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अंग्रेजों की ओर से स्थापित न्याय व्यवस्था के पहले का इतिहास तो जान लो, तब कहना कि गुलामी का कानून था या मानवता का. दलित हत्या करने पर एक विशेष जाति को सजा नहीं दी जाती थी. युद्ध में पति के शहीद होने पर पत्नी को जिंदा जला दिया जाता था. भारत के ब्रिटिश गवर्नर-जनरल लॉर्ड विलियम बेंटिक ने बंगाल सती विनियमन, 1829 को अधिनियमित किया, जिसमें जिंदा जलाने या दफनाने की प्रथा को मानव स्वभाव की भावनाओं के विरुद्ध विद्रोह के रूप में वर्णित किया गया. शूद्र तालाब का पानी भी नहीं पी सकते थे. पीने के कुएं अलग थे. शूद्र खाट पर बैठ नहीं सकते थे और बंधुवा मजदूरी आम थी. दलित और पिछड़े गांव के दक्षिण तरफ बसाए जाते थे, ताकि हवा चलने पर सवर्ण अशुद्ध न हो जाएं. शूद्र की नई नवेली स्त्री को सवर्ण के साथ सोना पड़ता था ताकि उसका अनुष्ठान हो सके.
इन तीनों कानून को खत्म करना असंभव है और नाम जरूर हिंदी कर दिया, लेकिन उनमें बदलाव कितना कर सके यह जांचने की बात है. अंग्रेजों के द्वारा न्याय व्यवस्था के पहले कौन से कानून थे? अगर थे तो उसको संसद के पटल पर रखते या उसमें सुधार करते. क्या मनुस्मृति को अंग्रेजों के दिए कानून के स्थान पर संशोधन करते? वर्तमान संविधान का संघ ने प्रतिकार किया था. सावरकर का कहना था मनुस्मृति में कुछ परिवर्तन करके लागू कर दिया जाए.
नए क्रिमिनल लॉ को बिना बहस और वोटिंग के पास कराए गए. 146 सांसदों को बाहर कर ये कानून पास किए गए हैं. सत्ता पक्ष ने बहुत सारे ऐसे प्रावधान किए हैं जो विपक्ष की आवाज को दबाने के लिए हैं. पुलिस को असीमित ताकत दे दी गई है, ताकि विपक्ष की आवाज को दबाया जाए. जब कभी सत्ता से बाहर होंगे तो जितने संशोधन अब हुए हैं उतने उस समय किए जाएंगे, वो दिन कभी तो आयेगा तब उस समय के लोग वर्तमान सत्ता को कोसेंगे.
भारतीय न्याय (द्वितीय) संहिता 2023, भारतीय दंड संहिता में सामुदायिक सेवा को सजा के रूप में परिभाषित किया गया है. इसके अंतर्गत पहले की 511 धाराओं के बजाय अब 358 धाराएं होंगी. इसमें 21 नए अपराध जोड़े गए हैं और 41 अपराधों में सजा के टाइम को बढ़ा दिया गया है. भारतीय नागरिक सुरक्षा (द्वितीय) संहिता 2023, CrPC में 531 धाराएं होंगी, जबकि पहले केवल 484 धाराएं थीं. नए विधेयक में 177 धाराओं में बदलाव किए गए हैं और 9 नई धाराएं जोड़ी गई हैं और 14 धाराओं को निरस्त कर दिया गया है.
भारतीय साक्ष्य (द्वितीय) विधेयक 2023, यह विधेयक भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 का स्थान लेगा. यह अधिनियम इंडियन कोर्ट्स में एविडेंस की ऐडमिसिबिलिटी पर आधारित है. यह सभी नागरिक और आपराधिक कार्यों पर लागू होता है. इन कानूनों में FIR से लेकर केस डायरी, आरोप पत्र, और पूरी प्रक्रिया को डिजिटल बनाने का प्रावधान किया गया है. इसके अंतर्गत पहले की 167 धाराओं के बजाय अब 170 धाराएं होंगी. 24 धाराओं में बदलाव किये गये हैं. कानून विशेषज्ञ का मानना है कि कोई खास परिवर्तन नही हुआ सिवाय कि प्रावधानों को इधर से उधर कर दिया गया है.
आइए देखते हैं, उस समय के क्षेत्र, जो आज का राजस्थान है वहां कैसे हालात थे? ब्रिटिश क्रिमिनल लॉ के पहले किस प्रकार का कानून था? जन्म पर आधारित जाति प्रथा के कारण राजस्थान के सामाजिक जीवन में छुआछूत के अलावा अनेकों प्रथाएं विद्यमान थीं. इन प्रथाओं में सती प्रथा, कन्या वध, डायन प्रथा, बाल विवाह, औरतों और लड़कियों का क्रय-विक्रय आदि थी! इनमें से कुछ प्रथाओं को धर्म से जोड़ दिया गया, जिससे उन प्रथाओं ने समाज में अत्यधिक महत्व प्राप्त कर लिया!
ब्रिटिश सरकार द्वारा राज्यों के राजनीतिक, प्रशासनिक एवं आर्थिक ढांचे में किए गए परिवर्तनों ने सामाजिक सुधार और सामाजिक जीवन में परिवर्तन का मार्ग प्रशस्त कर दिया. इसके अतिरिक्त ब्रिटिश सरकार के निरंतर प्रभाव के फलस्वरूप, राजपूत शासकों ने कुछ कुप्रथाओं को गैरकानूनी घोषित कर उन्हें समाप्त करने का प्रयास किया. रीति-रिवाज, परंपरा और मान्यताओं के आधार पर न्याय व्यवस्था टिकी थी.
मध्य कालीन भारत में मुगलों ने कुछ बनाए, लेकिन वो पर्याप्त नहीं थे. हिंदू समाज में जाति व्यवस्था के अनुसार क्रिमिनल लॉ का चलन था जो कि लिपिबद्ध नहीं था. राजा, जमींदार, पंडित और पंच अपने हिसाब और जाति व्यवस्था के आधार पर न्याय करते थे.
कुछ लोगों के लिए ब्रिटिश क्रिमिनल लॉ से असुविधा थी, क्योंकि वो मनमानी नहीं कर सकते थे. कानून की नजर में वो समान नहीं दिखना चाहते थे. ऐसे लोगों के लिए ब्रिटिश क्रिमिनल लॉ गुलामी का प्रतीक था, लेकिन बहुमत के लिए ये आजादी गैरबराबरी की व्यवस्था थी. जब कभी सत्ता में बदलाव होगा तो एक बड़ा संशोधन लाया जाएगा और हो सकता है पुरानी व्यवस्था में वापिस हों.
(लेखक कांग्रेस नेता और पूर्व लोकसभा सदस्य हैं, ऊपर व्यक्त किए गए विचार लेखक के हैं, इसके लिए क्विंट हिंदी जिम्मेदार नहीं है)
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