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संभल जाइए और अपने ‘प्यारे’ बच्चों को बेरहम अपराधी होने से बचाइए

बच्चों आखिर क्यों मुड़ रहे हैं अपराध की तरफ?

आलोक वर्मा
नजरिया
Published:
बच्चों का मन अपराध की तरफ क्यों और किन हालात में भाग रहा है?
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बच्चों का मन अपराध की तरफ क्यों और किन हालात में भाग रहा है?
(फोटो:istock)

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ग्रेटर नोएडा वेस्ट. हाई-राइज बिल्डिंग और सिर्फ 4 लोगों का परिवार. परिवार के 16 साल के बेटे ने जिस बेरहमी से अपनी मां और बहन की हत्या की, अब उसकी हर कड़ी खुल चुकी है. कड़ी दर कड़ी कुछ यूं है कि सुबह सोफे पर बैठे बेटे को मां ने डायनिंग टेबल पर बैठ कर पढ़ने को कहा, बेटा नहीं माना तो मां ने पिटाई कर दी और बहन ने चिढ़ा दिया. बेटे ने हत्या की ठानी और जैसे ही रात हुई उसने उसी बैट से हमला किया जिसे उसकी मां ने उसे तोहफे में दिया था.

अकेलापन, डिप्रेशन, फ्रस्ट्रेशन और मर्डर!

पहले बैट फिर कैंची और पिज्जा कटर से बुरी तरह मां और उस दौरान जाग गई बहन को जान से मारने के बाद किशोर वहां से निकल गया. शहर दर शहर घूमते हुए वाराणसी पहुंचे किशोर ने राहगीर की मदद से पिता को फोन किया. उसी पिता को जिसका सब कुछ, उसने अपने हाथों खत्म किया था.

पिता को समझ नहीं आ रहा कि बेटे के मामले में कौन सा रुख अपनाएं. हत्याकांड की जो वजह अब तक सामने आई है उसके मुताबिक ‘हाईस्कूल गैंगस्टर’ गेम की लत रखने वाले किशोर का मन पढ़ने में कम लगता था. काफी संघर्ष के बाद आर्थिक परेशानी से उबरे पिता अपने बेटा-बेटी को अफसर बनाना चाहते थे. इसीलिए दो महीने पहले उन्होंने बेटे का मोबाइल छीन लिया. बेटे को लगने लगा कि माता पिता उससे ज्यादा उसकी बहन से प्यार करते हैं. अकेलापन, डिप्रेशन में बदला और फिर फ्रस्टेशन में जिसका नतीजा मां-बहन की बेरहमी से हत्या में बदल गया.

‘हाईस्कूल गैंगस्टर’ गेम की लत में पड़े किशोर का मन पढ़ने में कम लगता थाप्रतीकात्मक तस्वीर

इससे पहले हमने रेयान इंटरनेशनल स्कूल में सहपाठी की गला रेत कर हत्या के आरोप वाले किशोर की खबर भी पढ़ी,देखी, सुनी. वजह उसमें भी छोटी सी थी. आरोपी किशोर परीक्षा रद्द करवाना चाहता था. ये दोनों उदाहरण हाई-सोसायटी के हैं. जहां सुख-सुविधा की हर वो चीज मौजूद थी जिसकी तमन्ना युवाओं में की जाती है.

इसीलिए ये दोनों मामले चौंकाने के लिए काफी हैं मगर समाज में रह रहे हम लोगों के कानों पर शायद ही जूं रेंगे. वैसे इस बात को जानकर भी शायद हम आप नहीं चौंकेंगे कि कि नाबालिगों के हाथों किए जाने वाले अपराध हर साल 16 फीसदी की दर से बढ़ रहे हैं.

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जी जनाब. आपको इन खबरों ने चौंकाया हो या नहीं मगर मेरा मन जरूर व्याकुल है जबकि सालों से क्राइम कवर करने और पुलिसवालों के साथ रहने की वजह से मैं जानता हूं कि क्राइम में कभी भी, कहीं भी, कुछ भी हो सकता है मगर इसी नाते मैं ये भी जानता हूं कि कुछ भी बेवजह नहीं होता और क्राइम की वजह पर गौर किया जाए तो काफी कुछ कंट्रोल हो सकता है.

ये तीखे सवाल समाज से हैं

गौड़ सिटी हत्याकांड में आरोपी किशोर की जो बातें सामने आ रही हैं उसे एक बार फिर सुन लीजिए. वह किशोर एक, दो नहीं घंटो मोबाइल पर दोस्तों के साथ ‘हाईस्कूल गैंगस्टर’ गेम खेलता था. मां-बाप का ख्वाब था कि बेटा खूब पढ़े. मगर बेटे का मन पढ़ने लिखने में कम लगता था. पिता कारोबारी संघर्ष से उबरे थे इसीलिए शायद उनके पास इस बात को जानने के लिए समय कम था कि बेटे का मन कहां लग रहा है. पढ़ाई में रुकावट की सीधी वजह नजर आ रहे मोबाइल को छीन लिया गया. बात-बात पर पढ़ाई के लिए जोर दिया जाने लगा. मां बाप के इस गैरजरूरी दखल और इच्छा के उलट काम कराने की जबरदस्ती ने किशोर के कच्चे मन पर कुंठा की ऐसी परत जमा दी जिसने परिवार पर कहर और समाज पर सवालों की झड़ी बरपा दी है.

