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MANF: सरकार ने कतरे बेटियोंं के 'पंख', कैसे सफल होगा बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ अभियान

MANF फेलोशिप का लाभ सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश के अल्पसंख्यक छात्र-छात्राओं ने उठाया है.

कंचना यादव
नजरिया
Published:
<div class="paragraphs"><p>MANF: सरकार ने कतरे बेटियोंं के 'पंख', कैसे सफल होगा बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ अभियान</p></div>
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MANF: सरकार ने कतरे बेटियोंं के 'पंख', कैसे सफल होगा बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ अभियान

फोटोः क्विंट हिंदी

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एक तरफ सरकार "बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ" का नारा दे रही है. इस अभियान के तहत सरकार ढेरों रुपए खर्च भी कर रही है. दूसरी तरफ सरकार ने अल्पसंख्यक समाज के उत्थान के लिए दी जाने वाली MANF फेलोशिप बंद कर दी है. अगर पिछले 5 साल के आंकड़ों को उठाकर देखें तो इस फेलोशिप से सबसे ज्यादा लाभान्वित अल्पसंख्यक समाज की छात्राएं हुईं हैं. ऐसे में इस योजना के बंद हो जाने से "बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ" अभियान को भी धक्का लगेगा.

9 मार्च 2006 को UPA सरकार ने घोषणा की कि भारत में मुस्लिम आबादी की सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक स्थिति पर रिपोर्ट तैयार करने के लिए एक उच्च स्तरीय समिति की स्थापना की जाएगी. 17 नवंबर, 2006 को पैनल के सात सदस्यों द्वारा उच्च स्तरीय समिति की अंतिम रिपोर्ट प्रधानमंत्री को सौंपी गई, जिसकी अध्यक्षता न्यायमूर्ति राजिंदर सच्चर ने की थी. सरकार ने 30 नवंबर को प्रतिनिधि सभा में जस्टिस राजिंदर सच्चर कमेटी की रिपोर्ट पेश की.

सच्चर कमेटी ने भारत में मुस्लिम समुदाय की स्थिति में सुधार करने के लिए कई स्रोतों से जानकारी जुटाई थी. इसके लिए समिति ने कई सिफारिशें की थीं, जिनमें से कुछ महत्त्वपूर्ण सिफारिशें कीं....

  • अल्पसंख्यकों जैसे वंचित समूहों की शिकायतों की जांच के लिए एक सामान अवसर आयोग बनाना

  • सार्वजनिक निकायों में अल्पसंख्यकों की भागीदारी बढ़ाने के लिए एक नामांकन प्रक्रिया विकसित करना

  • एक परिसीमन प्रक्रिया स्थापित करना जो अनुसूचित जाति के लिए उच्च अल्पसंख्यक आबादी वाले निर्वाचन क्षेत्रों को आरक्षित नहीं करती है

  • मुसलमानों का रोजगार में हिस्सेदारी बढ़ाना, विशेष रूप से निजी क्षेत्र में

इसके साथ ही उच्च माध्यमिक स्कूल बोर्ड के साथ मदरसों को जोड़ने के लिए सिस्टम बनाना और मदरसा की डिग्री को बैंकिंग, नागरिक और सैन्य परीक्षण के लिए योग्यता के रूप में स्वीकार करना था. समिति ने सिफारिश की कि नीति "विविधता का सम्मान करते हुए समावेशी विकास और समुदाय को" मुख्यधारा"में लाया जाए."

समिति का जनादेश था कि...

  • राज्य, क्षेत्रीय और जिला स्तरों पर भारत में मुसलमानों की सापेक्ष सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक स्थिति पर प्रासंगिक डेटा इकट्ठा करना और साहित्य समीक्षा करना

  • उनके सामाजिक-आर्थिक विकास के स्तर का आकलन करना

  • सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों में रोजगार के सापेक्ष हिस्से का आकलन

  • विभिन्न राज्यों में कुल ओबीसी आबादी में मुस्लिम समुदाय के ओबीसी के अनुपात का आकलन करना

  • उनके सामाजिक-आर्थिक विकास के स्तर का आकलन करना.

