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नोटबंदीः आक्रामक रुख में सरकार, क्या पार्टी भी है आश्वस्त?

नोटबंदी के क्या होंगे परिणाम, असमंजस में है मोदी सरकार

शंकर अर्निमेष
नजरिया
Updated:
(फाइल फोटोः LSTV)
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(फाइल फोटोः LSTV)
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बुधवार से शुरू हुए संसद के शीतकालीन सत्र में नोटबंदी पर संयुक्त विपक्ष का सामना करते समय मोदी सरकार आत्मविश्वास से लबरेज दिखने की कोशिश कर रही है. सूचना प्रसारण मंत्री वैंकेया नायडू और ऊर्जा मंत्री पीयूष गोयल संसद में विपक्ष को ललकार रहे हैं. लेकिन फिर भी बीजेपी के अंदर नोटबंदी के मुद्दे को लेकर आत्मविश्वास नजर नहीं आ रहा है.

बीजेपी कंट्रोल रूम में बैठे चुनावी आब्जर्वर्स को देशभर से बैंक और एटीएम की लाइन में लगे लोगों से उतना उत्साहवधर्क संदेश नहीं मिल पा रहा है, जिससे पार्टी के अंदर आत्मविश्वास मजबूत हो.

भारी पड़ रही है नोटबंदी को लागू करने की बदइंतजामी

प्रधानमंत्री के नोटबंदी के साहसिक फैसले को लागू करने की बदइंतजामी वित्त मंत्री के आदर्शवाद पर भारी पड़ रहा है. वित्त मंत्री ने अपने फेसबुक पेज पर लिखा है कि देश कालेधन के साथ नहीं सो सकता. लेकिन सवाल ये नहीं है कि देश कालेधन के साथ रहना चाहता है या नहीं, बल्कि सवाल ये है कि छह महीने से नोटबंदी की तैयारी कर रही सरकार ने आम गरीब, किसान ,मजदूर की परेशानियों को न भांपकर उन्हें मुसीबतों के समुद्र में क्यों धकेल दिया? सवाल कालेधन पर पाबंदी का नहीं है, सवाल इस फैसले के बिना तैयारी लागू करने पर है?

संसद के अंदर और बाहर नोटबंदी के फैसले पर सरकार आत्मविश्वास से लबरेज दिखे यह बीजेपी की रणनीति है. लेकिन अंदर की कहानी में संशय और बेचैनी भी है. संशय इस बात का है कि समय रहते बैंकों के बाहर भूखे-प्यासे लाइन में लगे लोगों की परेशानी हल हो पाएगी क्या? और बैचैनी इस बात की भी है कि अगर नहीं हुआ तो क्या होगा?

बीजेपी का फीडबैक

आर्थिक सत्याग्रह से पैदा हुई परेशानियों से मिल रहे फीडबैक को बीजेपी हाईकमान दो तरीके से डीकोड कर रहा है. देशभर से आ रही प्रतिक्रिया पर नजर रख रहे कैबिनेट के एक मंत्री ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि गांव देहात से परेशानियों और दिक्कतों की तमाम खबरों के वाबजूद लोग फैसले की नियत पर सवाल नहीं उठा रहे.

सरकार की मंशा पर कोई सवाल नहीं उठा रहा और लोग मोटे तौर पर प्रधानमंत्री के फैलने के साथ हैं. यानि समय रहते अगर नकदी की समस्या को सुलझा लिया गया तो ये मास्टरस्ट्रोक साबित होगा. सरकार के आत्मविश्वास की बड़ी वजह इस फीडबैक का आना है. लेकिन ये आत्मविश्वास कब तक रहेगा कोई नहीं जानता, क्योंकि अपना काम धंधा छोड़ लाइनों में लगे लोग, अपने छोटे मोटे उद्योग- धंधे चौपट करा चुके रेहड़ी और ठेले वालों का आदर्शवाद और धैर्य पेट की भूख पर कब तक जिंदा रहेगा कोई नहीं जानता.

इसलिए सरकार के इस आंकलन से बीजेपी संगठन उतना आश्वस्त नहीं है. अगर इतना ही आश्वस्त होते तो महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडनवीस बैंक और एटीएम से जूझ रहे लोगों की दिक्कतें कम करने के लिए केन्द्र के फैसले से दो कदम आगे जाकर मंत्रिमंडलीय समिति का गठन नहीं करते.

नफा-नुकसान का आंकलन कर रही बीजेपी की मनोस्थिति समझने में यह टिप्पणी कारगर साबित हो सकती है. बीजेपी के एक नेता के मुताबिक, “मिसाइल के चलने पर उसकी केवल गति नियंत्रित की जा सकती है उसके गिरने को रोका नहीं जा सकता. तय ये होना है कि यह दुश्मन पर गिरेगा या अपने आप पर.”

संसद में सरकार के आत्मविश्वास की परीक्षा के लिए हमने बीजेपी के दस सांसदों से नोटबंदी के प्रभाव का आंकलन जानना चाहा तो बीजेपी सांसदों की चिंताएं तीन स्तरों पर दिखी, जो बीजेपी की भी चिंता है? तो आखिर क्या है बीजेपी की चिंता और उम्मीद की किरण?

पांच राज्यों की चुनावी चिंता

बीजेपी की और सरकार की तात्कालिक चिंता पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव हैं. लोकसभा के बड़े राजनैतिक कथानक के लिए अभी ढाई साल का समय है. यूपी और पंजाब से चुनकर आए बीजेपी के चार सांसदों की चिंता ये थी कि नोटबंदी का फैसला लागू कर सरकार ने बड़ा राजनैतिक रिस्क लिया है. लेकिन ये तय नहीं है कि इस फैसले से जातियों की दीवारें टूट पाएंगी?

क्या दलित या मुस्लिम समुदाय कालेधन के खिलाफ सरकार की गई सख्त कार्रवाई से बीजेपी को वोट देने आ जाएगा? उल्टे गरीब, पिछड़े, जिन्हें गांव देहात में कई दिनों के बाद भी अपना ही पैसा शादी ब्याह और फसल के लिए नहीं मिल पा रहा उनका गुस्सा कहीं मतपेटियों तक न पहुंच जाए?

चिंता सिर्फ यही नहीं है, पंजाब जैसे राज्य जहां पैसे का जोर चुनावी हार-जीत को काफी हद तक प्रभावित करता है, वहां संसाधनों की समस्या आप और कांग्रेस के साथ अकाली और बीजेपी को भी होनी है, बशर्ते बीजेपी ने अपने धन सफेद न कर लिए हो.

गोवा जैसे राज्य जहां की आर्थिक व्यवस्था पर्यटन से चलती है वहां, नोटबंदी से पूरे दिसंबर के क्रिसमस और नये साल के पर्यटक सीजन के बैठने की आशंका बढ़ गई है. गोवा से आने वाले बीजेपी नेता चुनावी समय में इसके नफा नुकसान के आंकलन में व्यस्त हो गए है.

राजनैतिक कथानक और आख्यान की लड़ाई

बीजेपी की दूसरी चिंता बड़े मैसेज के पलटने से जुड़ा है. बीजेपी के तीन सांसदों ने माना कि इस फैसले की वजह आर्थिक फायदे की जगह बड़ा राजनैतिक संदेश स्थापित करना था. प्रधानमंत्री का ये फैसला गरीबों और अमीरों के बढ़ते फासले के बीच ब्रांड मोदी की मजबूत पोजिशनिंग कर बीजेपी की राजनीति को उनके इर्द गिर्द बुनने की थी. लेकिन कमजोर और लचर क्रियान्वयन से गुड़ का गोबर होता दिख रहा है.

दूसरा लचर प्रबंधन से प्रधानमंत्री के दूरदर्शी ,सक्षम और कुशल प्रशासक की इमेज पर भी सवाल खड़े होने शुरू हो गए है. बीजेपी ये अफोर्ड नही कर सकती, जिसमें ब्रांड मोदी की इमेज कमजोर हो. अमीरों के कालेधन को गरीबों की भलाई में बांटने का कथानक कुप्रबंधन से कहीं उल्टा न पड़ जाए, यह चिंता भी बीजेपी को साल रही है .

आर्थिक फायदा कितना होगा, ये तो आंकड़े आने के बाद पता चल पाएगा. लेकिन राजनैतिक नुकसान की चिंता से चिंतित बीजेपी की सारी उम्मीद अब "अगर" फैक्टर की कामयाबी पर टिका है.

क्या है ये "अगर" फैक्टर?

यूपी के पिछड़े वर्ग से चुनकर आने वाले एक सांसद ने कहा, गांव देहात में लोग परेशानियों के बाद भी इस बात से खुश हैं, कि मोदी ने सबको बराबर कर दिया है. मोदी ने अमीरों की तिजोरी पर हमला किया है अमीरों की छटपटाहट उनकी भूख, लाचारी पर उन्हें आत्मिक सुख दे रही है. इन सांसद महोदय का मानना है कि गरीबों का ये आत्मिक सुख गेम चेंजर साबित हो सकता है. अगर थोड़े दिन की परेशानी के बाद भी हम हालात काबू में ले आएं. बीजेपी की सारी उम्मीद अब इसी "अगर" फैक्टर पर टिकी हुई हैं. गुजरात से आने वाले एक केन्द्रीय मंत्री की राय थी कि, अगर सरकार दो हफ्ते में हालात पर काबू पा लेती है तो लोग परेशानियां भूलकर इस फैसले के फायदे को ही याद रखेंगे. लेकिन अगर मामला लंबा खिंचा तो राजनैतिक नुकसान होना तय है.

आर्थिक फायदा कितना होगा ये तो आंकड़े आने के बाद देखा जाएगा. लेकिन राजनैतिक नुकसान की चिंता से चिंतित बीजेपी की सारी उम्मीद अब ‘अगर’ फैक्टर की कामयाबी पर टिका है.

हमारे पास मोदी है!

अमिताभ बच्चन की फिल्म दीवार का वो डायलॉग तो आपको याद ही होगा. जब अमिताभ के गाड़ी बंगले के सवाल में शशि कपूर कहते हैं, ‘मेरे पास मां है.’ उसी तरह बीजेपी के पास भी मोदी है. उत्तराखंड से चुनकर आने वाले एक बीजेपी सांसद ने कहा, 'खुदा न खास्ते ‘अगर’ फैक्टर भी नहीं चला तो मोदी तो हैं ना. वो ही रास्ता भी निकालेगें.

बीजेपी का यह चिंतन उस परिस्थिति के लिए है, जब दो-तीन महीने में आर्थिक हालात सुधरने की बजाए बद से बदतर हो जाएं. ये कहना अभी जल्दबाजी होगी कि नोटबंदी चुनाव में बीजेपी को किस ओर ले जाएगी. लेकिन हालात न संभलने पर बीजेपी को पत्ते कुछ और फेंटने पड़ सकते हैं ये तय है.

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Published: 17 Nov 2016,03:33 PM IST

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