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क्या भारत को अब चीनी कोरोना वैक्सीन को मंजूरी दे देनी चाहिए? 

चीन की दो कोरोना वैक्सीन को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी आपात इस्तेमाल की मंजूरी दे दी है

अचल प्रभला
नजरिया
Published:
भारत को अब चीनी कोरोना वैक्सीन अपना लेनी चाहिए? 
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भारत को अब चीनी कोरोना वैक्सीन अपना लेनी चाहिए? 
(फोटो: क्विंट)

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भारत कोविड-19 वैक्सीन की कमी से जूझ रहा है, इस संकट को दूर करने का कोई संकेत भी नहीं दिख रहा है. यह तथ्य किसी भी व्यक्ति के लिए स्पष्ट है, जिसने वैक्सीन लगवाने की कोशिश की है. पिछले महीने कोरोना से हर रोज औसतन 4000 लोगों को मौत हो रही थी. ऐसे में पूरा देश दर्दनाक सदमे की स्थिति में है.

हमें अभी देश में और ज्यादा वैक्सीन की जरूरत है. यही एकमात्र तरीका है जिससे हम स्वास्थ्य व्यवस्था पर पड़ने वाले बोझ को कम कर करके लोगों की जान बचा सकते हैं. अभी भी हम अपने आप को पड़ोसी देश की उन दो बेहतरीन वैक्सीन से दूर रख रहे हैं जो कि विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा प्रमाणित हैं. ऐसा इसलिए है क्योंकि यह पड़ोसी देश चीन की कंपनियों द्वारा निर्मित वैक्सीन है.

टीके की कमी का कारण पश्चिमी देशों की फार्मास्यूटिकल कंपनियां भी हैं. बड़ी संख्या में लोगों की जान दांव पर लगी होने के बाद भी इन दवा कंपनियों ने अपना पेटेंट का अधिकार नहीं छोड़ा और इनका टेक्नोलॉजी पर भी एकाधिकार है. हालांकि, हमारी सरकार की गड़बड़ी, अक्षमता और लापरवाही की वजह से भी हमारा वैक्सीन संकट बढ़ा है.

इस साल जनवरी से मार्च के बीच सरकार ने सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया (कोविशील्ड) और भारत बायोटेक (कोवैक्सीन) से कोविड-19 के टीके के छोटे ऑर्डर दिए. इस दौरान देश में इन दोनों कंपनियों की ही वैक्सीन मौजूद थीं. सरकार को अप्रैल में दोनों कंपनियों से वैक्सीन खरीदने के बड़े ऑर्डर की जरूरत का अहसास होता है. एक साल में सरकार ने भारत बायोटेक की कोवैक्सीन को छोड़कर किसी और विकसित हो रही वैक्सीन को सहयोग या बढ़ावा नहीं दिया. इस रुख में आखिरकार पिछले महीने बदलाव आया.

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साल 2020 के आखिरी महीनों में दुनियाभर में चीन की दो कंपनियां अपनी वैक्सीन की टेस्टिंग कर रही थीं. संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) ने 14 दिसंबर 2020 को चीन की फार्मास्यूटिकल कंपनी सिनोफार्म द्वारा बनाई गई कोरोना वैक्सीन के इस्तेमाल की मंजूरी दी थी. चीनी फार्मा कंपनी सिनोवैक की निर्मित की गई वैक्सीन कोरोनावैक को तुर्की ने 13 जनवरी 2021 और ब्राजील ने 17 जनवरी को इस्तेमाल की मंजूरी दी. यह मंजूरी इन देशों ने अपने यहां किए गए ट्रायल के आधार पर दी थी.

इन तीनों देशों ने बड़ी संख्या में वैक्सीन की डोज लगाकर लाखों लोगों की जान बचाई. ये लोग भारत के भी हो सकते थे अगर केंद्र सरकार समय रहते हुए कदम उठाती और जाग रही होती. हमें भी ये वैक्सीन उस समय मिल जातीं, जब ये कंपनियां यूएई, ब्राजील, तुर्की समेत कई देशों में ट्रायल के लिए गई थीं.

