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डोकलाम: अभी भी मुमकिन है कि दोनों देशों की फौजें पीछे हट जाएं

चीन ने तनाव खत्म करने के लिए बातचीत के साथ शर्तों को जोड़कर खुद को बंधन में बांध दिया है.

अशोक के मेहता
नजरिया
Published:


भारत चीन संयुक्त सैन्य अभ्यास की यह तस्वीर साल 2015 की है.
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भारत चीन संयुक्त सैन्य अभ्यास की यह तस्वीर साल 2015 की है.
(द क्विंट: ADGPI द्वारा परिमार्जित)

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ओखला बर्ड सेंक्चुरी में, जहां मैं हर सुबह टहलता हूं, मेरे साथ टहलने वाले एक शख्स ने डोकलाम तनाव के बारे में पूछ लिया. ‘क्या हम सुरक्षित हैं? क्या हमें राशन जमा कर लेना चाहिए? क्या लड़ाई होगी? मेरा जवाब था; ‘हां, नहीं, और इसके अभी कोई आसार नहीं हैं- हालांकि भारत अपनी सुरक्षा और PLA का सामना करने के लिए तैयार है. ’

दोनों तरफ से सेना का जमावड़ा किया जा रहा है. सावधानी के तौर पर सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश में सामान्य अलर्ट जारी कर दिया गया है. सुकना की 33वीं कोर के साथ तीन माउंटेन डिवीजन- 17, 27 और 20- को समय से पहले ही बैटल स्टेशन पर भेजा जा रहा है. इन्हें ऑपरेशन अलर्ट के लिए अगस्त के अंत में भेजा जा रहा है, जबकि आमतौर पर इन्हें सितंबर अक्टूबर के कैंपिंग सीजन में भेजा जाता था.

20वीं माउंटेन डिवीजन भूटान जाएगी, जबकि 33वीं कोर की चीनी रेड लैंड फोर्सेज के खिलाफ अलग युद्ध रणनीति होगी. कोलकाता में ईस्टर्न कमांड युद्ध क्षेत्र की जरूरतों के लिए रिजर्व रहेगी. ऑपरेशन अलर्ट सैन्य यूनिटों और व्यूह रचना के लिए बड़ी कवायद होता है, जो कि मैं कई बार कर चुका हूं.

(इनफोग्राफिकः हर्ष साहनी/ द क्विंट)

अंत में डोकलाम से क्या मिला

चीन ने तनाव खत्म करने के लिए बातचीत के साथ शर्तों को जोड़कर खुद को बंधन में बांध दिया है. विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने संसद में यह कहकर कि दोनों सेनाओं की एक साथ वापसी और बातचीत से ही आगे बढ़ा जा सकता है, अटकलें लगाने की कोई गुंजाइश नहीं छोड़ी है.

चीन ने नाराजगी जताई है कि इसकी धमकी, चेतावनी और डांटने का कोई असर नहीं हुआ. बीजिंग ने क्षेत्रीय संघर्ष या युद्ध नहीं चाहता, लेकिन बिना शर्मिंदगी उठाए वह अपने खोदे गड्ढे से निकल भी नहीं सकता.

अगले महीने चीन में ब्रिक्स समिट होने वाला है, जिसके बाद अक्टूबर में 19वीं पीपुल्स कांग्रेस का अधिवेशन होगा. अगर तब तक मसला नहीं सुलझा, तो डोकलाम चीन की दबंग कूटनीति की विफलता माना जाएगा और लैंड रिक्लेमेशन व दक्षिण चीन सागर में फिलिपींस और वियतनाम के ऐतराज को दरकिनार कर सेना की तैनाती के दमदार कदमों के बाद भी प्रेजिडेंट शी जिनपिंग कमजोर दिखाई देंगे.

दोनों देशों की सेना की एक साथ वापसी भारत के लिए एक छोटी जीत के समान होगी.  (फोटोः लिजुमोल जोसेफ/ द क्विंट)  

दोनों पक्ष अपनी नाक बचाते हुए किनारा करना चाहते हैं. इसका एक रास्ता यह है कि भारत के सैनिकों को हटाकर भूटानी सैनिकों की तैनाती कर दी जाए. दूसरा रास्ता दोनों पक्षों के एक साथ पीछे हटने का रास्ता बनाया जाए, जिसमें दोनों पक्षों के लौटने की प्रक्रिया तय हो. वैकल्पिक रास्तों से बातचीत से सुलह में मदद मिलेगी.

