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त्रिशूर में रहने वाले मेरे चाचा की 20 जुलाई 2022 को उस वक्त ऑन द स्पॉट मौत हो गई जब रेस कर रही दो लग्जरी कारों में से एक ने उनकी टैक्सी को ठोकर मार दी. जिस गाड़ी को टक्कर लगी थी उसमें मेरी चाची माया रविशंकर, चचेरी बहन विद्या मेनन, भतीजी गायत्री मेनन और उनका टैक्सी ड्राइवर राजन भी था. इन सभी को गंभीर चोटे आईं थीं. क्या उनका अपराध गुरुवायूर मंदिर के दर्शन के बाद घर लौटने के लिए कोट्टेक्कड़ रोड का इस्तेमाल करना था?
यह टक्कर तब हुई जब जब दो कारें (एक बीएमडब्ल्यू और एक महिंद्रा थार) कोट्टेक्कड़ में रेस लगा रही थीं. बीएमडब्ल्यू को ओवरटेक करने के प्रयास में थार सामने से आ रही टैक्सी से जा टकराई. जहां थार के ड्राइवर को पुलिस के हवाले कर दिया गया, वहीं कार में सवार लोग भाग खड़े हुए. जबकि बीएमडब्ल्यू वहां से तेजी से भाग निकली.
न्यूज रिपोर्ट्स के अनुसार, बीएमडब्ल्यू का ड्राइवर त्रिशूर के एक जाने-माने ज्वैलर का बेटा है जो अभी फरार है. थार ड्राइवर की पहचान अय्यनथोल निवासी शेरिन नीलांकविल के रूप में हुई है जो पुलिस हिरासत में था, मेडिकल जांच के दौरान वह भयंकर नशे में पाया गया था.
नीलंकविल पर आईपीसी की धारा 304 के तहत आरोप लगाया गया है, इस धारा के तहत गैर-इरादतन हत्या का हवाला देते हुए आजीवन कारावास या अन्य आरोपों के साथ दस साल तक की अवधि के लिए कारावास का सामना करना पड़ सकता है. लेकिन जब से ड्राइवर के खिलाफ इस धारा के तहत आरोप लगाया गया है तब से वह जमानत पर रिहा है. ऐसे में मामलों में बेल मिल जाती है और रिटेंशन एक अपवाद है.
इस घटना ने मेरे परिवार को अंदर से पूरी तरह तोड़ दिया है. मेरे चाचा एक ईमानदार और कानून का पालन करने वाले नागरिक थे जो अपने परिवार की खुशी के लिए जीते थे. परिवार के सबसे बुजुर्ग व्यक्ति होने के नाते उन्होंने हमें ईमानदारी पूर्वक जीवन जीने, दूसरों का सम्मान करने और दया की भावना के साथ जीवन जीने के लिए शुरु से आगे बढ़ाया. एक दयालु व्यक्ति जो किसी की जरूरत में मदद करने के लिए दौड़ पड़ता था, उसकी किस्मत का फैसला दो आदमियों ने हाथ में ड्रिंक और दो लग्जरी कार के साथ किया था.
एक भारतीय नागरिक के तौर पर यह घटना मुझे सचेत करती है. यह पहली बार नहीं है जब इस तरह की घटना हुई हो. 6 जून 2020 को हाई-प्रोफाइल IAS अधिकारी श्रीराम वेंकटरमन ने शराब के नशे में अपनी कार चलाई थी, जिससे पत्रकार केएम बशीर की मौत हो गई थी.
धारा 304 के तहत वेंकटरमन पर अधिकतम दस साल की सजा का आरोप लगाया गया था. बशीर की जिंदगी के लिए महज दस साल की सजा यह बहुत कम है. यह सजा बशीर ही नहीं किसी की भी जिंदगी के मूल्य के सामने काफी छोटी है. वेंकटरमन ने घटना के दो साल बाद अलाप्पुझा के जिला कलेक्टर के तौर पर कार्यभार संभाला था और हाल ही में बड़े पैमाने पर विरोध के कारण उन्हें पद से हटा दिया गया है. कुल मिलाकर बात यह है कि नशे में गाड़ी चलाने के बारे में जितना जल्दी हो सके उतनी जल्दी कुछ करने की जरूरत है, नहीं तो यह बीमारी जैसा बन जाएगा.
यहां पर मुद्दे के दो पहलू हैं. पहला, हमारे मौजूदा कानून और उनका क्रियान्वयन इस तरह के व्यवहार को रोकने में अप्रभावी रहे हैं. पूर्व में इसी तरह के मामलों से निपटने वाले पुलिस अधिकारियों ने इस बात पर नाराजगी व्यक्त की है कि शायद ही आरोपी को कभी दोषी ठहराया जाता है.
दूसरा, इस तरह के मामलों में आरोपों का दायरा अपराध की प्रकृति को बताने करने के लिए पर्याप्त नहीं है. मेरे चाचा और मिस्टर बशीर के मामले में अपराधियों पर आईपीसी की धारा 304 (गैर इरादतन हत्या के लिए सजा) के तहत आरोप लगाया गया था. जहां "अगर आरोपी, गंभीर और अचानक उकसावे से सेल्फ कंट्रोल या आत्म-नियंत्रण खो देता है तो वह उकसाने वाले व्यक्ति की मृत्यु का कारण बनता है या गलती से या दुर्घटना से किसी व्यक्ति की मौत का कारण बनता है."
जिस दिन यह घटना हुई उस दिन थार का ड्राइवर 60 किमी/घंटा की स्पीड लिमिट वाली सड़क पर नशे में 120 किमी/घंटा की स्पीड से तेजी से गाड़ी दौड़ा रहा था. तर्क करने की समझ रखने वाले वयस्क पुरुष के इस तरह के कार्याें को हम कैसे ट्रीट कर सकते हैं, जिसने एक गलती के तौर पर स्वेच्छा से शराब का सेवन किया और गाड़ी दौड़ाई?
इस तरह के अपराधों पर अब तक धारा 304 के तहत आरोप लगाए जाते रहे हैं. हालांकि, यदि हम बदलाव चाहते हैं, यदि हम निर्दोष जिंदगियों की रक्षा करना चाहते हैं, तो हमें ऐसे अपराधों को धारा 300 के तहत आरोपित करने की जरूरत है. कानून के अनुसार, हत्या को साबित करने के लिए आरोपी के व्यवहार और इरादे का आकलन करना चाहिए. भले ही इस मामले में एक्शन को आसानी से सिद्ध किया जा सकता है लेकिन कानून के लिए यह जरूरी है कि आरोपी ने इरादतन हत्या की हो.
आईपीसी के तहत एक परिभाषा है "यदि कोई व्यक्ति जानता है कि वो जो करने जा रहा है वो इतना खतरनाक है कि किसी की मौत हो सकती है, या ऐसी शारीरिक चोट लगती है जिससे मौत हो सकती है तो वो हत्या ही है, भले ही उसकी ऐसी कोई मंशा नहीं हो.'' जैसे भले ही एक व्यक्ति किसी को मारने की मंशा न रखते हुए भी भीड़ में गोली चलाता हो वो हत्या ही मानी जाएगी.
इस तरह जब तर्क करने की समझ और ज्ञान रखने वाले वयस्क पुरुष शराब के नशे में धुत्त होकर काफी तेज गति से गाड़ी दौड़ाता है तो उसका यह कृत्य एक व्यक्ति द्वारा भीड़ में गोली चलाने के बराबर है. यहां उसकी हरकतों की वजह से किसी अन्य व्यक्ति के मारे जाने की पूरी आशंका है, भले ही अपनी हरकतों के माध्यम से उसने ऐसा करने की कभी योजना नहीं बनाई हो.
हमारा देश आज जॉर्ज ऑरवेल के शब्दों को याद दिला रहा है : "सभी जानवर समान हैं लेकिन कुछ जानवर दूसरों की तुलना में अधिक समान हैं." आज मैं और मेरा परिवार जिस वास्तविकता को जी रहे हैं. केएम बशीर का परिवार शायद अभी भी उस वास्तविकता से जूझ रहा है. हमारी सिर्फ यही प्रार्थना है कि किसी और परिवार को इस वास्तविकता को न जीना पड़े.
(ऐश्वर्या, किंग्स कॉलेज लंदन से लॉ ग्रेजुएट हैं. इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट न तो इसका समर्थन करता है और न इसके लिए जिम्मेदार है.)
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