advertisement
क्या आप बता सकते हैं कि 2019 में प्रधानमंत्री मोदी की सत्ता में वापसी कौन पक्की कर सकता है? क्या कहा...अमित शाह? जी नहीं, जवाब इतना भी सीधा और आसान नहीं है. आरएसएस? अरे नहीं! अरुण जेटली? आप तो मजाक करने लगे. राजनाथ सिंह? अब तो आप बिलकुल ही भटकने लगे हैं, इसलिए ये क्विज यहीं खत्म. पूरा किस्सा अब मैं ही सुनाता हूं.
वो नोएडा अथॉरिटी में क्लर्क हुआ करते थे. लेकिन 2008 में जब सारी दुनिया पर आर्थिक प्रलय का संकट मंडरा रहा था, इन जनाब के भीतर उद्योगपति बनने का कीड़ा कुलबुलाने लगा. वो एमेजॉन के मुखिया जेफ बेजॉस से भी ज्यादा तेजी से रईस बनना चाहते थे, और भगवान की दया से उन्होंने ऐसा कर भी दिखाया ! इन जनाब ने यूपी के नोएडा, ग्रेटर नोएडा और दूसरे 'कुख्यात' इलाकों में 50 से ज्यादा रियल एस्टेट कंपनियां शुरू कर दीं.
नवंबर 2016 में नोटबंदी होने पर उनके करोल बाग के बैंक खाते में 1.50 करोड़ से ज्यादा कैश जमा हुआ. उन्हें देश के टॉप 5 राजनीतिक दलों में शामिल एक दल का सेकंड-इन-कमांड और सर्वोच्च पद का अगला वारिस घोषित किया गया, लेकिन उन्होंने कसम खाई कि वो कभी सांसद, विधायक या मुख्यमंत्री नहीं बनेंगे.
आपने हार मान ली? अंदाज़ा नहीं लगा पा रहे? ये रहा एक क्लू. उनकी बहन हैं (सर्व)शक्तिमान मायावती ...
ओह...अब समझ आया, इस बंदे का नाम है आनंद कुमार, यही हैं वो शख्स जो अकेले दम पर 2019 में प्रधानमंत्री मोदी को फिर से सत्ता के शिखर तक पहुंचा सकते हैं.
ऐसा इसलिए क्योंकि आनंद कुमार और उनकी बहनजी आय से ज्यादा संपत्ति और भ्रष्टाचार के मामलों की वजह से देश के प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और सीबीआई की गिरफ्त में बुरी तरह फंसे हुए हैं. उनकी हालत कुछ ऐसी है कि वो बड़ी आसानी से ब्लैकमेलिंग या/और धमकी या/और लालच के शिकार हो सकते हैं या इनके आगे झुकने से इनकार करके अवज्ञा या/और बगावत जैसे विकल्प भी चुन सकते हैं. इस बारे में उनका कोई भी फैसला 2019 के चुनावी नतीजे तय कर सकता है.
इन अजीब राजनीतिक हालात को समझने के लिए आइए कुछ पीछे की ओर चलें. एक नजर डालें 2014 में मोदी को मिली बेमिसाल जीत पर. उस चुनाव में मोदी को सबसे ज्यादा सीटें देश के 12 बड़े राज्यों में मिली थीं (शिवसेना और टीडीपी जैसे कुछ भरोसेमंद सहयोगियों को मिलाकर).
लेकिन 2014 का वो राजनीतिक तूफान अब न सिर्फ उतार पर है, बल्कि उसका रुख भी बदलता नजर आ है. '12 मोदीमय राज्यों' में ये बदलाव बेहद साफ दिख रहे हैं.
दिसंबर 2017 में गुजरात के हलचल मचाने वाले नतीजे हों या चित्रकूट और मध्य प्रदेश के स्थानीय चुनावों में मिली हार, दिल्ली, वाराणसी, गुवाहाटी और जयपुर के यूनिवर्सिटी चुनावों में बही उल्टी बयार हो या राजस्थान के अजमेर और अलवर उपचुनावों में हुआ जबरदस्त सफाया.
वोटर का मूड अब 'हर-हर मोदी' वाला नहीं रह गया है. इसे आप ज्यादा से ज्यादा 'बराबरी की टक्कर' कह सकते हैं. इसलिए अगर '12 मोदीमय राज्यों' की 283 सीटों में बीजेपी/एनडीए की सीटें घटकर तकरीबन आधी यानी 140-150 रह जाएं (2014 से करीब 80 कम) तो हैरानी की बात नहीं होगी. वहीं, कांग्रेस/यूपीए की सीटें इन राज्यों में बढ़कर 120-130 तक पहुंच सकती हैं, जिसका मतलब है करीब 70 सीटों का फायदा.
अगर 2019 के लोकसभा के नतीजे वाकई हमारे अनुमानों जैसे निकले, तो इन '12 मोदीमय राज्यों' के साथ एनडीए की सीटें घटकर करीब 260 और यूपीए की बढ़कर 150 के आसपास हो जाएंगी.
इन सबको मिला दें तो 'संभावित यूपीए-समर्थक और मोदी-विरोधी' सीटों की संख्या 200 तक जा सकती है.