मां-बाप के गैरजरूरी दखल और इच्छा केउलट काम कराने की जबरदस्ती से किशोरों में डिप्रेशन का खतरा(फोटो:istock)

हम बच्चों को अच्छी शिक्षा और संस्कार देने के लिए बढ़िया पब्लिक स्कूलों में लाखों रुपये खर्च कर इसलिए भेजते हैं कि उनका भविष्य सुनहरा हो मगर बाल मन में बढ़ रही आपराधिक प्रवृति अपराधियों की एक ऐसी दुनिया तैयार कर रही है जिसकी जानकारी पुलिस और सामाजिक सिस्टम को भी है मगर इस नई खतरनाक दुनिया को बसने से पहले रोकने की जहमत कोई नहीं उठा रहा.

NCRB के आंकड़ों में छिपी स्याह तस्वीर

2015 में 3,570 और 2014 में 2,876 नाबालिग अलग-अलग अपराधों में पकड़े गए थे. इनमें से 80 फीसदी के उम्र 16-18 साल के बीच थे.
तो छोटी-छोटी बात पर हत्या, छीनाझपटी करने वाले ये बच्चे कल किस तरह का भविष्य निर्माण करने वाले हैं इस बारे में सोचिए जनाब.

पुलिस और मनोवैज्ञानिक दोनों इन हालात को खतरनाक तो मानते हैं मगर इस प्रवृति पर काबू पाने का फिलहाल किसी के पास कोई उपाय नहीं है. जानते हैं क्यों? क्योंकि इसका उपाय सिर्फ आपके या मेरे पास है. संचार और अत्याधुनिक सुख सुविधा के इस युग में कम उम्र में ज्यादा जानकारी तो आ जा रही है मगर उस जानकारी का इस्तेमाल कैसे करना है इसकी परिपक्वता नहीं आ रही. अपरिपक्व दिमाग निगेटिविटी की ओर जल्दी खींचता है. वोट का अधिकार 18 साल की उम्र में दे तो दिया गया है मगर अपराध करने वाले नाबालिगों की उम्र सीमा पर बहस जारी है. ब्रिटेन में नाबालिग अपराधियों का रिकॉर्ड सार्वजनिक किया जाता है ऐसा कुछ अमेरिकी राज्यों में भी है लेकिन हमारे यहां ऐसे अपराधियों को सार्वजनिक किया जाना गैरकानूनी है.

बच्चों का हाथ थामना जरूरी(फोटोः Pixabay)

इस चमक-दमक के बीच होश बनाए रखना है जरूरी

समाजशास्त्री कहते हैं कि सही समय पर सही मार्गदर्शन का अभाव नाबालिग अपराधियों की फौज तैयार कर रहा है तो पुलिस के सख्त सिस्टम से डरे बदमाश भी इनका फायदा उठा रहे हैं. शायद आपको पता ना हो मगर देश की राजधानी में ही ऐसे कई गिरोह हैं जो बच्चों को अपराधी बनाने के लिए बाकायदा स्कूल चलाते हैं.

पकड़े गए नाबालिग बच्चों से पूछताछ में ये बात सामने आ चुकी है कि घर में बच्चों के प्रति लापरवाही और उन्हें परिवारिक स्नेह की जगह आधुनिक सुख-सुविधाओं के बीच रखने की आदत उनके सब्र के बांध पर हल्की पड़ रही है. हम उम्र बच्चों की चमचमाती सुविधाओं की नकल कराने की बजाय सामाजिक मूल्यों की परवरिश तो हम आप ही कर सकते हैं. सिस्टम ब्लू व्हेल और हाईस्कूल गैंगस्टर जैसे खतरनाक गेम तो रोक ही सकता है.

बच्चों को स्कूल भेजते समय पड़ोस की तुलना उन्हें एक ऐसे जीवन की ओर धकेल देती है, जहां दूर से रोशनी और नजदीक जाने पर केवल अंधेरा है. कानून की रियायतें इन्हें ऐसी संगत भी दे देती हैं, जिसकी वजह से इनके सब्र पर हर समय हर बात में उतावलापन रहता है.

गौड़ सिटी हत्याकांड में आरोपी किशोर से पूछताछ में जो बातें सामने आएंगी उसे सार्वजनिक किया जाना चाहिए. यही बात रेयान इंटरनेशनल के मामले में पकड़े गए नाबालिग के मामले में भी है. इनसे पूछताछ की बात सामने आने पर उम्र से पहले ही बड़े और हिंसा की सारी सीमाएं तोड़ रहे बच्चों के मार्गदर्शन की रूप रेखा तैयार हो सकती है. तो साहब संभल जाइए, क्योंकि बच्चे अब मन के कच्चे नहीं रहे बल्कि वक्त से पहले जिद के पक्के होने लगे हैं. उनकी जिद अगर सही दिशा में नहीं है तो नोएडा के गौड़ सिटी और रेयान इंटरनेशनल की तरह घटनाएं होती रहेंगी.

(आलोक वर्मा सीनियर जर्नलिस्‍ट हैं. इस आर्टिकल में छपे विचार उनके अपने हैं. इसमें क्‍व‍िंट की सहमति होना जरूरी नहीं है )

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