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श्रीनगर से प्रकाशित होने वाले उदारवादी अखबार 'राइजिंग कश्मीर' के संपादक शुजात बुखारी की अफसोसनाक हत्या के बाद मीडिया में एक बार फिर से कश्मीर पर बहस तेज हो गई है. इसमें आधा-अधूरा ज्ञान भी परोसा जा रहा है. इस बहस में जो 8 भावनात्मक तथ्य जेहन में रखे जाने चाहिए, उनकी अनदेखी की जा रही है.
यह तितरफा समस्या नहीं है, जिससे भारत, पाकिस्तान और 40,000 अलगाववादी जुड़े हुए हैं. न ही इससे हुर्रियत, जेकेएलएफ और दूसरे भागीदार जुड़े हैं. असल में कश्मीर समस्या के दो पक्ष हैं. इसमें एक ओर कश्मीरी मुसलमानों के साथ भारतीय और दूसरी तरफ अलगाववादी और पाकिस्तान हैं. इन हालात में कश्मीर समस्या के खत्म होने से भारतीयों को फायदा होगा, वहीं अगर समस्या बरकरार रहती है, तो दूसरों को लाभ होगा.
कश्मीर समस्या के खत्म होने से भारत को क्या फायदे होंगे? राजनीतिक तौर पर देखें, तो इससे यह बात साबित हो जाएगी कि दो देशों वाली थ्योरी बेवकूफी थी. रणनीतिक तौर पर यह लाभ होगा कि भारत के मैदानी क्षेत्रों में पाकिस्तान की पहुंच खत्म हो जाएगी और उसके जरिये इन क्षेत्रों का एक्सेस रखने वाले चीन पर भी अंकुश लग जाएगा.
कश्मीर समस्या से जिन अलगाववादियों को फायदा होता है, उनके दो धड़े हैं. इसमें घाटी के नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी जैसे राजनीतिक दल और उनके कार्यकर्ता शामिल हैं. इन दलों के नेताओं को कार्यकर्ताओं के मुकाबले धन और सत्ता का कहीं अधिक फायदा मिलता है.
दिलचस्प बात यह है कि दोनों पक्ष कुछ बातों पर सहमत हैं और कुछ को लेकर उनका एक-दूसरे से बिल्कुल अलग नजरिया है. इसे समझने के लिए एक शादीशुदा जोड़े की मिसाल लेते हैं. यह जोड़ा शाम को बाहर घूमने जाना चाहता है. पति चाहता है कि बाहर जाकर आईपीएल का मैच देखा जाए, जबकि पत्नी भजन संध्या में जाना चाहती है. वहीं, वे एक-दूसरे का साथ भी नहीं छोड़ना चाहते. ऐसे में समाधान क्या हो?
ऐसी सूरत में कश्मीर समस्या को सुलझाने के लिए हर पक्ष के पास दो विकल्प हैं. वे एक-दूसरे से बात करें या बातचीत न करें. मीडिया का बड़ा हिस्सा और पाकिस्तान बातचीत के हक में है. इसलिए कश्मीर पर हमेशा बातचीत की मांग उठती रहती है. हालांकि कई बार बातचीत नहीं करना भी अच्छी रणनीति होती है. चीन ने अपने यहां के विद्रोहियों के साथ इस रणनीति का सफलतापूर्वक इस्तेमाल किया है. अमेरिका और ब्रिटेन भी आतंकवादियों के साथ इसी रणनीति पर चलते हैं.
ऐसे में भारत के लिए अच्छा यही होगा कि कश्मीर पर वह नेताओं के साथ सारी बातचीत बंद कर दे. हालांकि इसके बजाय बीजेपी ने उनमें से एक के साथ गठबंधन कर लिया और दूसरों के साथ सख्ती बरती.
आप इसे बच्चों के खेल से भी समझ सकते हैं. जिस बच्चे का फुटबॉल है, जब वह उसे लेकर जाना चाहता है, तो उससे गेम में शामिल दूसरे बच्चों को भी फायदा होता है, क्योंकि तब ऐसा समाधान निकालना पड़ता है, जो सबको मंजूर हो. कश्मीर में यही करने की जरूरत है.
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(लेखक आर्थिक-राजनीतिक मुद्दों पर लिखने वाले वरिष्ठ स्तंभकार हैं. इस आर्टिकल में छपे विचार उनके अपने हैं. इसमें क्विंट की सहमति होना जरूरी नहीं है)
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