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खेलों का आयोजन तो शानदार, लेकिन महिला खिलाड़ियों की फीस नहीं

महिला क्रिकेट ग्लैमराइज हो रहा है, उसकी कमर्शियल वैल्यू बढ़ रही है

माशा
नजरिया
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महिला क्रिकेट ग्लैमराइज हो रहा है, उसकी कमर्शियल वैल्यू बढ़ रही है
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महिला क्रिकेट ग्लैमराइज हो रहा है, उसकी कमर्शियल वैल्यू बढ़ रही है
(फोटो: AP)

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क्रिकेट में फिक्सिंग कोई नई बात नहीं. नई बात यह है कि महिला क्रिकेटर टूर्नामेंट्स में भी फिक्सिंग की कोशिश की जा रही है. महिला क्रिकेटरों को मैच फिक्स कराने का लालच दिया जा रहा है. इस संबंध में एक महिला क्रिकेटर ने बीसीसीआई से शिकायत की कि उसे मैच फिक्स करने के लिए एक लाख रुपए देने की पेशकश की गई. वह ईमानदार थी इसलिए उसने इस पेशकश की शिकायत की और दोनों लोग पकड़े गए.

यहां स्त्री-पुरुष की ईमानदारी को पलड़े में तौलने से अच्छा यह है कि महिला क्रिकेट के बढ़ते महत्व को समझा जाए. पुरुष क्रिकेट टूर्नामेंट्स की तरह महिला क्रिकेट टूर्नामेंट भी भव्य आयोजन बन रहे हैं. हां, उनकी मॉनिटरिंग इतने बड़े पैमाने पर नहीं होती, इसलिए सट्टेबाजों के पास चांदी काटने का स्वर्णिम मौका मौजूद होता है.

यहां तीन साल पहले टेनिस स्टार नोवाक जोकोविच का वह बयान याद आता है जिसके लिए उन्हें बहुत लताड़ खानी पड़ी थी. जब उनसे पूछा गया था कि महिला खिलाड़ियों को इतनी कम फीस क्यों मिलती है तो उन्होंने कहा था- क्योंकि महिला टूर्नामेंट्स को कम दर्शक मिलते हैं. खेल की दुनिया में लैंगिक भेदभाव का सबसे बड़ा उदाहरण पेचैक्स का असंतुलन ही है. अब यह दावा नहीं किया जा सकता कि महिला टूर्नामेंट्स कम देखे जाते हैं और कम फीस मिलने का तर्क भी निराधार हो जाता है.

महिला टूर्नामेंट्स का भव्य आयोजन

महिला क्रिकेट अब अधिकतर टेलीविजन पर लाइव ब्रॉडकास्ट होता है. जो मैच टेलीविजन पर नहीं दिखाए जाते, वो डिजिटल प्लेटफॉर्म पर लाइव स्ट्रीम किए जा सकते हैं. सिर्फ महिला लीग ही नहीं, ऑस्ट्रेलिया की बिग बैश या इंग्लैंड की सुपर लीग में दर्शक बड़ी संख्या में जुट जाते हैं. बीसीसीआई खुद तब अचंभित हो गई थी, जब इस साल की शुरुआत में जयपुर में महिला आईपीएल को देखने लगभग 20,000 लोग पहुंच गए थे.

अब महिला और पुरुष, दोनों टूर्नामेंट्स में पुरुषों के साथ-साथ महिला कमेंटेटर या प्रेजेंटर होती हैं. अगले साल फरवरी-मार्च में आयोजित होने वाले महिला वर्ल्ड कप को मीडिया हाथों हाथ ले रहा है.

भारत में मिताली राज, हरमनप्रीत कौर, स्मृति मंधाना और झूलन गोस्वामी, सभी मेनस्ट्रीम सिलेब्रिटी बन चुकी हैं. अधिकतर पर बायोपिक बन रहे हैं. महिला क्रिकेट ग्लैमराइज हो रहा है, उसकी कमर्शियल वैल्यू बढ़ रही है. इसके बावजूद पुरुष खिलाड़ियों के मुकाबले महिला खिलाड़ियों की फीस बहुत कम है.

