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एक राष्ट्रवादी या नेशनलिस्ट के लिए जबरदस्त फैंटेसी फिल्म है ‘गदर’. फिल्म में सनी देओल के कैरेक्टर तारा सिंह से उसके विलेन ससुर (अशरफ अली) इस्लाम अपनाकर ‘इस्लाम जिंदाबाद ‘ और ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ के नारे लगाने के लिए कहते हैं, जिन्हें वह इच्छा न होने पर भी मान लेता है.
परेशानी तब शुरू होती है, जब अशरफ अली तारा को ‘हिंदुस्तान मुर्दाबाद’ का नारा लगाने के लिए कहते हैं. पर ऐसे शब्द बोलने से तो सनी पाजी मर जाना पसंद करेंगे. इसके बाद शुरू होता है कट्टर राष्ट्रवाद से भरी देशभक्ति का दौर, जहां बीच-बीच में तारा सिंह की पत्नी सकीना (अमीशा पटेल) का डरा हुआ चेहरा नजर आता है और फिर आइकोनिक नल उखाड़ने का सीन और सनी देओल की युद्ध की हुंकार इसमें चार चांद लगा देती है.
अब यहां ये समझ नहीं आता कि अगर वो भी जेएनयू से पढ़कर निकला होता, तो उसे गिरफ्तार किया जाता कि नहीं? क्या ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ का नारा लगाने वाला तारा सिंह देशविरोधी था? क्या ‘हिंदुस्तान मुर्दाबाद’ का नारा लगाने से इनकार कर वह नेशनलिस्ट बनने की कोशिश कर रहा था? क्या होता अगर वो ‘हिंदुस्तान मुर्दाबाद’ कह देता? क्या ऐसा कह देने पर वह राष्ट्रविरोधी, देशद्रोही हो जाता?
भारत के संविधान में राष्ट्रविरोधी या एंटी नेशनल शब्द को ही जगह नहीं दी गई, इसकी परिभाषा की तो बात ही दूर है. ऐसे में पुलिस के निर्णय को यह अधिकार मिल जाता है कि वह किस घटना या व्यक्ति को राष्ट्रविरोधी बताकर उस पर भारतीय दंड संहिता की धारा 124 A (देशद्रोह) लगाती है.
देशद्रोह के कानून को 1870 में अंग्रेजों ने बनाया था, ताकि वे आजादी की मांग को कुचल सकें. औपनिवेशिक शासन के दौरान इस कानून का कई बार इस्तेमाल किया गया.
दिल्ली पुलिस ने जेएनयू छात्रसंघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार को देशद्रोह कानून के तहत इसलिए गिरफ्तार कर लिया, क्योंकि उसने आतंकवादी अफजल गुरु के समर्थन में आयोजित एक कार्यक्रम में शिरकत की और देशविरोधी नारे लगाए.
अपने लगभग 23 मिनट लंबे भाषण में कन्हैया ने RSS और मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी की जमकर आलोचना की थी. उसने पाकिस्तान समर्थक नारे लगाने से साफ मना किया और पूछा:
सरकार इस बात के समर्थन में दिखती है कि विश्विविद्यालयों के अस्तित्व को उचित ठहराने से कहीं आगे जाकर ये सवाल ‘राष्ट्र विरोधी’ और ‘देशद्रोही’ है.
अमित शाह ने विरोध कर रहे छात्रों का समर्थन कर रहे राजनेताओं का कड़ा विरोध किया है, खास तौर पर राहुल गांधी का. अपने ब्लॉग में बीजेपी अध्यक्ष ने ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ ‘भारत की बरबादी तक जंग रहेगी जारी’ ‘अफजल तेरे खून से इंकलाब आएगा’ जैसे नारों को देश विरोधी और देशद्रोही बताया है.
ये नारे किसने लगाए, ये अब भी जांच का विषय है, इसी तरह डेमोक्रेटिक स्टूडेंट यूनियन (DSU)के छात्रों को अलगाववादी नारे लगाते दिखाने वाले वीडियो की प्रामाणिकता भी साफ नहीं है. यह साफ हो चुका है कि कन्हैया कुमार इन लोगों के साथ नहीं थे.
वीडियो के सत्यापन पर अभी जांच चल रही है, पर फिलहाल ये पूछना जरूरी है कि क्या सरकार विरोधी होने का मतलब देश विरोधी होना हो जाता है?
देशद्रोह: पुराने कानून के नए अर्थ
19वीं सदी के देशद्रोह कानून को 1962 में सुप्रीम कोर्ट ने नई परिभाषा दी थी. इस परिभाषा में धारा 124 A के दायरे को छोटा करते हुए साफ किया था कि वे काम जो हिंसा भड़काने के इरादे से किए गए हों या जन-जीवन को अस्त-व्यस्त करते हों, वे ही देशद्रोह के दायरे में आएंगे.
जब भी शब्दों, कहे या लिखे गए, या चिह्नों या फिर किसी भी दिखाई देने योग्य प्रतीकों या किसी अन्य तरीके से कानून सम्मत सरकार के खिलाफ नफरत फैलाने की कोशिश देशद्रोह है.
पर हाल में देशद्रोह की परिभाषा एक संकुचित दृष्टिकोण से दी जाने लगी है.
राष्ट्रवाद एक राजनीतिक मत है, जो पहचान से जुड़ा हुआ है. इसमें धर्म का भी जुड़ाव हो सकता है, लेकिन निश्चित रूप से इसका मुख्य झुकाव निष्ठा या वफादारी की तरफ है.
एक राष्ट्रवादी एक ऐसा व्यक्ति है, जो इस राजनीतिक विचार को मानता है और अपने जैसे लोगों, जो उसके जैसी भाषा बोलते हैं, उसके धर्म, जाति और समुदाय के हैं, के साथ अपनी पहचान को सुरक्षित पाता है.
भारत के राष्ट्रवादी सत्ता में होने वाली पार्टी के हिसाब से परिभाषित होने लगे हैं. इस समय देश पर एक ऐसी राष्ट्रवादी पार्टी का शासन है, जो खुले तौर पर हिंदुत्व का एजेंडा लेकर आगे बढ़ती है, जबकि देश की आजादी में भूमिका निभाने के नाम पर कांग्रेस का राष्ट्रवाद भारतीयता का है.
यह निश्चित करती है कि देश की स्वतंत्रता के इतिहास का अर्थ गांधी, नेहरू और पटेल तक ही सिमट कर रह जाए. इन्होंने पूरी कोशिश के साथ बिरसा मुंडा. तिरुपुर कुमारन या लक्ष्मी सहगल जैसे कई लोगों के योगदान को पूरी तरह नकार दिया है.
एक मजबूत या कुछ लोग कहेंगे विकृत नेशलिस्ट एजेंडा संस्थागत हिंसा या सामाजिक उत्पीड़न को बढ़ावा दे सकता है. यही कारण है कि सितंबर 2014 में त्रिवेंद्रम में 25 साल के सलमान और 5 अन्य को देशद्रोह के आरोप में इसलिए गिरफ्तार कर लिया गया था, क्योंकि वे राष्ट्रगान के दौरान खड़े नहीं हुए थे.
इसीलिए कुछ ‘राष्ट्रवादी’ दर्शकों को लगा था कि नवंबर 2015 में मुंबई के एक सिनेमा हॉल में राष्ट्रगान बजने पर न खड़े होने वाले परिवार को धक्के मार कर बाहर निकाल देना उनका नैतिक कर्तव्. है.
इसीलिए मार्च 2014 में पाकिस्तानी टीम का समर्थन करने पर मेरठ की एक बड़ी प्राइवेट यूनिवर्सिटी से 67 कश्मीरी छात्रों को निकाल दिया गया था. आज के राजनीतिक परिदृश्य में राष्ट्रवाद को अत्याचारी, धार्मिक, पाकिस्तान विरोधी संदर्भ में परिभाषित किया जा रहा है.
इसीलिए अब मैक चिकन स्पाइसी खाने या H&M के कपड़े पहनने पर आपके गिरफ्तार होने या कॉलेज से निकाले जाने की संभावनाएं कम हैं.
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