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एक साल तक कैंसर जैसी गंभीर बीमारी का बहादुरी से मुकाबला करने के बाद गोवा के मुख्यमंत्री और बीजेपी के बड़े नेता मनोहर पर्रिकर का निधन हो गया. वह भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के अपने कई साथियों से बिल्कुल अलग थे. वह उन कट्टर संघियों में शुमार नहीं थे, जिन्होंने समय-समय पर हिन्दू राष्ट्रवाद की तान छेड़ी हो या फिर हमेशा भगवा झंडा उठाए रखा हो. फिर भी राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के एजेंडे और आदर्शों के प्रति पर्रिकर का समर्पण किसी से भी कम नहीं था.
पर्रिकर 2017 से गोवा के चौथे मुख्यमंत्री थे. अपने गृह राज्य गोवा लौटने से पहले उन्होंने अपने प्रभावशाली व्यक्तित्व के साथ भारत के रक्षा मंत्री के तौर पर 2014 से 2017 तक जिम्मेदारी निभाई.
क्या पर्रिकर अपने मनमुताबिक काम कर पाए और सार्वजनिक प्रतिबद्धता को पूरा कर सके? या कि उनकी पार्टी ने जो दांव खेला था, उसे ही पूरा करने को मजबूर रहे? इसका उत्तर उनकी मौत के बाद राज्य में राजनीतिक अराजकता में है. बीजेपी उनका उत्तराधिकारी खोजने में सक्षम नहीं है, पार्टी के क्षेत्रीय सहयोगी अपने-अपने दावे कर रहे हैं और आखिरकार कांग्रेस ने सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर खुद को पहचाने जाने के लिए कमर कस ली है.
पर्रिकर ने अपनी जीते-जी गोवा में बीजेपी की सरकार का स्थायित्व बरकरार रखा. अदम्य इच्छाशक्ति, दृढ़ प्रतिज्ञा और मिले दायित्व को पूरा करने के संकल्प के बगैर वह ऐसा नहीं कर सकते थे.
जब वे दिल्ली में होते, तो मछली-चावल और गोवा की चीजों की कमी उन्हें महसूस होती. जिंदगी को जीने की उनमें ललक दिखती थी.
पर्रिकर को गोवा में स्थिर सरकार देने का श्रेय है जो राजनीतिक अस्थिरता की वजह से जाना जाता था और जहां अक्सर विधायक सरकार गिराने के लिए एक पार्टी छोड़कर दूसरी पार्टी में जाया करते थे. समूचे गोवा में बड़ी संख्या में बुनियादी इन्फ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करने वाले प्रोजेक्ट का श्रेय भी उन्हें दिया जाता है. इससे राज्य का औद्योगीकीकरण हुआ और यहां दुनिया के फिल्म कैलेंडर में इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल ऑफ इंडिया (आईएफएफआई) की शुरुआत हुई. अन्य बातों के अलावा 2010-11 में करोड़ों का खनन घोटाला भी उजागर हुआ.
आरएसएस के दर्शन के कोर तत्वों को वे आत्मसात कर चुके थे. जिस रूप में वे मशहूर हुए, उससे पहले वह टेक्नोक्रैट संघी थे. पर्रिकर ने इस बात को माना कि संघ ने ही उन्हें अनुशासन और राष्ट्रवाद के लिए प्रतिबद्धता सिखाई. उन्होंने कर्ज भी चुकाया, बल्कि जरूरत से ज्यादा चुकाया.
एक ऐसे राज्य में जहां 27 फीसदी ईसाई और करीब 9 फीसदी मुसलमान थे, वहां उन्होंने संगठन के सिद्धांत का प्रचार किया. पर्रिकर के राजनीतिक करियर में ही गोवा में बीजेपी की लोकप्रियता बढ़ी, 2014 से पहले भी बड़ी संख्या में सदस्य पार्टी से जुड़े और हिंदूवादी कट्टर सगठनों का राज्य में उदय हुआ.
1979-80 में जब वे गोवा लौटे और इंजीनियरिंग से जुड़े कारोबार को स्थापित किया, उन्होंने संगठन का काम दोबारा शुरू किया. 80 के दशक के मध्य में वे उत्तर गोवा के लिए संघचालक नियुक्त किए गए.
पर्रिकर ने एक ऐसे राज्य में राम जन्मभूमि आंदोलन को मजबूत किया और आरएसएस की पैठ बनायी जो सैद्धांतिक रूप से इसके लिए तैयार नहीं था. 90 के दशक के मध्य में उन्हें बीजेपी में खास तौर पर इस मकसद के साथ जोड़ा गया कि वे क्षेत्रीय दल महाराष्ट्र गोमांतक पार्टी के प्रभाव को सीमित करेंगे.
परिर्कर की रणनीतिक योजनाएं और लगातार काम की वजह से बीजेपी राज्य में कांग्रेस के विकल्प के तौर पर उभरी. हिंदुत्व के वोटों को जोड़ने की वजह से वांछित परिणाम मिले. पर्रिकर ने गोवा में अक्टूबर 2000 में बीजेपी की पहली सरकार का नेतृत्व किया.
