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ऐसा लगता है कि देश में पिछले कुछ वक्त से कई चीजें ट्रैक पर नहीं हैं. युवा वर्ग को रोजगार का सपना और किसानों को तरह-तरह के सब्जबाग दिखाकर सत्ता पाने वाली पार्टी अचानक यू-टर्न लेती दिख रही है. किसानों की बदहाली का सबसे ताजा उदाहरण मध्य प्रदेश का है, जहां टमाटर और लहसुन उपजाकर वे पछता रहे हैं. ताज्जुब की बात ये कि सरकार के पास कोई ठोस प्लान नहीं. कुछ आधा-अधूरा प्लान है भी, तो उस पर अमल नहीं है.
अब तक जो रिपोर्ट सामने आई है, उसके मुताबिक प्रदेश के ज्यादातर किसानों ने ऊंचे दाम मिलने की उम्मीद में खेतों में टमाटर और लहसुन ज्यादा लगा दिए. यही बात उनके खिलाफ गई. किसानों से टमाटर 1 रुपये में 4 किलो और लहसुन 1 रुपये किलो के भाव से खरीदे जा रहे हैं. मतलब टमाटर-लहसुन सिरदर्द है, जिसे कोई मुफ्त में भी लेने को तैयार नहीं.
ऐसे किसान अब खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं. इनकी दशा रोजगार की उम्मीद लगाए युवा वर्ग जैसी ही है. जरा गौर कीजिए, देश के राजनेताओं के पास युवा वर्ग के लिए कैसे-कैसे प्लान हैं.
सत्ता में आने से पहले केंद्र की बीजेपी सरकार ने हर साल 2 करोड़ रोजगार देने का वादा किया था. लेकिन सत्ता में आने के बाद अचानक सुर बदल गए. अब हाल ये है कि पकौड़ा बेचने को भी बिजनेस और बढ़िया स्वरोजगार बताया जाने लगा.
हाल में रोजगार को लेकर त्रिपुरा के सीएम बिप्लब देब का बयान भी सुर्खियों में रहा. जरा उनके सुझावों पर एक बार फिर नजर डालिए:
गनीमत है कि पीएम और सीएम के बयान को युवा वर्ग ने सीरियसली नहीं लिया. अगर लिया होता, तो उनका हाल भी बदहाल किसानों से अलग नहीं होता.
अगर लोगों ने इनके ज्ञान के आधार पर अपना पेशा अपनाया होता, तो:
रोड साइड लगने वाली हर दूसरी या तीसरी दुकान पकौड़े या पान की होती, तो फिर इन्हें खरीदता कौन?
हर दूसरे-तीसरे घर में दूध बेचा जाता, तो दूध खरीदता कौन?
ठीक वैसे ही, जैसे हर खेत में टमाटर और लहसुन ही लगे हैं, तो खरीदार नहीं मिल रहे हैं.
अब बस कोई ये सफाई न दे बैठे कि सरकार किसानों के जरिए बेरोजगारों का हित साधने की कोशिश कर रही है. टमाटर 25 पैसे किलो, लहसुन 1 रुपये किलो, मतलब पकौड़े बेचने के इच्छुक लोगों के लिए चटनी का मुकम्मल इंतजाम!
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