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रक्षा की 101 चीजों के आयात पर रोक भर से आत्मनिर्भर नहीं बनेगा भारत

रक्षा मंत्रालय ने 2020 से 2024 तक 101 विदेशी रक्षा उत्पादों के आयात पर रोक लगा दी है

मनोज जोशी
नजरिया
Published:
रक्षा मंत्रालय ने 2020 से 2024 तक 101 विदेशी रक्षा उत्पादों के आयात पर रोक लगा दी है
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रक्षा मंत्रालय ने 2020 से 2024 तक 101 विदेशी रक्षा उत्पादों के आयात पर रोक लगा दी है
(फोटो: Quint) 

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न्यूजरूम में एक नियम हमेशा माना जाता है कि रविवार को जारी होने वाली खबर अक्सर संदेह के घेरे में होती है, जिनका उद्देश्य सिर्फ सुर्खियां बटोरना होता है, क्योंकि रविवार को खबरों का फ्लो काफी धीमा होता है.

फिर भी रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह का रक्षा उत्पादों पर आत्मनिर्भर भारत को लेकर बयान देना एक अहम कदम है, खासकर ऐसे समय में जब भारत लगातार विदेशी उत्पादों का अधिग्रहण कर रहा है. बीते महीने बोइंग ने 22 अपाचे अटैक हेलिकॉप्टर की डिलिवरी पूरी की है. वहीं, 36 राफेल जेट में से 5 भारत आ चुके हैं. नई दिल्ली ने रूस से 21 मिग-29 और 12 सुखोई 30 एमकेआई एयरक्राफ्ट लेने की घोषणा भी कर दी है. मई में भारत ने नौसेना को 24 एमएच 60 आर हेलिकॉप्टर से लैस करने के लिए एक बिलियन डॉलर (करीब 7 हजार करोड़) का करार किया था.

रक्षा मंत्रालय ने 2020 से 2024 तक 101 विदेशी रक्षा उत्पादों के आयात पर रोक लगा दी है. पूर्व वित्तमंत्री पी चिदंबरम ने ट्वीट किया- “रक्षा उपकरणों का एकमात्र आयातक रक्षा मंत्रालय है. रक्षामंत्री ने रविवार की घोषणा में जो भी कहा, वह मंत्री का अपने सचिवों के लिए सिर्फ ऑफिस का आदेश भर है.”

इसके बजाय जिन उत्पादों पर बैन लगाने की घोषणा की गई और खबर ने सुर्खियां भी बटोरीं, इनमें से अधिकतर उत्पाद भारत में पहले से ही बनाए जा रहे हैं.

पैसा, गणित और रहस्य

सूची के अनुसार, 70 उत्पादों पर तुरंत रोक लगाई जाएगी. अगले 10 उत्पादों पर साल 2021 तक रोक लगेगी. आखिर में 21 उत्पादों पर रोक लगाने के लिए 2022 से 2025 तक की तारीख तय की गई है. इससे साफ है कि कई उत्पादों को आयात करने के लिए काफी समय मिल गया है.

मंत्रालय ने कहा है कि अगले 6 से 7 साल के लिए 4 लाख करोड़ रुपए के कॉन्ट्रैक्ट घरेलू उद्योगों को दिए जाएंगे.

यह एक अच्छा अंकगणित नहीं है, क्योंकि वर्तमान पूंजीगत बजट 1.15 लाख करोड़ रुपए है. इसका अधिकांश हिस्सा हथियार प्रणाली और उपकरणों को आयात करने में खर्च होता है. इसके अलावा भारत में सुखोई 30 एमकेआई को असेंबल करने में भी खर्च होता है.  

स्वेदशी बेस को विकसित करना है तो इसमें मंत्रालय के साथ कोई भी बहस नहीं कर सकता. राष्ट्रीय सुरक्षा एक ऐसा क्षेत्र है, जहां आत्मनिर्भर होना सबसे अच्छा है. यह लंबे समय से देश का सपना भी रहा है. लेकिन हम कई बार लड़खड़ा चुके हैं, इसलिए हमें सावधान रहने और अच्छी प्लानिंग की जरूरत है. देश को दौड़ने से पहले ठीक से चलना सीखना होगा.

