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देशभर में कम से कम तीन अलग-अलग स्थानों पर कोविड-19 टेस्ट में कई धर्मगुरुओं के पॉजिटिव पाए जाने के बाद इस्लामिक संगठन तबलीगी जमात चर्चा के केंद्र में आ गया है.
शुरूआत 16 मार्च से हुई, जब तेलंगाना में इंडोनेशिया के 10 लोगों को अस्पताल में भर्ती कराया गया. ऐसा इनमें से एक में कोरोना वायरस के लक्षण मिलने के बाद किया गया. 18 मार्च तक इनमें से 8 कोविड-19 से संक्रमित पाए गये. फिर चार दिनों के बाद तमिलनाडु में थाईलैंड के दो लोग कोरोना वायरस पॉजिटिव मिले.
आखिरकार 26 मार्च को कोविड-19 के कारण एक कश्मीरी की मौत हो गयी. राज्य में इस वायरस से यह पहली मौत थी. झारखंड में भी जो पहला पॉजिटिव केस आया है उसका कनेक्शन दिल्ली मरकज से है.
इन सभी लोगों में जो एक बात सामान्य है वह यह कि ये सभी लोग तबलीगी जमात से संबद्ध बताये जाते हैं और इन्होंने तबलीगी जमात हेडक्वार्टर यानी दिल्ली के निजामुद्दीन इलाके में मौजूद बंगले वाली मस्जिद में 8 से 10 मार्च के बीच हुई एक बैठक में हिस्सा लिया था. तेलंगाना मरीजों में से कुछ के मामले में यह तारीख 13 से 15 मार्च थी. दिल्ली में रुकने के बाद ये लोग दक्षिण भारत और अन्य राज्यों की ओर चले गये जहां उनमें कोविड-19 के लक्षण नजर आने लगे.
मीडिया और सोशल मीडिया में अब यह कोशिश की जा रही है कि तबलीगी धर्म गुरुओं को ऐसे उदाहरण के तौर पर पेश किया जाए, जिससे कोरोना वायरस फैलाने के पीछे इस्लामिक षडयंत्र का संकेत मिले. हिन्दुत्व समर्थक चैनल सुदर्शन टीवी तो इसे ‘कोरोना जिहाद’ तक बता रहा है.
तबलीगी जमात जोर देकर यह कह रहा है कि उसने कोई अवैध काम नहीं किया है और 22 मार्च या उसके बाद कोई धार्मिक गतिविधियां उसने नहीं की हैं. इसी दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जनता कर्फ्यू की घोषणा की थी.
तबलीगी जमात मरकज या इसके दिल्ली मुख्यालय ने एक प्रेस बयान में कहा,
यह सही है. 22 मार्च या उसके बाद वहां वास्तव में कोई कार्यक्रम नहीं हुआ. देशव्यापी लॉकडॉन भी इसी दौरान आया. बहरहाल जब दिल्ली सरकार के दिशा निर्देशों की बात करें तो मामला थोड़ा जटिल हो जाता है. तबलीगी जमात के मौलाना के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने की दिल्ली सरकार की मांग का आधार दो अधिसूचनाएं हैं- एक जो 13 और 16 मार्च को जारी किए गये और दूसरा 12 मार्च को जारी हुआ.
पहली बात, दिल्ली सरकार ने तबलीगी जमात मरकज को 13 मार्च के उस आदेश के उल्लंघन का दोषी ठहराया है जिसमें 200 लोगों से ज्यादा के जमा होने पर रोक लगायी गयी थी.
बहरहाल समस्या यह है कि उन नोटिसों में ‘सभी खेलकूद की गतिविधियां’ की चर्चा है और यह साफ नहीं है कि धार्मिक जमावड़ों पर भी यह लागू होगा. 16 मार्च के दिन ही वास्तव में दिल्ली सरकार ने खास तौर से डिस्कोथेक और थियेटर के साथ-साथ धार्मिक जमावड़े पर रोक लगायी.
इस तरह इससे यह पता चलता है कि 13 मार्च की गाइडलाइन में यह आयोजन नहीं आता. अगर ऐसी खबरें सच हैं कि तबलीगी जमात के कार्यक्रम 13 से 15 मार्च के बीच हुए, तो यह 16 मार्च के सरकारी नोटिस का उल्लंघन नहीं है.
क्लाउज 8 कहता है कि बीते 14 दिन में कोविड-19 से प्रभावित देश से यात्रा का इतिहास रखने वाले किसी भी व्यक्ति में कोरोना वायरस के लक्षण नजर आते हैं तो उन्हें कंट्रोल रूम में रिपोर्ट करनी होगी. क्लाउज 9 कहता है कि बीते 14 दिन में कोविड-19 से प्रभावित देश से यात्रा का इतिहास रखने वाले किसी भी व्यक्ति में कोरोना वायरस के लक्षण नजर नहीं आते हैं तो उन्हें खुद को क्वॉरन्टीन करना होगा.
अब इन क्लाउज के आधारों पर मरकज में कुछ खास किस्म के लोग नियमों का उल्लंघन करते मिल सकते हैं.
यह साफ नहीं है कि कितने लोग इन दो श्रेणियों में आते हैं.
हालांकि 13 और 16 मार्च को जारी नोटिस घटना के लिए आयोजक को जिम्मेदार ठहराते हैं, जबकि 12 मार्च के नोटिस से जिम्मेदारी व्यक्तिगत रूप से यात्रियों पर आती है. इसलिए यह बहस का विषय है कि आयोजक के खिलाफ केस दर्ज होना चाहिए या नहीं.
जबकि यह साफ नहीं है कि तबलीगी जमात के मौलाना के खिलाफ एफआईआर न्यायोचित है, तो पूरे संगठन को भी इसका जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता.
चीन में पूरी तरह से कोविड-19 दिसंबर के आसपास फैला. थाईलैंड में पहला केस 13 जनवरी के आसपास दर्ज किया गया. चीन के बाहर यह पहला कोविड-19 का मामला था.
मार्चे के पहले हफ्ते तक कोरोना वायरस का खतरा दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में काफी बढ़ चुका था. इसलिए यह तबलीगी जमात मरकज की लापरवाही थी कि उसने मार्च के दूसरे हफ्ते में इतना बड़ा जमावड़ा किया. और, उसमें भी बड़ी संख्या में विदेशी मेहमान थे.
बहरहाल, सबसे बड़ा आरोप भारत सरकार पर लग रहा है. 31 मार्च को गृहमंत्रालय के बयान के मुताबिक,
अब अगर सरकार ने 1 फरवरी से ऐसे मामलों को देखना शुरू कर दिया था :
तबलीगी जमात मरकज पर लौटें तो कुछ सवालों के जवाब दिल्ली पुलिस को भी देने हैं जो गृहमंत्रालय के मातहत आती है.
इसमें संदेह नहीं कि तबलीगी जमात मरकज ने रुखा व्यवहार दिखाया, मगर सबसे बड़ा आरोप सरकार पर है कि कोविड-19 के खतरे को देखते हुए वह बहुत देर से जागी और उसने एअरपोर्ट पर वायरस वाहकों को रोकने की कोशिश नहीं की.
हिन्दुत्ववादी मीडिया और सोशल मीडिया में कोरोना जिहाद अभियान के जरिए सांप्रदायिकता का जहर घोलने से स्थिति केवल खराब होगी जो सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है.
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