मेंबर्स के लिए
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Voices Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Opinion Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019कोविड-19 के आंकड़े, तबाह अर्थव्यवस्था और ‘झूठ, सफेद झूठ’

कोविड-19 के आंकड़े, तबाह अर्थव्यवस्था और ‘झूठ, सफेद झूठ’

नौकरशाहों को पीएम मोदी के ‘नियंत्रण, संपर्क सूत्र की तलाश और निगरानी’ के मंत्र पर ध्यान देना चाहिए.

राघव बहल
नजरिया
Updated:
(फोटो: क्विंट हिंदी)
i
null
(फोटो: क्विंट हिंदी)

advertisement

Lies, Damned Lies, and Statistics! (कोई नहीं जानता इस खूबसूरत मुहावरे को गढ़ने वाला कौन था, लेकिन इसे लोकप्रिय बनाया 1895 में बेंजामिन डिसरायली ने.)

अब 2020 में लौटते हैं. क्या आपने गौर किया है कि कैसे कोविड-19 ने हमें शौकिया महामारी विशेषज्ञ और आधा-अधूरा सांख्यिकीविद बना दिया है? मेरा मतलब है, आप भले गणित में फिसड्डी रहे हों, लेकिन आज आप कितने आत्मविश्वास से 'शुद्ध संक्रमण दर' और 'संक्रमण दर' के अंतर को पकड़ लेते हैं!

लेकिन प्यारे दोस्तों, अल्प ज्ञान हमेशा खतरनाक होता है, खास तौर पर जिस तरह से व्हाट्सऐप फॉरवर्ड और लोकप्रिय मीडिया के जरिए ऊलजुलूल तादाद में आंकड़े परोसे जा रहे हैं, ऐसा लगता है जैसे भूसे की ढेर से सुई निकालनी हो. अब क्योंकि आंकड़ा उस ‘बिकनी’ जैसा होता है जो जरूरी चीज को छिपाती है लेकिन आपकी कमी को जाहिर कर देती है, कोई भी किसी भी चीज को तोड़मरोड़ कर बिलकुल उलटे दावे कर सकता है. अब इसे देख लीजिए:

  • हां-कहने वाले: भारत में ‘प्रति 10 लाख’ मौत की दर सबसे कम है; ना-कहने वाले: ऐसा इसलिए क्योंकि यहां ‘प्रति दस लाख’ टेस्ट की दर सबसे कम है – और वैसे भी, भारत में अब 30% नए मामले हैं, जो कि वैश्विक आबादी के 17% से कहीं ज्यादा है, तो क्या हम दोगुनी बुरी हालत में हैं?
  • हां-कहने वाले: भारत में ‘सक्रिय मामले का प्रतिशत’ घट रहा है; ना-कहने वाले: आपके नए मामलों के ‘दिन-प्रति-दिन का अनुपात लगातार 1 से ज्यादा है’ इसलिए ग्राफ सपाट नहीं हो रहा है रोज बढ़ रहा है.
  • हां-कहने वाले: भारत में बीमारी से ठीक होने की दर हर रोज बढ़ रही है और ये अब 70% तक पहुंच चुकी है; ना-कहने वाले: ये सब हाथ का खेल है, क्योंकि बीमारी ठीक होने की दर असल में ‘100 घटाव मृत्यु दर’ होनी चाहिए, जो कि ऐसे ही 98% है इसलिए ये फील-गुड का झांसा क्यों और 70 में आंकड़े रखकर ये झूठा उत्सव मनाने की क्या जरूरत है?
  • और ऐसे ही अनंत तरीके से, हैरान करने वाले, उलझन में डाल देने वाले, आम आदमी को डराकर उनकी जान निकाल देने वाले आंकड़े दिए जा रहे हैं.
(ग्राफिक्स: Arnica Kala / The Quint)
ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

आंकड़ों की भीड़ को छोड़िए; एंटी-बॉडी को देखिए

अब, मैं एक्सपर्ट तो हूं नहीं, लेकिन मुझे लगता है कि आंकड़ों की भरमार, जिसकी मैंने ऊपर बात की, को हमें दरकिनार कर देना चाहिए; इसके बदले हमें सिर्फ उन संख्या पर ध्यान देना चाहिए जो कि बेहद चौंकाने वाली हैं लेकिन उन्हें नजरअंदाज किया गया है:

