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अमेरिका में अब हर हर उम्र के लोग कोरोना की वैक्सीन के लिए योग्य हो गए हैं. यानी सरकार ने सबको वैक्सीनेट करना का फैसला किया है. एक ऐसी चीज जिसकी मांग लंबे समय से भारत में हो रही है. द केन डॉट कॉम के नटग्राफ में प्रकाशित लेख में दोनों देशों की वैक्सीन रणनीति का बखूबी विश्लेषण किया गया है. यहां हम उसी रिपोर्ट की खास बातें आपको बता रहे हैं.
अगर आप भारत की वैक्सीन स्ट्रैटजी की तरफ पीछे मुड़कर देखते हैं, तो आप महसूस करेंगे कि यह एक विपरित प्रयोग जैसा रहा है. जब पूरे विश्व में कोविड के मामले बढ़ रहे थे और उस समय यह स्पष्ट हो गया था कि इस महामारी से बचने के लिए लॉकडाउन, मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग जैसे उपाय अस्थायी हैं. इस महामारी का स्थायी उपाय एक ही है-वह है टीका यानी वैक्सीन.
तभी सबको लग रहा था कि अमेरिका में वैक्सीन विकसित होगी और भारत में उत्पादन होगा. क्योंकि अमेरिका में दुनिया का सबसे एडवांस फार्मा उद्योग है. वहां फार्मा शोध और उसके विकास का इतिहास रहा है. और भारत तब दुनिया के लगभग 60 फीसदी टीकों (गैर कोरोना) का निर्माण कर रहा था. यानी वैश्विक महामारी को जल्द खत्म करने के लिए अमेरिका को वैक्सीन खोजना और विकसित करना था, वहीं भारत को उसका निर्माण करना था.
वैश्विक महामारी और वैक्सीन की वास्तविकता को देखते हुए मई 2020 में यूएस की संघीय सरकार ने साहस के साथ तेजी से कार्य करने का फैसला किया. उस समय अमेरिका को यह समझ आ गया था कि समस्या वैक्सीन विकसित करने में नहीं, बल्कि वैक्सीन की जल्द पहचान करने और उसके बाद उसका तेजी से उत्पादन करने में है. हर नए महीने के साथ लोगों की मौतों में इजाफा हो रहा था, लॉकडाउन पहले से ज्यादा गंभीर हो रहा था इसके साथ ही अर्थव्यवस्था लगातार गिरती जा रही थी. इसलिए इस पर जल्द काम करने की जरूरत थी.
ऐसे में फेडरल सरकार ने एक योजना बनाई. उस प्लान के मुताबिक सात अलग-अलग वैक्सीन निर्माताओं को सपोर्ट करने का फैसला किया गया. इससे ट्रॉयल और उसके अप्रूवल प्रोसेस को गति मिली साथ ही वैक्सीन बनाने की प्रकिया को भी बढ़ावा दिया गया था.
• इस प्रोग्राम को “ऑपरेशन वॉर्प स्पीड” (Operation Warp Speed) कहा गया था. इस ऑपरेशन के जरिए फेडरल सरकार और प्राइवेट कंपनियों के बीच एक साझेदारी की कल्पना की गई थी.
• अमेरिका ने दुनिया की सबसे बड़ी दवा कंपनियों में से आठ कंपनी को 11 बिलियन डॉलर से थोड़ी अधिक की राशि दी थी.
• हालांकि सभी कंपनियों को फंड की जरूरत नहीं थी, क्योंकि फाइजर जैसी कंपनियां पहले से ही बड़ी पूंजी वाली कंपनी है. लेकिन अन्य कंपनियां जिन्हें फंड की जरूरत थी, उन्होंने इसे हाथों-हाथ लिया.
• फंडिंग मिलने से कंपनियों के ऊपर से खुद रिस्क में पूंजी डालने का डर खत्म हो गया था. इसकी वजह से कंपनियों ने मौके का फायदा उठाते हुए वैक्सीन खोजने के लिए तेजी से काम शुरु कर दिया.
• सभी एक ही मिशन के साथ काम कर रहे थे. वह मिशन था “एक टीके की खोज”.
• सभी कंपनियों ने अपने-अपने तरीके से टीका खोजने का काम शुरू किया था.
