advertisement
केंद्र सरकार की आमदनी में महाराष्ट्र, गुजरात, तमिलनाडु और कर्नाटक का योगदान सबसे ज्यादा है, जबकि उससे सबसे अधिक पैसा उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल और मध्य प्रदेश को मिलता है. महाराष्ट्र अगर केंद्र को 100 रुपये का टैक्स रेवेन्यू देता है, तो उसे 15 रुपये ही वापस मिलते हैं, जबकि बिहार को हर 100 रुपये के योगदान पर 400 रुपये वापस मिलते हैं.
दुनिया के किसी भी बड़े मुल्क में ऐसा नहीं होता. मिसाल के लिए, अमेरिका में न्यू जर्सी को हर 100 डॉलर के टैक्स रेवेन्यू पर 60 डॉलर वापस मिलता है. यह अमेरिका के 50 राज्यों में सबसे कम है. वहां न्यू मेक्सिको को हर 100 डॉलर पर 200 डॉलर वापस मिलते हैं, जो सबसे अधिक है.
इसका मतलब है कि समय के साथ अमीर और गरीब राज्यों के बीच की खाई कम होती जाती है.
भारत में दशकों से अमीर राज्यों का पैसा गरीब राज्यों को दिया जा रहा है तो क्या इससे ‘कन्वर्जेंस’ हुआ है?
बंगाल, बिहार, गुजरात, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश के 1960 से 2014 तक के आंकड़ों से हम इसे समझने की कोशिश करते हैं. प्रति व्यक्ति आय, साक्षरता दर, औसत उम्र जैसे पैमानों से आर्थिक और सामाजिक तरक्की का पता चलता है.
1960 में बिहार की प्रति व्यक्ति आय 215 रुपये थी. तब महाराष्ट्र की प्रति व्यक्ति आमदनी इससे दोगुनी यानी करीब 400 रुपये हुआ करती थी. 2014 में बिहार की प्रति व्यक्ति आय 35,000 रुपये हो गई थी, जबकि महाराष्ट्र में यह चार गुनी अधिक यानी 1.35 लाख रुपये थी. इसका मतलब है कि पांच दशक में जहां बिहार की प्रति व्यक्ति आय 200 गुना बढ़ी, वहीं महाराष्ट्र की 300 गुना.
इस दौरान दोनों राज्यों की प्रति व्यक्ति आय में गैप बढ़ा है, न कि कम हुआ है. चार अमीर राज्य 1960 में चार गरीब राज्यों के मुकाबले 1.5 गुना अधिक कमा रहे थे. अब वे तीन गुना अधिक कमाते हैं. इसका मतलब यह है कि 1960 के मुकाबले अमीर और गरीब राज्यों के बीच गैप दोगुना हो गया है.
सामाजिक तरक्की का क्या हाल है?
आबादी की औसत उम्र इसका बड़ा पैमाना है. अमीरी के साथ लोगों की उम्र भी बढ़ती है. 1961 में यूपी और तमिलनाडु में औसत उम्र 21 साल थी. 2015 में यूपी में रहने वालों की औसत उम्र 21 साल ही है, जबकि तमिलनाडु में यह 30 साल हो चुकी है. बिहार में यह 19 साल है.
क्या समय के साथ राज्यों के शैक्षणिक स्तर का फासला मिटा है? 1961 में चार अमीर राज्यों के 70 फीसदी लोग निरक्षर थे. गरीब राज्यों में यह आंकड़ा 80 फीसदी था. 2011 में अमीर राज्यों के सिर्फ 20 फीसदी लोग निरक्षर हैं, जबकि गरीब राज्यों के 35 फीसदी लोग अभी भी अनपढ़ हैं.
1961 में यूपी, बिहार और एमपी में एक इंसान औसतन 47 साल तक जीवित रहता था. अमीर राज्यों के लोग औसतन पांच साल अधिक जीवित रहते थे. पांच साल बाद अमीर राज्यों के लोग गरीब राज्यों की तुलना में सात साल अधिक जीवित रहते हैं.
तमिलनाडु और केरल के लोगों की जिंदगी मिड-इनकम देश के लोगों जितनी लंबी होती है, जबकि यूपी और बिहार के लोगों की लो-इनकम देशों के लोगों के बराबर. इसका मतलब यह है कि आर्थिक और सामाजिक पैमानों पर भारत के अमीर और गरीब राज्यों के बीच की खाई 1960 के दशक के बाद बढ़ी ही है.
यह भी सच है कि इस दौरान अमीर और गरीब राज्यों का विकास हुआ है, लेकिन गरीब राज्यों की ग्रोथ अमीर राज्यों की तुलना में सुस्त रही है. इसलिए उनके बीच फासला बढ़ा है और इससे अमीर राज्यों पर गरीब राज्यों को सपोर्ट करने का बोझ बढ़ रहा है.
अमीर राज्यों को जल्द ही अपने यहां उम्रदराज होती आबादी की चिंता करनी होगी. इसके लिए उन्हें अधिक संसाधन की जरूरत पड़ेगी. अमीर राज्यों के संसाधन का इस्तेमाल गरीब राज्यों के विकास के लिए करने की नीति क्या सही है? इस पर विचार करने की जरूरत है.
(प्रवीण चक्रवर्ती मुंबई के IDFC इंस्टीट्यूट में सीनियर फेलो हैं. वो फाइनेंशियल सेक्टर और पॉलिटिकल इकनॉमी के जानकार हैं. लेखक चक्रवर्ती अंतरराष्ट्रीय जानकारी और फीडबैक के लिए वी अनंता नागेस्वरन को और रिसर्च के लिए मलिनी कोहली को शुक्रिया कहते हैं.)
[ हमें अपने मन की बातें बताना तो खूब पसंद है. लेकिन हम अपनी मातृभाषा में ऐसा कितनी बार करते हैं? क्विंट स्वतंत्रता दिवस पर आपको दे रहा है मौका, खुल के बोल... 'BOL' के जरिए आप अपनी भाषा में गा सकते हैं, लिख सकते हैं, कविता सुना सकते हैं. आपको जो भी पसंद हो, हमें bol@thequint.com भेजें या 9910181818 पर WhatsApp करें. ]
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)
Published: 19 Jul 2017,07:10 PM IST