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ऐसा किसी बड़ी मुसीबत के समय में ही हो सकता है. और उस मुसीबत का नाम है लॉकडाउन जो कोरोना वायरस को रोकने के लिए भारत के साथ-साथ दुनिया के कई देशों में फिलहाल जारी है. अमेरिका में गुरूवार शाम को आए आंकड़ों के मुताबिक लॉकडाउन की वजह से 2009 से लेकर अब तक जितने नौकरी के मौके बने थे वो लॉकडाउन के चार हफ्ते में ही खत्म हो गए.
दरअसल, अमेरिका में हर गुरुवार को जॉबलेस क्लेम्स का आंकड़ा आता है. इससे पता चलता है कि कितने लोगों ने एक हफ्ते में बेरोजगारी भत्ते के लिए आवेदन किए. सीएनबीसी के विश्लेषण के हिसाब के पिछले 4 हफ्ते में आवेदन करने वालों की संख्या 2.2 करोड़ से ज्यादा रही है. इसका मतलब है कि चार हफ्ते में ही दो करोड़ से ज्यादा अमेरिकियों की नौकरियां गई हैं. और अमेरिकी अर्थव्यवस्था ने नवंबर 2009 से लेकर अब तक करीब इतने ही नौकरी के मौके पैदा किए.
यह पूरी तरह से झकझोर देने वाला आंकड़ा है. वो भी उस अमेरिका का जहां कुछ राज्यों को छोड़कर उतना सख्त लॉकडाउन नहीं है जितना की पूरे भारत में है. उस अमेरिका में जहां लोगों और बिजनेसेस को राहत पहुंचाने के लिए 2 ट्रिलयन डॉलर (भारत की कुल अर्थव्यवस्था का साइज 2 ट्रिलियन डॉलर से थोड़ा सा ज्यादा है) का राहत पैकेज दिया गया है. उस अमेरिका में जहां के सेंट्रल बैंक यानी फेडरल रिजर्व ने अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए बाजार में डॉलर की बारिश कर दी है.
लेकिन अमेरिका के आंकड़े और पूरे देश में माइग्रेंट वर्कर्स की बैचेनी देखकर आप अंदाजा लगा सकते हैं कि तीन हफ्ते के लॉकडाउन ने कितने लोगों की नौकरियों पर चोट किया होगा. ध्यान रहे कि भारत में लॉकडाउन में जितनी सख्ती है वैसी दुनिया में और किसी भी देश में नहीं है. इस हिसाब से अपने यहां हालात और भी बुरे हो सकते हैं.
अमेरिका के आंकड़ों को देखकर डर सा लगता है. अपने देश में आर्थिक पहलुओं से जुड़े काफी कम आंकड़े ही प्रकाशित होते हैं. जो मिलते भी हैं वो काफी देरी से. इसीलिए लॉकडाउन की क्या कीमत हमें चुकानी होगी, इसके सही आकलन के लिए हमें थोड़ा इंतजार करना होगा. इसकी थोड़ी झलक कंपनियों की तिमाही नतीजे में मिलेंगे.
हां, आईआईएम अहमदाबाद की एक ताजा स्टडी से कुछ संकेत जरूर मिलते हैं. स्टडी के लिए सर्वे 29 मार्च से 8 अप्रैंल के बीच की गई. अहमदाबाद के 500 परिवारों का फीडबैक लिया गया. इसके हिसाब से लॉकडाउन के बाद से 74 परसेंट लोगों की आमदनी बंद हो गई है. और 44 परसेंट लोगों का मानना है कि जरूरी सामानों का जो उनके पास स्टॉक है वो एक हफ्ते से ज्यादा नहीं चलने वाला है. ये सारे आर्थिक आंकड़े कोरोना के डर को और भी भयावह बना रहे हैं.
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Published: 18 Apr 2020,01:52 PM IST