पुरुषों के मुकाबले फीस अब भी कम

भारतीय कप्तान विराट कोहली (फोटोः ट्विटर/@BCCI)

2018 में बीसीसीआई ने अपने सभी खिलाड़ियों की 200% वेतन वृद्धि की थी, फिर भी महिला क्रिकेटरों के हिस्से ठेंगा ही आया था. जहां विराट, रोहित शर्मा जैसे ए प्लस कैटेगरी के खिलाड़ियों को सात करोड़ रुपए सालाना मिलने लगे थे, वहीं मिताली, झूलन जैसी ए कैटगरी वाली खिलाड़ियों को 50 लाख रुपए. यूं फी स्ट्रक्चर पहले भी काफी भेदभाव भरा था, मतलब महिला क्रिकेटरों को इससे पहले भी पुरुष क्रिकेटरों से काफी कम पैसे मिलते थे. ए कैटेगरी की खिलाड़ियों की रीटेनर फी 15 लाख रुपए ही थी.

पिछले साल वीमेन्स स्पोर्ट्स वीक के लिए बीबीसी ने एक रिपोर्ट कमीशन की थी. इस रिपोर्ट में कहा गया था कि भले ही 83% खेलों में आदमियों और औरतों को बराबर प्राइज मनी मिलने लगी हो, लेकिन फुटबॉल, क्रिकेटर और गोल्फ जैसे बड़े खेल बताते हैं कि महिलाएं अभी भी कमाई में आदमियों से बहुत पीछे हैं.

2019 में दुनिया के 100 सबसे अमीर खिलाड़ियों में सिर्फ एक महिला है- सेरेना विलियम्स. लेकिन सेरेना की कमाई का एक बहुत बड़ा हिस्सा विज्ञापन, एंडोर्समेंट्स वगैरह से आता है जोकि 25 मिलियन डॉलर के बराबर है. बाकी सैलरी और जीत की रकम तो लगभग 4.2 मिलियन के करीब है.
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23वां ग्रैंडस्लैम जीतने के बाद ट्रॉफी के साथ सेरेना विलियम्स(फोटो: AP)

जो तर्क जोकोविच ने दिया था, शायद वही तर्क फीफा भी देता है. फीफा महिला वर्ल्ड कप जीतने वाली टीम को 30 मिलियन डॉलर प्राइज मनी देता है और पुरुषों की विजेता टीम को 400 मिलियन डॉलर. गोल्फ में आदमी औरतों से दुगुनी प्राइज मनी बटोर ले जाते हैं. न्यूजवीक मैगेजीन का दावा है कि न्यूजीलैंड की लाइडिया को ने जिस साल प्रोफेशनल गोल्फ में रैंक वन हासिल की, उस साल भी उन्हें 25वीं रैंक वाले पुरुष गोल्फर से कम पैसे मिले.

लाइडिया 2015 में 17 साल, 9 महीने और 9 दिन की उम्र में वर्ल्ड नंबर वन गोल्फर बनने वाली पहली खिलाड़ी है. इस पोजीशन पर इतनी कम उम्र में न आदमी पहुंचे हैं, न औरत. फिर भी उन्हें पुरुष गोल्फर से कम राशि मिली.

बराबर का मेहनताना मानवाधिकार है

वैसे महिलाएं खुद इसका विरोध कर रही हैं. नेशनल स्क्वॉश चैंपियन दीपिका पल्लिकल ने 2011 में इस पर अपना तीखा विरोध जताया था. उन्होंने मांग की थी कि उन्हें भी पुरुषों की नेशनल चैंपियनशिप की तरह 1.25 लाख की प्राइज मनी चाहिए. तब मिलते थे, सिर्फ 50 हजार. इसके बाद की चैंपियनशिप्स दीपिका ने खेली ही नहीं थी. फिर जब महिला एथलीट्स को पुरुषों के बराबर प्राइज मनी मिलने लगी तो 2016 में जोशना चिनप्पा को हराकर दीपिका ने फिर चैंपियनशिप की ट्रॉफी अपने नाम कर ली.

बराबर का मेहनताना महिला अधिकार नहीं, मानवाधिकार है. यूं हर क्षेत्र में महिलाएं वेतन के मामले में पुरुषों से कम हैं. समान प्रकृति के कार्य के लिए भी उन्हें पुरुषों से कम वेतन मिलता है. महिलाएं इसके लिए संघर्ष कर रही हैं.

मिताली राज ने एक इंटरव्यू में लैंगिक भेदभाव पर एक मुंह तोड़ जवाब दिया था. उनसे पूछा गया था कि उनका फेवरेट मेल क्रिकेटर कौन है तो उन्होंने जवाब दिया था, क्या आपने किसी मेल क्रिकेटर से पूछा है कि उसकी फेवरेट फीमेल क्रिकेटर कौन है? बेशक, महिलाएं खुद इस भेदभाव के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद करके बराबरी हासिल करेंगी.

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