मेंबर्स के लिए
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Voices Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Opinion Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019संडे व्यू : वैश्वीकरण के ढांचे पर चली मिसाइल, शेन वॉर्न और उनकी करामाती स्पिन

संडे व्यू : वैश्वीकरण के ढांचे पर चली मिसाइल, शेन वॉर्न और उनकी करामाती स्पिन

संडे व्यू में पढ़ें टीएन नाइनन, पी चिदंबरम, तवलीन सिंह, मुकुल केसवान जैसी नामचीन हस्तियों के विचारों का सार

क्विंट हिंदी
नजरिया
Updated:
संडे व्यू में पढ़िए देशभर के प्रमुख अखबारों के चुनिंदा आर्टिकल्स
i
संडे व्यू में पढ़िए देशभर के प्रमुख अखबारों के चुनिंदा आर्टिकल्स
(फोटो: क्विंट हिंदी)

advertisement

वैश्वीकरण के ढांचे पर चली मिसाइल

टीएन नाइनन ने बिजनेस स्टैंडर्ड में लिखा है कि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने विदेशी मुद्रा की कमी के शिकार क्षेत्रीय देशों को गलत दवा दी थी. इंडोनेशिया जैसे देश ढहने के कगार पर पहुंच गये थे. जवाब में क्षेत्रीय देशों ने बड़े पैमाने पर विदेशी मुद्रा भंडार तैयार किया.

अकाल से जूझते भारत ने अमेरिका के बजाए वियतनाम का साथ दिया था जबकि तब हम गेहूं के लिए अमेरिका पर निर्भर थे. हरित क्रांति के जरिए इसका जवाब दिया गया. पश्चिमी देशों ने विमानों के कलपुर्जों से लेकर वित्तीय उपायों तक के लिए व्लादिमिर पुतिन को झुकाने का प्रयास किया है तो इसके दूरगामी परिणाम भी होंगे.

नाइनन लिखते हैं कि भारत के लिए रूस को हाशिए पर रखना या चीन-पाकिस्तान गठबंधन की अनदेखी करते हुए चीन से करीबी रिश्ता रखना मुश्किल होगा. यूक्रेन यह सबक दे रहा है कि ताकतवर पड़ोसी देशों के विरोध की कितनी अधिक कीमत चुकानी पड़ती है.

रूस तेल और रक्षा मामलों में ही हमारा कारोबारी साझेदार रह गया है. फिर भी यह रिश्ता बना रहने वाला है. रूस पर आर्थिक प्रतिबंधों का असर भारत पर भी जरूर पड़ेगा. लेखक का कहना है कि आत्मनिर्भरता आंशिक हल है. डॉलर का कोई विकल्प नहीं है. हर स्वदेशी हथियार प्रणाली में आयातित घटक होता है. तेजस का इंजन जनरल इलेक्ट्रिक ने बनाया है तो नौसेना के पोतों में यूक्रेन का इंजन लगा होता है.

2014 के बाद से रूस ने प्रतिबंधों को प्रतिक्रिया देते हुए एक मजबूत अर्थव्यवस्था बनायी है फिर भी यह नाजुक बना रहने वाला है. साझा परस्पर निर्भरता का विकल्प ढूंढना चुनौती है.

‘राष्ट्रीय हित’ में युद्ध का समर्थन!

तवलीन सिंह ने इंडियन एक्सप्रेस में लिखा है कि राष्ट्रीय हित के नाम पर भारत व्लादिमिर पुतिन के नापाक युद्ध के पक्ष में खड़ा दिख रहा है. तर्क दिए जा रहे हैं कि भारतीय छात्रों के सुरक्षित लौट आने तक हमें सावधान रहना होगा. इसलिए अपने सदाबहार साथी रूस को चिढ़ाने वाला कोई भी काम भारत के राष्ट्रीय हित में नहीं होगा.

वो आगे लिखती हैं, व्लादिमिर पुतिन ने क्या सोचकर यूक्रेन पर हमला किया है इसका जवाब वही दे सकते हैं. कई लोग इसे पुतिन की सनक मानते हैं तो कईयों का ऐसा मानना है कि पुतिन कभी यह स्वीकार नहीं कर पाए है कि सोवियत संघ अब टूट कर बिखर चुका है और अब विशाल कम्युनिस्ट साम्राज्य को दोबारा जिंदा करने का सपना पूरा नहीं किया जा सकता.