यह बड़ी नासमझी होगी कि गतिरोध को ला सुमदोरांग चू के मसले की तरह 18 महीने लंबा खींचा जाए, जिसे राजनीतिक रूप से सुलझाने में सात साल लग गए थे. डोकलाम विवाद बड़ी चालाकी से भूटान और भारत को अलग कर देने के लिए तैयार किया गया था.

बीजिंग इस बात को उच्चतम प्राथमिकता दे रहा है कि पहले भारतीय सेना पीछे हटे. ऐसा नहीं होने पर PLA लद्दाख और उत्तराखंड में घुसकर भारत को डोकलाम से हटने पर बाध्य कर सकती है. चीनी सरकार के लिए बहुत जरूरी है कि 19वीं पार्टी कांग्रेस से पहले बिना लड़ाई के अपनी आन बचा ले.

यथास्थिति को चुनौती दे रहा है चीन

स्थिति बिल्कुल स्पष्ट है: PLA ने चुंबी घाटी में (भूटान से) विवादास्पद डोकलाम से लेकर (भारत और भूटान दोनों से) विवादास्पद ट्राई-जंक्शन पर एक सड़क बनाने का प्रयास कर रहा है, जिससे कि चीन और भूटान के बीच हुए 1988 और 1998 के करार और भारत व चीन के बीच 2012 में हुए करार से बनाई गई यथास्थिति बदल जाएगी.

भूटानी सैनिकों द्वारा PLA सैनिकों के अतिक्रमण को नहीं रोक पाने पर भारतीय सेना को नजदीकी डोकला पोस्ट से बुलाया गया था. इस मामले में चीन द्वारा 1890 के एक समझौते की एकतरफा व्याख्या करते हुए चीनी क्षेत्र पर अतिक्रमण/आक्रमण का आरोप लगाया जा रहा है, लेकिन ऐसा करते हुए बाद में 1907 में हुए उस करार को भुला दिया गया है, जो कि 1890 में बताए ट्राई-जंक्शन के स्थान का खंडन करता है.

अपने हिसाब से ट्राई-जंक्शन तक सड़क का विस्तार करके चीन ऐसी रणनीतिक और सामरिक बढ़त बना लेगा, जो भूटान और भारत दोनों की सुरक्षा के लिए खतरा होगी.

जबकि चीन बातचीत से पहले भारतीय सेना के पीछे हटने की मांग कर रहा है, भारत चाहता है कि दोनों पक्ष एक साथ हटें. दोनों का एक साथ पीछे हटना भारत के लिए एक छोटी जीत जैसा होगा.

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डोकलाम में चीन का मुख्य उद्देश्य भारत को भूटान से अलग करना और भारत-भूटान मैत्री संधि 2007 को निष्प्रभावी करना है. (रायथम सेठ/ द क्विंट)

चीन और भारत दोनों ने एक दूसरे का गलत आकलन किया

चीन और भारत दोनों ने एक दूसरे की प्रतिक्रिया का गलत आकलन किया. नई दिल्ली को बीजिंग के डोकलाम क्षेत्र में चीन के लालच भरे अतिक्रमण की सीमा का अंदाजा नहीं था. 1986 में 33वीं कोर में एक सीनियर कमांडर के रूप में मैंने भूटानी क्षेत्र पर चीनी की कुतरनी हरकतों पर अपनी रिपोर्ट में चिंता जताई थी. 1990 की शुरुआत में भूटान ने उत्तर में विवादित क्षेत्र के एवज में डोकलाम देने से इनकार कर दिया तो PLA ने फूट डालो और राज करो की नीति अपनाई.

भारतीय फौजें एक तीसरे देश की जमीन पर PLA को चुनौती देंगी, इस बात ने PLA को अचंभे में डाल दिया. इसे लगता था कि यह छोटे से देश भूटान को हड़का लेगा और धौंस के साथ अपनी योजना के अनुसार ट्राई जंक्शन पर अपनी सड़क बना लेगा.