अब भारत सरकार देश में दूसरे देशों से नई वैक्सीन लाने की कोशिश कर रही है. इसी का नतीजा है कि वैक्सीन बनाने वाली फाइजर और मॉडर्ना जैसी कंपनियों को सरकार छूट देने को तैयार है. हाल ही देश में रूस की कोरोना वैक्सीन स्पूतनिक वी को आपात इस्तेमाल की मंजूरी मिली थी. स्पूतनिक वी वैक्सीन के उत्पादन में लगी स्थानीय फर्मों की संख्या से पता चलता है कि हम गैर-पश्चिमी तकनीक के खिलाफ नहीं है.

चीन की वैक्सीन के खिलाफ सिर्फ इसलिए हैं कि पिछले साल मई में दोनों देशों के बीच सीमा विवाद हुआ. इसका नतीजा यह हुआ कि चीन के सामानों का बहिष्कार किया गया. दोनों देशों को सीमा विवाद से ज्यादा महामारी से निपटने की चिंता होनी चाहिए थी. फिर भी भारत सरकार जिसे बड़ा खतरा मानती है, उसके जवाब में रूसी मिलिट्री एयरक्राफ्ट पर 5000 करोड़ और 780 करोड़ अमेरिकन बंदूकों पर खर्च करने का फैसला किया.

हम पिछले 100 सालों के सबसे बदतर सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट से गुजर रहे हैं. फिर भी हम चीन से बात नहीं करेंगे क्योंकि हम उस झील के लिए लड़ रहे हैं जो कि जलीय जीव के लिए भी सुरक्षित नहीं है. जान बचाने वाली वैक्सीन को नजरअंदाज कर. इसके बजाए उन चीजों पर ध्यान केंद्रित करेंगे जो लोगों के जीवन को सही में बेहतर बनाती है, जैसे कि बड़ी बंदूकें खरीदना और टिक-टॉक पर प्रतिबंध लगाना.

क्वॉड, जिसके सदस्य देश भारत समेत जापान, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया हैं, अपने आपको शांत देशों के एक समूह के रूप में पेश करता है. देश के विदेश मंत्री क्वॉड को उद्धारक के तौर पर देखते हैं और चाहते हैं कि पश्चिम देश ज्यादा कोविड-19 वैक्सीन भेजें. क्वॉड ने एशिया को एक अरब कोरोना टीका भेजने का वादा किया है ताकि वो चीन की वैक्सीन डिप्लोमेसी का मुकाबला कर सके. ये खुराक, जो भारत में बनेंगी, 2022 के अंत में या अब से लगभग 18 महीनों में आने वाली हैं, और निश्चित रूप से एशियाई आबादी का जो भी हिस्सा तब तक जीवित रहने में सफल होगा, ये उसके लिए उपयोगी साबित होंगी.

डब्लयूएचओ ने पिछले महीने ही चीनी कंपनी सिनोफार्म की वैक्सीन को आपात इस्तेमाल की मंजूरी दी थी. हाल ही में उसने सिनोवैक की वैक्सीन कोरोनावैक को भी इमरजेंसी यूज की अनुमति दे दी. इस बीच, ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया ने भी नए नियमों की घोषणा की, जिसके मुताबिक डब्लयूएचओ से टीका अगर मंजूर हो चुका है तो देश में इसके पोस्ट-लॉन्च ब्रिजिंग ट्रायल की अनिवार्यता नहीं होगी.

अब ऐसा कोई नियम नहीं है जो कि राज्य सरकार, केंद्र सरकार, भारतीय कंपनियों और अस्पतालों को चीनी कंपनी सिनोफार्म और सिनोवैक की वैक्सीन लेने से रोक सके. यह सही है कि जियो-पॉलिटिक्स का दुनिया में अपना एक स्थान है, लेकिन महामारी में हमें यह कोशिश करनी होगी कि इसकी जगह न हो.

(अचल प्रभला accessIBSA प्रोजेक्ट के कोऑर्डिनेटर हैं, जो भारत, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका में दवाओं तक पहुंच के लिए अभियान चलाता है. इस लेख में दिए गए विचार लेखक के अपने हैं, क्विंट का उनसे सहमत होना जरूरी नहीं है.)

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