तवलीन सिंह लिखती हैं कि रूस ने क्रीमिया पर कब् करते वक्त भी यूक्रेन से लड़ाई लड़ी थी. तब पश्चिमी देशों की ऐसी प्रतिक्रिया नहीं थी और इसलिए रूस एक बार फिर यूक्रेन पर हमला कर बैठा है. जर्मनी और इटली जैसे देश रूस के तेल और गैस पर आज भी निर्भर हैं.

युद्ध ने दस दिन में 10 लाख से यादा यूक्रेनियों को देश छोड़ने को विवश किया है. जो अपने देश में हैं वे बेघर और बेबस हैं. रिहायशी इलाके खंडहर बन चुके हैं. लेखिका याद करती हैं कि जब बर्लिन की दीवार गिरी थी और दोनों जर्मनी एक हुए थे तो पूर्वी जर्मनी बेहद पिछड़ चुका था. उसी वक्त सोवियत संघ की यात्रा को याद करती हुईं तवलीन सिंह लिखती हैं कि तब होटल रोस्सिया में तंग कमरे और खराब सुविधाएं थीं. डॉलर के लिए तरसते लोग थे. आज रूस बदल चुका है और इसमें पुतिन का बड़ा योगदान है.

यूक्रेन असली लोकतंत्र की तलाश में पश्चिम देशों की ओर झुकता चला गया. वहीं पुतिन का रूस तानाशाही में जकड़ा रहा. पुतिन के आक्रमण की क्या यही वजह है? सबका जवाब है कि उत्तर केवल एक आदमी जानता है और वह है पुतिन. आज यूक्रेन का भविष्य भी सिर्फ पुतिन को पता है.
ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

किन्हें चाहिए सख्त नेता?

पी चिदंबरम ने इंडियन एक्सप्रेस में अंग्रेजी के एक मुहावरे का जिक्र करते हुए लिखा है कि जब हालात मुश्किल भरे हों तो मुश्किलों में ही जीना होता है. हालांकि ‘मुश्किल या मजबूत’ का अर्थ अपने-अपने ढंग से लिया जाता है. लंबे समय तक सत्ता में रहने के बाद लोकतांत्रिक रूप से चुना गया नेता भी कठोर हो जाता है. जवाहरलाल नेहरू के करीबी दोस्तों नूरुमाह, जोसेफ टीटो, गमाल अब्देल नासेर और सुकर्णो को तानाशाह होते हुए लेखक ने देखा है.

वो आगे लिखते हैं, आज भी ब्राजील के जाएर बोलसोनारो, तुर्की के रेसेप एर्दोआन, मिस्र के अब्दुल अल सिसि हंगरी के विक्टर ओरबान, बेलारूस के एलेग्जेंडर लुकाशेन्को, उत्तर कोरिया के किम जोंग उन और ऐसे दर्जनों तानाशाह हैं. दुनिया में 54 देशों की सरकारों को तानाशाह कहा जाता है.

चिदंबरम उत्तर प्रदेश चुनाव प्रचार के दौरान नरेंद्र मोदी के उस बयान की याद दिलाते हैं जिसमें उन्होंने सख्त नेताओँ की जरूरत बतायी थी. मोदी ने यह भाषण उस बहराइच की धरती से दिया जहां गरीबी अनुपात सत्तर फीसदी से ज्यादा है. मोदी चाहते हैं कि आदित्यनाथ दोबारा चुने जाएं क्योंकि वे ‘सख्त’ नेता हैं और ‘मुश्किल’ हालात में उनकी जरूरत है.

लेखक आदित्यनाथ के उस भाषण का भी जिक्र करते हैं जिसमें वे बुलडोजर की चर्चा करते हैं और कहते हैं कि यह एक्सप्रेस हाईवे बनाती है और माफियाओं व अपराधियों से भी निपटती है. पत्रकार सिद्दीक कप्पन के 5 अक्तूबर 2020 से जेल में बंद रखने का उदाहरण भी लेखक रखते हैं.

द वायर की रिपोर्ट के हवाले से बताते हैं कि योगी के शासनकाल में 12 पत्रकार मारे गये हैं, 48 घायल हुए हैं और 66 आरोपित या जेलों में बंद हैं. लेखक विनम्र और बुद्धिमान नेता को ही सही विकल्प बताते हैं.

