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दिल्ली पुलिस-वकील भिड़ंत, कानून के राज के लिए रेड अलर्ट

2 नवंबर को तीस हजारी कोर्ट में हुई थी दिल्ली पुलिस और वकीलों के बीच झड़प

संजय पुगलिया
नजरिया
Updated:
2 नवंबर को तीस हजारी कोर्ट में  हुई थी दिल्ली पुलिस और वकीलों के बीच झड़प
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2 नवंबर को तीस हजारी कोर्ट में हुई थी दिल्ली पुलिस और वकीलों के बीच झड़प
(फोटो: PTI)

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पुलिस-वकील भिड़ंत एक रहस्य कथा है. ये साधारण घटनाक्रम नहीं है. ये मौजूदा माहौल में गवर्नेंस की चुनौतियों की चश्मदीद गवाही है. कानून के राज- रूल आफ लॉ के दो अहम अंगों का ये संगठित टकराव गंभीर है.

दिल्ली में पुलिस और वकीलों के बीच जो भिड़ंत हुई है, उसमें दोनों पक्षों के आरोप और प्रत्यारोप हैं. इस घटना की हैंडलिंग के लिए जो जिम्मेदार हैं, उनकी प्रतिक्रिया और कार्रवाइयां नए सवाल खड़े कर रही हैं और गुत्थी को उलझा रही हैं.

ऐसे टकराव के माहौल में जो रस्मी चीजें होती हैं- जांच, चेतावनी, एकता की अपील और समझौते की कोशिश- ये सब भी हो रहा है, लेकिन कई चीजें और हो रही हैं जो चौंकाती हैं. एक है न्यूज चैनलों का खुला कवरेज.

5 नवंबर को दिल्ली पुलिसकर्मियों ने तीस हजारी कोर्ट में हुई हिंसा के विरोध में किया प्रदर्शन(फोटो: PTI)

जो लोग ये सोचते हैं कि जिस खबर में सरकार की छवि अच्छी नहीं दिखती, सरकार उसका कवरेज मैनेज कर लेती है, वो इस बात पर चौंके हैं कि टीवी न्यूज चैनल इतना कड़क कवरेज कैसे कर रहे हैं. इसको अभूतपूर्व घटना कैसे बता दिया और गरम डिबेट कैसे हो गई. मीडिया के एक वर्ग का टोन माहौल को ठंडा करने वाला कम और कंफ्यूजन और तल्खी बढ़ाने वाला ज्यादा रहा.

दूसरी चीज चौंकाती है कि वकील अपने बड़े नेताओं तक की नहीं सुन रहे. पुलिस ने अपने वरिष्ठ अधिकारियों की बात मुश्किल से सुनी. सरकार के बड़े ओहदेदार इस मामले पर खुद मामला सुलझाने के लिए सामने नहीं आ रहे हैं.

दोनो पक्षों के एक्शन, विरोध प्रदर्शन, पोस्टर-बैनर, ये सब तौर तरीके मेड फॉर टीवी वाले हैं. काफी प्रोफेशनल प्रस्तुति है. ये सब दिल्ली विधानसभा चुनाव के पहले हो रहा है और आम नागरिक के बीच भी इस पर राय बंट गई है.

वह सिस्टम से यूं ही परेशान है और पुलिस हो या अदालत, उसकी नजर में अपने अनुभवों के मुताबिक सब खलनायक हैं.

दिल्ली पुलिस के खिलाफ 6 नवंबर को दिल्ली हाईकोर्ट के बाहर वकीलों का प्रदर्शन(फोटो: PTI)
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कानून व्यवस्था-इस अंग में नया व्यंग्य

नाराज वकीलों को पुलिस थाने में एफआईआर दर्ज करानी है. पुलिस और गृह मंत्रालय को अदालत में वकीलों के खिलाफ जिरह करने के लिए वकील चाहिए. ये दोनों किरदार लोकतंत्र के शीर्ष स्तंभ अदालत के अहम हिस्से हैं. इनका टकराव अगर काबू में नहीं आया, मनमुटाव दूर नहीं हुआ तो न्याय की आस में अदालत जाने वाले असहाय नागरिक की क्या हालत होगी?

कानून व्यवस्था से भरोसा डिगाने वाले, समाज में कई तत्व पहले से ही सक्रिय हैं. ऐसे में देश की राजधानी में पुलिस को विरोध करने पर बाध्य होना पड़े, ये लोकतंत्र का रेड अलर्ट है. 6 नवंबर को पुलिस हेडक्वॉर्टर्स पर ऐहतियातन CRPF को तैनात किया गया है. ये तथ्य ही हालात पर पूरी टिप्पणी हैं. लोग सिर्फ उम्मीद ही कर सकते हैं कि ये घटना अपवाद है, न की कोई ट्रेंड.

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Published: 06 Nov 2019,08:47 PM IST

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