भारत में कई वैक्सीन निर्माता कपंनियां हैं, लेकिन उनमें से सबसे बड़ी कंपनी सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (SII) है. एसआईआई कई मामलों में एक असाधारण कंपनी है. सबसे पहले यह कि इस कंपनी की कमान एक अरबपति परिवार के पास है. यह कंपनी मूल रूप एक हॉर्स फार्म के तौर शुरू हुई थी, लेकिन जल्द ही यह वैक्सीन बनाने लगी. 2020 तक यह दुनिया की सबसे बड़ी वैक्सीन निर्माता कंपनी थी, हर साल यह संस्था 1.5 मिलियन डोज तैयार करती है. इस भारतीय निजी कंपनी के ग्राहक दुनियाभर के देशों में मौजूद हैं.
• जब कोरोना महामारी दुनियाभर में फैली तो SII ने आपदा में अवसर देखा और अपने कदम आगे बढ़ाए. आने वाली चुनौतियों को स्वीकार करने के लिए खुद को तैयार किया.
SII एक परिवार द्वारा संचालित की जा रही प्राइवेट कंपनी है. कंपनियों में जोखिम उठाने की एक सीमित सीमा होती है. SII के दृष्टिकोण से देंखे तो उस समय समझदारी वाली बात यह होती कि पहले यह पता लगाया जाए कि कौन सा टीका काम करेगा. उसके बाद उसके उत्पादन का आकलन लगाया जाए. इसके इतर कंपनी ने एक कैल्कुलेटड रिस्क लिया. पिछले साल मई में पूनावाला ने वीडियो कॉल के जरिए एस्ट्राजेनेका के चीफ एग्जीक्यूटिव पास्कल सोरियट से बात की और एसआईआई के लिए 12 महीनों में लगभग एक बिलियन खुराक बनाने के लिए डील की, यह कुल डोज का लगभग आधा हिस्सा था.
• उसी महीने (मई 2020 में ) मुंबई से लगभग 150 किलोमीटर पुणे में SII के विशाल परिसर में एक पैकेज आया. उस पैकेज के अंदर सूखी बर्फ में पैक एक शीशी थी, जिसमें ऑक्सफोर्ड वैक्सीन, सेल सब्सट्रेट बनाने के लिए आवश्यक घटक थे, इसके साथ ही इसे विकसित करने के लिए और विस्तृत निर्देश थे.
• इसके साथ ट्रायल के नतीजे या कानूनी मंजूरी नहीं थी. इसके बावजूद पूनावाला ने अपनी तीन फैक्ट्रियों को तुरंत ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका कोरोना वायरस वैक्सीन AZD1222 पर उत्पादन स्विच करने के आदेश दिए.
बाहर वालों ने मदद की, अपनों की मदद का अभी भी है इंतजार
• भारत में अमेरिका की तरह किसी भी प्रकार का ऑपरेशन वॉर्प स्पीड नहीं चलाया गया. अप्रैल 2020 में एक साक्षात्कार में पूनावाला ने कहा था कि भारत सरकार ने अभी कोई करार नहीं किया है.
• अगस्त में SII अपने इतिहास में पहली बार, बाहरी फंडिंग के लिए गया. SII ने निजी इक्विटी निवेशकों से बात की, बिल और मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन से 150 मिलियन डॉलर जुटाए और अपनी निजी संपत्ति से भी 100 मिलियन डॉलर का निवेश किया.
• भारत सरकार की ओर से SII के लिए किसी फंडिंग की खबर नहीं आई.
अमेरिकी सरकार ने वैक्सीन के रिसर्च और डेवलप करने के लिए फंडिंग करने के साथ ही जुलाई 2020 में एक कदम आगे बढ़कर काम किया. सरकार ने फाइजर कंपनी को वैक्सीन की 100 मिलियन डोज का ऑर्डर दे दिया. इसके लिए अमेरिकी सरकार ने फाइजर को बाकायदा 2 बिलियन डॉलर का भुगतान भी कर दिया था. उस समय कई आलोचकों ने कहा था कि यह एक छोटी संख्या है, लेकिन अमेरिकी सरकार की डील में एक क्लॉज था, जिसमें सरकार ने अपने आप को फाइजर से अतिरिक्त 500 मिलियन खुराक खरीदने का विकल्प दिया.
• इसके साथ ही अमेरिकी सरकार ने मॉर्डना कंपनी से 1.5 बिलियन डॉलर का कॉन्ट्रैक्ट साइन किया, जिसमें और 100 मिलियन डोज देने की बात कही गई है.
• अमेरिका यहां भी नहीं रुका वहां की फेडरल सरकार ने 500 मिलियन से अधिक वैक्सीन डोज के लिए जॉनसन एंड जॉनसन, नोवावेक्स और एस्ट्राजेनेका के साथ अनुबंध पर हस्ताक्षर किए.
“अमेरिका ने दो अहम काम किए पहला, जनता के टैक्स का पैसा जनहित के लिए ही वैक्सीन की रिसर्च और डेवलप में फंड कर दिया. वहीं वह वैक्सीन कंपनियों का पहला ग्राहक भी बन गया. इससे नगदी का प्रवाह बना रहा. अमेरिका की इस कार्यप्रणाली का अन्य देशों ने भी पालन किया. जैसे यूके ने फाइजर वैक्सीन की 40 मिलियन खुराक खरीदने का फैसला किया. नवंबर 2020 में यूरोपीय संघ ने 300 मिलियन खुराक तक खरीदने के लिए फाइजर के साथ एक समझौता किया. वहीं कनाडा ने 76 मिलियन तक की खरीद का फैसला किया.”
• वैक्सीन कंपनियां पूंजी चाहती थीं और उन्होंने इसे हासिल कर लिया था. इसके बाद एकमात्र सवाल यह था कि क्या वे उस पैमाने पर उत्पादन करने में सक्षम थे जो आवश्यक था. इसलिए अमेरिकी सरकार ने न केवल विकास के लिए बल्कि उत्पादन के लिए भी प्रोत्साहन देने का फैसला किया.
जब अमेरिका में यह सब हो रहा था, तब भारत में सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया पूरी ताकत से वैक्सीन का निर्माण कर रहा था. चूंकि SII ने वैक्सीन के ट्रायल पूरे होने से पहले ही उत्पादन शुरू कर दिया था, इसलिए 2020 तक इसके गोदामों में कई मिलियन वैक्सीन का स्टॉक हो गया था. कंपनी ने तो कदम बढ़ा लिया था, लेकिन इसमें कुछ समस्याएं भी थीं.
• हालांकि वैक्सीन खरीदी के लिए SII को किसी प्रकार चिंता नहीं थी, क्योंकि पहले ही सऊदी अरब, ब्राजील और मोरक्को सहित कई देशों से इस कंपनी को लाखों वैक्सीन की खरीद के आदेश मिल चुके थे. मोरक्को ने अगस्त 2020 में 20 मिलियन खुराक के लिए एक आपूर्ति अनुबंध पर हस्ताक्षर किए थे.
• लेकिन एक समस्या थी, भारत सरकार ने SII के साथ किसी भी खरीद आदेश पर हस्ताक्षर नहीं किए थे.
• जनवरी 2021 में भारत के सबसे बड़े वैक्सीन निर्माता को यह पता ही नहीं था कि भारत सरकार को कब तक, कितने टीकों की आवश्यकता है.
जनवरी 2021 में हिन्दुस्तान टाइम्स को दिए अपने एक इंटरव्यू में आदर पूनावाला ने कहा था कि
“उन्हें (भारत सरकार) अभी भी हमारे साथ खरीद आदेश पर हस्ताक्षर करना है और हमें बताना है कि टीका कहां भेजना है, उसके 7 से 10 दिन बाद हम टीका वितरित कर सकते हैं. हमने पहले ही उन्हें एक बहुत ही विशेष कीमत (200 रुपये) की पेशकश की है यह केवल सरकार के लिए, वह भी पहले 100 मिलियन खुराक के लिए है. फिर इसके बाद कीमत अधिक या अलग होगी.”
“निजी बाजार में हमने कहा है कि इसकी एमआरपी 1,000 रुपये प्रति डोज होगी और संभवत: हम इसे 600-700 रुपये में बेचेंगे. वहीं निर्यात की बात करें तो यह 3-5 डॉलर के बीच होगी. यह अलग-अलग देशों के अनुसार अलग-अलग हो सकती है.”
सीरम इंस्टीट्यूट (SII) एक महीने में 60 मिलियन खुराक के करीब निर्माण कर रहा था. लेकिन भारत की आवश्यकता को पूरा करने के लिए इससे अधिक संख्या की आवश्यकता थी. वहीं बीच में कंपनी के कारखाने में आग लग गई, जिस पर पूनावाला ने बाद में कहा था कि उत्पादन बढ़ाने के लिए उसने अपनी योजनाओं में कटौती की है.
• भारत के पास मैन्युफैक्चरिंग क्षमताओं को बढ़ाने के लिए एक साल था, युद्ध स्तर पर वैक्सीन का उत्पादन करना था, लेकिन यह नहीं हुआ.
• 11 जनवरी 2021 को भारत सरकार ने आखिरकार SII को वैक्सीन का पहला ऑर्डर दिया. 11 मिलियन खुराक का ऑर्डर.
• दो हफ्ते बाद, संयुक्त राज्य अमेरिका की संघीय सरकार ने फाइजर और मॉडर्न के साथ अपने दूसरे विकल्प का प्रयोग किया. इसने 300 मिलियन खुराक का ऑर्डर दिया, कुल ऑर्डर को 600 मिलियन खुराक तक लाया गया.
अमेरिकी सरकार ने फार्मा कंपनियों को वैक्सीन के लिए रॉ मटेरियल उपलब्ध कराने के लिए स्पेशल डिफेंस एक्ट लागू कर दिया है. सरकार ने विरोधी कंपनियों मर्क और जॉनसन-जॉनसन को मिलकर काम करने के लिए राजी किया. 24 घंटे उत्पादन शुरू करवाया. प्लांटों में ही पूर्णकालिक तकनीशियनों नियुक्त किए गए ताकि किसी भी मशीनरी के ब्रेकडाउन की तुरंत मरम्मत की जा सके. इसके साथ ही प्रतिदिन लॉजिस्टिक मदद भी सेना की ओर से प्रदान की जा रही है.
• मर्क के प्लांटों में सुरक्षा मानक जॉनसन एंड जॉनसन वैक्सीन के उत्पादन के लिए पूरे नहीं थे. बाइडेन प्रशासन इन्हें अपग्रेड करने के लिए 268.8 मिलियन डॉलर का भुगतान करेगा.
इस दौरान जैसे ही कोरोना के मामलों में वृद्धि हुई, भारत ने टीकों के निर्यात को जल्दी से निलंबित कर दिया. जिन देशों ने SII के साथ टीके बुक किए थे, उन्हें प्रतीक्षा करने के लिए कहा था. उनमें से एक ब्राजील था, जहां हर दिन 3,000 लोग कोरोनोवायरस से मर रहे हैं.
• कुछ दिनों पहले SII को AstraZeneca की ओर से वैक्सीन निर्माण देरी के लिए एक कानूनी नोटिस प्राप्त हुआ था. SII ने 3,000 करोड़ रुपये की वित्तीय मदद मांगी थी. SII की जरूरत पर सरकार की ओर से कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है.
इन घटनाओं से यह स्पष्ट होता है कि अमेरिकी सरकार ने खेल के नियमों को समझा और उसे बेहतर खेला. उसे यह समझ में आया कि निजी प्राइवेट प्लेयर एक मुक्त बाजार में काम करते हैं. अमेरिकी सरकार इन निजी कंपनियों की खरीदार बनी, और उन्हें पूंजी भी दिया.
• यदि आप अमेरिका को देखें तो ऐसा प्रतीत होगा कि वहां हर किसी की जीत हुई है चाहे वह फार्मा कंपनी हो, सरकार हो या वहां के नागरिक हों. वहां हर एक व्यक्ति को मुफ्त में वैक्सीन प्राप्त हुई है.
• दूसरी ओर भारत ने वह सब कुछ किया जिससे कोई भी विजेता नहीं बन सका. न सरकार, न SII और न ही भारत के नागरिक
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Published: 13 Apr 2021,08:09 AM IST