शेन वॉर्न और उनका स्पिन

मुकुल केसवान ने टेलीग्राफ में ऑस्ट्रेलियाई लेग स्पिनर शेन वार्न को याद किया है. उन्हें जनवरी 1992 में शेन वार्न का पहला टेस्ट याद है जब शेन वार्न की मदद से ऑस्ट्रेलिया उस टेस्ट को ड्रॉ कराने में कामयाब रहा था जिसमें रवि शास्त्री ने दोहरा शतक लगाया था. 150 रन देकर एक विकेट लेना कोई उपलब्धि नहीं थी लेकिन मैक्डॉरमेट, मैक्रा जैसे तेज गेंदबाज से सुसज्जित टीम में शेन वार्न की गेंदबाजी से भारत को तेज आक्रमण से बचने का सुकुन मिलता था. मार्च 2001 में सौरभ गांगुली की टीम ने स्टीव वॉ की टीम को मात दी थी. उस मैच में शेन वार्न ने पहली पारी में चार विकेट हासिल किए थे.

मुकुल केसवान को मार्च 2001 में हुआ चेन्नई टेस्ट याद है जिसमें लक्ष्मण ने 281 रनों की पारी खेली थी. शेन वार्न को बेहतरीन तरीके से खेला था. इससे पहले 1998 में सिद्धू ने भी अर्धशतकीय-शतकीय पारी खेली थी. उस ऑस्ट्रेलियाई दौरे में सचिन ने भी शतक लगाए थे. शेन वार्न को 54 रन देकर 10 विकेट मिले थे.

भारत के विरुद्ध शेन वार्न बहुत प्रभावी नहीं रहे. मगर, उनकी घूमती गेंदों में जादू था. 90 के दशक में भारत को ऑस्ट्रिलिया के हाथों हार अधिक मिली. इसमें शेन वार्न की भी अपनी भूमिका रही थी. कई बार शेन वार्न ने अपने बयानों से चौंकाया भी. उदाहरण के लिए जब अनिल कुंबले ने एक पारी में 10 विकेट लिए तो शेन ने कहा कि इसका मतलब यह है कि बाकी गेंदबाज अपना काम सही से नहीं कर रहे थे.

यूपी चुनाव में भूमिका निभा रहे हैं सांड

शेखर गुप्ता ने द प्रिंट में लिखा है कि भारतीय उपमहादेश पर्व-त्योहारों से ज्यादा चुनाव के दौरान जीवंत हो उठता है. लोग क्या सोच रहे हैं, उनकी उम्मीदें, उनकी खुशियां, चिंताएं, आशंकाएं सबकुछ आप दीवारों पर लिखी इबारतों से जान जाते हैं. उत्तर प्रदेश में सांड ने भी सबका ध्यान खींचा है. हर राजनीतिक चर्चा में छुट्टा पशु है. 1955 से गोवध अवैध है लेकिन इस पर सख्ती से अमल ने पूरी तस्वीर बदल दी है.

गुप्ता लिखते हैं कि, माना यह जाता है कि मानव हत्या करके आप पुलिस से बच सकते हैं लेकिन गो हत्या करके कतई नहीं बच सकते. माना जा रहा है कि यूपी के चुनाव में सांड अहम भूमिका निभा रहे हैं.

शेखर गुप्ता लिखते हैं कि गोकशी पर रोक की कीमत यूपी में गरीब चुका रहे हैं. पहले सूख गयी गायों को स्थानीय कसाइयों को नहीं बेचा जाता था. व्यापारी लोग उन्हें इकट्ठा बड़ी संख्या में खरीद कर वहां ले जातेथे जहां गोमांस खाना गैरकानूनी नहीं है. उदाहरण के लिए उत्तर पूर्व में. लेकिन,योगी के यूपी में ऐसी गायों की खरीद-बिक्री भी आत्मघाती है. वाराणसी की बाहरी इलाके में किसी ने सवाल पूछाकिआखिर बिहार में यह समस्या क्यों नहीं है? बिहार को जानने वालेएक पत्रकार के हवाले से लेखक बताते हैं कि नीतीश कुमार अधिक व्यावहारिक हैं. उन्होंने गोवध पर तो रोक लगाई हैमगर उनकी घरीद-बिक्री की छूट दी है.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: 06 Mar 2022,07:55 AM IST

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT