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बात आज दिल्ली और यूपी के कुछ शहरों के पुलिस आंकड़ों की. दिल्ली पुलिस का आंकड़ा बताता है कि दिल्ली में पिछले साल जघन्य अपराधों की संख्या में 23 फीसदी की कमी आई. साथ ही जो जघन्य अपराध हुए, उनमें से 88 फीसदी साल्व कर लिए गए.
दिल्ली में विभिन्न अपराधों में शामिल 84,999 लोगों को गिरफ्तार किया गया. ये तो दिल्ली पुलिस की बात है. अब आइए आपको बताते हैं उतर प्रदेश के सात शहरों को मिलाकर यूपी पुलिस की कार्रवाई का आंकड़ा.
दिल्ली से नजदीक बसे मेरठ, आगरा, बरेली और दिल्ली से दूर बसे लखनऊ, इलाहाबाद, कानपुर और वाराणसी को मिलाकर यूपी पुलिस ने पिछले साल नई सरकार के सत्ता में आने के बाद 921 एनकाउंटर किए. पुलिस के इन एनकाउंटर में 2214 अपराधी गिरफ्तार हुए, 196 घायल हुए, 31 मारे गए, 1688 इनामी बदमाश पकड़े गए, 112 के खिलाफ रासुका की कार्रवाई हुई.
दिल्ली और यूपी के अपराध के खिलाफ की गई कार्रवाई का उपरोक्त आंकड़ा पुलिस की अपनी पीठ थपथपाने के लिए काफी है. दिल्ली पुलिस के सीपी अमूल्य पटनायक ने सालाना प्रेस कॉन्फ्रेंस में अपनी पीठ थपथपा ली है. यूपी पुलिस का काम तो खुद सीएम योगी ही कई बार कर चुके हैं.
लेकिन यक्ष प्रश्न ये कि क्या यूपी और दिल्ली की आम जनता अपने आपको सुरक्षित महसूस कर रही है? क्या एनकाउंटर और पकड़ धकड़ की पुलिसिया कार्रवाई अपराधों पर अंकुश लगा पा रहा है और सबसे बड़ा सवाल तो ये कि क्या आम आदमी को पुलिस पर भरोसा बढ़ा है?
एक केंद्रीय एजेंसी में उच्च पद पर तैनात आईपीएस अधिकारी के मुताबिक आंकड़े केवल उलझन पैदा करते हैं. इस आईपीएस अधिकारी की बात सच भी है. इसे सबसे पहले दिल्ली के आंकड़ों के जरिए समझते हैं: दिल्ली में बेशक जघन्य अपराधों में कमी आई हो, लेकिन कुल आईपीसी मुकदमों में बढ़ोतरी हुई है. 2016 में दिल्ली में 1,99,110 मुकदमे दर्ज हुए थे, जबकि 2017 में 2,23275 मुकदमे दर्ज हुए.
यूपी और दिल्ली की आंकड़े दावा करते हैं कि बड़े अपराध कम भी हुए और बदमाश सैकड़ों की संख्या में पकड़े भी गए. दिल्ली पुलिस के स्पेशल सीपी वरिष्ठ आईपीएस अफसर दीपेन्द्र पाठक साफ साफ मानते हैं कि दिल्ली से सटे शहरों के क्राइम और डिटेक्शन का सीधा प्रभाव दिल्ली के आपराधिक आबोहवा पर पड़ता है. वो कहते हैं कि इसीलिए दिल्ली पुलिस स्टेट कॉर्डिनेशन की मीटिंग रखती है और उसका लाभ भी होता है. वो कहते हैं कि फोकस का ही नतीजा है कि दिल्ली में अपराध कम हुए और वर्कआउट बढ़े.
