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दो विचारों ने करोड़ों लोगों को अपनी ओर खींचा था. एक को भारत की राजनीति में बड़े बदलाव के रूप में देखा जा रहा था, तो दूसरा ग्लोबल विलेज के सपने को साकार करने की तरफ बड़ी पहल थी. दोनों विचारों पर रविवार को वोट होना है.
रविवार को होने जा रहे एमसीडी के चुनाव से सिर्फ यह तय नहीं होने वाला है कि दिल्ली नगर निगम पर किसका राज होगा. पिछले दस साल से यहां बीजेपी का राज है और हो सकता है कि पार्टी को पांच साल और मिल जाए. लेकिन अगर आम आदमी पार्टी का प्रदर्शन काफी खराब रहता है, तो कई सवाल उठेंगे. क्या एक आइडिया समय से पहले ही मुरझा जाएगा?
अरविंद केजरीवाल की 'आप' महज एक पार्टी नहीं थी. यह सिर्फ एक साफ-सुथरी सरकार लाने भर का वादा नहीं था. पार्टी ने बहुत ऐसे काम किए, जिनमें नयापन था. चुनाव में खर्च के लिए लोगों से चंदा जुटाना हो या फिर चुनाव लड़ने के लिए उम्मीदवारों का सेलेक्शन- आम आदमी पार्टी ने सब कुछ अलग तरीके से किया. देश के इतिहास में शायद पहली बार इतना बड़ा चुनाव लड़ने के लिए सारा पैसा लोगों के चंदे से जुटाया गया.
इन सारे नये प्रयोग पहले 2013 के विधानसभा और फिर 2015 के विधानसभा चुनाव में हमें दिखा. साथ ही लोगों ने जमकर वोट देकर इस प्रयोग को स्वीकारा भी.
लेकिन हाल में 'आप' का कोई भी दांव सही नहीं पड़ रहा है. पंजाब चुनाव में प्रदर्शन उम्मीद से कम रहा. गोवा में कुछ भी ठीक नहीं हुआ और दिल्ली के राजौरी गार्डन विधानसभा उपचुनाव में तो पार्टी के उम्मीदवार की जमानत ही जब्त हो गई. एमसीडी चुनाव में पता चलेगा कि क्या 'आप' की चमक फीकी पड़ चुकी है. क्या बड़े बदलाव की बात करने वाले आइडिया का समय से पहले ही अवसान हो गया.
एक और आइडिया की अग्निपरीक्षा फ्रांस में है. वहां राष्ट्रपति चुनाव के पहले चरण का वोट रविवार को ही होना है. अगर वहां फ्रंट नेशनल पार्टी की मरीन ल पेन चुनाव जीतती हैं, तो इससे यूरोपियन यूनियन के आइडिया को बड़ा झटका लगेगा. ल पेन फ्रांस को यूरो से बाहर लाना चाहती हैं, क्योंकि पूरे यूरोप के लिए एक करेंसी का आइडिया पसंद नहीं है. उनके लिए 'फ्रांस फर्स्ट' की पॉलिसी जरूरी है, इसके लिए यूरोप की एकता को झटका लगता है, तो कोई बात नहीं.
युद्ध से तबाह यूरोप के लिए यूरोपियन यूनियन एक उम्मीद की किरण रही है. दूसरे विश्वयुद्ध के बाद बनी संस्थाओं में सबसे असरदार यूरोपियन यूनियन ही रही. इसने बताया कि राष्ट्रीय दीवार से खड़ी की गई दिलों की दूरी को कम किया जा सकता है.
यूरोपियन यूनियन ने साबित कर दिया कि अगर आपसी व्यापार के संबंध गहरे होते हैं, तो पड़ोसी देश शांति से बरसों तक रह सकते हैं और एक-दूसरे की खुशहाली में हिस्सेदार बन सकते हैं. इस आइडिया को अब खतरा है. रविवार को इस आइडिया पर भी फैसला होगा.
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