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भारतीयों की सार्वजनिक संपत्ति– भूमि, सार्वजनिक उपक्रम क्षेत्रक और खनिज संपदा में बंधित है. नयी दिशा का अनुमान है कि इसकी कुल कीमत $ 20 खरब या लगभग 50 लाख रुपए प्रति परिवार है. धन वापसी के तहत हरेक परिवार को 1 लाख रूपए हर साल लौटाया जा सकता है.
भारत में सार्वजनिक संपत्ति का सबसे बड़ा स्त्रोत है- भूमि, जो सरकार के अधीन है. उदाहरण के रूप में लुटियंस दिल्ली– जिसमें अधिकांश इमारतें और बंगले केंद्र सरकार के हैं, जो लगभग 2,200 हेक्टेयर है और 90 प्रतिशित सरकार के अधीन है. यहां मंत्री, सांसद, नौकरशाह और अन्य लोग इन आलीशान घरों में रहते हैं. ये निर्माण औपनिवेशिक काल में ब्रिटिशों द्वारा उनके अधिकारियों के लिए कराया गया था. इसे समझने के लिए हम कुछ आसान अंकगणित कर सकते हैं. आज लुटियंस दिल्ली का मूल्य क्या हो सकता है? हम सरकारी आवास की लागत जान सकते हैं.
एक हेक्टेयर लगभग 100,000 वर्ग फुट के आसपास है. चलिए फ्लोर स्पेस इंडेक्स को 10 मानते हैं (भारत में अधिकतर राज्यों नें उन क्षेत्रों को बाधित किया है, जहां निर्माण किया जा सकता है. शहर धन के जनरेटर हैं. न्यूयॉर्क, हांगकांग, शंघाई और सिंगापुर 15-25 एफएसआई की अनुमति देते हैं. जिससे शहरों में ऊंची ईमारतों का निर्माण किया जा सकता है. और यहां पार्क और हरियाली के लिए प्रयुक्त जगह भी प्राप्त हो सकती है.)
10 एफएसआई से 1 हेक्टेयर में 1 मिलियन वर्ग फुट की जगह प्राप्त की जा सकती है. दिल्ली और मुंबई जैसे शहरों में आसानी से कम से कम 10,000 वर्ग फुट की जगह का उपयोग कर सकते हैं. इसका इस्तेमाल सही तरह से उत्पादकता में लाने से हमें 1 हेक्टयर जीतनी कीमतें प्राप्त हो सकती है- यानि 1,000 करोड़ रूपए. या कम से कम प्रत्येक 25 करोड़ भारतीय परिवारों को 40 लाख रूपए.
2,000 हेक्टेयर में फैला हुआ लुटियंस दिल्ली सरकार के अधीन है लेकिन इसकी असली स्वामी भारत की आम जनता है. इसकी कीमत प्रत्येक परिवार के लिए 80,000 रूपये है. हर राज्य में उनके स्वयं के लुटियंस है- राज्यों के प्रमुख जमीनों पर पूर्व और वर्तमान मंत्रियों, नौकरशाहों का कब्जा है.
वह युग कब का बीत चुका है. दुनिया के किसी भी अन्य शहर में इस तरह से प्राइम भूमि पर रक्षा बलों का कब्जा नहीं है. इसके साथ ही, पीएसयू, रेलवे, बंदरगाहों, हवाई अड्डों द्वारा नियंत्रित भूमि – वे सभी अधिशेष भूमि पर बनाए गए हैं. इतना ही नहीं, मुंबई, दिल्ली और अन्य शहरों में ट्रेन के स्टेशनों के ऊपर की जगह भी प्रमुख क्षेत्र है. हांगकांग की तर्ज पर हम भारत में मेट्रो स्टेशनों के ऊपर इमारतें बना सकते है. मुंबई जैसे स्थानों में, हमने समुद्र को पुनः प्रयोग करने की कोशिश की है, आकाश की जगहों का उपयोग क्यों नहीं कर सकते हैं?
सबको एक साथ देखा जाए तो सरकारी नियंत्रण की इन जमीनों का मुद्रीकरण, 10 लाख रूपये प्रति परिवार है.
पीएसयू से आसानी से 5 लाख रूपये और खनिज संपदा से 35 लाख रूपये इसमें जोड़ें जा सकते हैं.(नयी दिशा सार्वजनिक संपत्ति की जानकारी पढ़े)
इस भूमि पर नए फैक्टरी और ऑफिसों का निर्माण किया जा सकता है. स्कूल, कॉलेज, अस्पतालों के साथ-साथ किफायती दरों पर कई लाख घरों का भी निर्माण किया जा सकता है. अगले 25 सालों में कम से कम 40 करोड़ युवा गांव से शहर की ओर पलायन करने वाले हैं. वे हमारे जनसांख्यिकीय लाभांश का हिस्सा हैं. उन्हें उत्पादक (योग्य) बनाकर, भारत समृद्धि के स्वर्ण युग में प्रवेश कर सकता है. जैसा कि 1980 के दशक में चीन ने शुरू किया था.
हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि आम जनता से धन का सृजन होता है, न कि सरकार से. सार्वजनिक संपत्ति आम जनता को लौटाने से, हम भारत में आर्थिक क्रांति ला सकते हैं, जिससे गरीबी का खात्मा होगा और भारी मात्रा में रोजगार के अवसर पैदा होंगे. धन वापसी समृद्धि की पहली सीढ़ी है.
(राजेश जैन 2014 लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के कैंपेन में सक्रिय भागीदारी निभा चुके हैं. टेक्नोलॉजी एंटरप्रेन्योर राजेश अब 'नई दिशा' के जरिए नई मुहिम चला रहे हैं. ये आलेख मूल रूप से NAYI DISHAपर प्रकाशित हुआ है. इस आर्टिकल में छपे विचार लेखक के हैं. इसमें क्विंट की सहमति जरूरी नहीं है)
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Published: 27 Apr 2018,10:34 PM IST