  • कोरोना हॉटस्पॉट में किए गए सीरम सर्वे से लगता है कि करीब 20-30% आबादी अपने शरीर में एंटी-बॉडी बना चुकी है.
  • ‘वॉक-इन केस स्टडी’, यानी लैब में वास्तविक लोगों की जांच में हैरत में डालने वाले एक-जैसे नतीजे सामने आए, जिसमें लगभग हर पांचवें इंसान में एंटी-बॉडी पाया गया.
  • आखिर में, मुझे कुबूलने दीजिए: हमारे घर में करीब 20 लोग हैं, जिसमें परिवार के सदस्यों के अलावा हेल्पर/गार्ड/ड्राइवर शामिल हैं, सब की एंटी बॉडी जांच हुई, और जानते हैं क्या निकला, इनमें से चार, यानी 20% लोगों में एंटी-बॉडी मौजूद था.
(ग्राफिक्स: Arnica Kala / The Quint)

मैं अलग-अलग तरह के आंकड़ों में लगातार सामने आ रहे इस तरह के नतीजों से हैरान हूं:

  • पहला विशेषज्ञों द्वारा किया गया वैज्ञानिक सीरम सर्वे;
  • दूसरा पूरे देश भर में ‘लोगों द्वारा स्वेच्छा से’ दिया जा रहा सैंपल;
  • और तीसरा किसी अकेले/खास घर से लिया सैंपल... और इन तीनों से मिले अलग-अलग किस्म के आंकड़ों के बावजूद हैरत में डालने वाले एक-जैसे नतीजा सामने आए, यानी कि तीनों ने हमारे समाज में करीब 20% से ज्यादा लोगों में वायरस के होने की पुष्टि कर दी है.

साफ है कि श्रीमान कोविड-19, हमारा खौफनाक दुश्मन, चुपके से, बिना कोई लक्षण दिखाए हमारे शरीर पर हमला कर चुके हैं, बल्कि बिना बीमार या परेशान किए करीब हर पांचवें इंसान को प्राकृतिक वैक्सीन मुहैया करा चुके हैं. अब इसे एक दूसरे आंकड़े से जोड़ते हैं, जिसमें कि कहा जाता है कि एक समुदाय में ‘Herd immunity’ हासिल हो जाती है जब 50-60% आबादी में एंटी-बॉडी का निर्माण हो जाता है, और हो सकता है आगे की कार्रवाई के लिए हमें एक दमदार सच हासिल हो चुका है.

(ग्राफिक्स: Arnica Kala / The Quint)

प्रिय नीति-निर्धारकों, कृपया हमें आर्थिक सर्किट ब्रेकर ना दें

लेकिन दुर्भाग्य से, हमारे राजनेता और नौकरशाह में बुद्धिमानी से आंकड़ों को पढ़ने की काबिलियत नहीं होती; और वो सोच समझकर बुद्धिमानी भरा फैसला तो बिलकुल नहीं लेते. उलझाने वाले आंकड़ों का सामना करते ही वो घबरा जाते हैं और जैसी-तैसी कार्रवाइयों पर उतर आते हैं, इसको बैन कर दो, उसको बैन कर दो, कभी बाएं मुड़ गए तो कभी दाएं मुड़ गए, हर लहर के साथ झूलते रहे. फिर अर्थव्यवस्था को दुरुस्त करने की बजाए, वो ऐसे ‘सर्किट ब्रेकर’ तैयार कर देते हैं जो कि नाजुक हालात को ठीक होने से पहले ही और खराब कर देते हैं. आपको मुझ पर यकीन नहीं होता? तो पिछले कुछ हफ्तों में सामने आए इन ‘सर्किट ब्रेकर’ को देख लीजिए.

  • सर्किट-ब्रेकर 1: आपको हवाई जहाज से उतरते ही 14 दिनों के लिए क्वारंटीन होना पड़ेगा, इसके बावजूद कि आप किसी ऐसे शहर से आए हों जहां संक्रमण की दर कम या बराबर है. मेरा मतलब है अगर मैं नई दिल्ली में रहता हूं और मुझे दक्षिण मुंबई के नरीमन प्वाइंट जाना है, मैं इस क्वॉरंटीन की पीड़ा क्यों झेलूं, जबकि बांद्रा में किसी शख्स को, जिसपर बराबर का खतरा है, इससे नहीं गुजरना पड़ता? और जब मांग इतनी कम है तो हवाई किराए की सीमा क्यों तय कर दी गई, जिससे कि इसकी मार्केट प्राइस फिक्स्ड टैरिफ से नीचे गिर जाए और संघर्ष कर रही विमानन कंपनियों को सेल्स और कैशफ्लो की परेशानी का सामना करना पड़े? इस तरह के अदूरदर्शी नियम, जो कि बिना सोचे-समझे फैसला लेने वाले प्रशासकों द्वारा थोप दिया जाता है, खतरनाक ‘सर्किट ब्रेकर’ साबित हुए जिससे कि आंतरिक वाणिज्य थम गया, नागरिक उड्डयन, होटल और इनसे जुड़े दूसरे कारोबारों की जान निकल गई.
  • सर्किट-ब्रेकर 2: भारत के कई इलाकों में होटल क्यों बंद कर दिए गए, जबकि जिम और ब्यूटी पार्लरों को खोल दिया गया है? मेरा मतलब है अगर जिम में एक दूसरे के संपर्क में आना खतरनाक नहीं है, तो होटल के अलग-अलग कमरों में रहना कैसे खतरनाक हो गया? 14 दिनों का अनिवार्य क्वारंटीन के साथ लिया गए ये सनकी फैसला सीरियल किलर साबित हुआ.

    सर्किट-ब्रेकर 3: वीकेंड लॉकडाउन. क्यों? असल में कोलकाता में तो उन्होंने इसे और हास्यास्पद बना दिया, और सप्ताह में किसी भी दो दिन लॉकडाउन का ऐलान कर दिया, जैसे कि सरकार वायरस के साथ ‘आई स्पाई’ खेल रही हो, उसे ये कहते हुए हैरान और मात देने की कोशिश कर रही हो कि, ‘देखिए श्रीमान कोविड-19, आपने सोचा था कि आप मंगलवार को हम पर वार करेंगे, और हमने उसी दिन पूरे शहर को बंद कर दिया, अब जाइए जो करना है कर लीजिए.’ ये अजीब बात है कि हमारी नीति बनाने वाले जादू भी करना जानते हैं, जो कि बेहद दुखदायी और हास्यास्पद है.
  • सर्किट-ब्रेकर 4: चीन से आयात पर रोक, अचानक! अगर कोई इलेक्ट्रॉनिक उपकरण स्टॉक में मौजूद नहीं है लेकिन बंदरगाह पर पड़ा है, तो आपकी किस्मत का दोष है; अब आप अपनी फैक्ट्री बंद कर दीजिए और लाखों अधूरे हैंडसेट या टीवी को धूल फांकने दीजिए. इसलिए क्या हुआ कि पूरी अर्थव्यवस्था की सप्लाई चेन टूट गई है? बस झेल लीजिए सब.
  • सर्किट-ब्रेकर 5: चीनी कैश पर भी पाबंदी लग गई, अचानक से और बिना किसी सूचना के! अब अगर आपका कोई राइट्स इश्यू बीच में अटका था जो कि 50% आपके चीनी पार्टनर को देना था जिसे एक दशक पहले आपके स्टार्ट-अप में निवेश की मंजूरी FIPB ने दे दी थी, एक बार फिर ये आपकी किस्मत का दोष है दोस्त; सरकार ने रोक तो लगा दी है लेकिन इससे जुड़े नियम नहीं बनाए हैं, इसलिए एक बार और झेल लीजिए सब.

मेरे पास ऐसी मिसालों की भरमार है, लेकिन मुझे एहसास है कि बात आपको अच्छे से समझ में आ गई होगी. भारत की नीतियां बनाने वाले बाबू (नौकरशाह) रुको-चलो, बढ़ो/मत-बढ़ो, सनकी, सर्किट ब्रेक करने वाले नियमों से भयंकर नुकसान पहुंचा रहे हैं, जो कि विरोधाभाषी आंकड़ों के जवाब में बनाया और बिगाड़ा जा रहा है, जिसे दोनों तरीकों से पढ़ा जा सकता है, अच्छा या बुरा, ये आपके मूड और समय पर निर्भर करता है. सच में, उन्हें अपने प्रधानमंत्री की सुननी चाहिए, जो कि नियंत्रण, संपर्क सूत्र की तलाश और निगरानी के मंत्र से श्रीमान कोविड-19 से जंग लड़ना चाहते हैं. नहीं तो हम स्वास्थ्य के साथ-साथ आर्थिक मोर्चे पर भी लड़ाई हार सकते हैं.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: 13 Aug 2020,04:24 PM IST

Read More
ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT