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भारत-चीन तनाव: क्या ड्रैगन के गले की हड्डी बन गया लद्दाख का मामला?

क्या चीन पीछे हट गया है? क्योंकि दूसरा विकल्प तो टकराव बढ़ाने का था

मनोज जोशी
नजरिया
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भारत चीन के तनावपूर्ण रिश्तों का इतिहास देखें, तो लद्दाख में भारत और चीन की सेनाओं की वापसी की खबर मन में संदेह जगाती है. भरोसा नहीं होता कि अप्रैल 2020 से पहले की स्थिति फिर कायम होगी. मन में उस खारेपन का एहसास होता है, जो खारापन कभी भारत से तिब्बत भेजे जाने वाले नमक में मौजूद था.

अभी गुरुवार को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने इस सिलसिले में विस्तार से बताया है और कहा है कि पैंगोंग त्सो के दक्षिणी और उत्तरी किनारे पर अप्रैल 2020 जैसे हालात हो जाएंगे.

मंत्री महोदय ने संसद को बताया कि पैंगोंग झील के दक्षिणी और उत्तरी किनारे से सेना की वापसी का समझौता हुआ है. उन्होंने कहा कि चीन अपनी सेना की टुकड़ियों को उत्तरी किनारे में फिंगर 8 की पूरब दिशा की तरफ रखेगा और भारत अपनी सेना की टुकड़ियों को फिंगर 3 के पास स्थित स्थायी बेस धन सिंह थापा पोस्ट पर रखेगा.

उन्होंने कहा कि ये ‘आपसी और परस्पर फैसला’ है. उत्तरी और दक्षिण किनारों पर अप्रैल 2020 से दोनों पक्षों ने जो भी निर्माण किए हैं, उन्हें हटाया जाएगा और पुरानी भूस्थितियां कायम की जाएंगी.

सबसे महत्वपूर्ण यह है कि दोनों पक्ष फिंगर एरिया में अपने संबंधित दावों की सीमा तक गश्त करना बंद कर देंगे.

क्या चीन का दांव उलटा पड़ गया

इसे क्षेत्र से वापसी कहा जा सकता है, या हालात का सामान्य होना, लेकिन भारत और चीन के रिश्ते शायद ही वैसे रहें, जैसे अप्रैल 2020 से पहले थे. वास्तविक नियंत्रण रेखा यानी एलएसी के आस-पास शांति बरकरार रखने की प्रक्रिया तहस नहस हो चुकी है. सीमा विवाद का अंतिम हल निकालने की उम्मीद दूर-दूर तक नजर नहीं आती.

चीन का इरादा जो भी हो, लेकिन उसने जो कुछ भी किया, उससे भारत ने उत्तरी सीमा पर अपनी मौजूदगी पुख्ता की है.

इसी पूरी प्रक्रिया में चीन के लिए यह दांव उलटा पड़ा क्योंकि इससे सीमा पर भारत ने ध्यान देना शुरू किया. जिसका मतलब यह है कि तिब्बत में चीनी सेना ज्यादा असुरक्षित हुई है.

क्वाड में भारत की भागीदारी बढ़ेगी या नहीं, फिलहाल इस बारे में कुछ कहा तो नहीं जा सकता. लेकिन पर्यवेक्षकों ने इस तथ्य की तरफ ध्यान खींचा है कि पिछले हफ्ते यूएस रीडआउट में मोदी-बाइडेन के बीच अच्छी बातचीत का जिक्र है. उन्होंने “क्वाड के जरिए मजबूत क्षेत्रीय संरचना” की जरूरत पर जोर दिया है. हालांकि भारतीय रीडआउट में क्वाड का कोई जिक्र नहीं था.

वैसे सैन्य टुकड़ियों के पीछे हटने की खबर के साथ-साथ बुधवार को चीन के विदेश और रक्षा मंत्रालयों के बयान भी आए.

विदेश मंत्री के प्रवक्ता वांग वेनबिन ने कहा कि सितंबर 2020 में दोनों विदेश मंत्रियों के फैसले और उसके बाद लद्दाख में कमांडर स्तर की बातचीत के बाद “10 फरवरी को चीनी और भारतीय सशस्त्र सेनाओं ने पैंगोंग झील के क्षेत्र से वापसी शुरू कर दी है.” उन्होंने यह भी कहा कि “हमें उम्मीद है कि भारतीय पक्ष चीन के साथ मिलकर काम करेगा...और वापसी की प्रक्रिया को आसान बनाएगा.”

भरोसा करना मुश्किल क्यों है

रिपोर्ट्स की मानें तो देमचोक सेक्टर में डेपसांग और चारडिंग निंगलुंग नुला जंक्शन से सेना की वापसी पर बाद की बैठकों में चर्चा होगी. शायद इसके बाद दोनों पक्ष डेपसांग मैदान के जटिल मुद्दे पर चर्चा करेंगे.

