगा.

इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि अगर वे कोयला और बायोमास जैसे ठोस ईंधन की जगह PNG ईंधन को अपनाते हैं तो मौजूदा लागत के अतिरिक्त उन्हें प्रति वर्ष ₹5,500 करोड़ खर्च करना होगा.

यह अतिरिक्त लागत किसे उठाना चाहिए और अगर ठोस ईंधन की जगह वैकल्पिक ईंधन नहीं अपनाया जाता है तो इसका आस-पास के निवासियों पर क्या प्रभाव पड़ेगा?

हानिकारक उत्सर्जन की सामाजिक लागत क्या है? 

ईंधन में परिवर्तन के सवाल के बीच इस वास्तविकता को भी समझने की आवश्यकता है कि रद्दी कागज कई कागज मिलों में इस्तेमाल होने वाला एक कच्चा माल है और इसमें संभावित रूप से हजारों टन प्लास्टिक कचरा होता है. लेकिन इसका कोई अन्य उपयोग नहीं होता है और यह अंतत: भस्म हो सकता है.

जिस रद्दी कागज में इतने बड़े स्तर पर अपशिष्ट प्लास्टिक होते हैं, जब उनको जलाते हैं तो उसके उत्सर्जनों का प्रभाव झेलने वाले व्यक्तियों और समाज के लिए इसकी सामाजिक लागत क्या है?

CO2 (SC-CO2) मेट्रिक्स की विश्व स्तर पर स्थापित सामाजिक लागत के अनुसार प्रारंभिक अनुमान है कि उत्सर्जन के केवल CO2 भाग के लिए लगभग 185 मिलियन डॉलर का सालाना मुआवजा बनता है.

और इसमें तो अभी PM2.5, PM10 और PAHs (पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन) जैसे उत्सर्जन के अन्य जहरीले प्रदूषकों के स्वास्थ्य पर प्रभाव की लागत जोड़ी भी नहीं गयी है. इन्हें कार्सिनोजेनिक के रूप में जाना जाता है और इसे प्लास्टिक अपशिष्ट के जलने से पैदा होने वाला सबसे हानिकारक उत्सर्जन माना जाता है.

मैं तर्क दूंगा कि इन जहरीले और कार्सिनोजेनिक पार्टिकुलेट मैटर उत्सर्जन (जिसे HC-PM2.5 - PM2.5 की स्वास्थ्य लागत कहा जाता है) की स्वास्थ्य लागत निश्चित रूप से SC-CO2 उत्सर्जन से कई गुना अधिक होगी, क्योंकि पार्टिकुलेट मैटर उत्सर्जन से स्वास्थ्य पर प्रभाव उस इंसान के जीवनकाल में पड़ता है जबकि कार्बन उत्सर्जन का प्रभाव एक शताब्दी से अधिक समय तक देखने को मिलता है.

मुजफ्फरनगर का उदहारण

उदाहरण के लिए मुजफ्फरनगर को लें. ब्लूमबर्ग ने अपनी स्टोरी में भारत का पेपर मिल हब माने जाने वाले इस शहर की स्टडी की है.

यूरोपीय यूनियन और OECD का सिद्धांत है कि "प्रदूषण करने वाला ही भुगतान करेगा". अगर इसको आधार बनाए तो इस शहर के निवासियों के लिए प्रदूषण का सालाना हर्जाना (सामाजिक और स्वास्थ्य लागत मिलाकर ) 250 मिलियन अमेरिकी डॉलर से लेकर 500 मिलियन डॉलर के बीच कहीं होगा.

तो इस हर्जाने का भुगतान कौन करेगा? प्लास्टिक कचरा पैदा करने वाली सबसे बड़ी वैश्विक उपभोक्ता वस्तु कंपनियां सबसे पहले निशाने पर होंगी, जिन्हें भारत में इस प्लास्टिक कचरे का उपयोग और परिवहन करने के लिए जाना जाता है. और अगर ये हर्जाना दिया जायेगा तो किन-किन को?

बिना किसी बहस के इन पेपर मिलों के आसपास के क्षेत्र में रहने वाले निवासी इसके पहले हक़दार होंगे. इनका भुगतान विभिन्न तरीकों से किया जाना चाहिए, जिसमें मुआवजा और/या सब्सिडी शामिल है. हालांकि यह इन्हीं तक सीमित नहीं है.

(रौंक सुतारिया रेस्पिरर लिविंग साइंसेज के फाउंडर और CEO हैं. यह एक ओपिनियन पीस है और यहां व्यक्त किए गए विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट हिंदी का इससे सहमत होना आवश्यक नहीं है.)

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: undefined

Read More
ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT