मेंबर्स के लिए
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Voices Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Opinion Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019कोरोना संकट: अब 5 ट्रिलियन डॉलर की इकनॉमी के सपने का क्या होगा?

कोरोना संकट: अब 5 ट्रिलियन डॉलर की इकनॉमी के सपने का क्या होगा?

5 ट्रिलियन डॉलर का टारगेट वास्तविक आर्थिक विकास से जुड़ा नहीं

ऑनिंद्यो चक्रवर्ती
नजरिया
Updated:
महज ख्वाब बन गया है 5 ट्रिलियन डॉलर का टारगेट
i
महज ख्वाब बन गया है 5 ट्रिलियन डॉलर का टारगेट
(फोटो: क्विंट हिंदी)

advertisement

टिकटॉक का एक वीडियो चल रहा है (हां, मैं कला के इस रूप का पारखी हूं जिसकी कम सराहना हुई है) जिसमें एक व्यक्ति को उसकी पत्नी जगाती है और याद दिलाती है कि लॉकडाउन खत्म हो गया है और उसे वापस काम पर लौटना है. पति जागता है, झाड़ू पकड़ता है और फर्श साफ करने लग जाता है. याद नहीं कर पाता कि पहले वह इससे अलग क्या कुछ किया करता था.

आशा है कि लॉकडाउन के बढ़ जाने के बाद मोदी सरकार यह नहीं भूलेगी कि उसने 2024 तक 5 ट्रिलियन डॉलर की इकनॉमी का वादा किया था. अगर एक डॉलर को 75 रुपये के बराबर समझें तो इसका मतलब है कि भारत की जीडीपी को अगले 4 साल में 375 लाख करोड़ रुपये के स्तर को छूना होगा. हम अभी कहां हैं? बजट के कागजात कहते हैं कि हम 2019-20 तक 204 लाख करोड़ रुपये के करीब होंगे. इसलिए, 5 ट्रिलियन डॉलर के करीब पहुंचने के लिए हमारी इकनॉमी का विकास हर साल 16.5 फीसदी की रफ्तार से होना जरूरी है.

  • बजट पेपर के मुताबिक, 2019-20 के आखिर तक जीडीपी करीब 204 लाख करोड़ रुपये होगी
  • ‘5 ट्रिलियन डॉलर’ से बहुत बड़ी संख्या का आभास होता है, लेकिन यह वास्तविक आर्थिक विकास के बारे में हमें कुछ भी नहीं बताता
  • कमजोर होते डॉलर के साथ दोहरे अंक की मुद्रास्फीति का साझा असर भारत की जीडीपी में 2.5 फीसदी की सालाना गिरावट ला सकता है लेकिन हम फिर भी 5 ट्रिलियन जीडीपी के स्तर को छू लेंगे
  • आरबीआई को उम्मीद है कि 2020-21 में मुद्रास्फीति की दर 2.4 फीसदी के स्तर तक आ सकती है
  • मोदीजी के वादे के मुताबिक, 2024 तक 5 ट्रिलियन डॉलर की इकनॉमी का टारगेट हासिल करने के लिए भारत की इकनॉमी को अगले तीन साल तक करीब सालाना 21 फीसदी के हिसाब से बढ़ते रहना जरूरी होगा

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

5 ट्रिलियन डॉलर का टारगेट वास्तविक आर्थिक विकास से जुड़ा नहीं

सावधानी की बात यह है कि मोदी सरकार सामान्य जीडीपी की बात कर रही है जो जीडीपी के वास्तविक विकास के आंकड़े नहीं हैं जिस बारे में आप आम तौर पर सुनते हैं. इसे ऐसे सोचें कि एक देश जो केवल शर्ट बनाता है. मान लिया कि एक साल में यह प्रति शर्ट 100 रुपये के हिसाब से 100 शर्ट का उत्पादन करता है. इससे कुल जीडीपी 10 हजार रुपये हो जाती है. ठीक अगले साल यह वैसे ही 120 शर्ट तैयार करता है लेकिन हर शर्ट की कीमत होती है 150 रुपये. इस तरह जीडीपी बढ़कर 18000 रुपये हो जाती है. वास्तविक अर्थों में देश की क्षमता में महज 20 शर्ट की बढ़ोतरी हुई यानी 20 फीसदी की बढ़ोतरी. हालांकि, रुपये के तौर पर या सामान्य अर्थ में 80 फीसदी की बढ़ोतरी हुई.