यही वजह है कि पिछले महीने चीन के सरकारी टीवी पर रक्षा मंत्रालय के सीनियर कर्नल जो बो ने मुझसे कहा, ‘आपकी हिम्मत कैसे हुई कि संप्रभु चीन की जमीन (अतिक्रमण की लंबाई थी 183 मीटर) को पार कर भूटान में घुसे और चीन-भूटान के द्विपक्षीय मसले में दखल दिया?’

डोकलाम में चीन का मुख्य उद्देश्य भूटान को भारत से अलग करना है और 2007 की मैत्री संधि को कमजोर करना है, जिसमें प्रावधान है कि दोनों देश अपनी जमीन का ऐसा इस्तेमाल नहीं होने देंगे, जिससे दूसरे देश की सुरक्षा और हित प्रभावित होते हों.

चीन ने तीन तरह के युद्ध छेड़ रखे हैं

करीब 60 दिन से, चीन ने रोजाना तीन तरह का युद्ध छेड़ रखा है- मनोवैज्ञानिक युद्ध, मीडिया युद्ध और कानूनी युद्ध. युद्धरत चीन बेहूदा और उकसाने वाली हरकतें कर रहा है. इसके साथ ही सरकारी मशीनरी के अन्य अंग भी फूहड़ तरीकों से युद्धोन्माद फैला रहे हैं.

इसके उलट भारत अटल, रक्षात्मक और शांतिपूर्ण तरीकों के साथ आत्मनियंत्रण रखते हुए चीन की युद्ध की धमकियों पर बातचीत से हल निकालने की वकालत करता रहा है.

सबसे बेतुकी धमकी एक चीनी विद्वान की तरफ से आई जिसने कहा, ‘भारतीय सैनिकों को डोकलाम से निकालने के लिए छोटे स्तर के ऑपरेशंस दो हफ्ते (यह समय बीत चुका है) के अंदर किए जाएंगे, लेकिन ऑपरेशन शुरू करने से पहले चीन भारत को बता देगा. ’

समझदारी और शांति की इकलौती आवाज कोलकाता में चीनी काउंसल जनरल की रही, जिन्होंने कहा, ‘हमारे साझा हित हमारे मतभेदों से कहीं ज्यादा महत्वूर्ण हैं.’

एनएसए अजीत डोवाल के ब्रिक्स की बैठक में शामिल होने के लिए चीन जाने के दौरान तब गतिरोध टूटने के आसार दिखे, जब चीनी मीडिया दो दिन के लिए खामोश रहा. बैठक से अलग डोवाल अपने चीनी समकक्ष यांग यीची से मिले, लेकिन डोकलाम पर बात नहीं हुई.

झूठ फैलाने का अभियान

डोकलाम के बाद भारतीय मीडिया डेलिगेशन की चीन की प्रस्तावित यात्रा पहले निरस्त कर देने के बाद बीजिंग की सैन्य ताकत दिखाने के लिए दोबारा आमंत्रित किया गया. चीनी मीडिया की तरफ से झूठी खबर दिखाई गई कि भारतीय फौजी जवानों की संख्या को 400 से घटाकर 40 कर दिया है और बुलडोजर की संख्या दो से घटाकर एक कर दी गई है. भारतीय टिप्पणीकारों ने गलती से इसे तनाव में कमी का संकेत समझ लिया. लेकिन कभी नरम, कभी गरम का यह खालिस चीनी स्टाइल है. एक साथ सैनिकों की वापसी के भारत के सुझाव को विदेश मंत्री द्वारा खारिज कर देने के बाद चीनी मीडिया में भड़काऊ तेवर की वापसी हो गई है.

चीनी मीडिया पूछ रहा है कि भारत सरकार क्या करती अगर PLA कालापानी (भारत, चीन और नेपाल के करीब ट्राइजंक्शन पर) या कश्मीर में घुस आती. दुष्प्रचार की एक और कड़ी में चीनी अफसरों ने बताया कि भूटान ने डोकलाम को चीनी क्षेत्र स्वीकार लिया है, जिसका भूटान सरकार ने खंडन कर दिया है.

(लेखक ने 33वीं कोर और भूटान में सेवा की है. यह एक विचारात्मक लेख है और इसमें व्यक्त किए गए विचार लेखक के अपने विचार हैं. द क्विंट ना तो इसका समर्थन करता है, ना ही इसके लिए जिम्मेदार है.)

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