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गुजरात में दूसरे फेज का चुनाव खत्म होने के बाद आए एग्जिट पोल के नतीजों पर यकीन करें तो सारी चुनावी गहमागहमी फिजूल लगेगी. बड़े न्यूज चैनलों या अखबारों की तरफ से किए गए सर्वे में सत्ताधारी बीजेपी को न सिर्फ बहुमत मिलने का दावा किया गया है, बल्कि उसकी आसान जीत की भविष्यवाणी भी की गई है.
इसमें बीजेपी और कांग्रेस को कमोबेश उतनी ही या कुछ अधिक सीटें मिलने का दावा किया गया है, जितनी दोनों पार्टियों के पास अभी हैं. 182 सीटों वाली विधानसभा में कांग्रेस को अधिकतम 65 सीटें मिलने की भविष्यवाणी की गई है.
एग्जिट पोल करने वाली एजेंसियां ‘कुछ पर्सेंटेज गलती’ की बात से इनकार नहीं करतीं. सैंपलिंग में भी गड़बड़ी हो सकती है, जबकि इसी आधार पर पार्टियों के वोट शेयर का अनुमान लगाया जाता है और उन्हें मिलने वाली सीटों की भविष्यवाणी की जाती है. हमारे यहां तो एग्जिट पोल करने वाली एजेंसी की विश्वसनीयता भी बड़ा फैक्टर है. पोल के नतीजों पर राजनीतिक दलों के सीधे या परदे के पीछे प्रभाव डालने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता.
बिहार, दिल्ली या तमिलनाडु विधानसभा चुनाव के एग्जिट पोल को ले लीजिए, जो बिल्कुल गलत साबित हुए थे. जिस मेथड का इस्तेमाल एग्जिट पोल में किया जाता है, उसमें सैंपल साइज में अंतर, टाइमिंग और सैंपल के चुनाव और उनकी प्रोसेसिंग के लिए चुने गए सॉफ्टवेयर का असर पड़ता है और नतीजों की भविष्यवाणी करने में इनकी अपनी सीमाएं हैं.
चुनाव प्रचार के दौरान जो माहौल दिखा, उसका लोगों के वोट डालने पर कोई असर नहीं पड़ा. इसके मायने यह भी होंगे कि बीजेपी और कांग्रेस के बीच 10 पर्सेंट वोटों का अंतर बना हुआ है और पहले उन्हें जिन समुदायों का समर्थन मिल रहा था, वैसा ही इस बार भी हुआ है यानी नरेंद्र मोदी के गुजरात में दो दशक से भी अधिक समय में कुछ नहीं बदला है.
इसका अर्थ यह भी होगा कि हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकोर और जिग्नेश मेवानी को लेकर जो जोश दिख रहा था, वह हवा-हवाई था. गुजरात में कांग्रेस के उभार की जो खबरें आ रही थीं, वह ‘मोदी-विरोधी’ अंग्रेजी मीडिया की खामख्याली थी. इसका मतलब यह भी होगा कि हजारों की संख्या में जो लोग हार्दिक पटेल की रैलियों में जुट रहे थे और जो पिछले दो साल से बीजेपी को हराने का वादा कर रहे थे, वे सिर्फ तमाशबीन थे.
ये लोग हार्दिक की रैलियों में शाम की बोरियत मिटाने और ‘मनोरंजन’ के लिए जा रहे थे और पाटीदारों ने हार्दिक की पोल खोल दी है. साथ ही, अल्पेश ठाकोर और जिग्नेश मेवानी की हार पक्की है.
एग्जिट पोल के नतीजों का मतलब यह भी है कि वोटरों ने विकास के कथित गुजरात मॉडल पर मुहर लगा दी है. साथ ही, जीएसटी से लॉस के चलते छोटे और मझोले कारोबारियों की नाराजगी अस्थायी थी. लोग राज्य की बीजेपी सरकार से खुश थे और अगर नहीं थे तो भी उन्हें कांग्रेस की नीतियों पर भरोसा नहीं था.
एग्जिट पोल करने वाले पंडितों ने यह भी कहा है कि मोदी जादूगर हैं, जो कभी गुजरात में हार नहीं सकते. उनके मुताबिक, पिछले 15 दिनों में मोदी ने पूरे राज्य का दौरा किया और 50 से अधिक रैलियों को संबोधित किया. इससे बीजेपी के पक्ष में जबरदस्त हवा बनी. उनका कहना है कि देश में मोदी का कोई विकल्प नहीं है. इन पंडितों का कहना है कि कांग्रेस की मोदी की लगातार आलोचना को स्वाभिमानी गुजराती पूरे समाज का अपमान मानते हैं और अब उन्होंने कांग्रेस को सबक सिखा दिया है.
उनके मुताबिक, मणिशंकर अय्यर के ‘मोदी नीच हैं’ वाले बयान के बाद तो कांग्रेस ने जीत थाली में रखकर बीजेपी को भेंट कर दी. एग्जिट पोल के नतीजों का यह भी मतलब है कि गुजरातियों ने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को सबक सिखा दिया है, जो कथित तौर पर पाकिस्तान के दखल से मोदी को हराने की कोशिश कर रहे थे और देश कांग्रेस-मुक्त होने की तरफ बढ़ रहा है.
लेकिन रुकिए. एग्जिट पोल या ओपिनियन पोल का मेथड फुलप्रूफ नहीं है. इसलिए एग्जिट पोल को लेकर बीजेपी को ना ही अभी जश्न मनाना चाहिए और ना ही कांग्रेस को मातम करने की जरूरत है. उन्हें इसके लिए 18 दिसंबर का इंतजार करना चाहिए, जिस दिन वोटों की गिनती होगी. उसी दिन यह भी पता चलेगा कि गुजरात के लोग क्या सोचते और महसूस करते हैं.
(लेखक वडोदरा की महाराजा सयाजीराव यूनिवर्सिटी में पॉलिटिकल साइंस के प्रोफेसर हैं. उनका ट्विटर हैंडल@Amit_Dholakia है. इस आर्टिकल में छपे विचार उनके अपने हैं. इसमें क्विंट की सहमति होना जरूरी नहीं है)
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