इस तरह ‘5 ट्रिलियन डॉलर’ एक विशाल संख्या का आभास जरूर कराती है मगर यह वास्तविक आर्थिक विकास के बारे में कुछ नहीं बताती.

असल में थिअरिटिकली हम उस संख्या को छू सकते हैं. भले ही हम अगले चार साल तक आर्थिक मंदी के दौर से गुजरें. ऐसा होना बहुत आसान नहीं, लेकिन असंभव भी नहीं.

हम टारगेट हासिल कर सकते हैं लेकिन इसका कोई मतलब नहीं

उस दृश्य की कल्पना करें जिसमें कोरोना वायरस के कारण अमेरिका गहरे मंदी के दौर में चला जाए, जबकि चीन इससे उबर जाएगा. अमेरिकी डॉलर की कीमत कम होगी और दुनिया युआन की ओर रुख करेगी. तब भी, जबकि भारत भी मंदी में है, तुलनात्मक रुप में कमजोर होते डॉलर के मुकाबले रुपया मजबूत होता जाएगा. इस तरह एक डॉलर के लिए 75 रुपये के बजाए 2024 में केवल 65 रुपये देने होंगे. 5 ट्रिलियन डॉलर तब 375 लाख करोड़ रुपये के बजाए 325 लाख करोड़ रुपये हो जाएगा.

अब कल्पना करें कि खाद्यान्न और दूसरी चीजों की भारी कमी हो जाती है क्योंकि कोविड-19 हर कुछ महीने में लौटकर आता है और इस वजह से लॉकडाउन लगातार दोहराया जाता है. आपूर्ति की कमी के कारण सभी वस्तुओं और सेवाओं की कीमतें बढ़ जाती हैं. इस वजह से अगले चार साल तक वार्षिक मुद्रास्फीति 15 फीसदी के स्तर को छू लेती है.

दोहरे मुद्रास्फीति के साथ कमजोर होते डॉलर को जोड़कर देखें तो भारत की वास्तविक जीडीपी हर साल 2.5 फीसदी गिरती जा सकती है. लेकिन, हम तब भी 5 ट्रिलियन डॉलर की सामान्य जीडीपी के स्तर को हासिल कर लेंगे.

ऐसी चीजें वास्तविक दुनिया में नहीं होतीं. अमेरिका में मंदी के कारण जरूरी नहीं है कि डॉलर कमजोर हो. वास्तव में जब अमेरिकी अर्थव्यवस्था को छींक भी आती है तो दुनिया को जुकाम हो जाता है और इसका नतीजा दुनिया के बाजार में गिरावट के रूप में होता है. डॉलर की अपने घरेलू इकनॉमी में वापसी होने लग जाती है और इससे डॉलर पहले से भी मजबूत हो जाता है. इसलिए ज्यादा संभावना यह है कि 2024 तक 5 ट्रिलियन डॉलर का टारगेट रुपये के हिसाब से हासिल करना अभी के मुकाबले ज्यादा मुश्किल होगा.

बेरोजगारी के कारण मुद्रास्फीति की स्थिति

मुद्रास्फीति का क्या होगा? बीते कुछ सालों में भारत में मुद्रास्फीति मुख्य रूप से खाद्य पदार्थों की कीमत से तय होती रही है. जब खाद्य मुद्रास्फीति कम थी, तो समग्र खुदरा मुद्रास्फीति दर (ओवर ऑल रीटेल इन्फ्लेशन) भी कम थी. और, जब इस सर्दी में प्याज की कीमत चढ़ी तो समग्र मुद्रास्फीति दर भी ऊपर चढ़ गई. मोदी सरकार ने 30 करोड़ भारतीयों के लिए सस्ती दर पर खाद्यान्न की अभी-अभी घोषणा की है. हालांकि यह केवल अगले तीन महीनों के लिए है, मगर आश्चर्य नहीं होना चाहिए अगर इसे और लंबे समय के लिए कर दिया जाए. राशन की दुकानों में कम कीमत से खुले बाजार में भी कीमत कम रहती है और इस वजह से समग्र खाद्य मुद्रास्फीति नीचे बनी रहती है.

लॉकडाउन बढ़ने की वजह से उत्पादन में बाधा के कारण निश्चित रूप से वस्तुओं की आपूर्ति पर बुरा असर पड़ेगा. क्या इससे कंपनियों को कीमतें बढ़ाने की अनुमति मिल जाएगी? ऐसा तभी हो सकता है जब खरीदार के हाथों में रकम होगी.

यह न भूलें कि सीएमआईई की ओर से प्रकाशित बेरोजगारी के ताजा आंकड़े बताते हैं कि फरवरी के आखिर तक जिन लोगों के पास रोजगार थे उनमें से 33 फीसदी अब बेरोजगार हो चुके हैं. तमाम उद्योगों के हजारों वाइट कॉलर वर्करों को या तो कम तनख्वाह मिल रही है या फिर उन्हें बगैर वेतन की छुट्टियों पर भेजा जा रहा है. इसलिए अगर वे लॉकडाउन के बाद चीजें खरीदना भी चाहें तो उनके पास इसके लिए रकम नहीं होगी. इसका अर्थ यह होता है कि आपूर्ति में कमी के साथ-साथ मांग में भी बड़ी गिरावट जुड़ी हुई है. असल में, यही वजह है कि आरबीआई ने 2020-21 में मुद्रास्फीति की दर 2.4 फीसदी के स्तर तक गिरने की उम्मीद जताई है.

महज ख्वाब बन गया है 5 ट्रिलियन डॉलर का टारगेट

इस हिसाब से हमें वास्तविक जीडीपी विकास की दर इस साल 14 फीसदी हासिल करनी होगी ताकि हम 16.4 फीसदी के वार्षिक विकास दर पर बने रह सकें जो 2024 तक 5 ट्रिलियन डॉलर की इकनॉमी का टारगेट हासिल करने के लिए जरूरी है. क्या दूर-दूर तक भी ऐसा होता दिखता है? अगर अलग-अलग निवेशक बैंकों के विश्लेषकों की मानें तो कतई नहीं. नॉमुरा की ताजा रिपोर्ट का अनुमान है कि 2020 के कैलेंडर वर्ष में जीडीपी की विकास दर महज 0.8 रहने वाली है. बार्कलेज ने 2020-21 के वित्तीय वर्ष में जीडीपी विकास दर के 0.8 फीसदी रहने की भविष्यवाणी की है. मार्गन स्टैनली ने 2020 में भारत की जीडीपी के 1.7 फीसदी रहने का अनुमान लगाया है, लेकिन यह लॉकडाउन बढ़ाने के पहले का आकलन है.

इसलिए संभावना यह है कि भारत की वास्तविक जीडीपी बहुत अच्छी स्थिति में भी 1-2 फीसदी रहेगी. उसमें मुद्रास्फीति को जोड़ें तो इस साल हम जीडीपी में सामान्य विकास की दर करीब 4 फीसदी दखेंगे. इसका अर्थ यह है कि रुपये के हिसाब से हमारी सामान्य जीडीपी 2020-21 में 213 लाख करोड़ रुपये होगी. इसका मतलब ये होगा कि डॉलर के मुकाबले रुपये के कमोबेस स्थिर रहने के बावजूद हमें 5 ट्रिलियन डॉलर के स्तर को हासिल करने के लिए हमारी सामान्य जीडीपी में 2021 और 2024 के बीच 162 लाख करोड़ रुपये की रकम जोड़नी होगी.

भारत की इकनॉमी को अगले तीन साल तक करीब 21 फीसदी की वार्षिक वृद्धि की जरूरत होगी ताकि 2024 तक 5 ट्रिलियन डॉलर की इकनॉमी का लक्ष्य हासिल करने का मोदीजी का वादा पूरा किया जा सके. हाल तक ऐसा लगा है मानो यह एक सपने जैसा हो. अब यह सीधे तौर पर यह ख्याली पुलाव लगता है.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: 18 Apr 2020,08:12 AM IST

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT