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नोटबंदी: जेटली एंड कंपनी, प्लीज आपस का कंफ्यूजन खत्म करें

ऐसा शायद पहली बार हो रहा है, जब एक मंत्रालय के सीनियर अलग-अलग सुर में बात कर रहे हैं और परेशान जनता हो रही है

अभीक बर्मन
नजरिया
Updated:
(फोटो: Hardeep Singh/ <b>The Quint</b>)
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(फोटो: Hardeep Singh/ The Quint)
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10 नवंबर को दिल्ली में ‘द इकोनॉमिक एडिटर्स कॉन्फ्रेंस’ नाम के एक सरकारी फंक्शन में वित्त मंत्रालय के सबसे सीनियर ब्यूरोक्रेट ने कुछ ऐसा कहा, जिसे ‘गलत’ बताने में उनके बॉस ने हफ्ते भर का समय लिया.

8 दिन पहले फाइनेंशियल जर्नलिस्टों से बातचीत में सेंट स्टीफेन्स कॉलेज के ग्रेजुएट और ब्यूरोक्रेट शक्तिकांत दास ने पूरे आत्मविश्वास से कहा कि 1,000 रुपये के नए नोट बहुत जल्द लाए जाएंगे. उन्होंने कहा था कि इन नोटों में ऐसे सिक्योरिटी फीचर्स होंगे, जिनसे 1,000 रुपये के जाली नोट बनाना बड़ा मुश्किल हो जाएगा.

इससे पहले 8 नवंबर को रात 8 बजे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने टीवी पर आकर कहा था कि 500 और 1000 रुपये के सभी नोट उसी रोज आधी रात के बाद नहीं चलेंगे. प्रधानमंत्री के ऐलान के बाद इन नोटों की जिंदगी सिर्फ चार घंटे रह गई थी. इस ऐलान से तब तक सर्कुलेशन में बने हुए करीब 86 फीसदी नोट ‘कागज के टुकड़े’ रह गए थे.

शशिकांत दास(फोटो: PTI/ Altered by The Quint)

नोट पर बैन के बाद

इस कथित डी-मॉनेटाइजेशन के बाद देश में ऐसी मंदी शुरू होने का डर पैदा हो गया है, जिसे सरकार ने शुरू किया है. 500 और 1,000 के पुराने नोट बैन होने से शैंपू से लेकर रबी सीजन की बुआई के लिए बीज की डिमांड क्रैश कर गई है क्योंकि लोगों के पास कैश नहीं है. इन हालात में सरकार की तरफ से करेंसी शॉर्टेज दूर करने का कोई भी संकेत मिलता तो उसे हाथोंहाथ लिया जाता. इसी वजह से देशी-विदेशी मीडिया में दास के बयान को जगह मिली.

उस समय उनके बॉस फाइनेंस मिनिस्टर अरुण जेटली ने ज्यादा कुछ नहीं कहा, सिवाय इसके कि जो लोग पुराने नोट जमा कर रहे हैं, उनके खिलाफ एक्शन नहीं लिया जाएगा. लेकिन उसके बाद आए जेटली के बयान कन्फ्यूजन बढ़ाने और चौंकाने वाले रहे हैं. उनमें कई अप्रत्याशित मोड़ भी आए.

500 और 1,000 रुपये के पुराने नोटों पर बैन के कुछ दिनों बाद बैंकों, एटीएम और पोस्टऑफिस के सामने कभी न खत्म होने वाली भीड़ दिखने और लोगों का गुस्सा बढ़ने पर जेटली ने कहा कि उन्हें लोगों को हो रही तकलीफ का अफसोस है, लेकिन इतने बड़े पैमाने पर नोट बदले जाने से ऐसी दिक्कत होनी ही थी. उन्होंने यह भी कहा, ‘नोटबंदी से लॉन्ग टर्म में अर्थव्यवस्था को फायदा होगा.’

अरुण जेटली (फोटो: PTI/ Altered by The Quint)

पेनाल्टी लगेगी या नहीं लगेगी?

9 नवंबर को जेटली ने मीडिया को बताया कि अगर कोई अपने बैंक खाते में 2.5 लाख रुपये से अधिक रकम जमा करता है तो उस पर टैक्स और 200 फीसदी की पेनल्टी लगेगी. इस पर खूब हल्ला मचा. टैक्स कानून की समझ रखने वालों ने कहा कि ऐसा कोई कानून है ही नहीं, जिसमें इतनी भारी-भरकम पेनल्टी लगाने का प्रावधान हो. अगले दिन जेटली ने फिर पलटी मारी और फरमाया कि इनकम टैक्स ऑफिशियल्स किसी को परेशान नहीं करेंगे.

15 नवंबर को जेटली का सामना संसद में आक्रामक विपक्ष से हुआ. अपोजिशन ने पूछा कि देश से फरार और डिफॉल्टर बिजनेस टायकून विजय माल्या की कंपनी को सरकारी बैंकों की तरफ से दिए गए लोन को कैसे राइटऑफ कर दिया गया, जब देश की आम जनता को नोटबंदी के नाम पर तलवार की नोंक पर रखा गया है. इसका जवाब जेटली ने ऐसी जुबान में दिया, जिसे समझना आम पब्लिक के बूते की बात नहीं है. उन्होंने कहा कि माल्या को दिया गया जो लोन बट्टे खाते में डाला गया है, वह सिर्फ एक टेक्निकैलिटी है, बैंक उनसे बकाया वसूलने की पूरी कोशिश करते रहेंगे.