जब पर्रिकर मुख्यमंत्री रहे तो उस दौरान गोवा में चरमपंथी हिन्दू संगठनों का उत्थान हुआ और महाराष्ट्र-गोवा-कर्नाटक बेल्ट में धीरे-धीरे कट्टरपंथ मजबूत हुआ. 2001 में पर्रिकर सरकार ने 51 सरकारी प्राथमिक विद्यालयों को आरएसएस से संबद्ध विद्या भारती को सुपुर्द कर दिया.
2009 में मरगाव चर्च में कथित तौर पर बम रखते हुए इस संगठन के कार्यकर्ता मालगोंडा पाटिल और योगेश नाईक मारे गए थे.
2012 में गोवा में हिन्दू सम्मेलन हुआ. इसके बाद हिन्दू विधिदन्य परिषद की स्थापना हुई जिसका मकसद ऐसा कानून स्थापित करना था जो भारतीय संविधान के बजाए “सनातन हिन्दू धर्म में मौजूद आध्यात्मिक विज्ञान पर आधारित हो”. गोवा की राजधानी पणजी में अप्रैल 2002 में बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक हुई. यह बैठक तब हुई जब गोधरा में ट्रेन जलाने और उसके बाद मुसलमानों के संहार की खौफनाक घटना के दो महीने भी नहीं बीते थे.
गोवा ही वह जगह है जहां बीजेपी ने उस वक्त गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की पीठ थपथपायी, जब उनकी इस बात के लिए आलोचना हो रही थी कि उन्होंने गोधरा के बाद हुए नरसंहार को सही तरीके से हैंडल नहीं किया.
पणजी के मैदान पर अगले दिन वाजपेयी ने कहा था, “आग किसने लगायी? यह आग कैसे फैली?...जहां कहीं भी मुसलमान रहते हैं वे दूसरों के साथ मिलकर नहीं रहते.” पर्रिकर से सलाह ली गयी कि गोवा के लोगों ने इस भावना को किस तरह से लिया. उन्होंने इसका समर्थन किया. उन्होंने बाद में मुझे कहा, “यह मेरे लिए बड़ा मौका था. मैंने इसे पूरा किया.”
इन सबके बावजूद भगवामय गोवा ऐसे ही दूसरे राज्यों के मुकाबले कुछ अलग है. इसके बहुजातीय और बहुधार्मिक अनूठेपन की वजह से यहां की राजनीतिक जरूरत भी अलग किस्म की रहती है। व्यावहारिक कारणों से पर्रिकर कई चुनावों से पहले चर्च जाते रहे हैं. बीजेपी के 14 विधायकों में 7 ईसाई हैं.
भारत के रक्षामंत्री के तौर अपनी पकड़ और सुलझे रुख की वजह से पर्रिकर की दिल्ली में खूब प्रशंसा हुई. लोग कहते कि वे कभी जवानों के साथ उनके घर में होते हैं तो कभी जनरलों के साथ. गोवा के लोगों में खुशी थी कि उनके बीच का एक व्यक्ति देश के मंत्रिपरिषद में इतने अहम पद पर बैठ सका.
राफेल सौदे के दौरान खुद को नजरअंदाज किए जाने का उन्हें दुख तो था लेकिन उन्होंने इसे जाहिर होने से रोकना अधिक जरूरी समझा. इसके बजाय उन्होने गोवा के मुख्यमंत्री के तौर पर पणजी में काम करना जरूरी समझा जहां वे मापुसा में कैंसर की वजह से अंतिम सांस लेने तक अपने परिवार के साथ घर में रहे.
पर्रिकर और राजनीति में उनके टेक्नो सोल्यशून वाली सोच को पसंद किया गया जिसे उन्होंने सार्वजनिक सेवा में साधन के तौर पर इस्तेमाल किया. ये पर्रिकर ही थे जिन्होंने असहिष्णुता की बहस में अभिनेता आमिर खान को कहा था, अगर कोई इस तरह से बोलता है तो उसे सबक सिखाया जाना चाहिए.
पर्रिकर में गोवा, उसके विकास और उसके खास चरित्र को बनाए रखने के प्रति गहरी प्रतिबद्धता थी. समांतर रूप में उन्होने हिन्दुत्व राष्ट्रवाद को भी सींचा और उसे आगे बढ़ा- हालांकि एक मुस्कान के साथ.
(स्मृति कोप्पिकर स्वतंत्र पत्रकार और संपादक हैं. फिलहाल मुंबई में रह रहीं कोप्पिकर ने राजनीति, जेंडर इश्यूज और विकास पर करीब तीन दशक तक राष्ट्रीय अखबारों और पत्रिकाओं में लिखा है. उनका ट्विटर हैंडल है @smrutibombay. ये लेखिका के अपने विचार हैं. इन विचारों का क्विंट से कोई सरोकार नहीं है. )
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