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‘सरकारी सूत्रों’ ने एएनआई एजेंसी को कथित फैक्ट शीट जारी की है जिसमें नागरिकता संशोधन कानून से जुड़े लगातार पूछे जा रहे 13 सवालों के जवाब हैं.
फैक्ट शीट घोषणा करता है, “गुमराह न हों, गलत सूचना का शिकार न बनें. नागरिकता संशोधन कानून के वास्तविक तथ्य ये रहे.”
कथित ‘भ्रांतियों’ को दूर करने का यह प्रयास दयनीय है. और, सिर्फ इसलिए नहीं कि यह ‘सूत्रों’ के जरिए आया है. बल्कि, इस बकवास का एक और मसौदा है और जो एक ऐसे अनुलग्नक (एनेक्सर) का संदर्भ देता है जो इसमें (मसौदे में) शामिल नहीं है.
ऐसा क्यों :
पहली बात, यह नहीं बताता कि मुसलमानों को सीएए के दायरे से बाहर क्यों किया गया. सरकारी रुख को समझने का अवसर दिए बगैर यह इस बिंदु को भुला देता है.
दूसरी बात, यह कहता है कि एनआरसी का उपयोग किसी धर्म के लोगों को बाहर रखने में नहीं किया जाएगा. कोई यह तर्क नहीं दे रहा है कि एनआरसी में ऐसा लिखा है या इसकी प्रक्रिया में है कि यह मुसलमानो को बाहर करता है.
तर्क यह है कि एनआरसी कई लोगों को बाहर करेगा और तब सीएए कुछ लोगों को बचाएगा, सबको नहीं. यह धूर्त सवाल और जवाब है- चेतन भगत तक ने इसे समझा है.
तीसरा, पांचवें सवाल का जवाब कहता है कि राष्ट्रीय स्तर पर एनआरसी प्रक्रिया शुरू होने की आधिकारिक घोषणा नहीं की गयी है. बहरहाल यह इस तथ्य को झुठलाता है कि गृहमंत्री अमित शाह ने लगातार कहा है कि “एनआरसी आने वाला है”.
चौथा, एनआरसी में नागरिकता का निर्धारण करने के लिए क्या इस्तेमाल किया जाएगा, इससे जुड़े सातवें और आठवें सवाल के जवाब देने से खतरनाक रूप से बचा गया है अगर यह पूरी तरह झूठ न हो.
2003 में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली सरकार ने भारत में जन्म को लेकर नागरिकता के प्रावधान में बदलाव किए थे. अगर आपका जन्म 26 जनवरी 1950 और 30 जून 1987 के बीच हुआ है तो अब केवल जन्म के आधार पर भी आप नागरिक हैं.
नतीजे के तौर पर अगर नागरिकता कानून का पालन किया जाता है तो जैसा कि इस भ्रम तोड़ने वाले दस्तावेज का दावा है 1987 से पहले पैदा हुए लोगों को अपने माता-पिता से जुड़े दस्तावेज दिखाने होंगे.
7 जनवरी 2004 के बाद पैदा हुए लोगों के लिए यह अविश्वसनीय रूप से अन्यायपूर्ण प्रक्रिया है और आप देख सकते हैं कि किस तरीके से सीएए प्रत्यक्ष रूप से यहां भूमिका निभाता है. क्योंकि, यह पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से आए गैर मुस्लिमों को अवैध प्रवासी की परिभाषा के दायरे से बाहर कर देता है.
भारत के अधिकतर लोगों के पास जन्म का प्रमाण पत्र नहीं होगा. यहां तक कि जो लोग स्वाभाविक रूप से जन्म के आधार पर नागरिकता के लिए योग्य होंगे, उनके पास भी दिखाने के लिए दस्तावेज नहीं होंगे. जो जन्म के आधार पर नागरिकता नहीं दिखा सकते, उन्हें इसके बदले किसी और दस्तावेज के जरिए इसे साबित करने के लिए दर-दर भटकना पड़ेगा. यह और भी मुश्किल होगा.
पांचवा, प्रश्न 9 से लेकर 13 तक के जवाब भी कपटपूर्ण हैं.
कागजों में निश्चित रूप से ट्रांसजेंडर, महिलाएं और अशिक्षित लोग बाहर होने नहीं जा रहे हैं. लेकिन व्यावहारिक रूप से उनकी नागरिकता तय करने से जुड़ी दिक्कतें बनी रहेंगी.
कागज पर, स्पष्ट रूप से ट्रांसजेंडर, महिलाएं और जो अनपढ़ हैं उन्हें बाहर नहीं किया जाएगा. लेकिन उनकी नागरिकता को साबित करने की व्यावहारिक मुश्किलें बनी रहेंगी चाहे. चाहे जितने भी झूठे और नजरअंदाज करने वाले दस्तावेज क्यों न हटा दिए जाएं.
आम लोगों का छोटा प्रतिशत हिस्सा भी अगर ऐसी मुश्किलों में पड़ता है तो संख्या में वह बड़ा होगा और यह न्याय पर बड़ा आघात होगा. असम में एनआरसी ने यह साबित किया है कि यह प्रक्रिया कितनी मुश्किल भरी हो सकती है. और, यह एक ऐसे राज्य में हुआ, जहां कुछ इस तरह के अन्याय की आशंका बनी हुई थी.
क्या सरकार गारंटी दे सकती है कि लोगों पर व्यावहारिक रूप में इसका प्रभाव नहीं पड़ेगा जैसा कि इन उत्तरों में दावा किया गया है? बेशक सरकार नहीं दे सकती.
इन सब कारणों से ही सीएए की इतनी अहमियत है क्योंकि यह गैर मुसलमानो को निश्चित नुकसानों से बचने में मदद करता है. हम मूर्ख नहीं हैं. उन्हें यह महसूस करने की जरूरत है.
ये रहा पूरा दस्तावेज, जो एएनआई को जारी किया गया है:
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Published: 20 Dec 2019,05:07 PM IST