2019 की लड़ाई का असली अखाड़ा यूपी होगा, ये समझने के लिए रामानुजन जैसा गणितज्ञ होना जरूरी नहीं है. याद रहे कि "12 मोदीमय राज्यों" के साथ एनडीए की जिन 260 सीटों का हमने ऊपर हिसाब लगाया है, उनमें 73 अकेले यूपी से हैं. और यही है 2019 के चुनाव की वो बड़ी चुनौती, जिसे जानते तो सब हैं, लेकिन जिसकी चर्चा कोई नहीं करना चाहता. अंग्रेजी के मुहावरे में इसे ही कहते हैं 'एलिफैंट इन द रूम' यानी 'कमरे में वो बंद हाथी' जिसे लोग देखकर भी अनदेखा करना चाहते हैं.
और मायावती का चुनाव निशान क्या है? वही हाथी!
मायावती का राजनीतिक पुनरुत्थान किसी चमत्कार से कम नहीं है. 2014 की मोदी लहर ने उन्हें धूल चटा दी और लोकसभा में उन्हें एक सीट भी नहीं मिली. समाजवादी पार्टी (5 सीटें) और कांग्रेस (अमेठी और रायबरेली की 2 सीटें) कुछ हद तक अपने गढ़ बचाने में सफल रहे, मायावती का तो पत्ता ही साफ हो गया था.
लेकिन 3 साल बाद, 2017 की 'मोदी, शाह और फिर योगी आदित्यनाथ' की सुनामी के बीच उन्हें विधानसभा में सीटें तो सिर्फ 19 मिलीं, लेकिन उनका वोट शेयर 22.23% के ठोस स्तर पर बना रहा. और 6 महीने बाद, स्थानीय निकाय के चुनावों में, उन्होंने अलीगढ़ और मेरठ में मेयर के दो पद जीत लिए. यहां तक कि कांग्रेस और समाजवादी पार्टी ने भी ग्रामीण इलाकों में अपनी खोई हुई चमक कुछ हद तक वापस पा ली. लेकिन सबसे चौंकाने वाली बात ये है कि विधानसभा चुनाव की अचंभित करने वाली एकतरफा जीत के महज 6 महीने के भीतर ही बीजेपी का वोट शेयर बुरी तरह गिरकर 30% से भी कम रह गया.
यूपी का चुनावी गणित तलवार की धार जैसा है, जिसकी मार किसी को भी घायल कर सकती है. मायावती ने अगर चुनाव से पहले कांग्रेस और समाजवादी पार्टी से हाथ मिला लिया, तो यूपी में बीजेपी की सीटें घटकर 30 या उससे भी कम हो सकती हैं. यानी 2014 के मुकाबले 43 सीटों की गहरी चोट.
अगर आपको लगता है कि मेरा ये अनुमान सच्चाई से दूर, या पूर्वाग्रह से ग्रस्त है, तो एक 'मोदी प्रचारक' मीडिया संस्थान के हाल ही में हुए पोल के आंकड़े देख लीजिए. ये सच्चाई उन आंकड़ों के बीच से भी झांक रही है कि यूपी में अगर मायावती+एसपी+कांग्रेस का गठजोड़ हो गया, तो 2019 में एनडीए का राज खत्म हो सकता है. ये बात तो अब आमतौर पर सफेद झूठ बोलने वाले उन्मादी प्रचारक भी कहने लगे हैं!
चुनावी आंकड़ों का ये अंकगणित भले ही पक्का हो, लेकिन मायावती का रुख पक्का नहीं है. उनके रुख का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता. याद है, 17 अप्रैल 1999 को उन्होंने क्या किया था? सुबह उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से वादा किया कि लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव के दौरान वो उनका साथ देंगी.
वाजपेयी निश्चिंत हो गए और अपनी जीत का दावा भी कर दिया. लेकिन कुछ ही घंटे बाद मायावती ने सदन के भीतर बड़ी ढिठाई के साथ राजनीतिक कलाबाजी दिखाई और सरकार के खिलाफ मतदान कर दिया. वोटों की गिनती हुई तो पता चला कि सरकार के खिलाफ 270 और उसके पक्ष में 269 वोट पड़े हैं. और इस तरह वाजपेयी सरकार की सिर्फ एक वोट से ऐतिहासिक हार हो गई.
मायावती का हाथी 2019 में किस तरफ झुकेगा? क्या वो अकेले चलने का फैसला करके यूपी में वोटों का बंटवारा करते हुए मोदी की जीत में मददगार बनेंगी, ताकि भ्रष्टाचार के तमाम मामलों में कुछ राहत हासिल कर सकें? या फिर वो मोदी को हराने के लिए विपक्षी एकता में शामिल होंगी और इस तरह दिल्ली की सत्ता पर काबिज होने, या ऐसा न हो पाने पर एक बौखलाए हुए विरोधी के हाथों और ज्यादा सताए जाने का जोखिम उठाएंगी?
एक गुमनाम सी स्कूल टीचर, जो भारत के सबसे बड़े राज्य की पहली दलित महिला मुख्यमंत्री बनी... उसके मन की थाह आप कैसे ले पाएंगे!
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)
Published: 12 Feb 2018,08:27 AM IST