दिल्ली-यूपी पुलिस की कार्रवाई और आंकड़े देखकर क्या ये मान लिया जाए कि दिल्ली और यूपी में लोग सुरक्षित हैं और बदमाश डर कर भाग गए या तो बदमाशी छोड़ दी. इसके बारे में आगे बताने से पहले जरा ये सच जान लीजिए कि जब मानवाधिकार आयोग गठित हुआ था, तो हिरासत में मारे गए लोगों की संख्या में सबसे उपर यूपी ही था और गठन के बाद हिरासत के मामले में यूपी का स्थान नीचे चला गया. तो नौ माह में 921 एनकाउंटर के बाद क्या यूपी में बदमाशी कम हो गई?
एक वरिष्ठ आईपीएस अफसर की मानें, तो पुलिस का एनकाउंटर क्राइम और क्रिमिनल को सिर्फ रिलोकेट करता है. इस अफसर का ये भी मानना है कि जब-जब पावर मिलती है, उसके दुरुपयोग की संभावना भी बढ़ जाती है. यानी फोकस सिर्फ एनकाउंटर पर रहे, तो मामला बिगड़ भी सकता है. एनकाउंटर का मकसद अगर कामयाब रहा भी तो पुलिस सख्ती से भयभीत बदमाश वारदात करने की जगह बदल सकते हैं. यानी यूपी के एक्शन का प्रभाव दिल्ली या दूसरे पड़ोसी राज्य में पड़ेगा और पड़ भी रहा है. दिल्ली के कई जघन्य वारदातों में पकड़े गए बदमाश यूपी के निकलते हैं.
वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों का ये भी कहना है कि बेशक बड़ी वारदातों को सुलझा कर पुलिस सराहना बटोर सकती है, लेकिन कानून और व्यवस्था को कायम करने के लिए छोटे-छोटे अपराधों पर ध्यान देना ज्यादा जरूरी है. दिल्ली पुलिस के ही 30 नवंबर तक के आंकड़े बताते हैं कि अन्य चोरी की श्रेणी के मामले 2016 में 69,452 थे, तो 2017 में 10,2954 हो गए.
पुलिस को समझने वाले ये बात बढ़िया से जानते हैं कि आंकड़ों की बाजीगरी पुलिस में किस तरह की जाती है. मामले दर्ज करने में खुली छूट का दावा करने वाले आला अधिकारियों के दफ्तर में ऐसे फरियादियों की संख्या सैकडों में होती है, जो या तो अपने साथ हुए हादसे का केस दर्ज न होने की शिकायत लेकर पहुंचे होते हैं या फिर अपने मामले में कार्रवाई न होने की फरियाद.
विदेशों में ब्रोकेन विंडो की संकल्पना है, अर्थात छोटे मामले दर्ज होने लगते हैं तो आम आदमी में विश्वास भी पैदा होने लगता है. फिर बारी आती है मामलों को सुलझाने की. दिल्ली के सीपी दावा कर चुके हैं कि जघन्य अपराधों के 88 फीसदी मामले सुलझा लिए गए. मगर ये दावा करने वाली कहीं की भी पुलिस ये नहीं बताती कि जिन मामलों को सुलझा लेने के दावे किए जा रहे हैं, क्या उनमें शामिल हर आरोपी को गिरफ्तार किया जा चुका है?
सच तो ये है कि एक वारदात में शामिल होने वाले एक भी आरोपी की गिरफ्तारी पर पुलिस मामले के सुलझा लिए जाने का दावा करती है. इसीलिए यूपी और दिल्ली में भगोड़े बदमाशों की संख्या में दिन दूनी और रात चौगुनी बढ़ोतरी हो रही है.
क्राइम के घटते बढ़ते आंकड़े आम आदमी के मन में विश्वास पैदा करने की बजाय भ्रम पैदा करते हैं. यूपी हो या दिल्ली अगर आम आदमी के मन में सुरक्षा का माहौल पैदा करना है, तो पहले मामले दर्ज करने का वास्तविक खुलापन फिर मामले के हर आरोपी की गिरफ्तारी और फिर अदालत में दोषी को सजा और निर्दोष के बरी कराने पर फोकस करना होगा, न कि आंकड़े जारी कर ये दावा करने का कि आबादी बढ़ रही है, लेकिन क्राइम घट रहा है.
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