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भारत को US की COVID मदद: इस संकट से क्या सीख लेनी चाहिए?

भारत की कोरोना से लड़ाई में अमेरिका क्या मदद करेगा?

मनोज जोशी
नजरिया
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अमेरिका द्वारा भारत को मेडिकल सहायता देने के मुद्दे पर विराम तब लगा जब राष्ट्रपति बाइडेन ने बयान जारी करके भारत को तत्काल मदद देने का वादा किया. अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन और उपराष्ट्रपति कमला हैरिस की यह प्रतिक्रिया 25 अप्रैल को ट्विटर के माध्यम से सामने आई, जिसमें उन्होंने भारत की आपातकालीन कोरोना स्थिति में अतिरिक्त सहायता और सप्लाई का वादा किया.

इसमें कोई शंका नहीं होनी चाहिए कि यह निर्णय स्वयं राष्ट्रपति द्वारा लिया गया है, जिसकी पृष्ठभूमि में राष्ट्रीय सुरक्षा और अमेरिका की भारत से करीबी संबंध बनाए रखने की दिलचस्पी है.

राष्ट्रपति को सामने क्यों आना पड़ा?

पिछले गुरुवार तक अमेरिका की नीति स्टेट डिपार्टमेंट के प्रवक्ता नेड प्राइस के शब्दों में यह रही कि वर्तमान में कोई सहायता नहीं की जा सकती क्योंकि "अमेरिका सर्वप्रथम और प्रमुख रूप से अमेरिकी लोगों को वैक्सीनेट करने के प्रयास में महत्वकांक्षी और प्रभावी रूप से जुड़ा हुआ है". अमेरिकी अधिकारियों ने उस समय कहा कि अमेरिका "भारत की सहायता के मामले पर विचार करेगा".

प्राइस तो यहां तक कह गए कि अमेरिकी लोगों का वैक्सीनेट होना सिर्फ अमेरिकी लोगों के हित में नहीं बल्कि पूरे विश्व के हित में है. 

राष्ट्रपति का सामने आना इसलिए जरूरी था ताकि वह अमेरिकी डिफेंस प्रोडक्शन ऐक्ट (DPA) को हटाए जिसे उन्होंने स्वयं फरवरी 2021 में लागू किया था. यह कानून वैक्सीन से जुड़े कच्चे मालों की आपूर्ति के लिए अमेरिकी खरीदारों को प्राथमिकता देता है. DPA के डिफेंस प्रॉपर्टीज एंड एलोकेशन सिस्टम प्रोग्राम के तहत 35 कैटेगरी के मदों के निर्यात पर प्रतिबंध है जिसकी जरूरत भारतीय कोविड वैक्सीन निर्माताओं को है. इसमें रिएजेंट, प्लास्टिक ट्यूबिंग मैटेरियल, नैनो फिल्टर, बायोरिएक्टर बैग शामिल है, जिसकी जरूरत सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया को वैक्सीन बनाने के लिए है.

भारत और अमेरिका में भारतीय-अमेरिकी राजनेताओं के विरोध के बाद अमेरिका को इस संदर्भ में फिर से विचार करना पड़ा. US राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सलिवन ने इस मामले को अपने हाथ में लिया. जिसने भारत अमेरिका संबंधों को पिछले एक-डेढ़ महीने से उलझाया हुआ था.

अंत में निर्णय सामरिक और मानवीय आधार पर लिया गया. 

भारत की कोरोना से लड़ाई में अमेरिका क्या मदद करेगा?

अमेरिका के इस निर्णय के ऑपरेशनल डिटेल्स को राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद की प्रवक्ता एमिली होम ने सामने रखा. उन्होंने कहा कि अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सलिवन ने अपने भारतीय समकक्ष अजीत डोभाल से बात रविवार 25 अप्रैल को की है और अमेरिका दिन-रात भारत की मदद के लिए कार्य कर रहा है. अमेरिका ने उस विशेष कच्चे माल की पहचान की है जिसकी तत्काल आवश्यकता भारतीय वैक्सीन निर्माताओं को है और उसकी उपलब्धता भारत को तत्काल की जाएगी.

इसके अलावा अमेरिका ने यह भी घोषणा की है कि वह थैरेपीयूटिक, रैपिड जांच किट, वेंटिलेटर, PPE की भी आपूर्ति करेगा ताकि कोरोना मरीजों और फ्रंटलाइन वर्कर्स को सुरक्षा और सहायता दिया जा सके. 

राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के बयान के अनुसार US डेवलपमेंट फाइनेंस कॉरपोरेशन (DFC) BioE कंपनी के क्षमता प्रसार के लिए फंडिंग कर रही है जिसके वैक्सीन को तीसरे फेज के ट्रायल की मंजूरी मिल गई है. इसे उसने बॉयलर कॉलेज ऑफ मेडिकल, टैक्सास के साथ मिलकर विकसित किया है .

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अमेरिका की सहायता से BioE 2022 के अंत तक अपनी वैक्सीन का 100 करोड़ डोज उत्पादित कर सकेगी. USAID भी सेंटर ऑफ डिजीज कंट्रोल के पब्लिक हेल्थ एडवाइजर्स के साथ मिलकर ग्लोबल फंड के द्वारा भारत की आर्थिक मदद करेगी. ऐसी ही सहायता उसने 1950 और 1960 के दशकों में भारत के सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों में की थी.

भारतीय अमेरिकी सांसद रो खन्ना की तरफ से और ज्यादा मदद करने की बात कही गई थी, जैसे अमेरिका अपने एस्ट्रेजनेका के भंडार को भारत को दें.

वायरस से लड़ने की रणनीति के तहत अमेरिका ने कई वैक्सीन निर्माताओं से करार किया और उसके भंडार बनाएं. वर्तमान में ऐस्ट्रेजनेका कोविशिल्ड को अमेरिका में मंजूरी नहीं मिली है और उसका भंडार बेकार है. अमेरिका में मॉडर्ना और फाइजर वैक्सीन की इतनी उपलब्धता है कि वह अपने पूरे नागरिकों को वैक्सीनेट कर सके. 

भारत के लिए सीख

इस पूरे घटनाक्रम से भारत को सीख लेनी चाहिए. पहला, उसे लक्ष्य के बारे में स्पष्टता के महत्व को सीखना चाहिए. शुरुआती गड़बड़ी के बाद अमेरिका ने अप्रैल 2020 के बाद कोविड को लेकर अपनी स्पष्ट रणनीति बनाई. उसने 'ऑपरेशन वार्प स्पीड' के तहत कम से कम 7 वैक्सीन कार्यक्रमों में निवेश किया और 8 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश अलग-अलग वैक्सीनों में किया. यह अतिरिक्त और हरेक अमेरिकी को जल्द से जल्द वैक्सीनेट करने के लिए जानबूझकर लिया गया रणनीतिक कदम था .

विशेषज्ञों का कहना है कि जिस तेजी से कोरोना वैक्सीन बनी हैं, वह आधुनिक विज्ञान का चमत्कार है, क्योंकि अमूमन वर्किंग वैक्सीन बनाने में सालों लगते हैं.

इसके उलट भारत ने अपने आप को ब्रिटिश-स्वीडन एस्ट्रेजनेका वैक्सीन के ऊपर अत्यधिक आश्रित रखा, जोकि सीरम इंडिया लिमिटेड के द्वारा उत्पादित होना था. दूसरी वैक्सीन भारत बायोटेक ने बनाई थी और इसने पिछले सप्ताह ही अपने अंतरिम ट्रायल के रिजल्ट सार्वजनिक किए हैं. इसका आधिकारिक सत्यापन बाकी है. 

अगर इनमें से एक भी प्रोजेक्ट असफल रहता तो भारत घोर तंगी की हालत में होता और चीनी तथा रूसी वैक्सिनों के आयात के लिए संघर्ष कर रहा होता, क्योंकि अमेरिका ने न सिर्फ अपनी वैक्सीनोंबल्कि कच्चे माल के निर्यात पर भी प्रतिबंध लगा रखा है.

इससे पहले 12 मार्च को हुए पहले QUAD समिट, जिसमें अमेरिका, भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया शामिल है, में घोषणा हुई कि वे कोविड वैक्सीन के उत्पादन को बढ़ाने के लिए मेजर पार्टनरशिप करेंगे. 2022 तक 1 बिलियन डोज के उत्पादन का लक्ष्य है. अमेरिका तथा जापान के आर्थिक सहयोग और ऑस्ट्रेलिया के लॉजिस्टिक सहयोग से भविष्य में भारत के वैक्सीन उत्पादन क्षमता में प्रसार का भी निर्णय लिया गया.

(लेखक ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन, नई दिल्ली में विशिष्ट फेलो हैं. इस आर्टिकल में छपे विचार लेखक के अपने हैं. इसमें क्विंट का उनसे सहमत होना जरूरी नहीं है.)

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