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कुछ दिनों पहले एक न्यूज़ रिपोर्ट आई कि 2 डॉक्टर अपनी मांओं का अंतिम संस्कार कर फिर से ड्यूटी पर लौट आए हैं. कोविड महामारी की तीव्रता बढ़ने के बावजूद पूरे देश से लाखों हेल्थ केयर वर्कर्स की ओर से ऐसी निस्वार्थ सेवा की खबरें आती रही हैं.
जब देश को उनकी सबसे ज्यादा जरूरत थी, हेल्थ वर्कर्स ने अपनी खुद की जिंदगी और परिवार को प्राथमिकता ना देते हुए यह सुनिश्चित किया कि हमारी स्वास्थ्य सेवाओं पर कोई प्रभाव ना पड़े.
नतीजा ये है कि अभी सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षेत्र में बड़ी संख्या में ऐसी वैकेंसी है जिन्हें भरा जाना चाहिए .कुछ राज्य सरकारों ने अपने हेल्थ वर्कर्स के वेतन का भुगतान भी नहीं किया है. इसके अलावा निजी और सार्वजनिक क्षेत्र के स्वास्थ्य क्षेत्र के वेतन और सुविधाओं में बहुत बड़ा अंतर है.
निजी क्षेत्र के अंदर भी ऊपरी और निचले स्तर में बहुत बड़ा अंतर मौजूद है. अधिकतर हेल्थ केयर वर्कर्स मुश्किल से इतना कमाते हैं कि अपना ध्यान रख सके और उनका सरप्लस इतना नहीं होता कि जब वो बीमार पड़ें (उनके काम की प्रवृत्ति के कारण ) तब अपने मेडिकल खर्चों को उठा सकें. हमारे हेल्थ केयर प्रोफेशनल अन्य ग्रुप की अपेक्षा भयंकर मेडिकल खर्च को लेकर ज्यादा खतरे में रहते हैं. इसके साथ-साथ संक्रामक बीमारियों की स्थिति में बीमार पड़ने की ज्यादा संभावना होती है. शारीरिक रूप से असक्रिय होना, भारी मानसिक दबाव में काम करना और अनियमित खान-पान के कारण वे गैर संचारी रोगों के प्रति ज्यादा संवेदनशील होते हैं.
हेल्थ केयर वर्कर्स को नियमित रूप से 'वियर एंड टीयर'(अन्य उद्योगों की तरह ही )और उच्च व्यवसायिक खतरों से गुजरना पड़ता है. परंतु उनका स्वास्थ्य बीमा इतनी नहीं होता कि बीमारी और दुर्घटना के समय उसे समुचित रूप से कवर किया जा सके.
स्वास्थ्य बीमा के अलावा बड़ी बीमारियों के कारण 'आउट ऑफ पॉकेट' खर्चों के लिए पर्याप्त रिजर्व होना चाहिए. एक समाज के रूप में हम अपने डॉक्टर और हेल्थ केयर वर्कर से सुपर हीरो होने की उम्मीद रखते हैं परंतु उनको सामान्य जिंदगी जीने तक के लिए संसाधन उपलब्ध नहीं कराते .
शारीरिक बीमारी के अलावा हेल्थ वर्कर्स महामारी के दौरान अपने कार्यों की प्रकृति के कारण मानसिक और भावनात्मक परेशानी के खतरे में होते हैं. इसके साथ-साथ उन्हें संक्रामक बीमारियों के प्रसार से जुड़े स्टिग्मा से भी लड़ना होता है .
हेल्थवर्कर्स के लिए केंद्र सरकार ने 30 मार्च 2020 को 90 दिनों के लिए प्रधानमंत्री गरीब कल्याण पैकेज योजना की घोषणा की थी. बीमा की इस अवधि को शुरुआत में 90 दिनों के लिए और बाद में फिर 6 महीनों के लिए बढ़ाया था. पर कुछ दिन पहले हेल्थ केयर वर्कर्स में घबराहट और निराशा तब फैली जब सरकार ने 23 अप्रैल के बाद जीवन बीमा कवर को हटाने का निर्णय लिया. हालांकि फिर बहुत सारे महत्वपूर्ण लोगों और संस्थाओं (जिनमें सर्विस डॉक्टरों और पोस्टग्रेजुएट एसोसिएशन भी शामिल थे ) ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय और बड़े नेताओं को चिट्ठी लिखी.उसके बाद सरकार ने यह कवर 3 महीनों के लिए बढ़ा दी है .(20 अप्रैल से शुरू होकर)
सरकार का अपने वादे से मुकरना अनुचित होता.
कॉरपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी की मदद से एक विशेष वित्तीय व्यवस्था की जाये ताकि फ्रंटलाइन वर्कर्स का ध्यान रखा जा सके, विशेषकर इन हालातों में. इसके अलावा ऐसे वित्त का प्रयोग देश के सभी फ्रंटलाइन वर्कर के बीमा के प्रीमियम और कवर का भुगतान करने में होना चाहिए .
इसके साथ ही सारे हेल्थ वर्कर्स को उचित मानसिक स्वास्थ्य काउंसलिंग और सपोर्ट सिस्टम उपलब्ध कराना चाहिए.
एक मजबूत पॉलिसी बनानी चाहिए जिसमें देश के सबसे बेहतर टैलेंट को हेल्थ केयर सेवा में लाया जा सके. इसके लिए उनकी भर्ती ,सेवा शर्तें और करियर अवसर की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए. ऐसा ना कर के हम स्वस्थ जनसंख्या के लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर पाएंगे. अपने स्वास्थ्यकर्मियों का ख्याल रखना एक सभ्य समाज की सबसे प्राथमिक जिम्मेदारी है.
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