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औद्योगिक नीति कहां है?

देश को सबसे पहले एक औद्योगिक नीति का जरूरत है, जो आने वाले सालों में नतीजे देगी. यह आगामी चुनावों तक के लिए नहीं, बल्कि अगले दशक के लिए होना चाहिए. इस नीति को सरकार द्वारा ही कंट्रोल किया जाना चाहिए, इसमें स्पष्ट व्यावहारिक लक्ष्य होने चाहिए. एलसीए (LCA) के अनुभव ने अब तक हमें सिखाया है कि एक फाइटर जेट को डिजाइन करना और बनाना संभव नहीं है.

नीति के तहत अगले कुछ दशकों में कुछ चिन्हित क्षेत्रों में औद्योगिक क्लस्टर बनाना चाहिए. सरकार को पैसे लगाकर ऐसे शोध संस्थान बनाना चाहिए जो विदेशी तकनीक से यहीं उत्पादन कर सकें.

मंत्रालय को इस नीति को सख्ती से लागू कराना चाहिए. DRDO किसी भी अधिग्रहण में बाधा न पहुंचाए, इसका ख्याल भी रखना होगा, जैसा कि बीती आधी सदी तक होता आया है.  

इसी तरह कंपनियां, खासकर सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों को झूठे दावे कर प्रोजेक्ट से हट जाने की इजाजत नहीं मिलनी चाहिए. उदाहरण के लिए, खासकर रक्षा मंत्रालय या हिंदुस्तान एयरनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) का दावा है कि नासिक और कोरापुट के अपने प्लांट में कच्चे माल से सुखोई 30 एमकेआई की मैन्युफेक्चरिंग की जा रही है. लेकिन हकीकत ये है कि जेट के लिए जरूरी कम्पोजिट शीट, रबर और अन्य जरूरी सामान रूस से आयात होता है और जेट तैयार होने से पहले इसकी कटिंग, मशीनिंग का काम भारत में होता है. एएल 31 एफपी टर्बोफैन इंजनों के मामले में भी यही होता है.

कौन से उत्पादों पर बैन?

सरकार की 101 रक्षा उत्पादों की सूची में ऐसे उत्पाद भी शामिल हैं, जिन्हें हम आयात नहीं कर रहे हैं. इनमें से पहिए वाले आर्मर्ड फाइटिंग व्हीकल (एएफवी), नौसेना वाहक, समुद्र में गश्ती पोत (ओपीवी), वाटर जेट फास्ट अटैक क्राफ्ट आदि की मैन्युफेक्चरिंग भारत में होती है और हम इसे अन्य देश जैसे मॉरिशस और श्रीलंका को भी निर्यात करते हैं. भारत साल 1980 से अपने खुद के ओपीवी को डिजाइन और निर्माण कर रहा है, साथ बड़े जंगी जहाज भी डिजाइन कर चुका है. तो सरकार की ओर से सूची में इन पर रोक लगाने की बात पूरी तरह से सही नहीं है.

ऐसी ही अन्य पाबंदी पर भी कहा जा सकता है- जो “हल माउंटेंड’ और “शिपबोर्न सोनार सिस्टम’ के बारे में है. भारत इस तरह के सिस्टम HUMSA-NG और USHUS अब खुद ही डिजाइन करता है. यह डीआरडीओ की कुछ सफलताओं में से एक है. इसके पहले के वर्जन पुराने जंगी जहाजों के लिए ठीक थे, लेकिन अब इन्हें P17, P 15A और P 28 जहाजों के लिए अपग्रेड किया गया है. डूबने वाले या खींचकर ले जाने वाले सोनार जरूरी होते हैं, लेकिन हम इन सिस्टम को बाहर से आयात करने की योजना बनाते हैं.