चूंकि दोनों एक दूसरे पर पूरा भरोसा नहीं करते, इसीलिए एक बार में एक ही क्षेत्र पर बातचीत की गई है, और फिर एलएसी पर अप्रैल 2020 की यथास्थिति बनाने पर विचार किया जाएगा. बेशक, अभी विश्वास की डोर इतनी मजबूत नहीं है कि एकाएक कोई फैसला किया जाए.

याद कीजिए कि कैसे चीन ने अचानक फिंगर 4 पर गतिरोध खड़ा किया था और उस फिंगर 8 पर भारतीय सीमा गार्ड्स को गश्त लगाने से रोका था, जोकि भारत के हिसाब से असली एलएसी है.
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यह भी याद किया जाना चाहिए कि जब भारत ने कैलाश पर्वत श्रृंखला के एक बड़े हिस्से को अपने अधिकार क्षेत्र में लिया तो पैंगोंग त्सो के दक्षिणी किनारे के क्षेत्र में दोनों देशों के बीच ठन गई. इससे भारत के लिए स्पांगुर त्सो क्षेत्र में मौजूद चीनी सेना पर नजर रखना आसान हो गया, दूसरी तरफ चीनी सेना बौखला गई. उसने भारतीय सेना पर वैसे ही हमले करने शुरू कर दिए जैसे जून 2020 में गलवान घाटी में किए गए थे- जब 20 भारतीय सैनिक मारे गए थे. भारत ने भी जवाबी कार्रवाई की. 1975 के बाद यह पहली बार था जब एलएसी पर गोलियां चलीं.

वैसे नवंबर 2020 से ये अटकलें लगाई जा रही थीं कि दोनों देश समझौते के लिए तैयार हैं. मीडिया कई वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों के हवाले से बता रहा था कि तीन चरणों में सेना की वापसी की योजना तैयार कर ली गई है. इस योजना में फ्रंटलाइन फोर्सेस की वापसी, एलएसी के पास भारी असलहा और हथियार पहुंचाने वाले सहायक बलों के लौटने और स्थिति सामान्य करने की बात कही गई थी. लेकिन चीन ने इस योजना को ठुकरा दिया और कहा कि भारत राष्ट्रवादी समर्थन जुटाने के लिए झूठी बातें कर रहा है.

मान लीजिए कि यह खबर सही है और हमारी सेना पूर्वी लद्दाख से वापसी कर रही हो, तो हमें इस मुद्दे को कैसे लेना चाहिए?

एक तरफ जैसा कि हम कह रहे हैं, चीन के लिए यह दांव उलटा पड़ सकता है. पिछले एक दशक से वह एलएसी पर भारत के बढ़ते सामर्थ्य को देखकर परेशान है. अब वह भारतीय अधिकारियों से इस बात की पुष्टि कर रहा है कि उसने सीमा पर ठोस इंफ्रास्ट्रक्चर बना लिया था.

क्या चीन ने इतना ठूंस लिया है कि चबाया नहीं जा रहा

चीनी मामलों के विशेषज्ञ और पूर्व विदेश सचिव श्याम शरण ने अपने एक हालिया आर्टिकल में लिखा है कि चीन काफी पहले से एलएसी के मुद्दे को गरमाए रखने की तिकड़में करता रहा है पर वह इसमें उबाल नहीं आने देता. हां, 2020 में उसने अपने तरीके बदले और वह किया जिससे एलएसी में काफी बदलाव आ सकता है.

लेकिन उसने भारत के कड़े रवैये की उम्मीद नहीं की थी. इससे यह मुद्दा सिर्फ सीमा विवाद तक सीमित नहीं रहा. भारत ने चीन के कमर्शियल हितों पर चोट की. व्यापार पर पाबंदियों की घोषणाएं कीं और क्वाड के साथ अपने रिश्ते मजबूत करने की ओर इशारा किया.

बुधवार के फैसले बताते हैं कि चीन वापसी इसीलिए कर रहा है क्योंकि दूसरा कोई विकल्प हालात को गंभीर बनाएगा. और स्पष्ट तौर से वह इसके लिए तैयार नहीं है.

खास बात यह है कि चीन युद्ध के लिए तैयार नहीं है. जब लड़ाई घूंसों, पत्थर और डंडों से लड़ी जाए तो साफ पता चलता है कि इरादा सिर्फ एलएसी को कुछ जगहों पर बदलने का था. शरण ने सवाल किया था कि क्या चीन ने इतना ठूंस लिया है कि अब चबाया नहीं जा रहा. सैन्य टुकड़ियों की वापसी में ही इस सवाल का जवाब मौजूद है.

(लेखक नई दिल्ली स्थित ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के प्रतिष्ठित फेलो हैं. यह एक ओपनियन पीस है. यहां व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट का उनसे सहमत होना जरूरी नहीं है.)

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