advertisement
सारे विधानसभा चुनाव एक जैसे नहीं होते, इसलिए कोई भी पार्टी एक राज्य की चुनावी रणनीति को दूसरे राज्य में लागू नहीं कर सकती. हर राज्य का अपना इतिहास और सामाजिक तानाबाना होता है. मिसाल के लिए, अक्टूबर-दिसंबर 2014 के बीच महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड में बीजेपी को लोकसभा चुनाव के बाद जीत मिली थी. इससे पता चला कि लोकसभा चुनाव में बीजेपी को जिस तरह से लोगों का समर्थन मिला था, वह तब तक खत्म नहीं हुआ था. यहां तक कि जम्मू-कश्मीर में हुए चुनाव में हिंदू बहुल जम्मू क्षेत्र में भी बीजेपी ने अच्छा प्रदर्शन किया था.
इसके कुछ महीने बाद फरवरी 2015 में हुए चुनाव में दिल्ली में बीजेपी का सफाया हो गया. यहां कुल 70 सीटें थीं, जिनमें से बीजेपी सिर्फ तीन जीत पाई. इसके बाद बिहार में पार्टी की हार हुई. अक्टूबर 2015 में बीजेपी को 243 सीटों वाले बिहार में सिर्फ 53 सीटें मिलीं.
2016 में तमिलनाडु, केरल, पश्चिम बंगाल, असम और पुडुचेरी में चुनाव हुए. इनमें सिर्फ असम में बीजेपी सरकार बना पाई, जहां उसे 126 में से 89 सीटों पर जीत मिली. इस साल यूपी, उत्तराखंड, पंजाब, मणिपुर और गोवा में चुनाव हुए. इनमें यूपी, उत्तराखंड और गोवा में बीजेपी को जीत मिली. इनमें सिर्फ गोवा में वह पहले से सत्ता में थी. पंजाब में वह अकाली दल के साथ सत्ता में थी, लेकिन वहां वह जूनियर पार्टनर थी. यूपी और उत्तराखंड में बीजेपी को शानदार जनादेश मिला, लेकिन गोवा में ऐसा नहीं हुआ. इसके बावजूद गोवा और मणिपुर में बीजेपी ने चुनाव बाद गठजोड़ करके सरकार बनाई. दोनों राज्यों में जिस तरह से बीजेपी ने सरकार बनाई, उसे लेकर सवाल खड़े हुए.
हिमाचल में चुनाव हो चुके हैं, जहां प्रेम कुमार धूमल की लीडरशिप में बीजेपी ने चुनाव लड़ा है. गुजरात में 9 दिसंबर को चुनाव होने हैं. यह पहला राज्य है, जहां मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद बीजेपी चैलेंजर नहीं है. गुजरात में बीजेपी जिस चुनौती का सामना कर रही है, उसकी उम्मीद तक नहीं थी. पार्टी 22 साल से वहां सत्ता में है. बीजेपी 30 अगस्त के बाद से बैकफुट पर है, जब रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) ने अपनी एनुअल रिपोर्ट रिलीज की थी. इसमें बताया गया था कि नोटबंदी में जो करेंसी अवैध करार दी गई थी, उसमें से 99 पर्सेंट बैंकिंग सिस्टम में लौट आए थे.
गुजरात में बीजेपी ‘मोदी मेमोरी कार्ड’ भी नहीं चल सकती यानी वह यह नहीं कह सकती कि बीजेपी का राज कांग्रेस राज से बेहतर रहा है. राज्य में 50 पर्सेंट वोटरों की उम्र 35 साल से कम है. उन्होंने कांग्रेस राज्य में ज्यादा वक्त नहीं गुजारा है. उनकी यादें मोदी के सीएम रहने और उनके पद से हटने के बाद के बीजेपी रूल से जुड़ी हैं. मोदी के जाने के बाद बीजेपी दो बार मुख्यमंत्री बदल चुकी है, जो बुरी खबर है. गुजरात में लोकल मुद्दों के साथ केंद्र सरकार के परफॉर्मेंस पर भी वोट पड़ेंगे. यह पहला चुनाव है, जिससे तय होगा कि नोटबंदी के लिए अभी तकसमर्थन बचा हुआ है या खत्म हो चुका है.
सच तो यह है कि गुजरात के साथ मोदी के लिए चुनावों का नए चक्र शुरू हो रहा है. अभी से लेकर अगले लोकसभा चुनाव तक 13 राज्यों में वोटिंग होगी. लोकसभा चुनाव के बाद के छह महीनों को जोड़ दें तो यह संख्या 16 पहुंच जाती है. 2018 के पहले तीन महीने में मेघालय, नगालैंड और त्रिपुरा में चुनाव होंगे. इनमें से बीजेपी सिर्फ मेघालय में जीत की उम्मीद कर रही है,जबकि त्रिपुरा में वह वामपंथी सरकार को चुनौती देने वाली पार्टी बनना चाहती है.
कर्नाटक में त्रिकोणीय मुकाबले में बीजेपी चैलेंजर के रोल में होगी. अक्टूबर-नवंबर 2018 के बीच मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के साथ मिजोरम में चुनाव होंगे. मिजोरम को छोड़कर तीनों राज्यों में बीजेपी राज है. मिजोरम में बीजेपी मिजो नेशनल फ्रंट के साथ पार्टनरशिप की उम्मीद कर रही है. मध्य प्रदेश में बीजेपी 15 साल से सत्ता में है. यहां सत्ताविरोधी लहर का उसे सामना करना पड़ सकता है. राजस्थान की मौजूदा बीजेपी सरकार से लोगों की नाराजगी बढ़ रही है. छत्तीसगढ़ में भी यही हाल है.
फरवरी-मार्च 2019 में लोकसभा चुनाव होंगे. इसके साथ आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, ओडिशा, अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम में चुनाव होने हैं. 2019 के अंत में महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड की बारी आ जाएगी. 2019 लोकसभा चुनाव से पहले कैंपेनर मोदी को देश अलग अंदाज में देखेगा. ऐसा भी हो सकता है कि चुनाव से पहले कई सौगातों का ऐलान किया जाए. लोगों की नाराजगी दूर करने के लिए सरकार ने हाल ही में जीएसटी रेट्स में बदलाव किए हैं.
पार्टी को पता है कि लोगों की नाराजगी जल्द दूर नहीं होगी. गुजरात के नतीजे अगर कुछ हद तक भी बीजेपी के माफिक नहीं हुए तो उसके लिए स्थिति अच्छी नहीं होगी. मोदी को पता है कि गुजरात में सामान्य बहुमत काफी नहीं होगा.
(नीलांजन मुखोपाध्याय एक पत्रकार और एक लेखक हैं. उन्होंने‘Sikhs: The Untold Agony of 1984’ और ‘Narendra Modi: The Man, The Times’ नाम की किताबें लिखी हैं. इस आर्टिकल में छपे विचार उनके अपने हैं. इसमें क्विंट का सहमत होना जरूरी नहीं है.)
(स्रोत: BloombergQuint)
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)
Published: 21 Nov 2017,02:27 PM IST