मेंबर्स के लिए
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Voices Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Opinion Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019लंबे लॉकडाउन से कोरोना न सही, करोड़ों को दूसरी बीमारियों का डर

लंबे लॉकडाउन से कोरोना न सही, करोड़ों को दूसरी बीमारियों का डर

लॉकडाउन का पालन होने के बाद भी फिर से बढ़ाने की जरूरत महसूस हो रही है

मयंक मिश्रा
नजरिया
Updated:
Coronavirus Lockdown Extension Do More Harm Than Good
i
Coronavirus Lockdown Extension Do More Harm Than Good
(फोटो: PTI)

advertisement

सारे संकेत यही बता रहे हैं कि लॉकडाउन 15 दिन और बढ़ सकता है. कुछ राज्यों में इसका ऐलान हो भी गया है और लगता है कि दूसरे राज्यों में भी ऐसा ही होगा.

लॉकडाउन के दो उद्देश्य थे- संक्रमण की कड़ी तो तोड़ना और पब्लिक हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूती देना.

आंकड़े बताते हैं कि लॉकडाउन की घोषणा का लोगों ने पूरी तरह से पालन किया है. आंकड़ों के मुताबिक-

  • दुकान से लेकर दूसरे सार्वजनिक स्थान जाने में लॉकडाउन के बाद 77 परसेंट की कमी आई है. कुछ देशों, जिनमें स्पेन, इटली और यूके शामिल है, को छोड़कर यह आंकड़ा काफी अच्छा है.
  • डीजल-पेट्रोल की खपत में अप्रैल के पहले हफ्ते में 66 परसेंट की कमी आई है और मार्च के महीने में इसमें 17 परसेंट की गिरावट रही थी.

इन दोनों आंकड़ों को देखने के बाद लगता है कि लॉकडाउन का पूरी तरह से पालन हुआ है. अगर पूरी तरह से पालन होने के बाद भी लॉकडाउन को फिर से बढ़ाने की जरूरत महसूस हो रही है तो क्या हमें अपनी स्ट्रेटजी बदलने की जरूरत नहीं है.

देश की आधी आबादी या तो गरीबी रेखा से नीचे है या उससे थोड़ा ऊपरफाइल फोटो : रॉयटर्स 

क्या हमारा ध्यान अब इकनॉमी को हुए नुकसान को कम करने पर नहीं होना चाहिए? पूर्व आर्थिक सलाहकार शंकर आचार्य ने बिजनेस स्टैंडर्ड में एक लेख लिखा है जिसकी चार मुख्य बातें कुछ इस तरह से हैं-

  1. देश की आधी आबादी या तो गरीबी रेखा से नीचे है या उससे थोड़ा ऊपर. आर्थिक गतिविधि पूरी तरह से रुकने से उनकी हालत ज्यादा खराब हो सकती है और उनके लिए जरूरी सामानों का कंजप्शन भी मुश्किल हो सकता है.
  2. देश में जितने रोजगार हैं उनमें 80 परसेंट से ज्यादा असंगठित क्षेत्र में है. जहां ना तो नौकरी की कोई गारंटी होती है ना ही रेगुलर सैलरी का ठिकाना. लॉकडाउन की वजह से छंटनी का सबसे ज्यादा नुकसान इसी तबके को होगा.
  3. अपने देश में यूरोप जैसा सिस्टम नहीं है जहां मुसीबत में लोगों की जरूरतों का ख्याल रखा जाता है.
  4. पब्लिक हेल्थकेयर की ऐसी हालत है कि इसको सुधारने में सालों लगेंगे. एक-दो हफ्ते में तो इसकी हालत में मामूली सुधार ही संभव है.
ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT
ऐसे हालात में उनका मानना है कि आर्थिक गतिविधि ठप होने से देश के बड़े तबके को दूसरी बीमारियों से लड़ने में दिक्कत हो सकती है. अच्छा खाने से इम्यूनिटी बढ़ती है. अच्छे खाने में कमी का मतलब है दूसरी बीमारियों से ज्यादा नुकसान हो सकता है जो काफी भयावह हो सकता है.

इन मुद्दों पर गौर करेंगे तो लगेगा कि कोरोना से लड़ने के लिए लॉकडाउन वाले तरीके पर फिर से विचार करने की जरूरत है.

देश में 16 लाख ऐसे परिवार हैं जिनका अपना कोई आशियाना नहीं है(फोटो: PTI)

देश में विपन्नता कैसी है इसके लिए कुछ आंकड़ों पर नजर डालना जरूरी है. सोशियो इकनॉमिक कास्ट सेंसस 2011 के मुताबिक-

  • देश में 16 लाख ऐसे परिवार हैं जिनका अपना कोई आशियाना नहीं है
  • 2.4 करोड़ ऐसे परिवार हैं जिनके पास एक कच्चा कमरा जैसा घर है
  • 5.4 करोड़ ऐसे परिवार हैं जिनकी मुख्य आमदनी का स्त्रोत दिहाड़ी मजदूरी ही है
ऐसे लोगों पर लंबे लॉकडाउन का क्या असर होगा, इस पर गौर करने की जरूरत है.

देश में 75 परसेंट परिवार ऐसे हैं जिनकी मासिक आमदनी 5,000 रुपए से कम है. क्या इनके पास इतनी सेंविग्स होगी कि वो कई दिनों तक बिना किसी आमदनी के घर का खर्च चला पाएंगे. सिर्फ 8 परसेंट परिवार ऐसे हैं जिनकी मासिक आमदनी 10,000 रुपए से ज्यादा है. शायद लॉकडाउन से इस तबके को ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा.

इन आंकड़ों को देखकर तो यही लगता है कि देश का बड़ा तबका ऐसा है जिनके लिए कई दिनों के लॉकडाउन का काफी बुरा असर होगा. और ऐसे में दूसरी बीमारियों से लड़ने की क्षमता में कमी आएगी.

हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि देश में हर दिन औसतन करीब 21 लोग न्यूमोनिया या दूसरी सांस वाली बीमारियों का शिकार होते हैं, देश की एडल्ट आबादी का 8 परसेंट डायबिटिज का शिकार है और कैंसर बड़ा किलर है ही.

लॉकडाउन से अर्थव्यवस्था को ज्यादा नुकसान होता है तो इन सारी बीमारियों से लड़ने में मुश्किलें बढ़ सकती है. क्या वो काफी बड़ा नुकसान नहीं होगा. और उसपर से मनोरोग की समस्या अलग से.

हमें पता है कि कोरोनावायरस की वजह से देश में बेशकीमती जानें गई हैं जो काफी दुर्भाग्यपूर्ण है. लेकिन क्या हमें पता है कि इसी दौरान भूखमरी, कुपोषण या तंगी की वजह से सही इलाज नहीं मिलने से कितनी जानें गई हैं?

ऐसे में लगता है कि लंबे समय तक के लॉकडाउन से देश के बड़े तबके को बड़ा नुकसान हो सकता है. इसका मतलब यह कतई नहीं है कि कोरोना से लड़ाई में हम कमजोर पड़ें. असली मसला टेस्टिंग, और टेस्टिंग का है. पूरे देश में पूरा लॉकडाउन कितना कारगर होगा पता नहीं.

उम्मीद है कि केंद्र और राज्य सरकारें सारे पहलुओं पर गौर करेंगी.

(मयंक मिश्रा वरिष्ठ पत्रकार हैं)

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: 11 Apr 2020,09:16 PM IST

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT