मेंबर्स के लिए
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Voices Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Opinion Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019शाकाहार या मीट खाना निजी चुनाव का मसला है, धर्म का नहीं: आशुतोष

शाकाहार या मीट खाना निजी चुनाव का मसला है, धर्म का नहीं: आशुतोष

क्या आज मांस की आड़ में राजनीति करने वाले राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के मूल तत्व को समझ पाये?

आशुतोष
नजरिया
Updated:
देश में कई जगह गाय को लेकर हिंसा का माहौल  है (फोटो: द क्विंट)
i
देश में कई जगह गाय को लेकर हिंसा का माहौल है (फोटो: द क्विंट)
null

advertisement

आजकल मैं एक नैतिक दुविधा से जूझ रहा हूं? मांस खाऊं या नहीं खाऊं? क्या किसी जीव को खाना सही है? क्या खाने वाले जीव को जीने का अधिकार है या नहीं, जैसे किसी इंसान को है? हिंदू धर्म में कहा गया है कि जीव हत्या पाप है.

जब मैं किसी बकरे या मुर्गे को देखता हूं, तो मन कहता है कितना प्यारा है, कोई इसे कैसे खा सकता है? मैं बता दूं कि बचपन से ही मैं मांसाहारी था. कई बार छोड़ने की कोशिश की, छोड़ा भी, फिर शुरू कर दिया. पिछले पांच साल से मैं मांस नहीं खाता हूं, मछली अभी भी प्रिय है. हर बार खाने पर वही सवाल उठता है क्या किसी जीव को खाना उचित है? मन भटक जाता है.

ऐसे में जब यूपी में योगी आदित्यनाथ की सरकार आने के बाद मांस की दुकानों पर कहर बरपा, उनके बंद होने का चलन चला, तो मन में कई सवाल उठे. इसी बीच मध्य प्रदेश से आवाज आई कि पूरे राज्य में मास भक्षण पर रोक लगनी चाहिये! शाकाहार ही होना चाहिये. मौजूदा माहौल में जबकि गोहत्या और गोमांस को लेकर हत्या हो रही है, तब मांसाहार पर बहस राजनीतिक हो जाती है.

दो साल पहले दादरी में अखलाक को भीड़ पीट-पीट कर मार देती है, क्योंकि उसके घर में गोमांस पकने की आशंका थी. अलवर में पहलू खान को मार दिया जाता है, क्योंकि उस पर गायों की तस्करी का शक था. यानी गाय को लेकर माहौल में हिंसा है.

गाय तो निरीह है, अहिंसक है. धर्म-जाति के संस्कारों से ऊपर है. भारत में एक परंपरा में उसे पवित्र माना गया है. हालांकि ऐसे भी उदाहरण है कि पुराने जमाने में कुछ लोग गोहत्‍या करते भी थे और गोमांस खाते भी थे. आज भी मेरे कई जानने वाले हिंदू मित्र बीफ खाते हैं. मांसाहार हिंदुओं में खूब बढ़ा है. संघवादी हिन्दुत्ववादी कभी ऐसे हिंदुओं पर निशाना नहीं साधते. उन पर हमले नहीं होते.

हमले होते हैं राजनीतिक कारणों से. गाय और मांसाहार राजनीतिक दुराग्रह का कारण बन गए हैं. इस मसले को उठाने का एकमात्र मकसद मुस्लिम समाज को टारगेट करना. धर्म विशेष के लोगों के खिलाफ जहर फैलाना. ये सबक सिखाने का हथियार बन गया है. ये खांटी राजनीति है. मांसाहार और बीफ को मुस्लिम तबके से जोड़ दिया गया है. इसकी आड़ में इतिहास से बदला लेने की कोशिश की जा रही है.

देश तरक्‍की करता गया, मांस का सेवन बढ़ता गया

इस देश में शाकाहार की लंबी परंपरा है. मेरे बचपन में मांसाहार को अच्छा नहीं माना जाता था. मेरे घर मे मांस बनता जरूर था, पर आस पड़ोस को यही बताया जाता था कि हम लोग शाकाहारी है. जैसे-जैसे बड़े होते गये, देश प्रगति करता गया मांस का सेवन बढ़ता गया. मांसाहार से जुड़ा दुराग्रह भी खत्म होता गया. आज मुझे और मेरे घरवालों को झूठ बोलने की जरूरत नहीं है. ये मेरे लिये 'चुनाव' का प्रश्न है. क्या खाऊं या न खाऊं ये मेरा निजी फैसला है. इसका धर्म से कोई लेना-देना नहीं जैसा कि 'हिन्दुत्ववादी ताकतें' कर रही हैं. खुद गांधी जी 'मांसाहार त्याग' और 'शाकाहार सेवन' के सबसे बड़े पैरोकार थे. वो भी इसको धर्म की नजर से नहीं देखते थे.

1947 में गांधीजी ने तो गोहत्या तक के संदर्भ में कहा था, “मैं किसी को गोहत्या करने से कैसे रोक सकता हूं, जब तक वो खुद ऐसा न करने के लिये सोचे!” मांसाहार को भी उन्‍होंने व्यक्ति विशेष की इच्छा पर छोड़ दिया था.
(ग्राफिक: द क्विंट)

बचपन में गांधी जी ने तकरीबन एक साल तक मांसाहार छिप कर किया था. उनके एक मित्र थे महताब, जिसने उन्हें बताया था कि बिना मांस खाये अंग्रेजों को देश से बाहर नहीं निकाला जा सकता है. मांस इंसान को मजबूत बनाता है. फिर उन्हें शर्म आयी क्योंकि हर बार मांस खाने के बाद उन्हें घर में झूठ बोलना पड़ता था और खाना नहीं खाते थे. लिहाजा शर्म की वजह से उन्होने मांस खाना छोड़ दिया. जब वो पढ़ने के लिये विदेश जा रहे थे, तो उनकी मां पुतली बाई ने उन्हें एक शर्त पर ही जाने की इजाजत दी कि वो ये वादा करे कि इंग्लैंड में मांस, शराब और औरत से दूर रहेंगे. गांधी जी ने मां को वचन दिया और आजीवन पालन किया.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

लंदन में जब उनके मित्र दलपत राम शुक्ला ने मांस खाने के लिये काफी दबाव बनाया तो गांधी जी ने कहा, "मैं मानता हूं कि मांस खाना जरूरी है. पर मैं अपनी प्रतिज्ञा नहीं तोड़ सकता. तुम चाहे मुझे मूर्ख समझो या जिद्दी. प्रतिज्ञा प्रतिज्ञा है." बाद में लंदन में वो शाकाहार आंदोलन के सक्रिय सदस्य बने. "वेजीटेरियन" नामक पत्रिका में लिखते भी थे. शाकाहार आंदोलन से जुड़ने के बाद गांधी जी ने अंडा भी खाना बंद कर दिया.

गांधी जी ने अपनी जीवनी में लिखा, “स्वाद का सच्चा स्थान जीभ नहीं, मन है.” गांधी जी के मांसाहार त्याग और शाकाहार अभियान के केंद्र में धर्म नहीं था. न ही वो मांसाहार को बुरा समझते थे. बस वो भोजन के लिये जीवहत्या को उचित नहीं मानते थे.

उनकी जीवनी और और उनके प्रपौत्र राजमोहन गांधी की गांधी पर किताब 'मोहन दास' पढ़ने से साफ है कि उन्होने मांसाहार त्याग को अपने आत्मबल का प्रतीक बना लिया था. मां को दिया वचन हर हाल में निभाना उनके लिये सत्य के राह पर चलना था. अन्यथा लंदन में वो मांस भक्षण करते और मां को कभी पता भी नहीं चलता. पर जैसे शुरुआत में मांस खाने और उस कारण झूठ बोलने को उन्होंने गलत माना और उनकी अंतरात्मा ने उसे स्वीकार नहीं किया, वैसे ही मां से किया करार छोड़ना उन्हें सत्य के मार्ग से भटकना लगा.

मांसाहारियों से नफरत गांधीजी का दर्शन नहीं

और यही प्रेरणा आगे चलकर अहिंसा के उनके प्रयोग से भी जुड़ गयी. मांसाहार या मांसाहारियों से नफरत, उनके जीवन दर्शन से कोसों दूर थी. वैसे ही जैसे अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन छेड़ने के बाद भी उनके मन में अंग्रेजों के लिये नफरत नहीं थी. शाकाहार के उनके आंदोलन में उनके प्रेरणा के स्रोत लंदन के शुरुआती प्रवास के दौरान मिले कई अंग्रेज ही थे.

(फोटो इलस्ट्रेशन: द क्विंट)

दिलचस्प ये है कि शाकाहार की इस मुहिम ने गांधी जी को राजनीतिक रूप से ट्रेन करने में भी काफी मदद की. इस आंदोलन से जुड़ने के लिये उन्हें भाषण भी देना होता था और लोगों को जोड़ना भी होता था. शुरुआत में तो सार्वजनिक मंच से बोलने के नाम पर गांधी जी की घिग्घी बंध जाती थी. एक बार वो इतना नर्वस हो गये कि उनका भाषण किसी और को पढ़ना पड़ा. बाद में गांधी जी ने शाकाहार आंदोलन को राजनीति से भी जोड़ने की कोशिश की.

1894 में उन्‍होंने लिखा कि इंग्लैंड के ढेरों शाकाहार अंग्रेज भारत की पीड़ा मांसाहारी अंग्रेजों की तुलना में अधिक समझेंगे. वो कहते थे कि अंग्रेजों के लिये शाकाहार भोजन प्राप्ति की दिशा में एक चुनाव है, लेकिन भारत में शाकाहार एक तबके के लिये जरूरत है, क्योंकि मांस महंगा होता है, भारत के गरीब खरीद नहीं सकते. ऐसे में शाकाहार अंग्रेज, शाकाहार भारतीयों को ज्यादा बेहतर तरीके से समझ सकेंगे.

पर क्या आज मांस की आड़ में राजनीति करने वाले राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के मूल तत्व को समझ पाये? सत्य और अहिंसा के रास्ते पर चलते हुये वो इस बात के कायल थे कि एक धर्म दूसरे धर्म के प्रति भेद करने का अधिकार नहीं देता और न ही दूसरे के लिये त्रास का कारण बनता है. अपनी बात को दूसरे पर थोपने को वो उचित नहीं मानते थे.

1894 से 1947 के बीच गांधीजी में बहुत बदलाव आये, पर 1947 में भी गोहत्‍या के मसले पर वो ये कह गये, “भारत में सिर्फ हिंदू ही नहीं रहते, यहां मुसलमान, पारसी, ईसाई और दूसरे धर्मों के लोग भी रहते हैं.” उनके कहने का अर्थ था कि कोई भी नियम बनाने के पहले सबकी इच्छाओं का सम्मान करना ही होगा. मुस्लिम और ईसाई समुदाय मांस खाता है. उनकी इच्छा के विरुद्ध मांसाहार पर प्रतिबंध कैसे लग सकता है? शाकाहार का एक समान नियम कैसे बन सकता है?

गांधीजी आजीवन शाकाहारी रहे, पर उन्‍होंने कभी भी मांसाहार पर बैन लगाने की वकालत नहीं की. एक नागरिक के नाते भारत का संविधान हम सबको अपने हिसाब से खाने, पहनने और रहने की इजाजत देता है. ऐसे में "राजनीतिक दुराग्रह और वैचारिक अंधेपन" में मांसाहार बैन की वकालत करना संविधान विरुद्ध है और गांधीवादी परंपरा के खिंलाफ भी.

मैंने मांसाहार त्याग दिया है. पर घरवालों की मांग पर घर में मांस पकाता हूं. मैं खुद नहीं खाता, पर सबके साथ बैठ कर शाकाहारी भोजन लेता हूं. शायद यही गांधी दर्शन है. सर्वधर्म समभाव शायद इसे ही कहते हैं. नफरत नहीं, प्रेम ही भारत का मूल है. ऐसे में मांस की आड़ में धर्म विशेष को निशाना बनाना भारतीयता के खिलाफ है.

(लेखक आम आदमी पार्टी के प्रवक्‍ता हैं. इस आलेख में प्रकाशित विचार उनके अपने हैं. आलेख के विचारों में क्‍व‍िंट की सहमति होना जरूरी नहीं है.)

WhatsApp के जरिये द क्‍व‍िंट से जुड़ि‍ए. टाइप करें “JOIN” और 9910181818 पर भेजें

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: 12 Apr 2017,07:40 PM IST

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT