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कोरोना कहर का कितना आर्थिक नुकसान? कुछ आंकड़ों से अंदाजा लगाइए

अर्थव्यस्था को क्रिटिकल केयर यूनिट में भर्ती करने की जरूरत है

मयंक मिश्रा
नजरिया
Updated:
कोरोना कहर का कितना आर्थिक नुकसान? कुछ आंकड़ों से अंदाजा लगाइए
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कोरोना कहर का कितना आर्थिक नुकसान? कुछ आंकड़ों से अंदाजा लगाइए
(फोटोः क्विंट हिंदी)

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महाराष्ट्र में बिजली की मांग में 40 फीसदी से ज्यादा की कमी आई है. इतनी बड़ी कमी से आप खुद अंदाजा लगा सकते हैं कि अर्थव्यवस्था किस तरह से ठप हो गई है. बिजली की मांग अर्थव्यवस्था की तेजी या सुस्ती का बड़ा संकेत होता है. और इस आंकड़े से तो यही लगता है कि अर्थव्यस्था को क्रिटिकल केयर यूनिट में भर्ती करने की जरूरत है.

कोरोना वायरस की तबाही और उसके बाद के लॉकडाउन का आर्थिक नुकसान कितना बड़ा है इसका अनुमान लगाने के लिए आप जाने माने स्तंभकार टीएन नाईनन के ताजा लेख की एक लाइन पढ़िए. वो लिखते हैं कि शुरुआती नंबर के हिसाब से मार्च का महीना काफी खराब गुजरा है.

ऑटो कंपनियों की बिक्री 50 फीसदी गिरी है. जीएसटी कलेक्शन में 20 फीसदी की कमी आई है, पेट्रोल-डीजल की मांग 20 फीसदी घटी है, बिजली की मांग में करीब 30 फीसदी की गिरावट आई है और पूरे देश में डायरेक्ट टैक्स कलेक्शन दो साल पहले के स्तर पर है जब अर्थव्यवस्था का साइज अभी की तुलना में 15 फीसदी कम था.

(फोटो: क्विंट हिंदी)
कुछ आंकड़े बता रहे हैं कि हालात 2008 की वैश्विक मंदी से भी खराब है. ये सारे आंकड़े अर्थव्यवस्था की सही तस्वीर पेश करने के लिए काफी हैं.

2008 से भी खराब आर्थिक हालात?

अंदेशा है कि बैंकों की कर्ज बांटने की रफ्तार नोटबंदी के कुछ महीने बाद के हालात से भी खराब है. हालांकि इसके आधिकारिक आंकड़ों का फिलहाल हमें इंतजार है. शेयर और कमोडिटी बाजार में रोजाना ट्रेडिंग वॉल्यूम में भारी कमी आई है. अब ट्रेडिंग से समय में भी कटौती कर दी गई है.

कोरोना कहर का कितना आर्थिक नुकसान? कुछ आंकड़ों से अंदाजा लगाइए(फोटोः PTI)

2008 की वैश्विक मंदी के बाद भी कुछ आंकड़े बड़े डरावने थे. लेकिन उस समय ज्यादा असर शहरों में दिखा था. गांवों में इसका मामूली असर ही था. इसलिए उस समय देश का आर्थिक इंजन पूरी तरह से बंद नहीं हुआ था. 2008 की मंदी के बाद कुछ जानकारों ने कहा भी था कि भारत ने इंडिया को मंदी की मार से बचा लिया. लेकिन इस बार के हालात ऐसे हैं कि गांवो से लेकर शहरों तक- मंदी की मार समान दिख रही है.

इस सबका असर रोजगार पर क्या होगा और फिर अर्थव्यवस्था में मांग पर, इसपर अपने देश के आंकड़ों का हमें इंतजार करना होगा. अमेरिका में पिछले तीन-चार दिनों में प्रकाशित आंकड़ों में हम इसकी झलक देख सकते हैं.
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अमेरिका में बेरोजगारी भत्ते के लिए रिकॉर्ड आवेदन

दो हफ्ते पहले करीब 2 लाख अमेरिकियों ने बेरोजगारी भत्ते के लिए आवेदन दिया था. 21 मार्च को वो बढ़कर 30 लाख से ज्यादा हो गया. और बीते गुरूवार को आई रिपोर्ट के मुताबिक करीब 66 लाख लोगों ने बेरोजगारी भत्ते के लिए आवेदन दिया. मतलब दो हफ्ते में ही करीब 1 करोड़ लोगों ने बेरोजगारी भत्ते की मांग की. आंकड़ों के हिसाब से अमेरिकी इतिहास में पहले ऐसा कभी नहीं हुआ था.

1929 के ग्रेट डिप्रेशन के समय में भी नहीं. 1929 की मंदी को अमेरिकी इतिहास में सबसे खराब माना जाता है. इस मंदी से उबरने में अमेरिका को कई साल लगे थे. और अभी के बेरोजगारी के आंकड़े उससे भी भयावह दिख रहे हैं.

शुक्रवार को अमेरिका में रोजगारी का एक और आंकड़ा प्रकाशित हुआ-

  • मार्च में 7 लाख से ज्यादा लोगों की नौकरियों गई
  • अनुमान 1 लाख नौकरियों में कमी की थी
  • नौकरी के मौके में कमी 2010 के बाद पहली बार हुई

यह आंकड़ा मार्च के शुरूआती हफ्ते के हालात बताते हैं. तब से हालात और भी काफी खराब हुए हैं.

अमेरिका जैसे देश में संकट जब इतनी तेजी से गहरा रहा है तो अपने देश की अर्थव्यवस्था को कोरोना वायरस और उससे निपटने के लिए लॉकडाउन का कितना नुकसान हो सकता है इसका अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है.

कुछ लोग कहेंगे कि कोरोना वायरस एक हेल्थ समस्या है. पहली प्राथमिकता लोगों की जान बचाने की होनी चाहिए. यह बात सही भी है. पहली प्राथमिकता हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर को ही दुरूस्त करने पर होनी चाहिए. लेकिन अर्थव्यवस्था इससे सीधे जुड़ी हुई है. लोगों के पास नौकरियां ही नहीं रहेगीं, कमाई के जरिए खत्म होने लगेंगे तो यह हेल्थ क्राइसिस ऐसा भयावह रूप ले लेगा, जहां खाने के लाले पड़ने लगेंगे. और फिर दुरुस्त हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर भी इस महामारी को रोकने में लाचार ही दिखेगा. ऐसे में दोनों दिक्कतों को एक साथ युद्ध स्तर पर दुरुस्त करने की जरूरत है.

फिलहाल जो सरकार ने राहत के पैकेज की घोषणा की है वो मौजूदा संकट से निपटने के लिए ऊंट के मुंह में जीरा से ज्यादा नहीं है. जहां दुनिया के बहुत सारे देश अपनी जीडीपी का 10 फीसदी या उससे भी कहीं ज्यादा के आर्थिक पैकेज की घोषणा कर चुके हैं, हमारे यहां यह जीडीपी के 1 फीसदी से भी काफी कम है.

क्या हमें अंदाजा भी है कि यह त्रासदी कितनी बड़ी है. कम से कम इन आंकड़ों को देखकर सरकारों को तत्काल जगने की जरूरत है.

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Published: 04 Apr 2020,07:10 PM IST

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