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2009 में मौलाना आजाद नेशनल फेलोशिप (MNF) के निर्माण के साथ सच्चर समिति की सिफारिशों को अमल में लाया गया. केंद्र सरकार ने 2009 में छह: अधिसूचित अल्पसंख्यक समुदायों (बौद्ध, ईसाई, जैन, मुस्लिम, पारसी और सिख) के लिए MANF फेलोशिप की घोषणा की.

  • MANF का लक्ष्य इन समुदायों के छात्रों को वित्तीय सहायता के रूप में पांच साल की फेलोशिप प्रदान करना था, ताकि वे एमफिल और पीएचडी कि डिग्री हासिल कर सकें. यह योजना विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) द्वारा मान्यता प्राप्त सभी विश्वविद्यालयों और संस्थानों जैसे UGC अधिनियम 1956 की धारा 2 (F) के तहत शामिल केंद्रीय / राज्य विश्वविद्यालय (घटक और सम्बद्ध संस्थानों सहित) और वैध नैक से मान्यता

  • UGC अधिनियम की धारा 3 के तहत विश्वविद्यालय, यानी, उच्च शिक्षा के संस्थान जिन्हें यूजीसी के परामर्श से केंद्र सरकार द्वारा डीम्ड यूनिवर्सिटी के रूप में अधिसूचित किया गया है और एनएएसी से वैध मान्यता प्राप्त है

  • केंद्र / राज्य सरकार द्वारा पूरी तरह से वित्तपोषित और डिग्री प्रदान करने के लिए अधिकृत संस्थान और मानव संसाधन और विकास मंत्रालय द्वारा अधिसूचित राष्ट्रीय महत्त्व के संस्थान पर लागू हुआ.

यूजीसी के माध्यम से मिनिस्ट्री ऑफ माइनॉरिटी ने यह छात्रवृत्ति लागू की थी. यह भी कहा गया था कि इस कार्यक्रम के अध्येताओं को मिनिस्ट्री ऑफ माइनॉरिटी के विद्वानों के रूप में संदर्भित किया जाएगा.

2014 से 2019 तक के आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चलता है कि हर साल अलग-अलग राज्यों से अलग-अलग संख्या में छात्रों को MANF स्कॉलरशिप मिली है.

  • साल 2014-2015 में, कुल 756 छात्रों को MANF फेलोशिप मिली थी, जिसमें से, 292 लड़के थे और 464 लड़कियां थीं और सबसे ज्यादा लाभार्थी उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और पंजाब से थे.

  • साल 2015-2016 में, कुल 756 लोगों को MANF फेलोशिप मिली थी जिसमें, 285 लड़के थे और 471 लड़कियां थीं और सबसे ज्यादा लाभार्थी उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और बिहार से थे.

  • साल 2016-2017 में कुल 756 लोगों को यह फेलोशिप मिली थी उनमें से, 427 लड़के थे और 329 लड़कियां थीं, जिनमें सबसे ज्यादा लाभार्थी उत्तर प्रदेश, जम्मू और कश्मीर और महाराष्ट्र से थे.

  • साल 2017-2018 में, कुल 756 लोगों को एमएएनएफ फेलोशिप मिली, उनमें से 296 लड़के और 459 लड़कियां थीं, जिनमें सबसे अधिक छात्र उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और पंजाब से थे.

  • साल 2018-2019 में कुल 1000 छात्रों को यह फेलोशिप मिली उनमें से 531 लड़के और 468 लड़कियां थीं, जिनमें जम्मू और कश्मीर, उत्तर प्रदेश और केरल से आने वाले छात्रों की संख्या सबसे अधिक थी.

इन आंकड़ों से पता चलता है कि लगभग हर दूसरे वर्ष अल्पसंख्यक महिलाओं को अल्पसंख्यक पुरुषों की तुलना में अधिक फैलोशिप प्राप्त हुई है और राज्यों में सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश के छात्र लाभार्थी रहे हैं. अल्पसंख्यक मामलों की मंत्री स्मृति ईरानी ने संसद में कहा कि सरकार ने 2022-23 से MANF योजनाओं को बंद करने का निर्णय लिया है. ऐसे में MANF फेलोशिप को बंद करने से अल्पसंख्यक महिलाओं की उच्च शिक्षा पर सबसे अधिक प्रभाव पड़ेगा.

(लेखिका कंचना यादव JNU में PhD स्कॉलर हैं. यह एक ओपिनियन पीस है और ऊपर व्यक्त किए गए विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है.)

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