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सारे संकेत यही बता रहे हैं कि लॉकडाउन 15 दिन और बढ़ सकता है. कुछ राज्यों में इसका ऐलान हो भी गया है और लगता है कि दूसरे राज्यों में भी ऐसा ही होगा.
लॉकडाउन के दो उद्देश्य थे- संक्रमण की कड़ी तो तोड़ना और पब्लिक हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूती देना.
आंकड़े बताते हैं कि लॉकडाउन की घोषणा का लोगों ने पूरी तरह से पालन किया है. आंकड़ों के मुताबिक-
इन दोनों आंकड़ों को देखने के बाद लगता है कि लॉकडाउन का पूरी तरह से पालन हुआ है. अगर पूरी तरह से पालन होने के बाद भी लॉकडाउन को फिर से बढ़ाने की जरूरत महसूस हो रही है तो क्या हमें अपनी स्ट्रेटजी बदलने की जरूरत नहीं है.
क्या हमारा ध्यान अब इकनॉमी को हुए नुकसान को कम करने पर नहीं होना चाहिए? पूर्व आर्थिक सलाहकार शंकर आचार्य ने बिजनेस स्टैंडर्ड में एक लेख लिखा है जिसकी चार मुख्य बातें कुछ इस तरह से हैं-
इन मुद्दों पर गौर करेंगे तो लगेगा कि कोरोना से लड़ने के लिए लॉकडाउन वाले तरीके पर फिर से विचार करने की जरूरत है.
देश में विपन्नता कैसी है इसके लिए कुछ आंकड़ों पर नजर डालना जरूरी है. सोशियो इकनॉमिक कास्ट सेंसस 2011 के मुताबिक-
देश में 75 परसेंट परिवार ऐसे हैं जिनकी मासिक आमदनी 5,000 रुपए से कम है. क्या इनके पास इतनी सेंविग्स होगी कि वो कई दिनों तक बिना किसी आमदनी के घर का खर्च चला पाएंगे. सिर्फ 8 परसेंट परिवार ऐसे हैं जिनकी मासिक आमदनी 10,000 रुपए से ज्यादा है. शायद लॉकडाउन से इस तबके को ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा.
इन आंकड़ों को देखकर तो यही लगता है कि देश का बड़ा तबका ऐसा है जिनके लिए कई दिनों के लॉकडाउन का काफी बुरा असर होगा. और ऐसे में दूसरी बीमारियों से लड़ने की क्षमता में कमी आएगी.
लॉकडाउन से अर्थव्यवस्था को ज्यादा नुकसान होता है तो इन सारी बीमारियों से लड़ने में मुश्किलें बढ़ सकती है. क्या वो काफी बड़ा नुकसान नहीं होगा. और उसपर से मनोरोग की समस्या अलग से.
हमें पता है कि कोरोनावायरस की वजह से देश में बेशकीमती जानें गई हैं जो काफी दुर्भाग्यपूर्ण है. लेकिन क्या हमें पता है कि इसी दौरान भूखमरी, कुपोषण या तंगी की वजह से सही इलाज नहीं मिलने से कितनी जानें गई हैं?
ऐसे में लगता है कि लंबे समय तक के लॉकडाउन से देश के बड़े तबके को बड़ा नुकसान हो सकता है. इसका मतलब यह कतई नहीं है कि कोरोना से लड़ाई में हम कमजोर पड़ें. असली मसला टेस्टिंग, और टेस्टिंग का है. पूरे देश में पूरा लॉकडाउन कितना कारगर होगा पता नहीं.
उम्मीद है कि केंद्र और राज्य सरकारें सारे पहलुओं पर गौर करेंगी.
(मयंक मिश्रा वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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Published: 11 Apr 2020,09:16 PM IST