उत्पादों के आयातों पर रोक लगाने वाली सूची में शामिल अस्त्र (ASTRA) बियॉन्ड विजुअल रेंज मिसाइल है. यह पूरी तरह से भारतीय डिजाइन पर आधारित स्वदेशी मिसाइल है. तो क्या हम इस स्वदेशी मिसाइल पर भी रोक लगाएंगे? मुमकिन है कि इस रक्षा प्रणाली के कुछ जरूरी हिस्से अभी भी आयात किए जाते हैं, इसलिए शायद इस पर रोक लगाने की संभावित तारीख दिसंबर 2023 तक रखी गई है.

ओडिशा: 17 सितंबर 2019 को एयर-टू-एयर मिसाइल Astra का सफलतापूर्वक फ्लाइट टेस्ट हुआ था(फोटो: IANS/DPRO)

आयात उत्पादों के बिना नहीं चल सकता भारतीय डिफेंस सिस्टम

ये बड़ी सूची उम्मीद पर टिकी है, जिसमें आने वाले सालों में स्वदेशी प्रयासों से बेहतर नतीजे मिल सकते हैं. लंबी दूरी के लैंड अटैक क्रूज मिसाइज पर पाबंदी की तारीख दिसंबर 2025 है.   स्मॉल जेट इंजन के लिए दिसंबर 2024.

इंजनों की बात करें तो यह हमारी असली कमजोरी है. आप सभी पर रोक लगा सकते हैं. लेकिन एक चीज जिसे आप आयात किए बिना कुछ नहीं कर सकते, वह है इंजन. आप उनके नाम बदल सकते हैं. जैसे हमने Aridien 1H1 का नाम बदलकर "शक्ति' किया था, एडवांस्ड लाइट हेलिकॉप्टर को "ध्रुव' कहते हैं, लेकिन आप इस फैक्ट को नहीं बदल सकते कि हम अपने इंजन खुद बनाने में सक्षम हैं. इसके साथ दुर्भाग्यपूर्ण बात यह भी है कि इन्हें विकसित करने के लिए कोई भी प्रयास नहीं किए जा रहे हैं.

स्वदेशीकरण हमारा लक्ष्य है, लेकिन प्रभावी औद्योगिक इको-सिस्टम विकसित करने के लिए व्यवस्थित योजना चाहिए, जो एक टास्क है और इसमें स्किल, दृढ़ता और योग्य नौकरशाही की जरूरत है.

भारतीय निजी क्षेत्र अब इस रक्षा के क्षेत्र में प्रवेश को तैयार है, बशर्ते उन्हें जानबूझकर बाहर नहीं रखा जाए, क्योंकि वे पिछले कुछ समय से कई क्षेत्रों में है. कंपनी जैसे एलएंडटी, कल्याणी ग्रुप और टाटा इससे बाहर निकल चुके हैं, लेकिन कई कंपनियों की दुकान रक्षा मंत्रालय के सौतले व्यवहार की वजह से बंद हो गई. एक और क्षेत्र जिस पर ध्यान देने की आवश्यकता है वह है कुशल कामगारों की. भारत ने 1990 के दशक में पनडुब्बी बनाने वालों की एक पीढ़ी को बर्बाद होते देखा है. उम्मीद है कि इस बार उनके साथ ऐसा नहीं होगा.

प्रक्रिया कितनी सफल होगी, ये इस पर निर्भर करेगा कि मंत्रालय इसे लागू करने में कितनी ईमानदारी दिखाता है. मंत्रालय ने कई उत्पादों के आयात पर रोक लगाने का फैसला ठीक लिया है. इससे घरेलू इंडस्ट्री में निवेश को बढ़ावा मिलेगा. लेकिन सिर्फ सूची डालने से काम नहीं चलेगा. अभी इसमें कई नौकरशाही कमियां है. यही कारण है कि रक्षा खरीद नीति में बार-बार बदलाव होता रहता है.

(लेखक Observer Research Foundation, New Delhi में एक Distinguished Fellow हैं. आर्टिकल में दिए गए विचार उनके निजी विचार हैं और इनसे द क्विंट की सहमति जरूरी नहीं है.)

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