  • 1,000 रुपये के नए नोट जारी करने पर फाइनेंस मिनिस्टर अरुण जेटली और आर्थिक मामलों के सचिव शक्तिकांत दास ने एक दूसरे की बात काटी.
  • 8 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नोटबंदी के ऐलान के तुरंत बाद फाइनेंस मिनिस्टर अरुण जेटली ने कुछ नहीं कहा.
  • उसके बाद से जेटली के जो बयान आए हैं, वे भ्रामक रहे हैं और वह बयान से पलटे भी हैं.
  • ऐसी अफवाह है कि मोदी सरकार के इस सबसे बड़े राजनीतिक और आर्थिक तौर पर संवेदनशील फैसले की जेटली को भनक तक नहीं थी.
  • लुटियंस दिल्ली सवाल कर रही है कि क्या नोटबंदी के बाद जेटली को सिर्फ सफाई देने के काम में लगाया दिया गया है.
  • कहा जा रहा है कि सरकार में सिर्फ चार लोगों को नोटबंदी की पक्की तारीख और समय के बारे में पता था, इनमें जेटली शामिल नहीं है.
  • 8 नवंबर से पहले अगर जेटली को नोटबंदी की जानकारी नहीं थी, तो फाइनेंस मिनिस्ट्री के कन्फ्यूजन और विरोधाभासी बयान की बात आसानी से समझ में आती है.

जेटली को नहीं थी भनक?

पहले से अफवाह चल रही थी कि जेटली को नरेंद्र मोदी सरकार के इस सबसे बड़े राजनीतिक और आर्थिक फैसले की भनक तक नहीं थी. उनके बयानों से इस अफवाह को और हवा मिली. लुटियन दिल्ली की नजर राजनीतिक पारे में होने वाले बेहद मामूली बदलाव पर भी रहती है. वह अब यह सवाल कर रही है कि क्या नोटबंदी के ऐलान के बाद जेटली को सिर्फ सरकारी गलतियों पर सफाई देने के काम में लगा दिया गया है?

करीब दो दशक से जेटली मीडिया के लिए ऑफ और ऑन रिकॉर्ड बीजेपी के मुख्य प्रवक्ता रहे हैं. ऐसे में बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकार में जेटली के साथ ऐसा सुलूक लुटियंस दिल्ली को हैरान कर रहा है.

मोदी के 8 नवंबर को नोटबंदी वाले बयान के तुरंत बाद ऐसे सवाल पूछे जाने लगे थे कि जिस सरकार में मंत्रालय, बैंक, वित्तीय संस्थान और नौकरशाही छलनी की तरह खबरें लीक करते रहे हों, वहां इस तरह के बड़े फैसले को किस तरह से गोपनीय रखा गया होगा!

(फोटो: PTI/ Altered by The Quint)

सिर्फ चार लोगों को खबर थी

कहा जा रहा है कि सिर्फ चार लोगों को नोटबंदी की तारीख और इसके ऐलान के समय की जानकारी थी, हालांकि बीजेपी के कई लीडर्स जानते थे कि हाई वैल्यू करेंसी पर आगे चलकर पाबंदी लगनी है. वहीं करेंसी प्रिंटिंग एस्टेब्लिशमेंट के लोगों का कहना है कि नोटबंदी को दिसंबर या जनवरी की लागू करना था.

लेकिन मोदी ने इसे तय समय से पहले लागू करने का फैसला किया, शायद उनकी नजर यूपी, पंजाब, गोवा, मणिपुर और 2017 के आखिर में होने जा रहे गुजरात चुनाव पर है. इस काम में मोदी के लिए आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल को साथ लेना जरूरी था. आखिर करेंसी से जुड़े सभी मामलों में आरबीआई ही लीगल अथॉरिटी है.

नोटबंदी की योजना के बारे में 1977 बैच के आईएएस अधिकारी प्रदीप कुमार सिन्हा को भी पता था, जो अब कैबिनेट सेक्रेटरी हैं. यह सरकार में सबसे सीनियर ब्यूरोक्रेट का पद होता है. और अब ऐसा लगता है कि शक्तिकांत दास को भी नोटबंदी की पक्की तारीख और समय की जानकारी थी.

भ्रमजाल

अगर जेटली को 8 नवंबर तक इस मामले की भनक नहीं लगने दी गई थी, तब तो फाइनेंस मिनिस्ट्री के विरोधाभासी बयान और कन्फ्यूजन को बड़ी आसानी से समझा जा सकता है. इसमें कोई शक नहीं है कि नोटबंदी के पीछे मोदी का दिमाग था और इसे लागू करने का वक्त भी उन्होंने मुकर्रर किया है. लेकिन अगर उन्होंने कैबिनेट के अपने साथियों को बेहतर और नियमित तौर पर मामले की जानकारी दी होती तो नोटबंदी को लेकर अभी जो परेशानियां हो रही हैं, उनसे निपटने में आसानी होती.

शक्तिकांत दास के मीडिया से यह कहने के हफ्ते भर बाद कि 1,000 रुपये के नए नोट जल्द आएंगे, 17 नवंबर को जेटली ने कहा कि ऐसी कोई योजना नहीं है.

हमारे देश में शोरशराबे वाला लोकतंत्र है. इसलिए किसी मामले में मंत्रालयों की राय अलग-अलग हो सकती है. लेकिन ऐसा शायद पहली बार हो रहा है, जब एक ही मंत्रालय के सीनियर लोग अलग-अलग सुर में बात कर रहे हैं. और यह फाइनेंस मिनिस्ट्री जैसे इंपॉर्टेंट मिनिस्ट्री में हो रहा है.

(लेखक दिल्ली में रहने वाले जर्नलिस्ट हैं. आप ट्विटर हैंडल @AbheekBarman के जरिये उन तक पहुंच सकते हैं. ये लेखक के अपने विचार हैं. क्विंट ना ही इससे सहमत है और ना ही वह इसके लिए जवाबदेह है.)

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Published: 21 Nov 2016,05:47 PM IST

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