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एक देश के रूप में हमें चीन से अपने संबंधों को लेकर सचेत रहने की जरूरत है. वह एक ताकतवर पड़ोसी है जिसे हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए. फिर भी चीन के मामले में प्रधानमंत्री में साहस की कमी नजर आई, जो उचित नहीं है.
स्वतंत्रता दिवस पर अपने भाषण में प्रधानमंत्री ने चीन का जिक्र नहीं किया, बल्कि इस विषय पर सिर्फ खोखली बयानबाजी की. हाल के वर्षों में मोदी स्वतंत्रता दिवस के अपने भाषणों में विदेशी नीति पर चर्चा करने से बचते रहे हैं. ऐसी चर्चा उन्होंने 2016 के बाद कभी नहीं की. इस मौके पर राष्ट्रीय प्राथमिकताओं और सरकार की उपलब्धियों का बखान किया जाता है. लेकिन इस मौके पर अब तक की स्थितियों का विश्लेषण भी होता है और ठोस फैसले भी लिए जाते हैं. इस बात से कौन इनकार करेगा कि चीन के हाथ खून से रंगे हैं और यह मुद्दा सिर्फ विदेश नीति का नहीं है, भारत की सुरक्षा का भी है.
लेकिन मोदी ने सिर्फ इतना कहा कि ‘एलओसी से एलएसी तक, जहां भी भारत को चुनौती मिली है, हमारे सैनिकों ने उन्हीं की भाषा में उन्हें करारा जवाब दिया है.’ बेशक, यहां मोदी पाकिस्तान और चीन की तरफ इशारा कर रहे थे.
एक सच्चाई ये भी है कि चीनी सेना अब भी भारतीय क्षेत्र में कब्जा जमाए हुए है और देपसांग और पैंगोंग त्सो से हटने को तैयार नहीं है. यह कोई छोटी बात नहीं है, खासतौर से जब चीन ने एलएसी पर भारी संख्या में अपने सैनिकों की तैनाती की है. दूसरी तरफ उसके राजदूत ढिठाई से कह रहे हैं कि पिछले कुछ महीने की घटनाओं के लिए भारत जिम्मेदार है क्योंकि उसने चीनी क्षेत्रों में अतिक्रमण किया है.
इस बयान के साथ मोदी ने अपनी 19 जून की टिप्पणी को ही मानो मजबूती दी है. तब उन्होंने चीनी घुसपैठ के विषय को जान बूझकर टालने की कोशिश की थी. ‘न तो कोई हमारे क्षेत्र में घुसा है, और न ही हमारी कोई पोस्ट पर कब्जा किया गया है.’ 15 जून की घटना के बाद उन्होंने ये कहा था. दूसरी तरफ रक्षा मंत्रालय ने अपनी वेबसाइट पर एक नोट पोस्ट किया था जिसे अगस्त की शुरुआत में हटा दिया गया. इस नोट में कहा गया था कि मई के महीने में चीन ने कुगरांग नाला, गोगरा और पैंगोंग त्सो में ‘सीमा का उल्लंघन’ किया था और "चीन द्वारा एकतरफा अतिक्रमण से पूर्वी लद्दाख में स्थिति संवेदनशील बनी हुई है ...".
सबसे बड़ी समस्या यह है कि इस मुद्दे को न तो सरकार की तरफ से मान्यता दी गई है और न ही इस पर कोई टिप्पणी की गई है- 18 किलोमीटर क्षेत्र मे चीन की घुसपैठ से भारतीय सैनिक सैकड़ों वर्ग मीटर के क्षेत्र में गश्त नहीं लगा पा रहे हैं. इसके अतिरिक्त इस पूरे अभियान के चलते चीन भारत के सबसे उत्तरी छोर दौलत बेग ओल्दी और वायु सेना के सबसे एडवांस लैंडिंग ग्राउंड के और करीब पहुंच गया है.
आईटीबीपी ने दावा किया है कि उसने वीरता पुरस्कारों के लिए उन 21 जवानों के नाम सरकार को भेजे थे जिन्होंने चीनी झड़पों का बहादुरी से सामना किया था. यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि भारतीय थलसेना ने अपने वीर सैनिकों के नामों की सिफारिश न की हो.
ऐसा महसूस होता है कि सरकार ने यह चूक जान बूझकर की है. राष्ट्रपति कोविंद ने भी स्वाधीनता दिवस की पूर्व संध्या पर बस इतना भर कहा था कि ‘भारत सभी आक्रामक प्रयासों का मुंह तोड़ जवाब देने में सक्षम है.’ ध्यान देने वाली बात यह है कि यह आक्रामकता नहीं थी, उसकी कोशिश थी. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने तो मुंह तोड़ जवाब को अपना ट्रेडमार्क बना लिया है. स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर उनकी चेतावनी प्रत्याशित थी, ‘अगर दुश्मन हम पर हमला करेगा तो हम उसे मुंहतोड़ जवाब देंगे’, बेशक, दुश्मन ने ऐसा किया है और देश उस जवाब का इंतजार कर रहा है.
नई दिल्ली की तरफ से यह पूरी कोशिश की जा रही है कि चीन उस स्थिति को बहाल करे, जो अप्रैल में थी. इसके लिए चीन में भारत के राजदूत विक्रम मिस्री चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की सेंट्रल मिलिट्री कमीशन (सीएमसी) के अधिकारियों से मिले. पर असल बात तो यह है कि जब बात भारत चीन सीमा की आती है तो इस मुद्दे पर चीन का विदेश मंत्रालय नहीं, पीएलए नीतियां बनाता है. हाल के वर्षों में पीएलए यही संदेश दे रहा है- पुरजोर शब्दों में और स्पष्ट तरीके से.
दुखद यह है कि सरकार लगातार लोगों को पूरी बात नहीं बताना चाहती. असल बात तो यह है कि हमारा खूफिया तंत्र अप्रैल में चीनी मंसूबों को भांप नहीं पाया. सरकार कोविड-19 की महामारी पर जनता को भ्रमित करने की कोशिश करती रही और फिर अपनी बयानबाजी के जाल में फंस गई. चीन या पाकिस्तान जब युद्धाभ्यास करते हैं तो थल सेना की रिजर्व यूनिट्स उन क्षेत्रों के आस-पास तैनात कर दी जाती हैं लेकिन लद्दाख में ऐसा नहीं हुआ. इससे खतरनाक स्थिति पैदा हुई.
किस्मत की बात थी, कि चीन ने हमले की कोशिश नहीं की, हां- सिर्फ छोटी सी चिंगारी छोड़ी. हमने यह उम्मीद नहीं की थी कि प्रधानमंत्री स्वतंत्रता दिवस के अपने भाषण में इस चूक का जिक्र करेंगे, अगर ऐसा है तो उन्हें गलतफहमी पैदा करने वाली बयानबाजी और दावों से भी बचना चाहिए.
(लेखक ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन, नई दिल्ली के प्रतिष्ठित फेलो हैं.)
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